विदेश जाने के पहले मुझे पता नहीं था कि घरों या मकानों 'धुंआ सूंघक या घ्राणक' यानी Smoke Detector जैसी कोई चीज लगी रहती है। वैसे चीज़ है बड़े काम की और आजकल तो भारत में भी कई आलीशान इमारतों यानी होटलों, इनफ़ोसिस जैसी कम्पनियों की आलीशान इमारतों इत्यादि में ये महाशय या महाशया लगे रहते/लगी रहती हैं। वैसे अब आगे के लेख में मैं पुर्लिंग का ही प्रयोग करूंगा , महिलाओं से क्षमा मांगता हूं।
वैसे ये महाशय हैं बड़ी काम की चीज। ये कई लोगों की आग से जान बचा सकते हैं, कीमत भी कुछ खास नहीं है, सबसे सस्ता करीब ५०० रूपये का आता है। और आकार भी छोटा सा ही होता है, तकरीबन ८-१२ सेमी व्यास यानी डायामीटर घरेलू उपयोग के लिये। और इनकी ऊर्जा की मांग भी काफ़ी कम होती है, आप इनको ९-१२ वोल्ट की बैटरी लगाकर चला सकते हैं।
हां, तो मैंने ये सोचा कि ये भाई साहब काम कैसे करते हैं, इनकी नाक इतनी दिव्य कैसे है?
इन भाई साहब के दो मुख्य भाग होते हैं: एक तो मुख्य यंत्र जो कि धुंआ सूंघता है और दूसरा होता है एक जोरदार हार्न यानी भोंपू जिनका काम होता है लोगों को चेताना। मैं इस लेख में सूंघने वाले यंत्र की चर्चा विस्तार से करूंगा क्योंकि पता तो वही लगाते हैं।
तो ये जो यंत्र है वो दो प्रकार के हो सकते हैं:
क-
फोटोइलेक्ट्रिक सूंघक,
ख-
आयोनाइज़ेशन सूंघक।
तो पहले देखते हैं ये फोटोइलेक्ट्रिक सूंघक कैसे काम करते हैं:
फोटोइलेक्ट्रिक सूंघक का यदि हम संधिविच्छेद करें तो फोटो का मतलब है प्रकाश फोटोन से यानी प्रकाश ऊर्जा को लेकर चलने वाला अतिसूक्ष्म कण, इलेक्ट्रिक मतलब विद्युत से, और सूंघक यानी डिटेक्टर जो कि इन दोनों प्रभावों से मिलकर बनता है और काम करता है। फोटोइलेक्ट्रिक सिद्धांत के अनुसार कुछ पदार्थों पर यदि प्रकाश पड़ता है तो उससे इलेक्ट्रान उत्पन्न होते हैं और फिर विद्युत धारा का प्रवाह उत्पन्न हो जाता है, जैसा कि नीचे चित्र में दिखाया गया है।
अब सूंघक पर फोटोन की जितनी ऊर्जा पड़ेगी वो उतनी ही विद्युत धारा (और वोल्टेज यानी विभव) उत्पन्न करेगा और यदि बिल्कुल प्रकाश नहीं पड़ेगा तो धारा बिल्कुल उत्पन्न नहीं होगी।
नीचे दिखाये गये चित्र १ में यदि देखें तो उसमें श्रोत किनारे ऊपर की ओर लगा है, सूंघक नीचे की तरफ़ बीच में और प्रकाश बिना सूंघक की तरफ जाये बाहर जा रहा है।
(१)
(२)
(A-प्रकाश श्रोत, B-डिटेक्टर यानी सूंघक)
अब यदि हम श्रोत के सामने कुछ ऐसे कण डाल दें जिससे कि प्रकाश छितर जाये तो कुछ प्रकाश सूंघक की ओर भी जायेगा। जैसे ही वहां प्रकाश जायेगा, तो वहां कुछ धारा प्रवाहित होगी और पीछे का जुड़ा हुआ कोई भी सर्किट काम करने लगेगा क्योंकि हम अब उसमें विद्युत प्रवाह उत्पन्न कर सकते हैं (उदाहरणार्थ सौर बैटरी) और वो सर्किट हार्न का हो सकता है। एक चीज है कि इस सूंघक में बहुत कम धुयें जैसे कि सिगरेट के धुयें से हार्न नहीं चलेगा क्योंकि धुयें की मात्रा विद्युत धारा के प्रवाह को रोकने या कम करने के लिये बहुत कम होगी।
अब दूसरे तरह के सूंघक को देखते हैं:
आयनाइज़ेशन सूंघकये सूंघक काफ़ी प्रचलित हैं क्योंकि ये एक तो कम धुयें में काम कर सकते हैं और दूसरा ये काफ़ी सस्ते भी होते हैं। पर इसमें होता है एक नाभिकीय या रेडियोएक्टिव तत्व अमेरिसियम-२१ जो कि अल्फा कण का अच्छा श्रोत है और इसकी अर्ध आयु है ४३२ साल। अल्फा किरणें गामा किरणों की तरह बहुत घातक भी नहीं होती हैं इसलिये कोई खतरा भी नहीं है और सूंघक के अन्दर इसकी मात्रा भी बहुत कम होती है: लगभग १ माइक्रोग्राम। हां एक चीज का खयाल रखना पड़ता है कि इसको मुंह या नाक के रास्ते अंदर नहीं जाने देना चाहिये।
अब बात करते हैं कि ये काम कैसे करता है। इसका सिद्धांत कहुत ही सरल है, दो विपरीत आवेशित प्लेटों के बीच में अमेरीसियम के कणों द्वारा बनी हुयी अल्फ़ा किरणें प्लेटों के बीच हवा में मौज़ूद नाइट्रोजन और आक्सीजन गैस के अणुओं को आयनीकृत कर देती हैं अर्थात उनके बाहरी इलेक्ट्रानों को निकाल देती हैं जिससे कि ये अणु धनावेशित हो जाते हैं और ये और ऋणावेशित इलेक्ट्रान क्रमशः विपरीत आवेशित प्लेटों की तरफ़ प्रवाहित होते हैं, जिससे कि विद्युत धारा का प्रवाह होता है (नीचे दिये गये चित्र में देखें)। इस सूंघक में इलेक्ट्रानिक्स इस तरह की होती है कि वो कम से कम विद्युत धारा के प्रवाह को भी माप सके। अब जब धुंआ इस प्रवाह के बीच में आता है
तो वो इस आयनीकृत आक्सीजन और नाइट्रोजन के अणुओं से चिपक जाता है और उनको आवेश हीन या न्यूट्रल बना देता है जिससे कि विद्युत धारा का प्रवाह कम हो जाता है और इस कमी को सूंघक की इलेक्ट्रानिक्स द्वारा माप लिया जाता है और ये सिग्नल हार्न बजा देता है।
अब आइये देखते हैं कि ये अन्दर से कैसा दिखता है:
इसके अन्दर की चीज़े हैं: एक बक्सा जहां आयनीकरण होता है और वहीं अमेरीसियम स्थित है, एक हार्न और बाकी इलेक्ट्रानिक्स।
है न एक छोटी सी चीज पर कितने काम की और कितने सरल सिद्धांत पर काम करती है। यही है विज्ञान की विशेषता, इन्हीं सरल सिद्धांतो को खोजने में बड़े बड़े वैज्ञानिकों ने अपनी जिन्दगी को लगा दिया है और हम उसका महत्व तब भी शायद ही समझ पाते हैं जब वो मूर्त रूप में सामने भी आ जाता है और हमारे जीवन में क्रांति लाता है।
आगे कुछ और ऐसा ही एक और यंत्र लेकर आऊंगा आपके सामने।