Nov 14, 2010

एक कुत्ते की बात

आज से दो दिन पहले मे गेट से बहरनिकला तो एक कुत्ता काटने को दौडा, और मै किसी प्रकार पहले बचाव किया, फिर जैसे ही उसी मारने के लिये ईट उठाने की कोशिश की तो वो फिर काटने को दौड़ा पर मैने भी किसी प्रकार से दो ईट उठा ली और उससे दो-दो हाथ खड़ा हो गया। मैने ईट उसके पेट मे मारने की कोशिश की तो पता नही कैसे अपना सिर बीच मे ले आया और ईट उसके सिर पर जाकर ठक से लगी, जैसे ही उसे ईंट लगी कुत्ते की सारी बकैती ऐसे गायब हुयी जैसे गधे के सिर से सींग और ऐसा भागा कि जब तक की ऑंख से ओझल न हो गया।

मेरी ईंट उसके सिर पर लगने का अफ़सोस था क्‍योकि जानवरो के सिर पर चोट लगने से वो बच कम पाते है पर उसे ईंट लगने पर खुली चोट नही लगी थी इसी से मुझे थोड़ी तसल्‍ली थी। वह दो दिन से गायब रहा मुझे चिंता हो रही थी कि वो कहीं मर न गया हो। जब यह बात मैने भैया को बताई तो भैया ने हंसते हुये कहा कि चोट दीमाग पर लगी है तो कहीं याददाश्‍त न भूल गया हो।

कल रात्रि वह कुत्ता मुझे फिर दिखा और एक टकटकी निगह से मुझे फिर देख रहा था, भौका भी नही। अचानक मैने जैसे ही एक ईट का टुकड़ा उठाने की कोशिश की वह उसी रफ्तार से भागा जैसे उस दिन भागा था और तब तक भागता रहा जब तक की आखो से ओझल न हो गया। मुझे यकीन हो गया कि वह ठीक और उसकी याददाश्त भी नही खोई। :)

Nov 2, 2010

कहाँ है सेक्‍यूलर रूदालियाँ और मीडिया - बांग्लादेश में उपद्रवियों ने काली मंदिर तोड़ा

ढाका. हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं के लिए हालात चिंताजनक होते जा रहे हैं। वहां हिंदू विरोधी माहौल बनता जा रहा है। बांग्लादेश में हिंदुओं के पवित्र पूजा स्थलों पर हमले हो रहे हैं। रविवार की सुबह देश की राजधानी ढाका में बांग्लादेश छात्र लीग (बीसीएल) के उपद्रवी सदस्यों ने रंगदारी वसूलने के मामले में विवाद बढ़ने पर ऐतिहासिक रामना काली मंदिर को तोड़ दिया। 



मंदिर टूटने से बांग्लादेशी हिंदुओं में नाराजगी है। हालांकि, बांग्लादेश में हिंदू धर्म से जुड़े प्रतीकों और त्योहारों पर हमले का मामला नया नहीं है। कुछ हफ्तों पहले दुर्गापूजा के दौरान भी कई हिंदुओं पर हमले की बात सामने आई थी। वहीं, इस साल कृष्ण जन्माष्टमी पर भी शाम तक ही पूजा खत्म करने के सरकार के आदेश से भी हिंदुओं को ठेस लगी थी। लीग पर आरोप है कि इसके कार्यकर्ताओं ने रामना मंदिर इलाके में दो मूर्तियों को तोड़ डाला और आसपास की दुकानों में तोड़फोड़ मचा दी।

बांग्लादेश में हिंदुओं के दमन पर एमनेस्टी इंटरनेशनल भी चिंतित है। एमनेस्टी का कहना है कि प्रधानमंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनल पार्टी के समर्थकों द्वारा अक्टूबर के बाद से हिंदुओं पर हमले बढ़ गए हैं। इसकी वजह है कि नेशनल पार्टी के समर्थकों को लगता है कि हिंदू अवामी लीग का समर्थन कर सकते हैं। एमनेस्टी ने इसके लिए बांग्लादेश सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि हिंदुओं पर हमले करने वाले लोगों को सज़ा भी नहीं मिल रही है।

बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। देश की आबादी पंद्रह करोड़ है जिसमें करीब 8 फीसदी हिंदू हैं और अन्य बौद्ध, ईसाई और आदिवासी हैं। बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार और दमन का असर उनकी आबादी पर भी देखा जा सकता है। बांग्लादेश में हिंदुओं की तादाद लगातार घटती जा रही है। बांग्लादेश में 1941 में हिंदुओं की आबादी जहां 28 फीसदी थी वही 1991 में घटकर 10.5 फीसदी हो गई। हिंदुओं की आबादी 1961 से 1991 के बीच करीब 8 फीसदी घट गई।  

एक आकलन के मुताबिक 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) में करीब 30 लाख हिंदुओं का हत्या हो चुकी है। डॉ. सब्यसाची घोष दस्तीदार की किताब 'इंपायर्स लास्ट कैजुअलटी' में दावा किया गया है कि हिंदुओं के इस्लामीकरण के चलते इनमें से ज़्यादातर हत्याएं हुईं।



बांग्लादेश में आज हिंदुओं के सामने न सिर्फ अपनी धार्मिक आस्था को बचाए रखने की चुनौती है बल्कि उन्हें नरसंहार, अपहरण, फिरौती, रंगदारी, सार्वजनिक तौर पर अपमान जैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। किताब में कहा गया है कि बांग्लादेश में हिंदू जजों, पेशेवर लोगों, अध्यापकों, वकीलो और सिविल सर्वेंट को चुन-चुनकर मारा जा रहा है। सबसे ज़्यादा चिंताजनक पहलू यह है कि बांग्लादेश में बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय के लड़के हिंदू लड़कियों का अपहरण कर उनसे जबर्दस्ती शादियां कर रहे हैं। 

साभार - दैनिक भास्‍कर

सम्‍पादक महोदय अमित मतलब अमिताभ्‍ा बच्‍चन ही नही होता

आज विश्व के सबसे बड़े हिन्‍दी समाचार पत्र दैनिक जागरण के वेबको देख कर चौंक गया कि गुजराज के ब्रांड अम्‍बेस्‍डर अमिताभ की फोटो गुजराज के पूर्व गृहमंत्री की जगह लगा दिया, ऐसे विश्वि स्‍तरीय समाचार पत्र से ऐसी त्रुटि की उम्मीद नही ही की जा सकती।

Oct 12, 2010

इलाहाबाद हाई कोर्ट मे पहला दिन

नवरात्रि पर्व की पंचम, दिन मंगलवार आंग्‍ल तिथि के अनुसार 12 अक्टूबर को आज एक अधिवक्ता के रूप-वेश मे कोर्टरूम मे प्रथम दिन था। एक लिहास से बहुत अटपटा लगा रहा था, क्‍योकि यह वेश थोड़ा नया प्रतीत हो रहा था। लेकिन कोर्ट परिसर मे मेरे सीनियर और पिताजी के जूनियर्स के बीच हमारी अच्‍छी आव-भगत और उसका पूरा आर्थिक बोझ लंच हमारे भैया पर पड़ा।

एक लिहाज से पहला दिन बहुत अच्‍छा रहा मुख्‍य न्‍यायधीश कोर्ट मे तालाबंदी थी पता चला कि सीजे लखनऊ मे है। कुछ कोर्ट बैठी थी तो कुछ नही बैठी इसी के साथ  उच्‍च न्‍यायालय का दशहरा अवकाश भी प्रारम्‍भ हो गया। प्रात कोर्ट जाने के पूर्व घर मे बड़ो के आशीर्वाद लेकर मंदिर मे प्रसाद के लिये गया और वही पर अपने एक अन्‍य अधिवक्‍ता मित्र जो कि लखनऊ मे उनसे भी बात किया, फिर प्रसाद लेकर अपने दोस्‍तो के घर पर उनके माता-पिता का आशीर्वाद लेने गया।

व्‍यस्‍ताओ के मध्‍य बहुत कुछ काम जो मै नेट पर करना चाहता था किन्‍तु नही कर सका, इधर वर्धा की रिर्पोटो की आज फोटो सुरेश जी के ईमेल से मिली तो याद आया कि मै कुछ बाते भेजना चाह रहा था लेकिन वो भी भूल गया, कार्यक्रम मे सुरेश जी खुश‍ दिख रहे है तो लगता है कि सब अच्‍छा ही हुआ है, सफल कार्यक्रम की सिद्धार्थ  जी व अन्‍य आयोजको को बहुत शुभकामनाऍं। अब तक ब्‍ल‍ागिंग की पारी देख रहा था आज से नयी पारी स्‍टार्ट की है चाहूँगा कि उनमे नये मुकामो को छूऊ।

शेष फि

Oct 1, 2010

The Great Indian Freedom Fighter Lokmanya Bal Gangadhar Tilak

लोकमान्‍य बाल गंगाधर तिलक
भारत के महान स्‍वातंत्रता संग्राम सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने देश सेवा तथा समाज सुधार का बीड़ा बचपन में ही उठा लिया था। उनका जन्म 23 जुलाई, 1856 को हुआ था। पहले उनका नाम बलवंत राव था। वे अपने देश से बहुत प्यार करते थे। उनके बचपन की एक ऐसी ही घटना है, जिससे उनके देशप्रेम का तो पता चलता ही है, साथ ही यह भी पता चलता है कि छोटी-सी अवस्था में ही तिलक में कितनी सूझ-बूझ थी।

बाल गंगाधर तिलक भारत के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतन्त्रता सेनानी थे। ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे। इन्होंने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वराज की माँग उठाई। इनका कथन "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा" बहुत प्रसिद्ध हुआ। इन्हें आदर से "लोकमान्य" (पूरे संसार में सम्मानित) कहा जाता था। इन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है।

उस समय भारत अंगरेजों का गुलाम था, लेकिन देश में कुछ व्यक्ति ऐसे भी थे, जो उनकी गुलामी सहने को तैयार नहीं थे। उन्होंने अपने छोटे-छोटे दल बनाए हुए थे, जो अंगरेजों को भारत से बाहर निकालने की योजनाएं बनाते थे और उन्हें अंजाम देते थे। ऐसा ही एक दल बलवंत राव फड़के ने भी बनाया हुआ था। वह अपने साथियों को अस्त्र-शस्त्र चलाने की ट्रेनिंग देते थे, ताकि समय आने पर अंगरेजों का डटकर मुकाबला किया जा सके। गंगाधर भी उनके दल में शामिल हो गए और टे्रनिंग लेने लगे। जब वह अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग में सिध्दहस्त हो गए, तो फड़के ने उन्हें बुलाया और कहा कि अब तुम्हारा प्रशिक्षण पूरा हुआ। तुम शपथ लो कि देश सेवा के लिए अपना जीवन भी बलिदान कर दोगे। इस पर गंगाधर बोले, 'मैं आवश्यकता पड़ने पर अपने देश के लिए जान भी दे सकता हूं, लेकिन व्यर्थ में ही बिना सोचे-समझे जान गंवाने का मेरा इरादा नहीं है। अगर आप यह सोचते हैं कि केवल प्रशिक्षण से ही अंगरेजों का मुकाबला हो सकता है, तो यह सही नहीं है। अब तलवारों का जमाना गया। अब बाकायदा योजनाएं बनाकर लड़ाई के नए तरीके अपनाने होंगे।' यह कहकर गंगाधर तेज कदमों से वहां से चले आए। फिर उन्होंने योजनाबध्द तरीके से देश के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर देश की आजादी की लड़ाई लड़ी।
Lokmanya Bal Gangadhar Tilak Indian Freedom Fighter
  तिलक ने भारतीय समाज में कई सुधार लाने के प्रयत्न किए। वे बाल-विवाह के विरुद्ध थे। उन्होंने हिन्दी को सम्पूर्ण भारत की भाषा बनाने पर ज़ोर दिया। महाराष्ट्र में उन्होंने सार्वजनिक गणेश पूजा की परम्परा प्रारम्भ की ताकि लोगों तक स्वराज का सन्देश पहुँचाने के लिए एक मंच उपलब्ध हो। भारतीय संस्कृति, परम्परा और इतिहास पर लिखे उनके लेखों से भारत के लोगों में स्वाभिमान की भावना जागृत हुई। उनके निधन पर लगभग 2 लाख लोगों ने उनके दाह-संस्कार में हिस्सा लिया। 1 अगस्त, 1920 को उनका निधन हो गया।