Sep 28, 2007
कितना जरूरी है न्यायपालिका पर प्रहार ?
हाल के दिनों में देखा जाता है कि कितने सार्थक तथ्यों को वकीलो द्वारा रखने के पश्चात भी मननीय लोग अपने आतार्किक फैसलों से कई जिन्दगीं को तार-तार कर देते है। यहॉं तक कि कुछ माननीय अधिवक्ताओं की बात सुनने को ही तैयार नही होते है। निश्चित रूप से यह व्यवस्था को बदलना होगा कि सही तथ्यों को सुना जाना चाहिऐ और भारतीय सविधान में जिस प्रकार की पारदर्शी न्याय की इच्छा की गई थी उसके स्वरूप को भी बरकरार किया जाना चाहिऐ।
हाल के मिड डे प्रकरण ने पूरे मीडिया जगत को हिला कर रख दिया, मीडिया ने क्या सही किया मै यह नही जानता किन्तु इतना जानता हूँ कि अभी सविंधान ने न्यायालय पर टिप्पणी का हक नही देता है। शायद इसलिये कि देश का सबसे निचला वर्ग का विश्वास इस पर न टूट जाये। जजों के फैसले को भी एक दायरे मे लाना चाहिऐ, मै यह नही कहता हूँ कि हर न्याय गलत होता है किन्तु कभी कभी न्यायमूर्तियों द्वारा अहम के कारण यह फैसले विरोध में हो जाते है। माननीयों द्वारा अहं के प्रश्न पर न्याय की समीक्षा जरूरी होती है। न्याय के पैमाने पर आज यह जरूरी है कि न्याय की समीक्षा हो, किन्तु यह भी आवाश्यक है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम किसी नागरिगों द्वारा खुले आम माननीयों को भी बदनाम न किया जाये। क्योकि कभी कभी नादानी में इतने कठोर शब्दों का प्रयोग न्यायधीशो पर पत्रकारों द्वारा कर दिये जाते है जो निश्चित रूप से गलत होता है। निश्चित रूप से पत्रकार मिड डे मामले में नैतिक रूप से सही हो किन्तु सवैधानिक रूप से वे गलत है। भारत की प्रणाली नैतिक मूल्यों से नही संवैधानिक रूप से चलती है।
मेरे ख्याल से सभी राज्यों में एक अवकाश प्राप्त न्यायमूर्तियों की ऐसी कमेटी होनी चाहिऐ जो वर्तमान माननीयों की फैसले को थोपे जाने से रोका जा सके। क्योकि कभी कभी न्याय प्राप्त कर्ता इनता गरीब होता है कि धन के आभाव में वह सर्वोच्च न्यायालय नही जा सकता है। पर इतना तो जरूर सत्य है कि भारत का संविधान और न ही न न्यायपालिका अपने ऊपर आक्षेप करने की अनुमति देता है।
Sep 27, 2007
शहीद भगत सिंह
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 में एक देश भक्त क्रान्तिकारी परिवार में हुआ था। सही कह गया कि शेर कर घर शेर ही जन्म लेता है। इनका परिवार सिंख पंथ के होने बाद भी आर्यसमाजी था और स्वामी दयानंद की शिक्षा इनके परिवाद में कूट-कूट कर भरी हुई थी।एक आर्यसमाजी परिवेश में बड़े होने के कारण भगत सिंह पर भी इसका प्रभाव पड़ा और वे भी जातिभेद से उपर उठ गए । ९वीं तक की पढ़ाई के बाद इन्होंने पढ़ाई छोड़ दी । और यह वही काला दिन था जब देश में जलियावाला हत्या कांड हुआ था। इस घटना सम्पूर्ण देश के साथ साथ इस 12 वर्षीय बालक के हृदय में अंग्रेजों के दिलों में नफरत कूट-कूट कर भर दी। जहॉं प्रारम्भ में भगत सिंह क्रान्तिकारी प्रभाव को ठीक नही मानते थे वही इस घटना ने उन्हे देश की आजादी के सेनानियों में अग्रिम पक्तिं में लाकर खड़ा कर रही है।
यही नही लाला लाजपत राय पर पड़ी एक एक लाठी, उस समय के युवा मन पर पडे हजार घावों से ज्यादा दर्द दे रहे थे। भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त और राजगुरू ने पुलिस सुपरिंटेंडेंट सैंडर्स की हत्या का व्यूह रचना की और भगत सिंह और राजगुरू के गोलियों के वार से वह सैंडर्स गॉड को प्यारा हो गया।
निश्चित रूप से भगत सिंह और उनके साथियों में जोश और जवानी चरम सीमा पर थी। राष्ट्रीय विधान सभा में बम फेकने के बाद चाहते तो भाग सकते थे किन्तु भारत माता की जय बोलते हुऐ फाँसी की बेदी पर चढ़ना मंजूर किया और 23 मार्च 1931 हसते हुऐ निम्न गीत गाते हुये निकले और भारत माता की जय बोलते हुऐ फाँसी पर चढ़ गये।
भगत सिंह और उनके मित्रों की शहादत को आज ही नही तत्कालीन मीडिया और युवा ने गांधी के अंग्रेज परस्ती गांधीवाद पर देशभक्ततों का तमाचा बताया था। दक्षिण भारत में पेरियार ने उनके लेख मैं नास्तिक क्यों हूँ पर अपने साप्ताहिक पत्र कुडई आरसु में के २२-२९ मार्च, १९३१ के अंक में तमिल में संपादकीय लिखा । इसमें भगतसिंह की प्रशंसा की गई थी तथा उनकी शहादत को गांधीवाद के पर विजय के रूप में देखा गया था । तत्कालीन गांधीगीरी वाली मानसिकता आज के भारत सरकार में विद्यमान है, गांधी का भारत रत्न इसलिये नही दिया गया कि राष्ट्रपिता का दर्जा भारत रत्न से बढकर है। किन्तु आज भी यह यक्ष प्रश्न है कि अनेकों स्वतंत्रता संग्राह सेनानी आज इस सम्मान से वचिंत क्यो है जबकि यह सम्मान आज केवल गांधी नेहरू खानदान की शोभा ही बढ़ा रहा है। पिछले तीन साल से यह सम्मान को नही दिया गया था सरकार चाहती तो यह सम्मान सेनानियों को दिया जा सकता था।
इनता तो तय है कि अंग्रेजो द्वारा बनाई गई कांग्रेस और अंग्रेजो में कोई फर्क नही है। न वह सेनानियों का सम्मान करते थे और न ही काग्रेस, खैर यह तो विवाद का प्रश्न है किन्तु आज इस पावन अवसर पर शहीद भगत सिंह को सच्चे दिल से नमन करना और उनके आदशों ही उनको असली भारत रन्त दिया जाना होगा।
भगतसिंह की साहस का परिचय इस गीत से मिलता है जो उन्होने अपने छोटे भाई कुलतार को ३ मार्च को लिखा था-
उसे यह फ़िक्र है हरदम तर्ज़-ए-ज़फ़ा (अन्याय) क्या है
हमें यह शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है
दहर (दुनिया) से क्यों ख़फ़ा रहें,
चर्ख (आसमान) से क्यों ग़िला करें
सारा जहां अदु (दुश्मन) सही, आओ मुक़ाबला करें ।
Sep 23, 2007
चलो इक बार फिर से, अजनबी बन जायें हम दोनों
चलो इक बार फिर से, अजनबी बन जाएं हम दोनो
चलो इक बार फिर से ...
न मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की
न तुम मेरी तरफ़ देखो गलत अंदाज़ नज़रों से
न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाये मेरी बातों से
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्म-कश का राज़ नज़रों से
चलो इक बार फिर से ...
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जलवे पराए हैं
मेरे हमराह भी रुसवाइयां हैं मेरे माझी की - २
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साये हैं
चलो इक बार फिर से ...
तार्रुफ़ रोग हो जाये तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन - २
उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा
चलो इक बार फिर से ...
इस गीत को जिनता अच्छा लुधियानवी जी ने बुना है, तो रवि जी ने संगीत से सजाया है और महेन्द्र जी ने अपने आवाज से इस गीत को जिन्दा किया है। इस गीत की सभी पक्तियॉं मुझे बहुत अच्छी लगी पर
तार्रुफ़ रोग हो जाये तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन - २
उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा
को मुझे बहुत पंसद आई आप इस गाने को यहॉं पर से डाउनलोड कर सकते है। सुनकर बताइये कैसा लगा यह गीत।
Sep 22, 2007
पंगेबाज पर ताला और ब्लागवाणी का टूलबार
उनके द्वारा बनाया गया टूलबार निश्चित रूप से हम जैसे कम जानकार के लिये प्रेरक है कि बिना जानकारी के कुछ करने की इच्छा के कारण कुछ भी असम्भव नही है। मुझे याद है कि जब मै उनके ब्लाग पर अतिथि के रूप में साज सज्जा किया करता था तो वे मुझ जैसे अल्पज्ञानी से काफी कुछ सीखने की इच्छा रखते थे। यहॉं तक कि मेरे निर्देशन मे उन्होने अपने ब्लाग पर काउन्टर, ब्लागों के लिंक, फोटों आदि लगाया था। अपने से बडें को सिखाकर मेरा भी सीना गर्व और अभिमान से चौड़ा रहा था। किन्तु धीरे धीरे उन्होने कार्टून से लेकर टूलबार के क्षेत्र में हाथ अजमा रहे है, इससे ज्यादा मुझे खुशी और क्या होगी क्योकि एक शिक्षक के लिये उसके शिष्य को आगे बढते देखते हुऐ और अच्छा क्या हो सकता था। मै उनके कम्प्युटर ब्लागिंग का प्रथम गुरू रहा हूँ। :)
आज मुझे खुशी हो रही है कि वे टूल जैसे औजारों के निर्माण कर सार्थक काम कर रहे है। कहीं ताले के पीछे विरोधियों को पटखनी देने के लिये ब्लागिंग पहलवानी के नये पैतरे तो नही सीख रहे है। :) मै तो बच के रहना चाहूँगा आज लिंक देकर और यह कहकर अच्छा नही किया कि उन्होने मुझसे बात नही किया। मै सदा सर्वदा किसी भी प्रकार के ताले के पीछे कोई काम करने का विरोध करूँगा चाहे वो जो हो। जो भी काम हो उसमें पारदर्शिता होनी चाहिऐ।
अरूण जी ने जैसा टूलाबार बनाया है निश्चित रूप से एक ब्लागर के तौर पर उनकी उपलब्धी है। अरूण जी के द्वारा टूलबार काम से स्पष्ट हो गया कि वे सार्थक कार्य में ही भाग ले रहे है। और हर व्यक्ति को अपने सार्थक कार्य में ही रूचि लेनी चाहिए। आज एक और टूलबार के बारे में पढ़ था काफी अच्छा लगा था मन में आया कि क्यो न अरूण को गुस्से को शान्त करने के लिये इसकी व्याख्या ही कर दी जाये कि यह कैसे काम करता है।
ब्लागवाणी के लिये अरूण जी द्वारा बनाया गया यह टूलबार किसी अन्य ब्लागरों की तुलना में सरल है सुविधालब्ध है। इस टूलबार को हम कई भागों में बांट सकते है। जैसे ब्लागवाणी, हिन्दी चिटठे, समाचार, ब्लागवाणी पर हाल के चिट्ठे, हिन्दी टंकड़ टूल, रेडियों आदि प्रमुख है।
1. ब्लागवाणी पर- इस टूलबार पर हम सम्पूर्ण ब्लागवाणी का दर्शन कर सकते है। जैसे मुख्य पन्ना, झटपट नजर, ज्यादा पढे गये लेख, ज्यादा पंसद किये गये लेख, टूलबार का लिंक तथा साइट सुझाऐ जैसी सुविधाऐ है।
2. कम्प्युटिंग पर- इस पर विभिन्न टाइपिंग टूल का लिंक दिया गया है जिस पर सिर्फ एक क्लिक से पहुँच सकते है। कैफे हिन्दी टाइपिंग टूल, इण्डिक आईएमई, बारहा, हिन्दी कलम, युनीनागरी जैसे लिंक दिये गये है।
3. खबरे इस शीर्षक के अन्तर्गत हिन्दी जाल पर उपलब्ध सम्पूर्ण हिन्दी समाचार पत्रों का लिंक दिया गया है। अर्थात अब खबरों के लिंक के लिये भटकने की जरूरत नही होगी।
4. नई प्रविष्टियॉं - इस श्रेणी में टूल पर ही ब्लावाणी पर उपलब्ध सारी अनपढ़ी पोस्टो को देखा और बिना ब्लागवाणी पर गये उसे खोला जा सकता है।
5. रेडियों - इस भाग में नेट पर उपलब्ध समस्त आनलाईन रेडिया कार्यक्रम प्रसरित करने वाले चैनल उपलब्ध है।
6. वेबजाल - इसमें नेट पर उपलब्ध कुछ अच्छी पत्रिकाओं व ब्लागों के अलावां सांसद जी जैसे लिंक मौजूद है। इस पर मेरा ब्लाग भी दिख रहा है। पर क्या मेरा ब्लाग इस लायक है कि इतने अच्छों ब्लागों के साथ मेरे ब्लाग का नाम जोडा गया है?
सच कहूँ तो मुझे इस टूलबार की सादगी बहुत अच्छी लगी मेन मेन्यु में ज्यादा बोझ नही दिया गया है। और व्यवस्थित रूप से एक श्रेणी के रूप रखा गया है। मेरा मानना है कि अभी इसमें कुछ कमियां है जो सुधार की जाने योग्य है। प्रथम कि इसका सम्पूर्ण हिन्दी करण किया जाये, दूसरा यह कि अनावश्यक लिंकों को हटा दिया जाये जैसे मौसम की जानकारी। एक और काम किया जा सकता है एक साथ सम्पूर्ण हिन्दी ब्लागों को लिंक भी कहीं इस ब्लाग या ब्लागवाणी पर दिया जाना चाहिए। निश्चित रूप से इसमें नित सुधार होते रहेगें। अरूण जी एक निवेदन है, कि आप अपने ब्लाग का ताला हटा दीजिए, आप नही जानते कि कितने पाठको नाराज करना ठीक नही। :) आपको अपनी अनुपम कृति के लिये बधाई।
ब्लागवाणी टूलवार डाऊनलोड कीजिए मजे जीजिऐ -
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Sep 21, 2007
दिल्ली यात्रा - बिना लंका काण्ड के रामायण भी अधूरी ही रहेगी
लगभग 4 बजे 20-25 किमी की यात्रा समाप्त करने के बाद हमने कुछ देर आराम किया। तभी अनुमान हुआ कि शैलेश के यहॉं ठहरे अन्य बन्धु इण्डिया गेट की ओर भ्रमण करने का कार्यक्रम बना रहे है। तभी शैलेश जी ने प्रस्ताव रखा कि आप भी जाना चाहते हो तो घूम आइये। हमें क्या था घूमने आये ही थे तो राजी हो गये। किन्तु जिनते विश्वास के साथ शैलेश जी ने हमें जाने के लिये उत्साहित किया था उतने उत्साह में ले जाने वाले नही थे। और वे लोग हमें लिये बिना चले भी गये और हम दोनों कमरे पर ही रह गये। यहीं से पराये शहर में अपनेपन की कमी या फिर कहें कि स्पष्ट अलगाव दिखने लगा था फिर क्या था मै और तारा चन्द्र ने हार नही मानी और शैलेश जी रूट मार्ग की जानकारी लेकर चल दिया भ्रमण करने भारत-द्वार का। कमरे से निकलने पर पैर में दोपहर का थकान का अनुभव हो रहा था किन्तु चेहरें पर इसकी छवि जरा भी नही दिख रही थी, शायद यह दिल्ली भ्रमण की समय की कमी के कारण ही था। हम लोग बस स्टैड पर पहुँच गये जहॉं से हमें इण्डिया गेट के लिये जाना था।
वहॉं पर हमसे पहले शैलेश जी के कमरे से निकली टोली मौजूद थी हमारे बीच किसी प्रकार की कोई बातचीत नही हुई, और मैने भी करना उचित नही समझा क्योकि मुझे अनुभव हो गया था कि जब कोई हमें साथ ले जाने को तैयार नही है तो उनके व्यक्तिगत यात्रा को क्यों कवाब में हड्डी बन कर खराब किया जाये। जैसा कि मैने फोन पर आलोक जी से रात्रि 8:30 इण्डिया गेट पर मिलने का समय दिया था। इसलिये हम लोगों ने बस पर ही योजना बना लिया था कि हम पहले राष्ट्रपति भवन की ओर जायेगें फिर लगभग 8 बजे रात्रि राष्ट्रपति भवन से इण्डिया गेट की ओर वापसी करेंगे। ताकि आलोक जी से मुलाकात हो सकें। बस की योजनाऐं योजनाऐ ही रह गई और लगभग 6 बजे हम लोग कृर्षि भवन पर उतर चुकें थे और राष्ट्रपति भवन की ओर जाने लगे, वह मंडली भी हम लोगों के बाद उतरी तथा सडक पार कर इण्डिया गेट की ओर जाने लगी, तभी तारा चन्द्र ने मुझसे कहा कि वह लोग हमे बुला रहे है। मै भी वापस इण्डिया गेट की ओर चलने लगा तब तक ट्रफिक चालू हो चुका था जिस कारण हम पार करने में 3-4 मिनट का समय लग गया था। और वे लोग हमारा इन्तजार किये बिना ही चल दिये और जब हम सड़क पार किया तो वे लोग भरी भीड़ में लगभग 200 मीटर से अधिक दूरी पर थे। फिर मुझे उनकी बेरूखी का अनुभव हो गया था। फिर हमने अपना रास्ता अपना लिया टहलते हुऐ हम लगभग 7:30 बजे इण्डिया गेट पर पहुँच गये थे। वहॉं का नाजरा बहुत ही मनमोहक था एक बिना उत्सव का जनसैलाब देखकर मन में अतीव प्रसन्नता हो रही थी। पर कहीं से दिल में एक सिकन थी इतने लोगों को अपने परिवार के साथ देख अपने आप अकेले होने का, पर क्या कर सकता था। बस याद करके ही रहा गया। फिर मैने अपने घर पर फोन मिलाया और सभी से बातें की और अभी तक जितना भी इण्डिया गेट पर देखा सबको बताया भी, एक प्रकार से फोन पर मै लाइव कमेन्ट्री कर रहा था। घर पर बात कर थोड़ा सूकून का अनुभव कर रहा था। जब मै यह सब करने में व्यस्त था तो तारा चन्द्र जी एक मीडिया चैनल के खुलासे का वर्णन का दर्शन कर रहे थें।
फिर पल पल का समय भारी पढ रहा था। मैने पिछले आधे घन्टे में आलोक जी को दर्जनों काल की कब आ रहे है। इस दौर मे मैने अरूण जी से बात करने की कोशिस की तो भी निराशा हुई उन्होने फोन उठाया और कहा प्रमेन्द्र भाई भाई मै अभी मै विशेष मीटिंग में हूँ बाद में काल कीजिऐगा। उनकी यह बात अकेले कचोटते मन पर एक और प्रहार करती है। लगभग 8:30 आलोक जी का कॉल आया और मैने उसे काट कर तुरन्त कॉल बैक किया क्योकि मुझे रीसिविंग करने पर ज्यादा पैसा देना पर रहा था। मुझे यह कॉल एक विशेष पर की खुशी दे गई, आलोक जी का उत्तर था कि मै आ गया हूँ। मै ठेठ पूर्वी उत्तर प्रदेश की भाषा का प्रयोग कर जिससे वहॉं के लोगों के चेहरे पर मेरी वजह से थोडा़ मुस्कान भी दिखी। आलोक जी ने कहॉं भाई आप कहॉं है? मै उत्तर दूँ भी तो क्या? इनती बड़ी भीड़ मे एक दूसरें को खोजना कठिन काम था, वो भी तब जब आप एक दूसरे के चेहरे से वाकिफ न हो। फिर मैने तपाक से जवाब दिया कि भाई जो तीन ठौ झन्डवा दिख रहा है ठीक वही के सामने मिलते थे। मैने तारा चन्द्र को बुलाया जो मीडिया में दिलचस्पी ले रहे थे। और झन्डे की ओर चल दिये जहॉं पर पहले से मौजूद आलोक जी ने जय श्री राम शब्द के उद्धोष के साथ गले मिल कर एक दूसरे का अभिवादन किया।
अब तक यह यह वाक्या मुझे काफी कुछ सिखा चुका था, शायद कुछ ज्यादा ही, वो था अपने और पराये में फर्क। जिनके साथ मै था वह बात न मिली जो एक पल में मिले आलोक जी से मिली। मै कह सकता था कि वक्त ने भी हमें सब रंग दिखाये। मेरी इस पहली यात्रा में मेरा मेरे साथ मेरा मित्र( तारा और आलोक) न रहा होता तो मै तो इस यात्रा से टूट ही गया होता। जो भी मेरे साथ वाक्या हुआ मैने यह सब किसी से कहना उचित नही समझा। मै घर से इतनी दूर अपनत्व पाने के लिये गया था न किसी बौरहे पागल की तरह घूमने। अब मुझे लग रहा है कि इस पोस्ट में बहुत कुछ ज्यादा लिख गया हूँ वह सब जो मैने उस दौर में महसूस किया था, दिल चाह रहा था कि इसी पोस्ट में आलोक जी के साथ घूमने का भी वर्णन कर दूँ। पर इतना अधिक हो जायेगा तो मजा नही आयेगी। तो ठीक है अगली कड़ी में मै आपको बाताऊँगा कि रात्रि 8:30 से 11:00 बजे तक हमने क्या किया ? यह सब अगली कड़ी में।
Sep 19, 2007
टेनिस की शब्दावली
सिंगल्स (Singles) का अर्थ है वह खेल जिस में सिर्फ़ दो खिलाड़ी हों और एक दूसरे के आमने-सामने हों।
डबल्स (Doubles) जिसमें चार खिलाड़ी हों और दो दो की जोड़ी में एक दूसरे के मुक़ाबले में खड़े हों।
मिक्स्ड डबल्स (Mixed Doubles) इसमें भी चार खिलाड़ी होते हैं और दो दो की जोड़ी में होते हैं लेकिन प्रत्येक जोड़ी में से एक महिला और एक पुरूष होते हैं।
रैंकिंग (Ranking) वरीयता क्रम कहलाता है, इसे अमीन सायानी के शब्दों में पायेदान भी कह सकते हैं यानि किसी खिलाड़ी की रैंकिंग एक है तो इसका अर्थ है वह चोटी का नंबर एक खिलाड़ी है। टेनिस के टूर्नामेंट में मुक़ाबला आम तौर पर वरीयता के हिसाब से रखा जाता है, यानी प्रारंभ में ही उच्च कोटि के खिलाड़ियों को आपस में नहीं टकराया जाता, इस से खेल के मज़े में कमी आने का ख़तरा रहता है।
सीडेड (Seeded) उन वरीयता प्राप्त खिलाड़ियों को कहते हैं जिन्हें टूर्नामेंट के शुरू में आपस में नहीं खिलाया जाता है. इसकी संख्या टूर्नामेंट के हिसाब से बदलती रहती है।
ग्रांड स्लैम (Grand slam) टेनिस के चार बड़े टूर्नामेंट ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट कहलाते हैं। ये हैं- ऑस्ट्रेलियन ओपन, फ्रेंच ओपन, विंबलडन और यूएस ओपन हैं।
सर्विस (Service) का अर्थ है टेनिस का खेल शुरू करने के लिए गेंद का फेंकना, जिसकी सर्विस होती है उसके गेम जीतने की अधिक उम्मीद होती है।
सर्विस ब्रेक (Service Break) इसका अर्थ यह हुआ कि जो सर्विस कर रहा था वह नहीं जीत पाया और उसका विरोधी जीत गया. जीतने के लिए प्रतिद्वंदी की सर्विस को ब्रेक करना ज़रूरी है।
सर्व (Serve) एक खिलाड़ी का खेल शुरू करने के लिए बाल रैकेट से मार कर दूसरे के पाले में भेजना।
सर्वर (Server) वह खिलाड़ी जो खेल शुरू करने के लिए रैकेट से मारकर दूसरे के पाले में गेंद भेजता है।
रिसीवर (Receiver) वह खिलाड़ी जिसके पाले में बाल आए और वह उसे वापस पहले के पाले में भेजे।
बॉल बॉय या गर्ल (Ball boy/girl ) वह लड़का या लड़की जो जाल के किनारे या किसी कोने में रहता है और दौड़ दौड़ कर गेंद इकठ्ठा करके खिलाड़ी को देता है।
कोर्ट (Court) यानी टेनिस का मैदान जिसके अंदर गेंद रखी जाती है।
एंड्स (Ends) छोर या दोनों ओर का पाला जहाँ से खेल शुरू किया जाता है।
बेस लाइन (Baseline) वह लकीर जो टेनिस के मैदान के दोनों सिरों को बताता हो जिसके बाहर गेंद जाने से प्वाइंट बन जाता है।
नेट (Net) जाल जो टेनिस कोर्ट के बीच में कोर्ट को बराबर विभाजित करता है।
साइड लाइन्स (Sideline) टेनिस कोर्ट के दाएं और बाएं दोनों ओर खिंची हुई लकीर।
बाउन्स (Bounce) जब गेंद टप्पा खा कर उछलती है उसे बाउन्स कहते हैं।
बॉल चेन्ज (Ball change) गेंद में जब उछाल कम हो जाती है तो गेंद बदली जाती है जैसा क्रिकेट में गेद पुरानी हो जाती है या उसकी शक्ल बदल जाती है तो उसे बदल दिया जाता।
सर्विस बॉक्स (Service box) वह आयताकार स्थान जहां एक खिलाड़ी सर्विस करते हुए गेंद को टप्पा खिलाता है।
गेम (Game) उसे कहते हैं जब कोई खिलाड़ी पहले चार प्वाइंट जीत जाता है पहला और दूसरा प्वाइंट 15-15 का होता जब कि तीसरा 10 का और चौथे का मतलब किसी एक की सर्विस में जीत।
सेट (Set) जो खिलाड़ी आम तौर पर छह गेम पहले जीत जाता है वह सेट जीत जाता है यानी गेम के समूह को सेट कहते हैं।
मैच (Match) आम तौर पर पुरुषों के मुक़ाबले में जो खेलाड़ी तीन सेट पहले जीत जाता है वह मैच जीत जाता है और महिला वर्ग में जो खिलाड़ी पहले दो सेट जीत जाती है वह मैच जीत जाती है।
ड्यूस (Deuce) जब गेम के अंदर दोनों प्रतिद्वंद्वी 40-40 अंक पर पहुंच जाते हैं तो उस बराबरी को ड्यूस कहते हैं।
ऐडवांटेज (Advantage) जब बराबरी यानी ड्यूस हो जाता है और जो खिलाड़ी पहली सर्विस पर जीत हासिल करता है वह गेम जीतने के लाभ यानी ऐडवांटेज में चला जाता है, अगर वह अगली सर्विस भी जीत लेता है तो गेम पर उसका क़ब्ज़ा हो जाता है नहीं तो फिर से ड्यूस हो जाता है।
टाइब्रेकर (Tiebreak) जब दोनों प्रतिद्वंद्वी 6-6 गेम जीत लेते है तो टाइब्रेकर पर जीत का फ़ैसला होता है। इसमें जो खिलाड़ी सात प्वाइंट पहले अर्जित कर लेता वह सेट जीत जाता है। अगर दोनो खिलाड़ी फिर से 6-6 प्वाइंट हासिल करते हैं तो फिर जो खिलाड़ी लगातार दो प्वाइंट हासिल करता है वह सेट जीत जाता है।
लव (Love) गेम या सेट की शुरूआत में शून्य प्वाइंट।
मैच प्वाइंट (Match point) वह अंतिम अंक जिसके जीतने के बाद कोई खिलाड़ी मैच जीत ले इसी प्रकार गेम प्वांइट और सेट प्वाइंट भी होता है।
ऑल (All) का अर्थ है बराबर. मिसाल के तौर पर 15 ऑल या 30 ऑल का मतलब हुआ दोनों खिलाड़ियों का 15 या 30 अंक है।
फ़ॉल्ट (Fault ) ग़लती यानी सर्विस करने में गेंद जाल से टकरा जाए या सर्विस बॉक्स से बाहर टप्पा खाए तो फ़ॉल्ट कहलाता है।
फ़ुट फ़ाल्ट (Foot fault) जब खिलाड़ी सर्विस करते समय बॉल को मारने से पहले बेस लाइन या बीच की लाइन को छू जाए तो फ़ुटफॉल्ट कहते हैं।
डबल फ़ॉल्ट (Double Fault ) अगर दोबार लेट हो जाता है तो उसे डबल फ़ाल्ट कहते हैं और प्रतिद्वंद्वी को प्वाइंट मिल जाता है।
लेट (Let) जब सर्विस की जाए और गेंद जाल को छूकर सर्विस बॉक्स में गिरे उसे लेट कहा जाता है ऐसी स्थिति में फिर से सर्विस करनी पड़ती है।
एस (Ace) यानी ऐसी सर्विस जिसमें इतनी गती हो या इतना कोण बन रहा हो जिस पर प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी अपना रैकेट लगाने में भी असमर्थ रहे।
डाउन-द-लाइन (Down-the-line) वह शॉट जिस में गेंद किनारे वाली रेखा के साथ साथ गुज़रता हुआ किनारे ही गिरे।
ड्राइव (Drive) एक तेज़ी से खेला गया सीधा शॉट जो प्रतिद्वंद्वी के सामने से गुज़र जाए।
ड्रॉप शॉट (Drop shot) हलके से खेला गया शॉट जो जाल के पार गिरे और प्रतिद्वंद्वी उस तक न पहुंच सके।
ग्राउंड स्ट्रोक (Ground stroke) टप्पा खाने के बाद गेंद जब उछले उस पर लगाया जाने वाला शॉट।
हाफ़-वॉली (Half-volley) गेंद के टप्पा खाते ही लगाया जाने वाला शॉट।
लॉब (Lob) ऐसा शॉट जिसे प्रतिद्वंद्वी के ऊपर से कोर्ट के पिछले हिस्से में उठा कर रखा जाए।
रैली (Rally) दोनों खिलाड़ियों के बीच शॉट लगाने का मुक़ाबला जब तक कि प्वाइंट अर्जित न कर लिया जाए।
स्मैश (Smash) आम तौर पर बिना टप्पा खाए सिर से ऊपर वाली गेंद को पूरी ताक़त से मारना स्मैश कहलाता है।
बैक हैंड (Backhand) जिस हाथ में रैकेट हो उसकी उलटी दिशा में आने वाली गेंदे पीछे मुड़ते हुए लागए जाने वाले शॉट को बैक हैंड शॉट कहते हैं। महिलाओं में जर्मनी की स्टेफ़ी ग्राफ़ को इस शॉट का माहिर कहा जाता था।
फ़ोर-हैंड (Forehand) जिस हाथ में रैकेट हो उसी तरफ़ से लगाए जाने वाले शाट को फ़ोरहैंड शॉट कहते हैं। सानिया मिर्ज़ा, मारिया शारापोवा वग़ैरह अच्छा फ़ोर-हैंड शॉट लगाती है।
टेनिस की और भी ढेर सारी शब्दावली है लेकिन उनका प्रयोग कम ही होता ह। सानिया मिर्ज़ा ने मार्टिना हिंगिस को हराकर एक अप-सेट किया है उम्मीद की जाती है कि उनकी रैंकिंग और भी बेहतर होगी लेकिन पहले बीस में आने के लिए बड़े टूर्नामेंट में अच्छा प्रदर्शन करना होगा।
साभार - बीबीसी हिन्दी
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Sep 18, 2007
राम विरोधी संकीर्ण विचारकों के मुँह पर प्रमाणिक तमाचा
नागपुर - करोड़ों लोगों के आस्था क्रेंद्र प्रभु श्रीराम के अस्तित्व को केन्द्र की कांग्रेस सरकार नकारने पर तुली हुई है, उसकी आंख खोलने के लिए यह सबूत काफ़ी है कि भगवान राम की जन्म तिथि तक की पुष्टि नासा के प्लेनेटेरियम सॉफ़्टवेयर ने कर दी है। भारतीय राजस्व सेवा की वरिष्ठ अधिकारी व नागपुर स्थित प्रत्यक्ष कर अकादमी की महानिदेशक सरोज बाला की नई पुस्तक "श्री राम तथा श्री कृष्ण के युगों की प्रामाणिकता" में यह खुलासा हुआ है। "नवभारत" को सुश्री सरोज बाला ने जो स्वयं एक विदुषी है,अपनी पुस्तक की प्रति उपलब्ध कराई है। कई दशकों से इस विषय पर अनुसंधान कर रही बाला ने चर्चा के दौरान कहा कि धार्मिक आधार की बजाय उन्होंने इसकी पुष्टि के लिए वैज्ञानिक आधार का चयन किया,जिससे यह बताया जा सके कि राम और कृष्ण के युग मे जो कुछ भी हमारे पौराणिक ग्रंथों मे उल्लेखित है,वह सब कुछ सही है। सरोज बाला ने दावा किया कि विश्वकर्मा के बलवान पुत्र कांतिमान कपिश्रेष्ठ नल ने समुद्र में 100 योजन लंबा पुल तैयार किया था। यह पुल श्रीराम द्वारा तीन दिन की खोजबीन के बाद चुने हुए समुद्र के उस भाग पर बनवाया गया जहां पानी कम गहरा था तथा जलमग्न भूमार्ग पहले से ही उपलब्ध था। बाला ने कहा कि यह विवाद ही व्यर्थ है कि रामसेतु मानव निर्मित है या नही, क्योकि यह पुल जलमग्न द्वीपों, पर्वतों तथा बरेतियों को जोड़कर प्राकृतिक मार्ग के उपर से बनवाया गया था। बाला की पुस्तक में दावा है कि वास्तव में समुद्र के बीचोंबीच भारत और श्रीलंका को जोड़ने वाला यह भूमार्ग श्रीराम के युग(7000 वर्ष पूर्व) से पहले भी विद्यमान था और ईसापूर्व 11000 ईसवी से इस भूमार्ग के अस्तित्व के प्रमाण हैं। कई दस्तावेज़ों को अनुसार 400 वर्ष पूर्व तक इस रामसेतु का भारत और श्रीलंका के बीच आवागमन के लिए प्रयोग किया जाता था। कई भूगोलिक, भूतात्विक तथा ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस पुल के आसपास कई सभ्य बस्तियां बसी थी। उदाहरणत: चोल राजाओं की राजधानी "पूम्पूहार" भी अब जलमग्न हो चुकी है। 1803 में मद्रास प्रेसिडेंसी के अंग्रेजी सरकार द्वारा जारी गैजेट में लिखा गया है कि 15वीं शताब्दी के मध्य तक रामसेतु का प्रयोग तमिलनाडू से लंका जाने के लिए किया जाता था,परंतु बाद में एक भयंकर तूफ़ान में इस पुल का एक बड़ा भाग समुद्र में डूब गया। श्रीराम की कहानी पहली बार महर्षि वाल्मिकी ने लिखी थी। वाल्मिकी रामायण श्रीराम के सिंहासनारूढ़ होने के बाद लिखी गई। महर्षि वाल्मिकी एक महान खगोलविद थे। उन्होंने राम के जीवन में घटित घटनाओं से संबंधित तत्कालीन ग्रह नक्षत्र और राशियों की स्थितियों का वर्णन किया। बाला ने कहा कि यह कहने की आवश्यक्ता नही कि ग्रहों-नक्षत्रों को स्थिति की पुनरावृत्ति हजारो वर्षों बाद भी नही होती। उन्होनें कहा कि रामायण में उल्लेखित तिथियों की पुष्टि प्लैनेटेरियम सॉफ़्टवेयर के माध्यम से की जा सकती है। भारती राजस्व सेवा में कार्यरत पुष्कर भटनागर ने अमेरिका के प्लैनेटेरियम गोल्ड ( फ़ॉगवेयर पब्लिशिंग का) नामक सॉफ़्टवेयर प्राप्त किया,जिससे सूर्य-चंद्रमा के ग्रहण की तिथियां तथा अन्य ग्रहों की स्थितियां जानी जा सकती हैं। इसके द्वारा भटनागर ने वाल्मिकी रामायण मे वर्णित खगोलीय स्थितियों के आधार पर आधुनिक अंग्रेजी कैलेंडर की तारीखें निकाली है। इस प्रकार भटनागर ने श्रीराम के जन्म से लेकर वापस अयोध्या आने तक की घटनाओं का पता लगाया। भटनागर की पुस्तक "डेटिंग दि एरा ऑफ़ लार्ड राम" में वर्णित महत्वपूर्ण उदाहरण बाला ने अपनी पुस्तक में दिए हैं। उसके अनुसार ही श्रीराम का जन्म 10जनवरी 5114ई पू को हुआ था। श्रीराम विश्वामित्र की यज्ञ रक्षा के लिए 5101 ईसा पूर्व में गए थे। उस समय श्रीराम 13वर्ष के थे और यही ताड़का वध का भी वर्ष है। श्रीराम का राज्याभिषेक उनके 25वें जन्मदिवस 5089 ई पू पर नियत किया गया था। जब राम 25 वर्ष के थे तब ही वे 14वर्ष (5114-5089ई पू) के लिए वनवास गए थे। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के सॉफ़्टवेयर के मुताबिक राम ने रावण का वध 5076 ई पू में किया था। राम ने अपना वनवास 2 जनवरी 5075 ई पू को पूर्ण किया और यह दिन चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष में नवमीं ही था। इस प्रकार जब श्री राम अयोध्या लौटे तो वे 39 वर्ष के थे।
श्रीराम जन्म के ग्रह योग का नक्शा
1- सूर्य मेष राशि में
2- शनि तुला में
3- बृहस्पति कर्क में
4- शुक्र मीन में
5- मंगल मकर में
6- चैत्र माह,शुक्ल पक्ष
7- चंद्रमा पुनर्वसु के निकट
8- कर्क राशि
9- नवमीं को दोपहर
10- समय करीब 12बजे
जब उपर्युक्त खगोलीय स्थिति को कंप्यूटर मे एंटर किया गया तो प्लैनेटेरियम सॉफ़्टवेयर के माध्यम से यह पता चला कि प्रभु राम की डेट ऑफ़ बर्थ(जन्मतिथि) 10जनवरी 5114 ई पू है।
हिन्दी ब्लाग आवारा बंजारा से साभार
मूल खबर हिन्दी दैनिक नवभारत के रायपुर संस्करण से
Sep 16, 2007
छडि़काऐं
रवानी सी जिन्दगी।
ठोकरों के पल्लवन से,
बढ़ती है बंदगी।
(5)
Sep 14, 2007
दिल्ली यात्रा - खूब चले पैदल
बस में मै और सुमन जी साथ साथ से और हमारी बातें खत्म होने का नाम ही नही ले रही थी। पर उनके साथ मेरा सफर सिर्फ कृर्षि भवन तक ही था। काफी बाते अधूरी रह गई। सच में हम दोनों को इस बात का दु:ख है। फिर हम लोग कृर्षि भवन पहुँच गये और उससे पहले बात करते हुऐ सैन्य भवन उघोग भवन रेलभवन सहित अनेको मंत्रालयों को देखा। फिर कृर्षि भवन से हम लोगों ने जिया सराय के लिये बस पकड़ी तो रास्ते में राष्ट्रपति भवन और इण्डिया गेट भी दिखा। फिर इग्लैण्ड, फ्रांस, अमेरिका, पकिस्तान सहित अनेक राष्ट्रों के दूतावास को भी देखा यह निश्चित रूप से एक अच्छा पल था। यह सब देखते हुऐ अनिल जी से बात हुई। तो पता चला कि वह वही अनिल है जिनसे मैने इलाहाबाद में फोन पर बात की थी पर मिलना नही हो सका था।
अनिल जी के साथ मै और तारा चन्द्र शैलेश जी के यहॉं पहुँचे लगभग नौ बजे के आस पास तब तक और मित्रों का अगमन हो रहा था। लगभग 1 बजे के आस पास मुझे लगा कि हमारे पास समय कम है कुछ दिल्ली विलली घूम लिया जाना चाहिए। फिर क्या था हम लोग निकल दिऐ आईआईटी गेट के सामने वाली सड़क की ओर ग्रीन पार्क/ गार्डेन की ओर वहॉं जाकर पता चला न यहॉं ग्रीन है न ही गार्डेन। फिर क्या था मैने कुछ लोगों से पूछा कि आईआईटी गेट जाने का रास्ता तो उन्होने बताया कि जैसे आये हो वैसे ही चले जाओं। पर मुझे यह ठीक नही लग रहा था कि जिस रास्ते से चप्पल चटकाते हुऐ आया हूँ फिर से उसी रास्ते को नापू फिर हम लोग विपरीत रास्ते पर निकट दिया गया। फिर हम लोग सफदरगंज पहॅचे और देना बैंक के एटीएम और उनकी सुख सुविधाओं का उपभोग किया। फिर हमें एक बड़ा सा पार्क दिखा जिसे लोग हिरण पार्क कहते थे। मुझे यह अनुमान हो गया कि यह वही पार्क हो सकता है जो हमने आई आई टी गेट पर देखा था। हम अपने अनुमान के निकट थे जब हमने पार्क में प्रवेश किया और लोगो से आईआईटी गेट के बारे में पूछा तो हम सही थे और उनके द्वारा बताया गया आप हिरण पार्क में है आगे जाने पर आप रोज गार्डेन में पहुँच जायेगें। हमारी जान में जान आई हम लगभग 20 किमी पैदल का चक्कर लगा चुके थे। किन्तु तारा चन्द्र की मजाकिया बातों से थकान का अनुभव नही हुआ। रोज गार्डेन के प्रेमी जोडों को देख कर एक अच्छी गजल तारा चन्द्र सुना रहे थे। अचनक गेट से बाहर हम पहुँच गये। फिर हमें मजिंल मिल गई थी। लगभग पॉंच बजे को आस-पास हमें शैलेश जी के निवास पर पहुँचे जहॉ वह अकेले हमारे आने का इन्तजार कर रहे थे।
यहॉं तक का वृत्त समाप्त होता है। आगे की कड़ी में मै आपको इण्डिया गेट और अपने एक अन्य प्रिय मित्र आलोक जी के साथ बिताये गये पलो का वर्णन करूँगा। क्योकि यह ही वह पल था जब मेरे लिये सबसे ज्यादा खुशी और दु:ख के थे।
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Sep 12, 2007
औकात में रहे मीडिया और उनके नुमाइन्दे
मिड डे ने 18 और 19 मई 2007 के अंक में वाई. के. सभरवाल द्वारा सीलिंग पर दिए गए
आदेशों पर सवाल उठाए थे। अखबार का कहना था कि दिल्ली में बड़े पैमाने पर सीलिंग
होने से सभरवाल के बेटों को फायदा हुआ। वे चीफ जस्टिस के सरकारी बंगले से बिजनेस
चला रहे थे। सुनवाई के दौरान अखबार अपनी स्टोरी पर कायम रहा। अखबार का कहना था कि उसने सचाई बयान की है। मिड डे के वकील शांति भूषण ने कहा कि अखबार द्वारा प्रकाशित तथ्यों से साफ है कि चीफ जस्टिस के बेटों को सीलिंग से फायदा हुआ।
अदालत का यह फैसला निश्चित रूप से अधुनिक अंधी पत्रकारिता को उसकी औकात बता रहा है कि पत्रकार जगत जिस अपने आपको लोकतंत्र का चौथा स्तभ मनाता है, वह उसकी भूल है। इस देश के सविंधान में चौथे स्तम्भ की कोई उल्लेख नही है। पत्रकार अपने आपकों लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ होने के मद में अपने पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान पढ़ाऐ गये पाठों को भूल जाते है। कि पत्रकारों को निष्पक्षता बरतनी चाहिए और कम से कम बिना साक्ष्यों के संवैधानिक पदों पर आसीन (राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, न्यायधीश व राज्यपाल) के खिलाफ बयानबाजी से बचना चाहिए।
हाल में कुछ माह पहले हिन्दी ब्लागिंग में भी इस प्रकार का प्रकरण देखने को मिला था जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मा. न्यायमूर्ति श्री एसएन श्रीवास्तव को एक सम्मानित टीवी चैनल की महिला पत्रकार आरफा ख़ानम शेरवानी द्वारा कुछ लोगों शह पर किसी पार्टी का एजेन्ट, मानसिक रूप से असंतुलित, सरकारी वेतन भोगी, बेटे को पेट्रोल पम्प दिया गया इसलिये दबाव में आकर फैसला दिया गया तथा आनेक प्रकार के अशोभनीय शब्दों का प्रयोग किया गया। जो निश्चित रूप से न्यायलय की अवमानना के दायरे में आता है। जब यह बातें जिम्मेदार पत्रकार के जुब़ान से निकलती है तो सही में कष्ट होता है कि यह समान आज की चकाचौंध में अपनी मूल उद्देश्यों से भटक रहा गया है।
हिन्दी ब्लाग समुदाय की यह घटना श्री सब्बारवाल के उपर लगाये गये अरोपों से भी गम्भीर है क्योकि न सिर्फ न्यायधीश पर आक्षेप है बल्कि महौतरमा के द्वारा सम्पूर्ण न्यायालय तथा न्यायधीशों को न सिर्फ गाली दी गयी अपितु भारत के सविधान में वर्णित न्यायधीशों के अधिकार और सम्मान को चुनौती दी गई थी। भारत के सविधान में साफ वर्णित है कि न्यायधीश न तो सरकारी मुलाजिम है और न ही सरकार का वेतन भोगी। पत्रकार समुदाय द्वारा संज्ञानता में यह कदम उठाना निश्चित रूप से महँगा पड़ सकता है, क्योकि मीड डे की जगह मौहतरमा का नाम भी हो सकता था।
निश्चित रूप से उच्च न्यायालय का यह फैसला पत्रकारों के मुँह पर तमाचा है जो मीडिया को दम्भ पर गलत काम को बड़ावा देती है। संवैधिनिक पदों पर आक्षेप पर आदालत का यह निर्णय सराहनीय है। न्यायालय का यह आदेश अपने आपको चौथा स्तम्भ मनने वाली बड़बोली मीडिया और पत्रकारों के लिये सीख भी।
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Sep 11, 2007
इलाहाबाद उच्च न्यायालय - गीता हो राष्ट्रीय ग्रन्थ और मदिंरों और हिन्दुओं का संगरक्षण दे सरकार
माननीय न्यायमूर्ति ने 104 पृष्ठ का निर्णय में इतिहास के साक्ष्य प्रकट करते हुए कहा कि विगत 1300 वर्षो से लगातार सांप्रदायिक एवं समाज विरोधी तत्वों द्वारा हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त किया जा रहा है इस प्रकार के प्रकरणों से सीख लेते हुए राज्य का यह दायित्व है कि वह हिन्दू मंदिरों व धार्मिक संस्थाओं को संरक्षण प्रदान करे और इसके लिए अलग से पुलिस बल या स्पेशल सेल गठित किया जाये।
न्यायालय ने धर्मिक स्वतंत्रता से सम्बन्धि संविधान की अनुच्छेद 25 व 26 का जिक्र करते हुऐ कहा कि हिन्दुओं को भी धार्मिक आजादी का पूर्ण संरक्षण मिलना चाहिए क्योकि आजादी के बाद से कुछ विशेष सम्प्राद के व्यक्तियों की जनसंख्या पूरे भारत के कुछ जिले/मोहल्लों में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है। और इसके फल स्वरूप हिन्दू जनसंख्या अपनी सुरक्षा के लिये अपनी जमीन व मंदिर की संपत्ति बेचकर सुरक्षित हिन्दू बहुल क्षेत्रों में बस रहे है।
न्यायालय ने राज्य को निर्देशित किया कि मंदिरों की सुरक्षा के लिए कानून बनाये ताकि समाजविरोधी सांप्रदायिक तत्वों के मंदिरों पर हमले की प्रवृत्ति पर रोक लगायी जा सके। इसी के साथ न्यायालय ने तिलभांडेश्वर वाराणसी स्थित श्री शालिगराम शिला गोपाल ठाकुर की प्रतिमा पुनस्र्थापित कर रखरखाव का निर्देश दिया है और राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह मंदिर के सेवाइती को पूर्ण सहयोग प्रदान करे ताकि मंदिर में राग, भोग व पूजा शांतिपूर्ण ढंग से चलती रहे। एक संप्रदाय की बढ़ती आबादी व तनाव के चलते मंदिर बेचकर उसे इलाहाबाद लाया जा रहा था। इस मामले में न्यायालय ने अधीनस्थ न्यायालय के आदेश को रद कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति एसएन श्रीवास्तव ने गोपाल ठाकुर मंदिर के सेवाइत श्यामल राजन मुखर्जी की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
न्यायालय ने हिन्दू मंदिरों की देखरेख व सुरक्षा के लिए राज्य सरकार को हिन्दू मंदिरों का बोर्ड गठित करने को भी कहा, जो मंदिरों का पंजीकरण, रखरखाव व प्रबंधन का काम देखेगा इसके सदस्य सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय तथा प्रमुख सचिव धर्मादा उप्र सरकार सदस्य सचिव होंगे। माननीय न्यायालय ने तदर्थ बोर्ड से कहा कि मामले की जॉच कर चार माह में राज्य सरकार को रिर्पोट सौंप दें। और राज्य सरकार को भी आदेश दिया कि वह किसी को भी मंदिरों या धार्मिक संस्थाओं, मठ आदि की संपत्ति बेचने की अनुमति न दे जब तक कि जिला न्यायाधीश की अनुमति न प्राप्त कर ली गई हो
एक अन्य मामले में माननीय न्यायमूर्ति श्री श्रीवास्तव ने फैलसा देते हुए कहा कि राष्ट्रीय ध्वज , राष्ट्रगान , राष्ट्रीय पक्षी और राष्ट्रीय पुष्प के समान भगवद्गीता को राष्ट्रीय धर्मशास्त्र घोषित किया जाना चाहिए। जस्टिस श्रीवास्तव ने वाराणसी के गोपाल ठाकुर मंदिर के पुजारी श्यामल राजन मुखर्जी की याचिका पर फैसला देते हुए कहा कि देश की आजादी के आंदोलन की प्रेरणास्रोत रही भगवद्गीता भारतीय जीवन पद्धति है। उन्होंने कहा कि इसलिए संविधान के अनुच्छेद 51( ए ) के तहत देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह इसके आदर्शों पर अमल करें और इस राष्ट्रीय धरोहर की रक्षा करें।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि भगवद्गीता के उपदेश किसी खास संप्रदाय की नहीं है बल्कि सभी संप्रदायों की गाइडिंग फोर्स है। गीता के उपदेश बिना परिणाम की परवाह किए धर्म के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देते हैं। यह भारत का धर्मशास्त्र है जिसे संप्रदायों के बीच जकड़ा नहीं जा सकता। न्यायमूर्ति एसएन श्रीवास्तव ने कहा कि संविधान के मूलकर्तव्यों के तहत राज्य का यह दायित्व है कि भगवद्गीता को राष्ट्रीय धर्मशास्त्र की मान्यता दे।
न्यायलय ने यह भी कहा कि भारत में जन्मे सभी सम्प्रदाय, सिख, जैन, बौद्ध आदि हिदुत्व का हिस्सा है जो भी व्यक्ति ईसाई, पारसी, मुस्लिम, यहूदी नहीं है वह हिन्दू हैं और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 के तहत अन्य धर्मो के अनुयायियों की तरह हिन्दुओं को भी अपने सम्प्रदायों का संरक्षण प्राप्त करने का हक है। न्यायालय ने कहा है कि भगवत् गीता हमारे नैतिक एवं सामाजिक मूल्यों की संवाहक है यह हिन्दू धर्म के हर सम्प्रदाय का प्रतिनिधित्व करती है इस लिए प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह इसके आदर्शो को अमल में लाये।
माननीय न्यायमूर्ति के इन फैसलों से इस अल्पसंख्यकों की वस्तविकता स्पष्ट करती है वरन इलाहाबाद और आगरा की घटनाओं के बाद हुई हिंसा से इनकी कट्टारता भी प्रकट करती है। इसके पूर्व में भी माननीय न्यायमूर्ति ने मुस्लिम अल्पसंख्यक नही का जो फैसला दिया था वह गलत नही था। क्योकि आज वे संख्या में भले हिन्दु से कम है किन्तु आज जिन इलाकों में वे हिन्दुओं से संख्याबल में ज्यादा है वहॉं पर हिन्दुओं का सर्वधिक अहित हुआ है। अगरा में ट्रक के टक्कर के परिणाम हिन्दुओं की दुकानों को लूट कर किया गया इलाहाबाद के करेली की अफवाह के परिणाम स्वरूप हिन्दु बस्ती की तरफ हमले की योजना रची गई अगर कर्फ्यू न लगा होता तो शायद वस्तु स्थिति कुछ और होती तथा इसके साथ ही साथ कर्फ्यू के कारण कई परिवारों के भोजन नही नसीब नही हुआ। वास्तव आज न्यायालय के निर्णय समाज और सरकार को वस्तिविकता का शीशा दिखा रहा है। जो सरकार आज अल्पसंख्यक वाद का ढोग रच रही है उसे वास्तविकता के आगे जागना होगा।
माननीय न्यायमूर्ति जी को उनके फैसले तथा स्वर्णिम कार्यकाल के लिये हार्दिक शुभकामनाऐं।
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Sep 9, 2007
आँसू
ज़ुदाई के व़क्त में धार आँसुओं की है,
हर खुशी हर ग़म में बहार आँसुओं की है।
देखें हमने है जि़न्दगी के फ़साने,
यहॉं खुशी और प्यार का दीदार आँसुओं में है।
कुऑं है, दरिया है या है नदी
हमने देखा समंदर संसार का आँसुओं में है।
आखि़र रिश्ता क्या है दिल का ऑंखों से,
जो आता इतना प्यार आँसुओं में है।
कौन कहता है कि बहता है ऑंसुँओं में ग़म,
हर मरने वाले का मिलता प्यार आँसुओं में है।
देख आँसुओं का ये आल़म-ए-मोहब्बत,
मेरा दिल कुर्बान हजार बार आँसुओं पे है।
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Sep 7, 2007
रत्नों में सौन्दर्य ही नही, स्वस्थ और समृद्धि भी
मनुष्यों तथा ऋषियों ने इस धरा पर जो भी सबसे उपयुक्त सामग्री पायी उसे रत्न की संज्ञा दिया। रत्न शब्द का प्रथम प्रमाण ऋग्वेद के श्लोक में मिलती है। जहाँ पर अग्नि को रत्न की संज्ञा देते हुऐ कहा गया था- अग्निमीहे सुरोहितम् यज्ञस्य देवमृत्विजम् होतारं रत्नधातमम्। देवासुर संग्राम के कारण का मुख्य लक्ष्य रत्नों की प्राप्ति ही थी। क्योकि इन रत्नों का प्रयोग भी स्वयं लाभ प्राप्त करना था। क्याकि देव हो या दानव सभी समुद्र से निकले रत्नों को प्राप्त कर शक्तिशाली, विजयी और अमर होना चाहते थे। जैसा कि पहले भी उल्लेख किया है कि रत्नों से तत्पर्य केवल हीरा, मोती पन्ना मूँगा से न होकर इस विश्व कि सर्वश्रेष्ठ कृति से है। समुद्र मंथन से निकले कौत्सुभ मणि को भगवान विष्णु ने हृदय में धारण किया था। भारतीय परिवेश में रत्न न केवल सौन्दर्य का प्रतीक है वरन यह चिकित्सा पद्धति का भी अंग है। जिसका उल्लेख आयुर्वेद की प्रसिद्ध पुस्तक चरक संहिता में हुआ है। आयुर्वेद के अनुसार रोगनाश करने की जितनी क्षमता औषधि सेवन में है उसी के समान रत्न्ा का धारण करने भी है। भले ही आज के वैज्ञानिक इस बात को न माने किन्तु आचार्य दण्डी रत्न की विशेषता बताते हुऐ कहते है- अचिन्त्यों ही मणिमत्रौषधीनां प्रभावा:।
भारतीय मनीषी रत्नों के चमत्कृत प्रभावों से प्रभावित थे तथा उन्होने रत्नों से सम्बन्धित ज्ञान को विभिन्न वेदों, पुराणों व उपनिषदों अादि में संकलित किया। विद्धानों ने यह भी बताया कि अगर रत्नों से लाभ है तो रत्नों के प्रयोग से हानि भी। किसी भी रत्न का मूल्य का अनुमान उसकी दुर्लभता से होती है। जो रत्न जितना दुर्लभ है वह उतना ही मूल्यवान होता है पर किसी रत्न के दुर्लभ व मूल्यवान होने से यह तय नही हो जाता कि वह उतना ही लाभकारी भी होगा।
अथर्ववेद में मणि का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि रत्नों के धारण करने से ही इन्द्र की उन्नति हुई और उसे इन्द्र पद प्राप्त हुआ-
अभीवर्तेन मणिना येनेन्द्रो अभिवावृधे।
तेनास्मान् ब्राह्मणस्पतोभि राष्ट्राय वर्धय।।
हमारे धर्म ग्रन्थों में रत्नों के महत्व पर कुशलता पूर्वक प्रकाश डाला गया है तथा यह बताने का प्रयास किया गया कि रत्नों के प्रयोग से हम अपनी जीवन शैली को किस प्रकार शान्तिमय बना सकते है। रत्नों के नामकरण पर रसेन्द्र विज्ञान कहा गया है- रमन्तेsस्मिन्नतीप जना इति रत्ननिरूक्ति अर्थात लोग इसमें ज्यादा रमते है इस कारण इसे रत्न की संज्ञा दी गई है।
रत्नचौर्यनिन्दा प्रकरण में मनुस्मृति प्रकाश डालते हुऐ कहती है कि-
मणि मुक्ताप्रवालानां ताम्रस्य रजतस्य च।
अय: कास्योंपलाना़ञ्च द्वादशाहं कणन्नता।।
अर्थात मणि, मोती, मूँगा, तांबा, चॉंदी, लोहा, कांसा व पत्थर अादि के चुराने का प्राश्चित केवल अन्न का कण ही खाने पर होता है।
मानव जीवन के साथ-साथ मणि व रत्नों में भी संस्कार की बात परिलक्षित होती है। संस्कारित मणि वह है तो शाण पर चढ़ाकर घिसने पर प्राप्त हो। बिना शाण पर चढ़ी मणि संस्कारित नही होती है। यहॉं पर संस्कार से तात्पर्य मणि के गुणवत्ता से है। इसके बारे में कहा गया है कि - शाणाश्मकषणै: काष्णर्यमाकरोत्थं मणेरिव।
सुभाषितरत्नभंडार में भी रत्न की संस्कारित व असंस्कारित होने की बात कहते हुऐ कहा गया है कि जो मणि सीधे खान से प्राप्त होती है वह शुद्ध नही होती है उसमें शुद्धता शाण पर चढ़ने पर ही आती है।
निश्चित रूप से भारतीय शास्त्रों और परम्परा में रत्नों का महत्व है, रत्न न के वह सौन्दर्य का प्रतीक बना बल्कि स्वस्थ और समृद्धि का प्रतीक भी सदियों से बना है।
Sep 6, 2007
भक्तों के पिटाई के विरोध में एक दिन का लेखन कार्य बन्द किया
उक्त समाचार मै आपके लिये यहॉं उद्त कर रहा हूँ-
शोभा यात्रा में इस्कॉन भक्तों पर जमकर बरसी लाठियां इलाहाबाद।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव के प्रथम दिन इस्कॉन भक्तों पर पुलिस का कहर टूटा। सिविल लाइन्स हनुमत निकेतन के पास पूजा अर्चना कर रहे लोगों पर पुलिस ने जमकर
लाठियां बरसायीं जिससे इस्कॉन के कई वरिष्ठ सदस्यों समेत श्रद्धालु महिलाएं घायल हो गई। एक सदस्य मनमोहन कृष्ण दास का हाथ टूट गया। उनके साथ आधा दर्जन लोगों को हिरासत में लेकर सिविल लाइन्स थाने ले जाया गया। सोमवार को इस्कॉन की ओर आयोजित सात दिवसीय महोत्सव के प्रथम दिन हनुमत निकेतन से शोभा यात्रा निकलनी थी। इस बीच लोग पूजा अर्चना करने लगे। शहर में कर्फ्यू होने की वजह से प्रशासन ने दोपहर में शोभा यात्रा की अनुमति को वापस ले लिया। इस बीच पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार बड़ी
संख्या में श्रद्धालु घटना स्थल पर पहुंच चुके थे। शोभा यात्रा रद की सूचना विलंब
से प्राप्त होने से बड़ी संख्या में महिलाएं व बच्चे भी यात्रा व पूजन में शामिल हो
गए। इस बीच वहां तैनात पुलिस कर्मियों ने इस्कॉन को केवल पूजा अर्चना की अनुमति दे दी। पूजा अर्चना व कीर्तन जैसे ही परवान चढ़ा, कि पुलिस की लाठियां बरसने लगीं। कोई कुछ समझ पाता कि इससे पहले भगदड़ मच गई। लाठियों की चपेट में कई महिलाएं भी आयीं जिसमें चार महिलाएं घायल हो गई। उनके परिचितों ने उन्हें नजदीक के अस्पताल ले जाकर उपचार कराया। पुलिस कमेटी के करीब आधा दर्जन लोगों को सिविल लाइन्स थाने ले गई।
जहां कई घंटो तक घायल मनमोहन कृष्ण दास कराहते रहे। जिलाधिकारी आशीष गोयल ने इस संबंध में पूछने पर कहा कि इस्कान को शोभा यात्रा निकालने की अनुमति नहीं दी गई थी। फिर भी उन्होंने जुलूस को चौक की ओर ले जाने का प्रयास किया। दूसरी ओर इस्कान मंदिर इलाहाबाद के अध्यक्ष सुरपति दास ने कहा कि जबरदस्ती नजरबन्द कर दिया गया। निरीह भक्तों पर लाठियां बरसाना बर्बरता व संकीर्ण मानसिकता का परिचायक है। उन्होंने कहा कि समिति ने शोभा यात्रा न निकालने का निर्णय ले लिया था। वे सिर्फ पूजा करने का जा रहे थे तभी पुलिस लाठियां चलाने लगी।
निश्चित रूप से शासन और प्रशासन हिन्दु हितों के साथ भेदभाव कर रही है, और देश के धर्मनिपेक्ष छवि को धूमिल कर रही है। अत: इस घटना की तीव्र निन्दा और भर्त्सना की जानी चाहिऐ। महाशक्ति समूह इस घटना की निन्दा करती है।
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Sep 4, 2007
भारत के स्वर्ग की दुर्दशा
श्री अरविन्द जन्मोत्सव पर्व की समाप्ति
श्री अरविन्द ने कहा था के अन्तर्गत अन्तिम किस्त प्रस्तुत है-
हमें अपने अतीत की अपने वर्तमान के साथ तुलना करनी होगी और अपनी अवनति के कारणों को समझाना तथा दोषों और रोगों का इलाज ढ़टना होगा। वर्तमान की समालोचना करते हुऐ हमें एक पक्षीय भी नही हो जाना चहिए और न हमें, हम जो कुछ हैं, या जो कुछ कर चुके है उस सबकी मूर्खतापूर्ण निष्पक्षता के साथ निन्दा ही करनी चाहिए। हमें अपनी असली दुर्बलता तथा इसके मूल कारणों की ओर ध्यान देना चाहिए, पर साथ ही अपने शक्तिदायी तत्वों एवं अपनी स्थाई शक्यताओं पर और अपना नव-निर्माण करनी की क्रियाशील प्रेरणाओं पर और भी दृढ़ मनोयोग के साथ अपनी दृष्टि गड़ानी चाहिए।
(श्री अरविंद साहित्य समग्र, खण्ड-1, भारतीय संस्कृति के आधार, पृष्ठ 43 सें)
Sep 3, 2007
रोज गार्डेन भाग-1
मेरे सामने एक मुसाफि़र गज़ल गा रहे हैं।
गज़ब देखकर फिर मचल जा रहे है।।
वो गुलाबों का बागीचा, था पानी से सींचा,
चलते ही चलते फिसल जा रहे है।
वो पक्षियों की चहचहाहट, बादलों की गड़गड़ाहट,
डालकर बाहों में बांह युगल जा रहे है।
वो मौसम हसीना, न आये पसीना,
देखते ही देखते `वो´ बदल जा रहे हैं।
शुरू हो गई बरसात, पूरी हुई नहीं है बात,
बादल भी ऐस दखल दिये जा रहे है।
वो फूलों की खुश्बू, न कोई थी बदबू,
`बाबा´ के रेडियो पर भी गज़ल आ रहे है।
वो पानी की बूंदे, कोई आंख तक न मूंदे,
हम भी ऐसे किये पहल जा रहे है।
बैठ गये महफिल में, कोई नहीं मंजिल में,
बूढ़े भी चहल-पहल किये जा रहे है।
वो `बाबा´ की दीवानगी, सखी-सहेली थी बानगी,
अब तो महफिल भी एकदम विरल हो रहे है।
श्री अरविन्द ने कहा था
सत्य वह चट्टान है जिसके ऊपर विश्वनिर्मित है। सत्येन तिष्ठेन जगत्। मिथ्यत्व कभी भी शक्ति का वास्तविक स्तोत नही बन सकता। जब आंदोलन के मूल में मिथ्यात्व
होता है, तो उनका असफल होना निश्चित है। कूटनीति तभी किसी की सहायता कर सकती है जब वह आंदोलन पर चले। कूटनीति को मूल सिद्धान्त बनाना अस्तित्व के नियमों का
उल्लंघन करना होगा।
(श्री अरविन्द के लेख, वार्तालाप और भाषण संकलन भारत पुनर्जन्म, पृष्ठ 37 से उद्धृत)
Sep 2, 2007
दिल्ली यात्रा के दौरान बने कुछ रिकार्ड
मेरी यात्रा किसी भी ब्लागर के जीवन की पहली यात्रा ब्लागर यात्रा रही। अर्थात मै अपनी पहली यात्रा सिर्फ ब्लागिंग के लिये ही किया।
रेलवे के द्वारा अपनी प्रथम ब्लागिंग यात्रा में लूटा जाने वाला प्रथम ब्लागार भी मै ही हूँ। जो अपनी पहली यात्रा में नाजायज तरीके से लूटा गया। ( इसकी चर्चा बाद में करूँगा)
किसी भी ब्लागर को उसकी प्रथम ब्लागर यात्रा में लूटे जाने का विरोध करने वाला भी मै पहला ब्लागर हूँ। मै रेलवे द्वारा खुद को लूटे जाने का महाप्रबंन्धक व मुख्य प्रबन्धक वाणिज्य से शिकायत किया। अर्थात ब्लागिंग के लिये की जाने वाली यात्रा में पहली शिकायत मैने दर्ज की है। (सूबूत के तौर पर शिकायत की रीसिविंग कापी मेरे पास है)
ब्लागिंग के लिये सामान्य टिकट से यात्रा करने वाला पहला ब्लागर। दिल्ली से इलाहाबाद तक की 650 किमी की यात्रा 20 घन्टे से भी कम समय में पूरी की।
टीटीई के द्वारा आगरा के कानपुर के लिये आराक्षण की सीट उपलब्ध करने के लिये रिश्वत मागने वाले टीटीई को रिश्चत देने इन्कार करने वाला पहला ब्लागर(इसके बारे में बाद में लिखूँगा)
जनरल बोगी में आगरा से कानपुर तक की रात्रि 1 से सुबह 7 बजे तक खड़े होकर यात्रा करने वाला प्रथम ब्लागर।
सामूहिक ब्लाग के दो ब्लागरों की एक साथ पहली बार यात्रा
दिल्ली यात्रा के दौरान लगभग 35 किमी चलने वाला पहला ब्लागर, (हुआ क्या कि हम दिल्ली घूमते-2 रास्ता भूल गये जिससे भी पूछा तो रास्ता वही बता रहा था कि ग्रीन गार्डेन से आई आई टी गेट जाओं अर्थात जहॉं से आये हो वही फिर जाओं। पर हम थे कि उस रास्ते पर दोबारा जाने को तैयार नही थे, फिर हम अपनी मन के रास्ते पर चल दिये और काफी मस्कत के बाद हिरण पार्क से रोज गार्डेन होते हुये गन्तव्य तक पहुँच गये) इसके अलावा भी काफी चला हुआ। इण्डिया गेट के पास, नेहरू प्लेस पर, और गुंडगॉंव और फरिदाबाद आते जाते समय, आगरा में, अनूप जी के मिडिल रोड पर और भी बहुत जगह)
100 घन्टों की कुल यात्रा में 18 घन्टे से भी कम सोने वाला पहला ब्लागर,
एक ब्लागर के रूप में आगरा जाकर ताजमहल न देखने वाला पहला ब्लागर
सबसे कंजूस ब्लागर यात्रा, यात्रा के दौरान दो व्यक्तियों का 4 दिन में मात्र 1300 से कम रूपये खर्च हुआ। (इसमें रेलवे 300 रूपये की लूट शामिल है)
दिल्ली में रात्रि 1 बजे सोकर सुबह 5 बजे उठने वाला पहला ब्लागर।
एक और रिकार्ड है जो मै आपने लेख में जिक्र करूँगा।
इसके अलावा और भी चाहे अन्चाहे रिकार्ड है जो अभी याद नही आ रहे है। :)
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Sep 1, 2007
रेल का सफ़र इलाहाबाद से दिल्ली तक
धीरे धीरे सब कुछ सामान्य हो गया। सभी यात्री कुछ तो सोने की तैयारी करने लगे तो कुछ बातों में तल्लीन हो गये। मै और तारा चन्द्र भी अपनी बातों में मस्त थें। मुझे नीचे की सीट मिली थी तो तारा चन्द्र को बीच की। इससे हमें और भी आराम था, हमने रात्रि 1 बजे तक बीच के सीट को फोल्ड ही रहने दिया और जग चर्चा में लग गये। 1 बजें के बाद ताराचन्द्र को कुछ नीद़ की शिकायत हुई तो मैने उन्हे कहा कि तुम भी अब अपनी सीट पर चले चलों और यह कह कर सीट को खोल दिया गया। बसी बीच एक और मजेदार वाक्या हुआ रात्रि में करीब 10:30 बजे एक सज्जन आये और मुझसे कहने लगे कि मुझे पहचाने मुझे पहचाने मैने भी सोचा कि यह बन्दा इनती दावे से यह कर रहा है तो निश्चित रूप से मुझे जानते होगें मैने भी अपनी दिमाग की चक्करगिन्नी दौड़ाई और फटाक से बोल पडा कि आप चुन्तन है। यह सुनते ही उन जनाब्र के चेहरे की हवाई उडने लगी। और आस पास के लोगों पर हल्की से मुस्कान भी देखने को मिल रही थी। फिर उन्होने अपना परिचय दिया कि वे उच्च न्यायालय में अधिवक्ता है और उन्होने मुझे मेरे घर पर देखा था। चुंतन का ख्याल में मन इसलिये भी आया कयोकि मुझे नही लग रहा था कि रेल में भी मुझे कोई पहचानेगा और कुछ दिनों पूर्व चुंतन से मुलाकात हुई थी हो सकता हो वही हो। फिर हम लोगों ने उनसे विदा लिया और उन्होने आपनी सीट और बताई। उसके बाद मै रात्रि में काफी देर तक यह वाक्या सोच सोच कर हसता रहा। रात्रि 2 बजे के बाद मै सो गया और सुबह/रात्रि 3 बजे के जब मै उठा तो अलीगढ़ रेलवे स्टेशन था और फिर चद्दर निकाल का फिर से लेट गया। फिर जब उठा तो सुबह के 5 बज रहे थे। मै फिर नित्यकर्म से निवृत्त होकर जग गया और 5.45 तक तारा चन्द्र को भी जगा दिया। और फिर सीट को उठा दिया। हमारी देखा देखी और और लोगों ने भी अपनी नीद हराम कर ली।
गाजियाबाद के आते आते सभी अपने सामान को समेटने लगे थे, हम भी तैयार होने लगे थे। दिल्ली के दर्शन हमें गाजियाबाद से ही होने लगा था। एक ऊँची ऊँची इमारते, विशालकाय फैक्ट्री भी दिख रही थी। हमने यमुना नदी भी देखा जिसे तारा चन्द्र यमुना मानने से ही इन्कार कर रहे थे। क्योकि तारा चन्द्र के मन में जो परिकल्पना थी उससे दिल्ली की यमुना आधी दिख रही थी। आगे चलने पर हमें बड़ी-बड़ी इमारतों के साथ ही मलिन बस्ती भी देखने को मिल जिससे लगा कि दिल्ली का एक रूप यह भी है। रेल यात्रा करते समय नीचे की चिकनी सड़के मन को मोह रही थी। इस बीच मै लगातार शैलेश जी और अपने एक और मित्र सुरेन्द्र सुमन सिंह (पहली बार मिल रहा था) से मोबाईल पर सम्पर्क में था। शैलेश जी से उत्तर मिला कि आपके लेने के लिये अनिल त्रिवेदी जी जा रहे है। तो सुरेन्द्र जी से बात हुई तो वे कह रहे थे कि आप कहीं मत जाइये मै आपसे मिलने के लिये उत्सुक हूँ और 7.30 तक मै आ रहा हूँ। बात होते ही होते हम दिल्ली स्टेशन पर पहुँचते ही मेरी यह रेल यात्रा वृतान्त समाप्त होती है।
अब आपको अगली कड़ी में अनिल त्रिवेदी और सुरेन्द्र सुमन जी के साथ बस पर बिताऐ पलों का वर्णन करूँगा। व्यस्तताओं के कारण देरी के लिये क्षमा प्रार्थी हूँ।
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इलाहाबाद के 5 थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू
मेरे संज्ञान में इतना है कि कल रात्रि करीब 11 बजे घर पर फोन आता है कि कहीं कुछ धर्मिक पुस्तकें फाड व जला दी गई है। (इस बात में कितनी सच्चाई है पता नही) जिससे कुछ लोगों के समूह ने करेली थाना क्षेत्र में गोली बारी की। सुबह की घटना को देख कर लग रहा था कि जो कुछ रात्रि की खबर थी वह सही थी। मै निश्चित तौर पर इस घटना पर नज़र रखे हुऐ भी और जैसा कुछ भी घटित होगा मै आपके सामने रखूँगा।