By फ़ुरसतिया on September 12, 2009
पिछले लेख में बात शुरू हुई थी जनभाषा से और फ़िर वह सरकायी , धकेली जाती हुयी हिन्दी, संस्कृति, अंग्रेजी , मैकाले, फ़ैकाले होते हुये बरास्ते संस्कृति और विनम्रता आदि होते हुये हिन्दी दिवस पर जाकर खड़ी हो गयी। इसी सिलसिले में मुझे श्रीलाल शुक्लजी का एक लेख याद आया जो हिन्दी पर दो टिप्पणियां [...]
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By फ़ुरसतिया on September 11, 2009
भाषा ज्ञानजी की पोस्ट सुबह-सुबह देख रहे थे। जानकारी दिहिन हैं रेल की-डरते-डरते। हम टिपियाये- “सुन्दर। हम भी कटियाज्ञानी हो गये। कटियाज्ञानी बोले तो जैसे कि आपके ब्लाग पर ज्ञान करेंट बह रही थी हम उसमें कटिया फ़ंसा के सप्लाई ले लिये। सब ले रहे हैं! न पैसा दिया न छदाम,मुलु बनिगा अपना सारा काम!” [...]
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By फ़ुरसतिया on September 5, 2009
आज शिक्षक दिवस है। लोग कहते हैं कि शिक्षा का स्तर गिर गया है। पतित हो गयी है शिक्षा व्यवस्था। हर तरफ़ ट्यूशन का बोलबाला है। जितने मुंह उससे चार गुनी बातें! हर जागरूक व्यक्ति का हर मामले में कुछ न कुछ “मेरा तो यह मानना है” रहता है । जागरुक चाहे एक बार भले [...]
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By फ़ुरसतिया on August 26, 2009
वे हिन्दी ब्लागिंग के शुरुआती दिन थे। साथी ब्लागरों को लिखने के लिये उकसाने के लिये देबाशीष ने अनुगूंज का विचार सामने रखा। इसमें एक दिये विषय पर लोगों को लिखना था। लिखने के बाद अक्षरग्राम पर लेखों की समीक्षा होती। पहली अनुगूंज का विषय था- क्या देह ही है सब कुछ? 25 अक्टूबर को [...]
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By फ़ुरसतिया on August 13, 2009
आजकल रोज डेली तमाम तरह के एस.एम.एस. आते हैं मोबाइल पर। कुछ में दोस्त लोग चुटकुले, शेरो-शायरी भेजते हैं और बाकी में मोबाइल कम्पनियां अपने विज्ञापन। एक विज्ञापन आजकल रोज आ जा रहा है: मिसिंग समवन तो इजहार कीजिये अपने दिल के जजबात का मिस यू मेसेज के संग। मिस यू मेसेज पाने के लिये [...]
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