]>

21 November 2005 

बड़े बेआबरू होके तेरे सैलून से हम निकले!

जनाब कानपुर या फिर भारत का कोई भी शहर हो, वहाँ लोगबाग गुम्मा हेयर कटिंग सैलून में गुम्मे पर बैठकर बाल कटाने से लेकर फेसियल मसाज के चोंचलों तक की यात्रा कर चुके हैं। पहली बार फेसियल मसाज सुनकर कई कौतुहूल जागते हैं। शायद मशहूर व्यंग्यकार केपीसक्सेना कुछ यूँ कहते फेसियल के बारे में "अमाँ, यह सब तो उन औरतों के शौक हैं जो बुढ़ापे से ढीली पड़ती खाल को फेसियल की इस्तरी से कड़क बनाये रखना चाहती हैं। अमाँ कभी देखा है चेहरे पर आटे की परत लपेटे आँखो पर कटे खीरे के टुकड़े चपकाये उन औरतो को । बाखुदा बड़ा खौफनाक मँजर दिखता है। अजी लाहौल भेजिये इन चोंचलो को। खुदा गारत करें इन नाईयों को अच्छे खासे खानदानी चँपी के हुनर से किनाराकशी कर रहे हैं। आजकल के मर्दो को भी जाने क्या फितूर सवार है, मालिश-चँपी कराना छोड़कर चेहरे के खाल यूँ रगड़वाते हैं जैसे धोबी पायजामा निचोड़ रहा हो।"
खैर सक्सेना जी के विचारों और गुम्मा हेयर कटिंग सैलून से याद आती है वह वारदात जो ठीक दस साल पहले हम पर गुजरी। जनाब उस दिन हमारी शादी भी हुई थी। पर शादी की घोड़ी चढ़ने से पहले क्या हुआ यह राज बहुत कम को मालुम है। हमारी बीबी को कभी कभी शक हो जाता है कि हमारी शायद कोई माशूका वगैरह थी। शायद उसके न मिल पाने के गम में हम अपनी ही शादी में मजनू सरीखे दिख रहे थे। हमारी दाढ़ी तक नहीं बनी थी और शक्ल कुछ यूँ दिख रही थी कि गोया किसी ने पाँच-दस तमाचे रसीद किये हों। शादी के दौरान हमारी श्रीमती जी को उनकी भाभी ने कोंचा भी कि नौशा मियाँ इतने गमजदा क्यों दिख रहे हैं ? बाद में श्रीमती जी ने भरसक कोशिश की यह पता लगाने की कि वह कौन सी बेवफा थी जिसके गम में हमने सूरत लटका कर उनकी शादी के अलबम का सत्यानाश कर दिया। हमारी गैरमौजूदगी में हमारी तथाकथित डायरी तलाशने की कोशिश भी की। उनके शक को मेरे कुछ मसखरे चचेरे भाईयों ने यह कहकर भी पुख्ता करने की कोशिश की कि भाई बड़े दिलफेंक किस्म के हैं जरा सँभाल के रखियेगा। हलाँकि हमने भी उन्हें असल वजह नही बतायी तो नही बतायी। अमाँ अपना फजीता थोड़े ही कराना था। पर अब इंडीब्लागीज का तँबू फिर से तन गया है तो हमने भी सोचा कि दस साल से दफन इस राज को बेपर्दा कर ही दिया जाये एक हाल आफ फेम पोस्ट के जरिये। किसी भी सूरतेहाल में एशेज को अपने कब्जे में रखने की कोशिश करने में क्या हर्ज है?

तो जनाब इस किस्से के मुख्य किरदारों से आपका परिचय करा दिया जाये।

  • नायक हैं हम खुद
  • चरित्र भूमिका में हैं हमारे पिताश्री
  • सँकटमोचक मित्र की भूमिका थी हमारे बचपन के दोस्त टिंकू मियाँ की
  • सँकट का कारण बने अनूप फुरसतिया जी नही, अनूप हमारे छोटे भ्राताश्री का नाम भी है
  • सँकटकारक थे सभासद पन्नालाल जी और उनका चेला रामदुलारे

शादी से पहले हम अपने खानदान में कुछ कुछ नर्ड सरीखे बने रहने की कोशिश करते थे। हमेशा जीनियस दिखने की चाहत में फैशनपरस्ती से अदावत रखी। मन आया तो दाढ़ी बनी, नही आया तो नही बनी। क्लीनशेव न होने के चक्कर में एचबीटीआई में रैगिंग भी खूब हुई हमारी। लखनऊ में नौकरी के दिनों में भी हमारी दाढ़ी तभी बनती थी जब हमें किसी हाईफाई क्लाईंट के यहाँ जाना होता था। दाढ़ी बनने के बाद आफ्टरशेव लगाने से हमारी चिढ़ का यह आलम है कि इकलौती साली का दिया आफ्टरशेव कानपुर से अमेरिका आ गया पर खत्म न हुआ। तो हुआ यूँ कि शादी से एक महीने पहले सगाई की रस्म होनी थी। सगाई से एक दिन पहले हमने अपनी प्यारी साईकिल उठाई और चौराहे पर बने रँगीला सैलून जा पहुँचे, दाढ़ी बनवाई और अगले दिन सगाई के लिये तैयार हो गये। काम की अधिकता की वजह से किसी ने ध्यान नही दिया पर अगले दिन पिताश्री की भृकुटि तन गई कि क्या सगाई के दिन भी कँजूसी नही गई हमारी और महज चार रूपये में दाढ़ी बनवा के आ गये, यहाँ तक कि पड़ोस के अँकल भी हमसे ज्यादा स्मार्ट दिख रहे थे। हमारे भ्राताश्री अनूप मियाँ जिनका स्मार्टनेश पर पेटेंट कापीराईट हैं फौरन उवाचे "हमें तो पता था कि ये ऐसे ही चले आयेंगे। इनको तो फेशियल नाम की चिरैया का भी नाम न पता होगा।" पिताश्री ने अनूप को शादी में हमे स्मार्ट दिखने का ठेका सौंप दिया। अनूप न सिर्फ स्मार्ट हैं बल्कि हमसे ज्यादा व्यवहारिक भी हैं, मोहल्ले के परचूनिये से लेकर सभासद तक सब उन्हें जानते हैं। एक ऐसे ही सभासद पद के उम्मीदवार जो पेशे से नाई थे, उनकी दुकान पर अनूप हमें शादी से एक दिन पहले हमें ले गये। जाते ही नये बनने वाले देवर में जितनी होनी चाहिये उतनी ठसक के साथ भ्राताश्री ने पन्नालाल जी को तलब किया। उनके चेले रामदुलारे ने बताया सभासदजी परचार करने गये हैं। दरअसल कानपुर की नगरपालिका के चुनाव होने वाले थे, दुकान के मालिक नाई पन्नालाल सविता सभासद पद के दस हजार तीन सौ बारह उम्मीदवारों मे एक थे और चुनावप्रचार पर निकले थे। भ्राताश्री ने हुक्म सुनाया कि भाईसाहब कि कल शादी है, इनका फेशियल, शेव एकदम चकाचक होना चाहिये। रामदुलारे अचानक माडर्न बन गया। सलाह देने लगा कि भाई साहब, आज तो बिना शेव किये सिर्फ फेशियल होना चाहिये। कल शादी से दस बारह घँटे पहले अगर दाढ़ी बनेगी तो फोटू बहुत अच्छी आयेगी। भ्राताश्री इस समय बिल्कुल अटल जी के प्रधानसचिव ब्रजेशकड़कदार मिश्रा की भूमिका में थे और हमें फेशियल से चिढ़ को नजरअँदाज करते हुये उनकी सलाहरूपी आज्ञा का पालन करने के अतिरिक्त कोई चारा नही दिख रहा था। रामदुलारे कुर्सी के हत्थे पर एक पाँव टाँग कर, मुँह में गधाछाप तँबाकू की खैनी दबाकर जुट गया हमारे गाल रगड़ने में। हम सोच रहे थे कि क्या इसी रगड़ाई को फेसियल कहते हैं? दस मिनट बाद रामदुलारे ने सलाम ठोंका, अगले दिन बारह बजे आने कि ताकीद की और पचास रूपये झटक लिये। रात में कुछ ऐसा लग रहा था गाल पर चींटीयाँ काट रही हों। हमने मारे गुस्से के सबसे छोटे चचेरे भाई को हड़का दिया कि वह रसगुल्ला लेकर हमारे बिस्तर पर दिन में तो नही चढ़ा था। पर ऐसा कुछ नही हुआ था। कानपुर में जहाँ का विद्युत विभाग वोल्टेज का काँटा १८० के अँक की लक्षमण रेखा पार करने को धर्मविरुद्ध समझता है, मद्धम बल्लब की रोशनी इस कष्ट के कारण पर पर्याप्त रोशनी नही डाल पा रही थी। सबेरे होने पर दर्पण ने चुगली कि गाल पर चींटीयों ने नही काटा बल्कि छोटे छोटे लाल लाल दाने निकल आये हैं। अभी हमारे क्रोध का विस्फोट होता उससे पहले टिंकू मियाँ नमूदार हुये। फैशन के जिस स्कूल में अनूप छात्र हैं टिंकू उसके प्रिंसिपल हैं। उन्होनें तुरँत लेक्चर पिलाया कि आखिर हमें किसी टुच्ची दुकान से फेशियल कराने की क्या जरूरत थी। आखिर मालरोड के दमकते फैशन सैलून किस मर्ज की दवा हैं। हमने टिंकू के सवालो की बौछार को अनूप की ओर मोड़ दिया। अनूप ने भँगिमा बदली कि मालरोड का रुख करने से पहले पन्नालाल की नेतई की हवा निकालनी जरूरी है। पिताजी ने शादी के दिन किराये की कार हमारे हवाले की इस ताकीद के साथ कि बारह बजे तक अपना थोबड़ा कहीं से भी ठीक कराके आओ, उन्हें नये जूते खरीदने जाना था। पन्नालालजी दुकान में मौजूद थे, शायद चुनाव प्रचार थम गया था। पन्नालाजी अनूप को तो जानते थे पर साथ आयी फौज देखकर चौंके। अनूप ने जितनी डाँट सबेरे हमसे खाई थी उतनी पन्नालाल को पिलाने लगे। माजरा पता चलने पर पन्नालाजी ने पैंतरा बदला। रामदुलारे को तलब किया और कसके डाँटा "तुम्हे दस साल में भी अक्ल न आयेगी, भला बिना दाढ़ी बनाये मसाज करोगे तो बाल खिंचेंगे कि नहीं? बाल खिंचेंगे तो दाने निकलेंगे कि नही? अब अगले कि शादी है बताओ क्या होगा?" हम सब कुछ कहें उसके पहले ही पन्नालाल जी बर्फ से भरा बड़ा सा जग लेकर हाजिर हो गये और लगे मेरे गाल की बर्फ से सिंकायी करने। इस इलाज से मेरे दाने भी कुछ कम हुये और हम सबका गुस्सा भी। तभी अनूप के एक और दोस्त जिनका बगल में मेडिकल स्टोर था, एविल २५ की एक गोली लेकर हाजिर हो गये और पन्नालाल को लेक्चर पिलाया कि क्यो वह धँधा चेलो पर छोड़कर गायब रहता है और गोली हमें गटका दी कि इससे फायदा होगा। हम खाली पेट पन्नालाल की कुर्सी पर टँगे उनके अगले जलजले यानि कि तौलिया मुँह में ढाँप के स्टीम से सिंकाई कराते रहे। इस प्रक्रम के पूरा होने के बाद पन्नाला जी ने फिर से फेशियल कर मारा। पूरे दो घँटे में पेट पिचक गया था और कमर अकड़ गयी थी। पर अभी पन्नाला जी का आखिरी सितम बाकी था। पन्नालाल उस्तरें के साथ हाजिर थे। उनकी इल्तजा थी कि बर्फ से सिंकाई से दाने अस्सी प्रतिशत दब गये हैं, फेशियल से चेहरा निखर आया है अब थोड़ी तकलिफ जरूर होगी पर हमें उसे झेल कर दाढ़ि जरुर बनवा लेनी चाहिये। हमनें हल्का सा प्रतिरोध किया कि अब काफी तकलिफ हो रही है। पर अनूप की झिड़की , टिंकू की घुड़की और पन्नालाल की फुर्ती के आगे हमारी एक न चली। पन्नालाल का उस्तरा हमारे गाल पर यों लग रहा था जैसे कोई जालिम जख्मों पर नमक लगा कर धीरे धीरे छुरा घिस रहा हो। अचानक आँखो के आगे अँधेरा छा गया और जब आँखे खुली तो हम फर्श पर भीगे पड़े थे, अनूप जकड़े , टिंकू अकड़े और पन्नालाल हाथ जोड़े खड़े थे। दरअसल पन्नालाल के जुल्म और एविल २५ के सितम हमारा भूखा पेट झेल न पाया और हमें गश आ गया था। दुकान में मौजूद किसी झोलाछाप डाक्टर ने तुरँत हम पर पानी डालने की सलाह क्या दी पन्नालाल ने बर्फीले पानी से भरा जग हम पर भरे नवँबर की कड़कती ढँड में उलट दिया। हम अभी यह नही समझ पाये कि पिछले मिनट में हुआ क्या था पर खुद को पानी से भीगा देख और पन्नाला के हाथ में खाली जग देखकर हमारा पारा साँतवे आसमान पर चढ़ गया। हम दहाड़े "अबे हमारे पर ऊपर पानी क्यों डाला? " पन्नालाल के हाथ से जग गिर गया। अनूप और टिंकू पन्नालाल को खरीखोटी सुना रहे थे और उसकि दुकान के बाहर भीड़ लग गयी थी। सबको सभासद जी कि सार्वजनिक धुलाई से मजा आ रहा था और सब उनकी सँभावित पिटाई देखने को लालायित थे। पन्नालाल जी ने हाथ जोड़ कर टिंकू से कहा "मालिक इस दूल्हे की आज शादी है, भगवान की खातिर इसे घर ले जाओ और आराम करने दो जिससे शादी राजी खुशी निपट जाये।" टिंकू मियाँ मौके की नजाकत को भाँपते हुये हम सब को बटोर कर कार की ओर चले। कार उन्होनें अपने घर की ओर मुड़वा दी। उनकी दलील जायज थी कि हमें भीगे कपड़ों में देख कर बाराती न जाने क्या समझ बैंठे। अब रायते को और ज्यादा फैलने से रोकने के लिये हम उनके घर पहुँचे। अगले मिनट में हम टिंकू के घर तौलिये में बैठे रोटी दाल खा रहे थे, अनूप फोन पर कुछ बहाने बना कर थोड़ी ही देर में धर्मशाला जहाँ बारात ठहरी थी , पहुँचने की दुहाई दे रहे थे और टिंकू हमारे कपड़ो पर इस्त्री कर रहे थे।
अब कोई भलामानुष यह पूछ सकता है कि हम भीगे कपड़े भी तो पहन के धर्मशाला जा सकते थे, आखिर वहाँ हमें शाम के लिये शादी का सूट तो वैसे भी पहनना था। जी नहीं, टिंकू ने शादी भले न की थी पर बारातें बहुत देखी थी, बड़ी धाँसू दलील दी उसने कि "लोग तो बात का बतँगड़ बनाने में माहिर होते हैं, कहीं कोई यह न समझे कि हम अपनी शादी का कार्ड अपनी माशूका को देने जा पहुँचे हो और उसने हम पर पानी फेंक कर हमें भगा दिया।" चलो मान लिया कि हम इतने बेवकूफ नही थे कि भीगे कपड़ो में धर्मशाला जाते तो फिर टिंकू से कपड़े उधार लेकर भी तो पहन सकते थे। पर टिंकू के पास उसका भी जवाब था " यार यह उससे भी बुरा होगा, कही कोई यह अफवाह न उड़ा दे कि तू अपनी शादी का कार्ड अपनी माशूका को देने गया था और उसके भाईयों ने तेरे कपड़े फाड़ के तुझे भगा दिया।"
पूरे तीन घँटे देर से पहुँचने पर पिताश्री का गुस्सा भी झेला और जीजाश्री की हैरानगी भी कि हमने इतनी घटिया शेव कहाँ से बनवायी। सबसे मजेदार था अनूप को इसकी सफाई देते देखना कि यह ईटालियन स्टाईल से बनी शेव है जिसमें खिंची फोटू चमक उठती है। हलाँकि उसकी दलील बाद में न हमारी श्रीमती जी ने मानी न किसी घर वाले ने। अगर आपको इस कहानी पर यकीन न हो तो कुछ दिनों में अपनी शादी के वीडियो कैसेट से पिक्चर निकाल कर पोस्ट करता हूँ।


6 टिप्पणी:

बहुत मजेदार लेख लिखा है अतुल जी!

आजकल सभी चिट्ठा कार गड़ फिर से हरकत में आ गयें हैं और रोज नई नई बढिया पोस्ट पढने को मिल रही हैं। लगता है जीतू जी के प्रयत्न रंग ला रहे हैं।

वाह मियां क्या खूब लिखा है!! मान गये! मज़ा आ गया पढ़्कर। मंने तो दो बार पढ़ा। अरे एक आध फोटो डाला होता इधर रियल वाला तो मज़ा दोगुना हो गया होता!

वाह! मजेदार विवरण। मजा आ गया। लेकिन अब भी लगता है कि सैलून की आड़ में सच छिपाया गया है। पत्नी से क्या छिपाना!सच बता दो न उनको।काफी दिन बाद लिखने तथा धांसू लिखने
की बधाई!

बहुत अच्छे! टोटल इफेक्ट के लिये एक फोटो भी लगाना था न.ज़रा हम भी देखते आपने अपनी श्रीमति जी के शादी का अल्बम कैसे और कितना बिगाडा .

प्रत्यक्षा

अतुल भाई

बाकी तो सब ठिक है लेकिन वो थी कौन ?
फेसियल कराते वक्त यदि मन किसी कन्या के बारे मे सोच रहा होता है तो चेहरे पर लाल दाने आ जाते हैं, ये मेरा अनुभव है. अब बता ही दो !

आशीष

अब जो हुआ सो हुआ उसमें तुम्हारी पत्नी का क्या दोष? उनको विवाह वर्षगांठ की मंगलकामनायें। तुम भी उसी में 'एडजस्ट'कर लेना।

Post a Comment

परिचय

  • नामः अतुल अरोरा
  • निवासःPhiladelphia, Pennsylvania, United States
  • कानपुर में जन्मा, पला बड़ा, एचबीटीआई से कंप्यूटर डिग्री लेकर कुछ साल लखनऊ व कानपुर में काम किया फिर सीधे अमेरिका आ गया| अब फिलाडेल्फिया में कार्यरत, समय को बीबी , बच्चों और अपने लेखन, फोटोग्राफी जैसे शौकों में बाँटता हूँ|

पिछले अँक

Subscribe रोजनामचा in email

    आत्मप्रवंचना

Best Indian blog 2004 in Hindi category
प्रसिद्धी सूचकांक
NARAD:Hindi Blog Aggregator

    सहायता मँच

धन्यवाद

Creative Commons License Powered by Blogger