रिश्ता एक बहुत पेचीदा सा लफ्ज है
कई रिश्ते ऍसे होते हैं जिन्हें आप कोई नाम नहीं दे सकते
जब भी इन्हें लफ्जों के दायरे में बाँधने की कोशिश करते हैं वो धागों की तरह और उलझते चले जाते हैं
इन रिश्तों के मायने ना ही ढ़ूंढ़े जाए तो अच्छा है
क्या पता उलझते उलझते इन धागों में गाठें पड़ जाएँ ।
बकौल गुलजार
हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू
हाथ से छू के इसे रिश्तों का इलजाम ना दो
सिर्फ अहसास है ये रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो
हमने देखी है ....
आपसी रिश्तों की बात छोड़ें । अपने इर्द गिर्द की प्रकृति के विविध रूपों को देखें
क्या आपको कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि इनसे जरूर मेरा कोई रिश्ता है ?
चाहे वो आपके आँगन का वो बरसों पुराना पीपल का पेड़ हो...
या आपके लॉन की हरी मखमली घास...
सुबह की ताजी हवा हो या सांझ की सिमटती धूप...
या फिर रात के पूर्ण अंधकार में फैली स्निग्ध चांदनी...
गीतकार राहत इन्दौरी के लिखे इस प्यारे से गीत में एक कोशिश है अपने आस पास की फिजा में अपने रिश्तों की परछाईयाँ ढ़ूंढ़ने की । चाहे वो झील में कंकर मारने से बनता भँवर हो या हवा में तैरती सी रुक रुक कर आती उसकी आवाजें, महबूब की कल्पनाएँ मुग्ध किए बिना नहीं रह पातीं । और उस पर ए. आर. रहमान का सौम्य संगीत और रीना भारद्वाज की दिलकश आवाज गीत में डूबने में आपकी मदद करती है ।
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कोई सच्चे ख्वाब दिखा कर
आँखों में समा जाता है
ये रिश्ता...
ये रिश्ता क्या कहलाता है
जब सूरज थकने लगता है
और धूप सिमटने लगती है
कोई अनजानी सी चीज़ मेरी
साँसों से लिपटने लगती है
मैं दिल के क़रीब आ जाती हूँ
दिल मेरे क़रीब आ जाता है
ये रिश्ता क्या कहलाता है
इस गुमसुम झील के पानी में
कोई मोती आ कर गिरता है
इक दायरा बनने लगता है
और बढ़ के भँवर बन जाता है
ये रिश्ता क्या कहलाता है
तसवीर बना के रहती हूँ
मैं टूटी हुई आवाज़ों पर
इक चेहरा ढूँढती रहती हूँ
दीवारों कभी दरवाज़ों पर
मैं अपने पास नहीं रहती
और दूर से कोई बुलाता है
ये रिश्ता क्या कहलाता है
कुछ बातें इस गीत की गायिका रीना भारद्वाज के बारे में । रीना जितनी देखने में खूबसूरत हैं उतनी ही हुनरमंद भी । नृत्य में वे कत्थक से भली भांति वाकिफ हैं । हिन्दी के आलावा, तमिल, बंगाली और पंजाबी में भी अपनी गायन प्रतिभा दिखा चुकी हैं । अपनी गायिकी को और पुख्ता करने के लिए वो मुंबई के उस्ताद गुलाम मुस्तफा खाँ से उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा के रही हैं ।
लंदन स्कूल आफ एकोनामिक्स की स्नातक एवम् स्नातकोत्तर की छात्रा रह चुकीं रीना की खुशी का उस वक्त ठिकाना नहीं रहा, जब ए.आर. रहमान ने उन्हें हुसैन साहब की फिल्म मीनाक्षी के इस खूबसूरत गीत को गाने की पेशकश की । हिन्दी फिल्मों का ये इनका पहला गीत था।
रीना ने रहमान के साथ फिल्म मंगल पांडे दि राइसिंग में भी काम किया है । ब्रिटेन में ही रहने वाले और काफी ख्याति पा चुके संगीतज्ञ नितिन साहनी के एलबम Human में भी रीना का काम सराहा गया है । रीना भारतीय मूल की ब्रिटिश नागरिक है और लंदन और मुम्बई के बीच उनका संगीतमय सफर चलता रहता है ।
कई रिश्ते ऍसे होते हैं जिन्हें आप कोई नाम नहीं दे सकते
जब भी इन्हें लफ्जों के दायरे में बाँधने की कोशिश करते हैं वो धागों की तरह और उलझते चले जाते हैं
इन रिश्तों के मायने ना ही ढ़ूंढ़े जाए तो अच्छा है
क्या पता उलझते उलझते इन धागों में गाठें पड़ जाएँ ।
बकौल गुलजार
हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू
हाथ से छू के इसे रिश्तों का इलजाम ना दो
सिर्फ अहसास है ये रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो
हमने देखी है ....
आपसी रिश्तों की बात छोड़ें । अपने इर्द गिर्द की प्रकृति के विविध रूपों को देखें
क्या आपको कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि इनसे जरूर मेरा कोई रिश्ता है ?
चाहे वो आपके आँगन का वो बरसों पुराना पीपल का पेड़ हो...
या आपके लॉन की हरी मखमली घास...
सुबह की ताजी हवा हो या सांझ की सिमटती धूप...
या फिर रात के पूर्ण अंधकार में फैली स्निग्ध चांदनी...
गीतकार राहत इन्दौरी के लिखे इस प्यारे से गीत में एक कोशिश है अपने आस पास की फिजा में अपने रिश्तों की परछाईयाँ ढ़ूंढ़ने की । चाहे वो झील में कंकर मारने से बनता भँवर हो या हवा में तैरती सी रुक रुक कर आती उसकी आवाजें, महबूब की कल्पनाएँ मुग्ध किए बिना नहीं रह पातीं । और उस पर ए. आर. रहमान का सौम्य संगीत और रीना भारद्वाज की दिलकश आवाज गीत में डूबने में आपकी मदद करती है ।
कोई सच्चे ख्वाब दिखा कर
आँखों में समा जाता है
ये रिश्ता...
ये रिश्ता क्या कहलाता है
जब सूरज थकने लगता है
और धूप सिमटने लगती है
कोई अनजानी सी चीज़ मेरी
साँसों से लिपटने लगती है
मैं दिल के क़रीब आ जाती हूँ
दिल मेरे क़रीब आ जाता है
ये रिश्ता क्या कहलाता है
इस गुमसुम झील के पानी में
कोई मोती आ कर गिरता है
इक दायरा बनने लगता है
और बढ़ के भँवर बन जाता है
ये रिश्ता क्या कहलाता है
तसवीर बना के रहती हूँ
मैं टूटी हुई आवाज़ों पर
इक चेहरा ढूँढती रहती हूँ
दीवारों कभी दरवाज़ों पर
मैं अपने पास नहीं रहती
और दूर से कोई बुलाता है
ये रिश्ता क्या कहलाता है
कुछ बातें इस गीत की गायिका रीना भारद्वाज के बारे में । रीना जितनी देखने में खूबसूरत हैं उतनी ही हुनरमंद भी । नृत्य में वे कत्थक से भली भांति वाकिफ हैं । हिन्दी के आलावा, तमिल, बंगाली और पंजाबी में भी अपनी गायन प्रतिभा दिखा चुकी हैं । अपनी गायिकी को और पुख्ता करने के लिए वो मुंबई के उस्ताद गुलाम मुस्तफा खाँ से उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा के रही हैं ।
लंदन स्कूल आफ एकोनामिक्स की स्नातक एवम् स्नातकोत्तर की छात्रा रह चुकीं रीना की खुशी का उस वक्त ठिकाना नहीं रहा, जब ए.आर. रहमान ने उन्हें हुसैन साहब की फिल्म मीनाक्षी के इस खूबसूरत गीत को गाने की पेशकश की । हिन्दी फिल्मों का ये इनका पहला गीत था।
रीना ने रहमान के साथ फिल्म मंगल पांडे दि राइसिंग में भी काम किया है । ब्रिटेन में ही रहने वाले और काफी ख्याति पा चुके संगीतज्ञ नितिन साहनी के एलबम Human में भी रीना का काम सराहा गया है । रीना भारतीय मूल की ब्रिटिश नागरिक है और लंदन और मुम्बई के बीच उनका संगीतमय सफर चलता रहता है ।