नई ग़ज़ल/ जो कहता है यहाँ पर सच उसी की जान जाती है
>> Monday, August 8, 2011
जो कहता है यहाँ पर सच उसी की जान जाती है
जो हैं झूठे वहां खुशियों की चादर झिलमिलाती है
बड़ी तकलीफ होती है जहां झूठे ही बसते हैं
सच्चाई तो दुबक कर के वहां आंसू बहाती है
ये मेरे लोग ही मुझको पराये-से लगें अब तो
अगर सच बोलता हूँ तो जुबां ये लड़खड़ाती है
अगर इंसान है ऊंचा तो अपना दिल बड़ा कर ले
जहां बौने हों दिल से लोग वह बस्ती सताती है
मैं वैसा मुल्क चाहूंगा जहां सच पे न हों पहरे
अभी तो बंदिशों में आत्मा ही छटपटाती है
कोई तो आये बोले खुल के अपनी बात रख दे तू
यहाँ हर एक कुर्सी रंग सामंती दिखाती है
यहाँ भगवान भी पत्थर से बाहर आ नहीं पाता
उसी के सामने इज्ज़त कोई अपनी गंवाती है
ज़रा सोचो न इतराओ चलो इनसान बन जाओ
अरे यह चार दिन की ज़िंदगी कब लौट पाती है
न जाने कब सुगन्धित दौर आएगा यहाँ पंकज
अभी तो हर तरफ नाली यहाँ पर बजबजाती है