''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले चौदह वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. आजीवन शुल्क 3000 रूपए..वार्षिक240 रूपए, द्वैवार्षिक- 475 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- जी-३१, नया पंचशील नगर,रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

नई ग़ज़ल/ जो कहता है यहाँ पर सच उसी की जान जाती है

>> Monday, August 8, 2011

जो कहता है यहाँ पर सच उसी की जान जाती है
जो हैं झूठे वहां खुशियों की चादर झिलमिलाती है

बड़ी तकलीफ होती है जहां झूठे ही बसते हैं
सच्चाई तो दुबक कर के वहां आंसू बहाती है

ये मेरे लोग ही मुझको पराये-से लगें अब तो
अगर सच बोलता हूँ तो जुबां ये लड़खड़ाती है

अगर इंसान है ऊंचा तो अपना दिल बड़ा कर ले
जहां बौने हों दिल से लोग वह बस्ती सताती है

मैं वैसा मुल्क चाहूंगा जहां सच पे न हों पहरे
अभी तो बंदिशों में आत्मा ही छटपटाती है

कोई तो आये बोले खुल के अपनी बात रख दे तू
यहाँ हर एक कुर्सी रंग सामंती दिखाती है

यहाँ भगवान भी पत्थर से बाहर आ नहीं पाता
उसी के सामने इज्ज़त कोई अपनी गंवाती है

ज़रा सोचो न इतराओ चलो इनसान बन जाओ
अरे यह चार दिन की ज़िंदगी कब लौट पाती है

न जाने कब सुगन्धित दौर आएगा यहाँ पंकज
अभी तो हर तरफ नाली यहाँ पर बजबजाती है

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सुनिए गिरीश पंकज को

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