Monday 31 January 2011

हर लंगड़ा तैमूर दिखाई देता है -सतीश सक्सेना

सदियाँ गुज़री लेकिन तुमको दहशत 
में हर लंगड़ा तैमूर दिखाई देता है  !


धोखा पहले पाप बताया जाता था 
लेकिन अब दस्तूर दिखाई देता है !


सरवत जमाल  साहब के यह शेर हमारी असलियत बयान कर देते हैं ! शक और नासमझी की वदौलत हमारे अपने परिवार और प्यारे रिश्तों में पड़ी दरारें साफ़ नज़र आती हैं सिर्फ दिखावे के लिए आवरण डालकर एक दूसरे को सम्मान देते नज़र आते हैं ! बरसों बीत जाने के बाद भी  परिवारों की रंजिशें बरकरार हैं ! 


बरसों  पहले एक लंगड़े तैमूर ने जो जुल्म ढाया था  उसके निशान आज भी बाकी हैं ! मगर अगर उस भय को सीने में लिए, तैमूर के भूत से आज भी दहशतजदा होने को, सिवाय कायरता के और क्या कहा जाएगा ! परस्पर बढ़ते हुए अविश्वास के फलस्वरूप जो रंजिश नज़र आती है कई बार दिलों को छील कर रख देती है ! दोनों अपनी जगह पर ईमानदार हैं , दोनों बेहतरीन भी हैं  मगर एक दूसरे पर शक के गहराते बादलों के कारण, उत्पन्न संवाद हीनता ने स्थिति और बिगाड़ दी है !


अपने अपने खेमों में, तलवारों पर धार लगाते हम लोग, अपनी अपनी रक्षा की जुगत में , स्नेह लगभग भूल ही गए हैं ! कैसे समझेंगे हम कि एक गुनाहगार के कारण सारा परिवार बुरा नहीं होता है ! आपस की लड़ाई में ,दूसरों की गलतियाँ निकालते हम लोग,  अक्सर यह याद नहीं रख पाते कि हम दूसरों को नीचा दिखाने के लिए झूठ बोल रहे हैं और अनजाने में झूठ बोलने की शिक्षा अपने ही बच्चों को दे देते हैं !!    


बड़ी से बड़ी गलतफहमियां और झगडे बात करने से निपटाए जा सकते हैं !मगर पहल करना, हर पक्ष को अपमानजनक लगता है ! ऐसी विकट स्थिति में अपने पुराने प्यार को याद करें और बेझिझक पहल करें तो चेहरों पर मुस्कान आते देर  नहीं लगेगी !

59 comments:

सुज्ञ said...

सतीश जी,
आपकी बात शतप्रतिशत सही है।
सर्वत जमाल साहब के शेर काबिल-ए-गौर है।
वाकई हर लंगडा तैमूर दिखाई देता है।
पहल करने से पहले हृदय में सम्भावनाएं जाग्रत होनी चाहिए।

shikha varshney said...

गंभीर समस्या का सही हल सुझाया है आपने.

: केवल राम : said...

एक दम सटीक ...हर सवाल का जबाब नहीं मिलता ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बड़ी से बड़ी गलतफहमियां और झगडे बात करने से निपटाए जा सकते हैं !मगर पहल करना, हर पक्ष को अपमानजनक लगता है !

बस यदि पहल कर ली जाए तो सब समस्याएं हल हो जाएँ ...

anshumala said...

ऐसे काम में अक्सर हमारी बड़ी सी नाक जो बीच में आ जाती है की पहल कौन करे |

Arvind Mishra said...

" अपने पुराने प्यार को याद करें और बेझिझक पहल करें "
फिर मोहभंग की तैयारी -दैया रे अब हमसे नहीं होगा !

दीपक बाबा said...

सदियाँ गुज़री लेकिन तुमको दहशत
में , हर लंगड़ा तैमूर दिखाई देता है !

धोखा पहले पाप बताया जाता था
लेकिन अब दस्तूर दिखाई देता है !

ManPreet Kaur said...

very nice..
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सोमेश सक्सेना said...

दोनों शे'रोँ ने मन मोह लिया। सरवत साहब को बधाई।
आपका चिंतन सार्थक है। पहल करना ही उचित है।

क्रिएटिव मंच-Creative Manch said...

आपकी यह छोटी सी पोस्ट सचमुच बेहतरीन है. संवादहीनता की स्थिति अनेकानेक गलतफहमियों को जन्म देती है. ऐसी परिस्थिति में देखा गया है कि अक्सर तीसरे पक्ष की बन आती है. न जाने कितने घर-परिवार आज महज संवाद-हीनता के चलते टूट रहे हैं.

आभार

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

सर्वत जमाल के शेर सच में कबीले तारीफ़ हैं और सच्चाई बयां करते हैं ... आपने जो भी लिखा है सच है !

rashmi ravija said...

धोखा पहले पाप बताया जाता था
लेकिन अब दस्तूर दिखाई देता है !

बहुत ही दुखद है...पर सच है

संजय कुमार चौरसिया said...

एक दम सटीक

डॉ टी एस दराल said...

धोखा पहले पाप बताया जाता था
लेकिन अब दस्तूर दिखाई देता है !

सच है , कुछ लोग यहाँ पर ऐसे ही हैं ।

साँड-ए-नखलेऊ said...

और हर सांड लखनवी दिखाई देता है? ये लखनऊ की तहजीब है भाई जान।

आदाब

सुशील बाकलीवाल said...

सही चिंतन - सही सोच.
कितने भी पुराने और कैसे भी मतभेद से मुक्त होने के लिये न सिर्फ पहल करने की बल्कि मन से सारे पूर्वाग्रहों से मुक्त रहकर बात करने मात्र की आवश्यकता होती है ।

Kajal Kumar said...

एकदम सटीक चिंतन.

सर्वत एम० said...

मेरी तो समझ में ही नहीं आ रहा है कि क्या लिखूं, क्या कहूं. मैं ने तो एक गजल पोस्ट की थी. आपने जितनी व्याख्या कर डाली, उसने तो मुझे फर्श से अर्श पर बिठा दिया.
ये तो मज़ाक़ की बात हुई. हकीकत यह है कि हम नफरत, लालच, ईर्ष्या, धोखेबाजी और भय में इस तरह रच-बस गए हैं कि अब इनके इतर कुछ सोच भी नहीं सकते. शिक्षा और संस्कृति में आई गिरावट ने हमें स्वार्थ में लिप्त कर रखा है और हम उस सीमा तक पहुँच गए जहाँ खुद को आदमी कहना, इंसानियत की तौहीन है. होना तो यह
चाहिए था कि हम शिक्षित होते और आने वाली पीढ़ियों को भी शिक्षित करते. परन्तु हमने तो डिग्रियां ही हासिल कीं और उन्हें पैसा कमाने का जरिया बना लिया.
यही पैसा कमाने की हवस हमें स्वार्थी बनाती है और शायद बहुत सी बुराइयों का जन्म भी इसी के कारण होता है.

विरेन्द्र सिंह चौहान said...

बात तो आपकी सही है! अतीत के आतंक से मुक्ति पाने में ही भलाई है।

Poorviya said...

बड़ी से बड़ी गलतफहमियां और झगडे बात करने से निपटाए जा सकते हैं !मगर पहल करना, हर पक्ष को अपमानजनक लगता है ! ऐसी विकट स्थिति में अपने पुराने प्यार को याद करें और बेझिझक पहल करें तो चेहरों पर मुस्कान आते देर नहीं लगेगी
jai baba banaras

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

कमाल के अशआर और कमाल के शायर! आपकी व्याख्या तो ख़ैर कमाल की है ही... आप जैसे मोहब्बत के मसीहा को सलाम!!

प्रवीण पाण्डेय said...

शारीरिक प्रतीकों से व्यक्ति की पहचान न हो।

mridula pradhan said...

kuch apwad ko chodkar sochen to theek bole hain.

nivedita said...

इस सच को सब जानते हैं और मानते भी हैं पर कर भी क्या सकते हैं झूठा और बेवजह अंह सब की सोच पर हावी हॊ जाता है और बात जहां की तहां ही रह जाती है .
सच कहा आपने बात कितनी भी बिगड जाये बात करते रहना चाहिये ।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सही है.

cmpershad said...

बड़ी से बड़ी गलतफहमियां और झगडे बात करने से निपटाए जा सकते हैं !

अब न वो गलतफ़हमी है न झगडे की बातें
अब तो धोखाधडी और बेइमानी की है घातें:(

Rajesh Kumar 'Nachiketa' said...

सटीक बात....
वक्त शुरुआत करने भर की ही होती है.....
"जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था..
लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है...."

नुक्‍कड़ said...

ये शेर नहीं
डेढ़ डेढ़ सेर के
तीन शेर हैं

रवि धवन said...

मेरे पिताजी कहते हैं
कमला होए एक
ते समझाए वेड़ा
कमला होए वेड़ा
ते समझाए केड़ा
आप भी पूरे वेड़े यानी सभी को नेक और समझदार बनने की सलाह दे रहे हैं। जो जरूरी भी है।

अरूण साथी said...

जिन्दगी की हकीकत..........

वाणी गीत said...

धोखा पहले पाप था अब दस्तूर , क्या बात है ...
बड़े से बड़े झगडे पहल से सुलझाये जा सकते हैं , आदर्श स्थिति में यह सुझाव सही लगता है !

Rahul Singh said...

पहल करने में झिझक कैसी, पहल करने वाला ही लीडर होता है, बाकी उसके पिछलग्‍गू.

खुशदीप सहगल said...

पहले रिश्ते प्यार के लिए होते थे, चीज़े इस्तेमाल के लिए...
आज चीज़ों से प्यार होता है और रिश्तों का इस्तेमाल...

जय हिंद...

sanjay jha said...

kaise hain bhaijee......

jo jaise hai......hame o yse hi swikar ho.....to koi bat bane......

koi kisi ko nahi badal sakta.....aur badlna bhi nahi chahiye......

pranam.

वन्दना said...

बात तो सही है लेकिन पहल करे कौन?

mahendra verma said...

आपकी पारखी नज़र ने इन शेरों में आज की हक़ीकत खोज ली। बहुत अच्छी बात कही गई है इनमें।
प्यार बांटने से प्यार ही मिलता है और नफ़रत से नफरत।
आपका सुझाव सही है।

Mukesh Kumar Sinha said...

bahut sahi kaha aapne sir!

P S Bhakuni said...

आपने कह दिया......
परस्पर बढ़ते हुए अविश्वास के फलस्वरूप जो रंजिश नज़र आती है कई बार दिलों को छील कर रख देती है ! दोनों अपनी जगह पर ईमानदार हैं , दोनों बेहतरीन भी हैं मगर एक दूसरे पर शक के गहराते बादलों के कारण, उत्पन्न संवाद हीनता ने स्थिति और बिगाड़ दी है ........!
अब मैं क्या कहूँ ?
निसंदेह ! एक स्मरणीय पोस्ट हेतु आभार ....

देवेन्द्र पाण्डेय said...

गंगा जमुनी संस्कृति की पवित्र धारा बहाई है आपने..मन हुआ..आचमन करूँ..सर नवाऊँ..फिर चलूँ..।

राजेश उत्‍साही said...

असल में लंगड़ापन हमारी आंखों में है। और वही हमें पहल करने से रोकता है। आखिर लगड़ापन पहल करने में बाधा डालता है।

एस.एम.मासूम said...

धोखा पहले पाप बताया जाता था
लेकिन अब दस्तूर दिखाई देता है !
.
बहुत खूब सतीश जी आप से सहमत हूँ की "बड़ी से बड़ी गलतफहमियां और झगडे बात करने से निपटाए जा सकते हैं !" लेकिन कोई बात करने को तैयार ही ना हो तो?
.
ज़रा सोंच के देखें क्या हम सच मैं इतने बेवकूफ हैं

सम्वेदना के स्वर said...

बड़ी से बड़ी गलतफहमियां और झगडे बात करने से निपटाए जा सकते हैं !मगर पहल करना, हर पक्ष को अपमानजनक लगता है ! ऐसी विकट स्थिति में अपने पुराने प्यार को याद करें और बेझिझक पहल करें तो चेहरों पर मुस्कान आते देर नहीं लगेगी!
इन पंक्तियों में सन्निहित है समस्त व्याख्या.. अभिभूत करने वाली पोस्ट!

ज्योति सिंह said...

बड़ी से बड़ी गलतफहमियां और झगडे बात करने से निपटाए जा सकते हैं !मगर पहल करना, हर पक्ष को अपमानजनक लगता है !
poorn satya ,aham ,jo jhukne nahi deta aur baat bigad jaati hai .saarthak lekh .

डॉ॰ मोनिका शर्मा said...

सार्थक, सकारात्मक और अनुकरणीय सलाह.....

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

आद.सतीश भाई ,
मौजूदा हालात पर आपने बड़ा सटीक लेख लिखा है ! समाज मैं ऐसे ही विचारों से जागृत पैदा हो सकती है !
विचारणीय पोस्ट के लिए आभार !

POOJA... said...

सही है...
बातों से कई बातों का हल निकल आता है...
और कभी कभी बातों में ही कई बातों का पता चल जाता है...
no comment further

शिवम् मिश्रा said...


बेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !

आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - ठन-ठन गोपाल - क्या हमारे सांसद इतने गरीब हैं - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा

dipayan said...

सतीश जी,

बहुत सही कहा आपने । आज जो देश का हाल है, लोग एक दूसरे को शक की निगाह से देखते है, वो अगर एक दूसरे के प्रती थोड़ा सा प्यार-मोहब्बत, स्नेह बढ़ा लेंगे, तो कई सारी समस्यायें यूँ ही सुलझ जाये ।

निरामिष said...

जिन्दगी में स्वार्थों से सामना बहुत होता,
इसीलिये हर लंगडा तैमूर दिखाई देता है।

समझोते की पहल के लिये, स्वाभिमान को भी दरकिनार करना पडता है।

कविता रावत said...

धोखा पहले पाप बताया जाता था
लेकिन अब दस्तूर दिखाई देता है !
...बात लाख टके की हैं

सटीक सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार

daanish said...

आजमाईश, तो ग़लतफ़हमी बढ़ा देती है
इम्तिहानों का तो कुछ और नतीजा निकला

मन को आंदोलित करता हुआ
स्वयं में आह्वान करता हुआ
भरपूर आलेख .....
सतीश जी आपको और सर्वत जी को सलाम !!

rakesh kumar said...

Kaas!purane pyar ko yaad kar payen aur bajhijhik pehal kar payen,to baat banjaye.Aur aap jaise shubh vicharak yadi saath de to baat to ban hi jaayegi.Phir to gana hi padega 'Aap jaisa koi meri jindagi me aaye to baat ban jaye,haan baat ban jaye.Bahut bahut shubhkamanaye.

ali said...

सतीश भाई ,
संभव है कि दैहिक विकलांगता ने तैमूर को क्रूर बना दिया हो , पर उसे केवल अपवाद माना जा सकता है ! आज के सामाजिक हालात में 'पैरों के कद' से 'मन के कद' नहीं नापे जाने चाहिए !

ब्लागजगत के मनोमालिन्य / शक / रंजिशों /ज़ुल्म / खेमेबंदियों वगैरह वगैरह के सिलसिले में ,व्यक्तिगत रूप से यह प्रतीक मुझे जमा नहीं !

जमाल साहब ने ज़रूर किसी खास सन्दर्भ में इन पंक्तियों को रचा होगा , सन्दर्भ भी बयान किया जाता तो बेहतर होता !

आपको ब्लॉग जगत के माहौल फ़िक्र की है ये काबिल-ए-दाद बात है !

आपसे प्रेरित होकर शाख शाख पे लंगूर / महानता बोध और मगरूर जैसी तुकबंदी वाला कवि मुझमे भी जागा पर फिलहाल सब्र से काम ले रहा हूं आप भी सब्र कीजियेगा :)

अहसास की परतें - समीक्षा said...

Nice One.

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sanjay jha said...

hoon

sagebob said...

बहुत ही सार्थक पोस्ट.बधाई.

डॉ. मनोज मिश्र said...

सही है,आभार.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

उम्दा शे’र और ऊपर से आपका लेख... उम्दा का वर्ग हो गया :)

Amrita Tanmay said...

ह्रदय ग्राही ...सार्थक चिंतन..