Friday 4 February 2011

नज़रिए हो गए छोटे हमारे -सतीश सक्सेना

                 डॉ अरविन्द मिश्रा की एक पोस्ट मैं भुला नहीं पाता  ! निस्संदेह सोम ठाकुर के लिखे इस अमर गीत  नजरिये हो गए छोटे हमारे  की एक एक लाइन, आज के समाज और वातावरण पर बिलकुल सटीक उतरती है ! मगर आज इस पोस्ट लेखन का कारण ,यह महान गीत कम, बल्कि इसके दोनों गायक अधिक हैं  !
                 खाली समय में, इंग्लिश मीडियम में पढ़े अधिकतर नवजवानों की रुचि, माता पिता का साथ देने में कम और इंग्लिश उपन्यास अथवा पाश्चात्य संगीत में अधिक रहती है ! अधिकतर इस झुकाव का कारण कॉन्वेंट शिक्षा परिवेश में भारतीय संगीत, भाषा और संस्कारों की उपेक्षा रही है !
                  आज के व्यस्त समय और समाज में, जहाँ पिता और वयस्क पुत्र के बीच संवाद होना भी, कम आश्चर्य नहीं माना जाता वहीँ  एम एस रमैया कॉलेज बंगलुरु का मैनेजमेंट क्षात्र  कौस्तुभ  द्वारा, अपने पिता डॉ अरविन्द मिश्र  का, एक हिंदी गाने में संगत देना, एक सुखद आश्चर्य है ! 
                   निस्संदेह इस युग्म गीत के जरिये, अरविन्द जी के परिवार में प्यार और स्नेह के अंकुर नज़र आते हैं ! मुझे आशा है पिता पुत्र का यह प्यार प्रेरणास्पद रहेगा !

43 comments:

ajit gupta said...

पिता पुत्र का प्रेम बना रहे।

प्रवीण शाह said...

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सतीश जी आप भी न... :)
अब बेटे द्वारा पिता के साथ गायन... वह भी अपनी मातृभाषा में ही... मुझे तो कोई आश्चर्य नहीं दिखता इसमें...
पुत्र पिता से हर मामले में आगे रहे... इसी कामना के साथ...


...

Mukesh Kumar Sinha said...

sach kaha sir aapne...:)

POOJA... said...

हम्म... युवा पीढी के बारे में सहमती है, मैंने भी कुछ लोगों को ऐसा देखा है... but exceptions are everywhere...
पर कभी-कभी ऐसी स्थिति माता-पिता का बच्चों के साथ communication-gap के कारण भी होता है...
अरविन्द जी से उनके पूरा के साथ के संगत दिए गीत और सुनने को मिलें...

Anonymous said...

अधिकतर इस झुकाव का कारण कॉन्वेंट शिक्षा परिवेश में भारतीय संगीत, भाषा और संस्कारों की उपेक्षा रही है !

so all indians should educate their children in goverment schools and i am sure you must have also done the same

seems indians have a habit to critisize and you are no different

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

प्रिय सतीश सक्सेना जी

मेरे पूज्य पिताश्री मेरे प्रति मित्रवत व्यवहार रखते थे , और मैं भी अपने तीनों बेटों का दोस्त हूं ।
बच्चे मेरे साथ शालीनता और मर्यादा में कभी चूक नहीं करते , मुझे भी अपने पिताजी का मन में डर अवश्य रहता था ।

संस्कार और संतुलित शिक्षा हो तो पिता पुत्र का प्यार ज़्यादा आश्चर्य की बात नहीं ।

डॉ अरविन्द मिश्रा की वह पोस्ट मुझे भी अच्छी लगी थी … और आपकी पोस्ट भी ।

मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार

: केवल राम : said...

जी सच है ..हमारी दृष्टि संकीर्ण हो गयी है .....शीर्षक सार्थक है ....आपका आभार

sanjay jha said...

like father like son....

pranam.

संजय कुमार चौरसिया said...

पिता पुत्र का प्रेम बना रहे।

nivedita said...

पिता-पुत्र में ये स्नेह भाव तभी बना रह सकता है ,जब उनमें मित्र भाव पनप जाये । वैसे सच में देखा जाये तो यही मित्र भाव किसी भी संबन्ध की लम्बी उम्र के लिये आवश्यक है ।
सादर.

Arvind Mishra said...

बादशाहों का दिल जब जिस पर न आ जाय :)
बच्चे कान्वेंट में पढ़े जरुर हैं मगर उनका दिल तो पूरा देशी है ..
और मुझे भी सुखद आश्चर्य होता है कि वे राम चरित मानस में भी
रूचि रखते हैं -जो शिक्षा आपको अपनी जड़ों से अलग कर दे -वह
अंततः बड़ी ही पीड़ा दायक होती है !

अमित शर्मा said...

नयी पीढी के अच्छे संस्कार बने रहें, इसके लिए जिम्मेदार पीढ़ी को अपना योगदान सम्यक रूप से देना ही होगा. वरना नयों का क्या दोष.

shikha varshney said...

अगर हमारी शिक्षा संस्कार सही हैं तो बच्चे जरुर साथ देंगे ..
पिता पुत्र का प्यार बना रहे शुभकामनाये.

Rahul Singh said...

'सुखद आश्चर्य', सुखद तो है, लेकिन मेरी नजर में आश्‍चर्य जैसी कोई बात नहीं.

ali said...

पुत्र पिता का अनुसरण करता है कि नहीं ,उनके द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करता है कि नहीं ,उनके साथ सुर संधान करता है कि नहीं ,इससे भी ज़रुरी है कि वह एक सभ्य सुसंस्कृत विद्यार्थी और अपने कैरियर के लिए समर्पित व्यक्तित्व हो ! चि.कौस्तुभ के लिए अपरिमित आशीष !

अरविन्द जी को भी शुभकामनायें !

डॉ टी एस दराल said...

आपने अच्छा किया जो बता दिया । एक बात तो तय है किं मिश्रा जी और उनके सुपुत्र बड़े अच्छे गायक हैं ।
साथ गाकर उन्होंने पारस्परिक प्रेम का परिचय दिया है ।

G.N.SHAW said...

PITA -PUTRA KA PREM HAMESH BANA RAHANA HI CHAHIYE. ISME DO RAY NAHI.

प्रवीण पाण्डेय said...

कौस्तुभ भी जीवन्त व्यक्तित्व हैं, अपने पिताजी की ही तरह।

सम्वेदना के स्वर said...

पण्डित जी और उनके सुपुत्र की जुगलबंदी उनके ब्लॉग पर सुनी थी... अद्भुत अनुभव था.. मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा.. और ये मेरा तुम्हारा, जब पिता पुत्र हों...तो हमारा अवश्य एक आदर्श परिवार होगा.. संस्कार तो घर में पढ़ाए जाते हैं, न कॉनवेण्ट स्कूल में न सरकारी स्कूलों में!!

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

अरविंद जी के आसपास अनेक रंग बिखरे हैं। वह तो उनका बेटा ही है। फिर कैसे न गवैया बने।

पारिवारिक वातावरण मंगलमय बना रहे।
आपकी पोस्ट बहुत रोचक है।

डॉ. मनोज मिश्र said...

यह मेरा भी पसंदीदा गीत है,पिछले दो दशकों से हम सब इसको गाते-गुनगुनाते रहे हैं.
जहाँ तक सह गायन की बात है -यही तो हम सब की संस्कृति और परम्परा है.

Deepak Saini said...

पिता पुत्र का प्रेम बना रहे।

डॉ॰ मोनिका शर्मा said...

सुखद अनुभूति हुई जानकर...... यह आपसी समझ , सम्मान और प्रेम हमेशा बना रहे...शुभकामनायें

रचना दीक्षित said...

सच कहा जुगलबंदी उम्दा है पर यह संयोग आज भी इतना आश्चर्यजनक नहीं. घर से मिले संस्कार कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ने से भी आसानी से धुंधले नहीं पड़ते, हाँ कुछ अपवाद हो सकते हैं.

cmpershad said...

अच्छे संस्कार का पेड लगाया है तो फल भी मीठा ही होगा ना :)

राज भाटिय़ा said...

पिता पुत्र का प्रेम बना रहे।

शिवम् मिश्रा said...


बेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !

आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - मेरे लिए उपहार - फिर से मिल जाये संयुक्त परिवार - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा

प्रतिभा सक्सेना said...

जानकर बहुत अच्छा लगा .यों भी कलाओं के अनुशीलन में पीढियाँ एक, दूसरे की पूरक बन जाती हैं -वही हो !

Shiv said...

बहुत बढ़िया पोस्ट.
अरविन्द जी और उनके सुपुत्र के बीच यह संवाद सभी के लिए प्रेरणा है.आप बड़ी खूबी से छोटी-छोटी प्रेरणास्पद बातों को महत्वपूर्ण बना देते हैं.

पिता-पुत्र का यह प्यार दूसरों को प्रेरणा दे, यही कामना है.

Arvind Mishra said...

@Anom,"seems indians have a habit to critisize and you are no different "

indians =Indians
critisize=criticize

So you proved that you are also an Indian!:)

Rajesh Kumar 'Nachiketa' said...

बहुत अच्छी बात याद दिला दे आपने....वो बहुत मस्त है....
और पुत्र में पिता के गुणसूत्र तो होंगे ही...

Anonymous said...

@am
capitals are not used on net
and as such could not find any paragraph break in ur comment

now what is ur
= your
and yes i am an indian , a proud one

who believes that education whether imparted in english or hindi is for the betterment of the child

critsize { now try to translition for this and you will find its better then criticize }

and by the way
am = arvind mishra
slags and shortkuts { yep cut is old fashioned but how will you @54 know :}

रवीन्द्र प्रभात said...

सुखद अनुभूति हुई जानकर......पिता पुत्र का प्रेम बना रहे।

Sunil Kumar said...

यह संस्कारों का प्रभाव है| पिता पुत्र का प्रेम तो हमेशा ही रहता है मग़र साथ साथ गायन बहुत अच्छा लगा

mahendra verma said...

पिता के साथ पुत्र द्वारा स्वर देने की यह शुरुआत एक सिलसिला बन जाए, एक परम्परा बन जाए, यही कामना है।

डॉ० डंडा लखनवी said...

प्रेरणादायी विचार पोस्ट के लिए बधाई। विनय का जीवन में बड़ा महत्व है। कबीर की ’साखी और तुलसी की विनय-पत्रिका’ मे तद्विषयक अनेक बातें कही गई हैं। विनय से बहुत कुछ मिलता है। विशेष कर अपनों अग्रजों एवं गुरुजनों से.........।
कृपया बसंत पर एक दोहा पढ़िए......
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शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी

जयकृष्ण राय तुषार said...

भाई सतीश जी सादर नमस्कार |बहुत बढ़िया लिखा है आपने बधाई |

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

आद.सतीश जी,
पिता पुत्र को शुभकामनाएं !
समाज की अच्छी, अनुकरणीय बातें लोगों के सामने लाकर आप जो नेक काम कर रहे हैं उसके लिए धन्यवाद !

संजय भास्कर said...

नयी पीढी के अच्छे संस्कार बने रहें पिता पुत्र का प्यार बना रहे शुभकामनाये.

musaffir said...

satish ji geet sunne ko kab milega.

P S Bhakuni said...

अगर हमारी शिक्षा संस्कार सही हैं तो बच्चे जरुर साथ देंगे .....
बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ...

कुमार राधारमण said...

पिता-पुत्र के बीच संवादहीनता के शहरी और ग्रामीण संदर्ब प्रायः अलग होते हैं। किंतु इसमें संदेह नहीं कि बच्चे की उम्र के साथ जो दूरी बढ़ती जाती है कथित आत्मनिर्भरता या परिपक्वता के कारण,वही आगे चलकर उच्छृंखलता का कारण बनती है। इसलिए,ऐसे प्रयासों से ही हम सिद्ध कर पाएंगे कि एक उम्र विशेष के बाद पिता-पुत्र का रिश्ता मित्रवत् होता है,होना चाहिए।

Amrita Tanmay said...

hamen to apne sanskar par naaz hai ..hamari santati bhi jarur legi ..bharosa hai... sundar post.