खुशदीप सहगल
बंदा 16 साल से कलम-कंप्यूटर तोड़ रहा है

डीयू, एंजेलिना जोली के होंठ, प्रीति जिंटा का डिंपल...खुशदीप

Posted on
  • Friday, July 22, 2011
  • by
  • Khushdeep Sehgal
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  • दिल्ली यूनिवर्सिटी में नए-नवेले छात्र-छात्राओं का कल पहला दिन था...इन्हें फ्रैशर्स और स्टूडेंट्स की ज़ुबान में फच्चा कहा जाता है...अब पहला दिन था तो फर्स्ट इम्प्रेशन इज़ लास्ट इम्प्रेशन...यानि कॉलेज को ये सोचकर कूच कि आज ही सबको अपनी पर्सनेल्टी से चित कर देना है...इसके लिए तैयारी भी ज़ोरदार की गई...


    गार्गी कॉलेज में अनु को दाखिला मिला है...वो ये सोचकर ही परेशान थी कि उसके होंठ एंजेलिना जोली की तरह खूबसूरत क्यों नहीं है...फौरन कॉस्मेटोलॉजिस्ट के क्लीनिक का रास्ता पकड़ा गया...उसने लिप-ऑगमेन्टेशन की सलाह दी...घरवालों को महज़ बीस-पच्चीस हज़ार का फटका लगा...लेकिन अनु के पतले होंठ भरे-भरे हो गए...लुक्स को लेकर कोई समझौता नहीं...





    इसी तरह कमला नेहरू कालेज की पूजा को कॉलेज जाने से पहले मलाल था कि हंसते हुए उसके गालों पर डिम्पल (गड्ढा) क्यों नहीं पड़ते...प्रीति जिंटा की तरह...पूजा ने इस चाहत को पूरा करने के लिए मैक्सिलो-फेशियल सर्जन का सहारा लिया...पच्चीस हज़ार रुपये खर्च कर पूजा को डिम्पल वाली मुस्कान मिल गई...अब पूरे कॉन्फिडेंस के साथ पूजा जी पहले दिन कॉलेज गईं...



    दिल्ली की डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ सोनल सोमानी का भी कहना है कि पिछले दिनों खूबसूरती की सर्जरी के लिए उनके पास स्टूडेंट्स की तरफ़ से कई इन्क्वायरिज़ आईं...ज़ाहिर हैं इनमें से कई ने बनावटी सुंदरता के लिए ट्रीटमेंट भी कराए होंगे...आज के स्टूडेंटस का यही मंत्र है कि आगे बढ़ने के लिए सिर्फ पढ़ाई ही नहीं स्मार्टनेस भी ज़रूरी है...

    हिंदुस्तान टाइम्स या टाइम्स ऑफ इंडिया के सिटी पुलआउट उठा कर देख लीजिए...एक पूरा पन्ना सि्र्फ डीयू के छात्र-छात्राओं के फैशन को ही समर्पित होता है...देखकर ऐसा लगता है कि किसी फैशन डिजाइनर ने अपना नया कलेक्शन लांच किया है...कई जगह ड्रैसेज और एसेसरीज़ की कीमत भी लिखी हुई होती है...दस हज़़ार की जीन्स, तीन हज़ार का टॉप, चार हज़ार का पर्स...

    ऐसे में सोचता हूं कि जिन बच्चों के मां-बाप इतना मोटा खर्च करने की हैसियत नहीं रखते होंगे, उन बेचारों पर क्या बीतती होगी...फिर सोचता हूं वो शायद पढ़ाई में ही दिल लगाते होंगे...अब वो पैसे के दम पर हासिल की गई स्मार्टनेस नहीं दिखाएंगे तो क्या पढ़ाई में अच्छे होने के बावजूद आगे नहीं बढ़ पाएंगे...आप क्या सोचते हैं इस बारे में....

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    मक्खन ने अपनी मासूम दलील से जज को कैसे प्रभावित किया, जानना चाहते हैं तो इस लिंक पर जाइए...



    15 comments:

    Rahul Singh said...

    दुनिया रंग-रंगीली.

    Sonal Rastogi said...

    इतने साल यूनिफार्म में बिताने के बाद रंगीले कपड़ों का आकर्षण अलग होता है

    Rakesh Kumar said...

    दुनिया रंग रंगीली,खुशदीप भाई.
    नीचे देखें तो जमीन,ऊपर देखें तो आसमान.
    बेचारे रईसजादे/रईसजादियाँ.

    सतीश सक्सेना said...

    और क्या देखने को बाकी है....
    शुभकामनायें आपको :-)

    Mukesh Kumar Sinha said...

    ACHCHHA To kal aap DU ke gate pe bhraman kar rahe the.........wahi kahun comments kyon nahi dikhte:D

    Khushdeep Sehgal said...

    मुकेश भैये,

    अपुन के तो रोज़गार का हिस्सा है ये...

    जय हिंद...

    shikha varshney said...

    अजी बस पूछिए मत. वैसे ये आज की बात नहीं डी यूं का ये हाल हमेशा से है. और इसी खातिर हॉस्टल मिल जाने के वावजूद हम मिरांडा के गलियारे से उलटे पाऊँ लौट आये थे :)

    ब्लॉ.ललित शर्मा said...

    समय ही कुछ ऐसा है।

    सागर said...

    आज बच्चों के स्कूल में किताबों पर उसी स्कूल के जिल्द होने चाहिए. दो दिन पर एक नया नखरा. मेरे पिता जी ये देख कर कहते हैं हम लोग तो पढ़ते ही नहीं थे. यही लोग पढ़ते और पठते हैं. मैं उनको चुप करवा देता हूँ की आप तो पढ़कर कमाल कर दिए !

    आज युवाओं में सबसे बड़ी समस्या रुसी से बालों का झड़ना है.

    डॉ टी एस दराल said...

    आज क्या इरादा है भाई ?

    चंदन कुमार मिश्र said...

    देश में कुछ भकोल टाइप लोग भी तो हैं! और भकोल टाइप कु-अध्ययन संस्थान भी!

    दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...

    स्कूल की पढ़ाई पूरी होने पर कालेज में प्रवेश के लिए फार्म लेने गए थे। विज्ञान के लिए प्रवेश फार्म दे रहे थे रसायन विज्ञान विभाग के प्रमुख। मेरे साथ मित्र था। छुट्टियाँ मुम्बई में बिता कर आया था और लाया था ताजा फैशन के कपड़े। उस की बराबरी करने को मैं ने भी वैसे ही कपड़े पहने थे। हमें देख विभागाध्यक्ष ने हमें घूरा और फिर पूछा साइंस पढ़ोगे?
    -हाँ, सर बायोलॉजी। हम दोनों एक साथ बोल पड़े।
    -ये कपड़े नहीं चलेंगे, मेरी लेब में सब में छेद हो जाएंगे।
    हम क्या कहते, चुपचाप फॉर्म लिया और चले आए।

    abhi said...

    फच्चा?? यह नहीं पता था मुझे..
    सही में दुनिया कितनी तेजी से बदल रही है..

    बी एस पाबला said...

    ... और नाम बेचारी भेड़ों का होता है :-)

    प्रवीण पाण्डेय said...

    डैडी का पैसा, पुतरा मौज कर ले।

     
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