जिज्ञासु यायावर
फ़ुरसतिया के यात्रा संस्मरण
By फ़ुरसतिया on January 8, 2009
पिछली पोस्ट पिछले साल लिखी थी। १९ दिसम्बर को। इस बीच साल निकल गया। न जाने कित्ते शुभकामना सन्देशों का आदान-प्रदान हो गया। कई उधारी में पड़े हैं। सबके जबाब देने हैं। रोज सोचते हैं आज लिखेंगे, कल लिखेंगे। लिख नहीं पाते। कोई नाराज होगा तो मना ही लेंगे। यही विश्वास आलस्य को बढ़ावा देता [...]
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By फ़ुरसतिया on November 14, 2008
पिछले शनिवार को एक दिन के लिये इलाहाबाद जाना हुआ। हमारे कालेज में जो लोग १९८३ में पास आउट हुये उनका रजत जयन्ती मिलन समारोह था। हम १९८५ में कालेज-बाहर हुये लेकिन जान-पहचान के लोगों से मिलने के मोह ने हमको बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बना दिया। कालेज गये वहां तमाम पुराने जाने-पहचाने लोगों [...]
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By फ़ुरसतिया on August 30, 2008
1.अगर आप इस भ्रम का शिकार हैं कि दुनिया का खाना आपका ब्लाग पढ़े बिना हजम नहीं होगा तो आप अगली सांस लेने के पहले ब्लाग लिखना बंद कर दें। दिमाग खराब होने से बचाने का इसके अलावा कोई उपाय नहीं है। 2.जब आप अपने किसी विचार को बेवकूफी की बात समझकर लिखने से बचते [...]
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By फ़ुरसतिया on August 19, 2008
परम प्रिय भाई शिवजी, अत्र कुशलम तत्रास्तु। दीगर समाचार यह है कि इधर हम छठे पे कमीशन में कित्ते पैसे मिलेंगे, कौन उधार चुकाया जायेगा, कैसे फ़िर से कंगाल हुआ जायेगा ई सब निहायत स्ट्रेटिजिक प्लान बनाने में अरझे हुये थे कि पता चला आप पर जैंटेलमेन की आफ़त आ गिरी। सुना तो ये भी [...]
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By फ़ुरसतिया on November 4, 2007
कोणार्क जहां पत्थरों की भाषा मनुष्य की भाषा से श्रेष्ठतर है।- रवीन्द्रनाथ टैगोर पुरी कथा कहने के बाद हमें अगली पोस्ट में कोणार्क वर्णन करना था। छह माह से भी ज्यादा हो गये वह अगली पोस्ट न लिखी जा सकी। यह होता है यारों का वायदा निभाने का फ़ुरसतिया अंदाज! शाम को हम पुरी की [...]
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