Monday 26 September 2011

घायल सिक्किम - सतीश सक्सेना

प्राकृतिक आपदा में बुरी तरह से घायल सिक्किम , इनदिनों अपने जख्म सहला रहा है  ! इस भयानक त्रासदी में मारे गए सौ से नागरिक और घायलों की अनगिनत संख्या भी, टेलीविजन चैनल्स का ध्यान खींचने में असमर्थ है !

नोर्थ ईस्ट की खबरों में शायद अधिक टी आर पी की संभावना नहीं है !

६.९ रेक्टर स्केल का भयानक भूकंप झेल चुके, सुदूर क्षेत्र में स्थिति हमारे इस पर्वतीय राज्य को, पूरे परिवार का साथ और सहानुभूति चाहिए !

दिल्ली, मुंबई में चटपटी खबरों को ढूँढती , सैकड़ों ओ बी वैन, इस भयानक त्रासदी के समय, हमारे इस सुदूर पूर्वीय राज्य से गायब थीं ! 

पिछले दिनों भारी वर्षा में भी, बसों की छत पर चढ़ कर, पानी में भीगते, दहाड़ते मीडिया के जाबांज , सिक्किम की इस तकलीफ में, दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहे थे  ! 

कुछ न्यूज़ चैनल सिक्किम वासियों से महज़ अपील कर रहे थे कि वे कुछ तबाही के विडिओ अथवा फोटो भेंज दें ताकि वे  सिक्किम में अपनी उपस्थिति दिखा सकें ! हाँ अधिकतर चैनलों की यह चिंता जरूर है कि अगर दिल्ली में इस तीव्रता का भूकंप आया तो हमारा क्या होगा !

यह चोट सिक्किम को नहीं देश के सीने में लगी है , मीडिया के पहलवानों को समझाने की जरूरत है क्या ?

हमें वृहत और संयुक्त परिवार में जीने का सलीका आना चाहिए  अन्यथा पड़ोसियों के द्वारा हमारा उपहास उड़ाया जा सकता है !



आपके होते दुनिया  वाले   ,मेरे दिल पर राज़ करें 
आपसे मुझको शिकवा है,खुद आपने बेपरवाई की

      

Wednesday 21 September 2011

वेदना -सतीश सक्सेना


साजिश है आग लगाने की
कोई रंजिश, हमें लड़ाने की
वह रंज लिए, बैठे दिल में
हम प्यार, बांटने निकले हैं!
गर्वित मन को रोकें कैसे,जो व्यथा दूसरों की समझे   
हम आशा भरी नज़र लेकर, उम्मीद लगाए बैठे हैं !

वे शंकित, कुंठित मन लेकर,
कुछ पत्थर हम पर फ़ेंक गए
हम समझ नही पाए, हमको 
क्यों मारा ? इस बेदर्दी से , 
आहत मन में भी आस यही,वे दर्द दूसरों का समझें   
हम चोटें लेकर भी दिल पर, अरमान लगाये बैठे हैं   !

फिर जायेंगे, उनके दर पर,
हम हाथ जोड़ अपनेपन से,
इस बालह्रदय, को क्यों तुमने 
इस तीखे पन से भेद दिया ?
कडवी जिह्वा रखने वाले, संयम की भाषा क्या समझें   
हम घायल होकर भी, कबसे  उम्मीद  लगाये  बैठे हैं !

क्या शिकवा है क्या हुआ तुम्हे 
क्यों आँख पे पट्टी बाँध रखी,
क्यों नफरत लेकर, तुम दिल में 
रिश्ते, परिभाषित करती हो,
अपने जख्मों को दिखलाते  , वेदना अन्य की क्या समझें  ! 
हम पुरूष ह्रदय, सम्मान सहित, कुछ याद दिलाने बैठे हैं !

जब भी कुछ फ़ूटा अधरों से
तब तब ही उंगली उठी यहाँ
जो भाव शब्द के परे रहे
वे कभी किसी को दिखे कहाँ
यह वाद नहीं प्रतिवाद नहीं,मन की उठती धारायें हैं, 
ले जाये नाव दूसरे तट, हम पाल चढ़ाये बैठे हैं ! (यह खंड श्री राकेश खंडेलवाल ने लिखा है )

Saturday 20 August 2011

कौवे की बोली सुनने को, हम कान लगाये बैठे हैं - सतीश सक्सेना

जन्मे दोनों इस घर में हम 
और साथ खेल कर बड़े हुए
घर में पहला  अधिकार तेरा,
मैं, केवल रक्षक इस घर का
अब रक्षा बंधन के दिन पर, घर के दरवाजे बैठे हैं  !
हम वीर ह्रदय, स्नेह सहित, कुछ याद दिलाने बैठे हैं !


पहले  तेरे जन्मोत्सव पर
त्यौहार मनाया जाता  था,
रंगोली  और गुब्बारों से !
घरद्वार सजाया जाता था
तेरे जाने के साथ साथ,घर की सुन्दरता चली गयी !
राखी के प्रति अनुराग लिए, घर के दरवाजे बैठे हैं  !


पहले इस घर के आंगन में
संगीत सुनाई पड़ता था  !
झंकार वायलन की सुनकर 
घर में उत्सव सा लगता था
जब से जिज्जी तू विदा हुई,झांझर पायल भी रूठ गयीं
झंकार ह्रदय की सुनने को,  हम आस लगाए बैठे   हैं  !


पहले घर में , प्रवेश करते ,
एक मैना चहका करती थी
चीं चीं करती,  मीठी  बातें
सब मुझे सुनाया करती थी
जबसे वह विदा हुई घर से, हम  लुटे हुए से बैठे हैं  !
टकटकी लगाये रस्ते में , घर के  दरवाजे  बैठे हैं !


पहले घर के हर कोने  में ,
एक गुडिया खेला करती थी
चूड़ी, पायल, कंगन, झुमका 
को संग खिलाया करती थी
जबसे गुड्डे संग विदा हुई , सब  ठगे हुए से बैठे हैं  !
कौवे की बोली सुननें को, हम  कान  लगाये बैठे हैं !


पहले इस नंदन कानन में
एक राजकुमारी  रहती थी
घर राजमहल सा लगता था
हर रोज दिवाली होती थी !
तेरे जाने के साथ साथ  , चिड़ियों ने भी आना  छोड़ा !
चुग्गा पानी को लिए हुए , उम्मीद  लगाए बैठे    हैं !