Friday, January 6, 2012

कबाड़ी और रफूगर

रफूगर घट रहे हैं, कबाड़ी बढ़ रहे हैं
कबाड़ी जितने बढ़ रहे हैं
रफूगर उतने ही घट रहे हैं
गणित का यह व्युत्क्रमानुपाती नियम
अब जिंदगी पर लागू हो रहा है

अलां-फलां चीज की मरम्मत
तसल्लीबख्श की जाती है
किसी ठीहे पर अब दिखते नहीं
जैसे-तैसे उकेरे गए ऐसे अटपटे वाक्य
अलबत्ता सड़क पर तैरते हुए
इससे भी अटपटे कबाड़ी सुर
गली के आखिरी मकान तक
बिल्कुल साफ पकड़ लिए जाते हैं

जिस तरह अच्छे लोग चिंतित हैं कि
उनका इस्तेमाल किया जाने लगा है
उसी तरह चीजें भी चिंतित हैं
कि उनका अच्छी तरह
इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है

चीजों का इस्तेमाल करें, लोगों से प्यार
यह सूत्रवाक्य बड़े जतन से लिखी गई
एक आधुनिक नीतिकथा में पढ़ा
जो असल में चीजों से प्यार
और लोगों का इस्तेमाल करने की
सोच के विरोध में लिखी गई थी

रफूगरों की कब्र पर खिले
कबाड़ियों के फूल बताते हैं कि
लोगों और चीजों का यह द्वैत बेमानी है
अपने भीतर का रफूगर हम जिंदा नहीं रखते
तो बेहतर होगा कि खुद को
कबाड़ी की ही शक्ल में देखने लगें

Thursday, December 29, 2011

अंगूठी

मुझे इसको निकाल कर आना था।

या फिर चुपचाप पिछली जेब में रख लेता
बैठने में जरा सा चुभती, और क्या होता।

किसी गंदी सी धातु के खांचे में खुंसे
लंबोतरे मूंगे वाली यह बेढब अंगूठी
हर जगह मेरी इज्जत उतार लेती है।

एक नास्तिक की उंगली में
अंगूठी का क्या काम
वह भी ऐसी कि आदमी से पहले
वही नजर आती है
जैसे ऊंट से पहले ऊंट का कूबड़।

अब किस-किस को समझाऊं कि
क्यों इसे पहना है
क्या इसका औचित्य है
और निकाल कर फेंक देने में
किस नुकसान का डर सता रहा है।

प्यारे भाई, और कुछ नहीं
यह मेरी लाचारगी की निशानी है।

एक आदमी के दिए इस भरोसे पर पहनी है
कि पिछले दो साल से इतनी खामोशी में
जो तूफान मुझे घेरे चल रहा है
वह अगले छह महीने में
मुझे अपने साथ लेकर जाने वाला था
लेकिन इसे पहने रहने पर
अपना काम पूरा किए बिना ही गुजर जाएगा।

इतने दिन तूफानों में मजे किए
आने और जाने के फलसफे को कभी घास नहीं डाली
लेकिन अब, जब खोने को ज्यादा कुछ बचा नहीं है
तब अंगूठी पहने घूम रहा हूं।

एक पुरानी ईसाई प्रार्थना है-
जिन चीजों पर मेरा कोई वश नहीं है,
ईश्वर मुझे उनको बर्दाश्त करने की शक्ति दे।

सवाल यह है कि
मेरे जैसे लोग, ईश्वर के दरबार में
जिनकी अर्जी ही नहीं लगती
वे यह शक्ति भला किससे मांगें।

जवाब- मूंगे की अंगूठी से।

प्यारे भाई,
तुम, जो न इस तूफान की आहट सुन सकते हो
न इसमें घिरे इंसान की चिल्लाहट-
अगर चाहो तो इस बेढब अंगूठी से जुड़े
हास्यास्पद दृश्यों के मजे ले सकते हो।

मुझे इससे कोई परेशानी नहीं है।

बस, इतनी सी खुन्नस जरूर है
कि इस मनोरंजन में मैं तुम्हारा साथ नहीं दे पा रहा हूं।