कविता

पूड़ियां तेल में गदर नहाई  हुई हैं

पूड़ियां तेल में गदर नहाई हुई हैं

कविता सिखाते हुये गुरुजी से अनौपचारिक बाते होंने लगीं। बोले कि पुराने जमाने में लोग लय,ताल,छंद में कविता लिखते थे। इस तरह की कवितायें देखने में ऐसे लगतीं थीं जैसे स्कूल ड्रेस में बच्चे। देखने में खूबसूरत। एक लाइन में खड़े बच्चे जैसे देखने में सुन्दर लगते हैं वैसे ही लय ताल में लिखी कवितायें [...]

घर से बाहर जाता आदमी

घर से बाहर जाता आदमी

घर से बाहर जाता आदमी घर लौटने के बारे में सोचता है। घर से निकलते समय याद आते हैं तमाम अधूरे छूटे काम सोचता है एकाध दिन और मिलता तो पूरा कर लेता ये भी और वो भी। तमाम योजनायें बनाता है मन में सब कुछ एक आदर्श योजना जैसी बातें। घर से बाहर जाता [...]

निष्ठुर समय में अकेला कवि!

निष्ठुर समय में अकेला कवि!

१. कविता लिखता आदमी दुनिया का सबसे मासूम आदमी होता है पवित्रमना, बांगड़ू! वह सोचता है- बस वही सोच रहा है इस तरह इसके पहले किसी और ने सोचा नहीं इस तरह! दुनिया में एक साथ करोड़ो लोग सबसे मासूम हो सकते हैं पवित्र और बांगड़ू भी बशर्ते वे सभी लिखने लगे कवितायें एक साथ [...]

…तुम मेरे जीवन का उजास हो

तुम मेरे जीवन का उजास हो! न जाने कब मेरे मन आयी होगी पहली बार यह बात लेकिन अब इसे मैं फ़िर फ़िर दोहराता हूं सोचता हूं फ़िर दोहराता हूं। सच तो यह है कि मुझे पता भी नहीं ठीक-ठीक मतलब उजास का लेकिन कुछ-कुछ ऐसा लगता है कि इसका मतलब होता है रोशनी जिसमें [...]

…स्वेटर के फ़ंदे से उतरती कवितायें

१.वे लिख रहे हैं कवितायें जैसे जाड़े की गुनगुनी दोपहर में गोल घेरे में बैठी औरतें बिनती जाती हैं स्वेटर आपस में गपियाती हुई तीन फ़ंदा नीचे, चार फ़ंदा ऊपर* उतार देती हैं एक पल्ला दोपहर खतम होते-होते हंसते,बतियाते,गपियाते हुये। औरतें अब घेरे में नहीं बैठती, आपस में बतियाती नहीं, हंसती,गपियाती नहीं स्वेटर बिनना तो [...]