Tag Archives: दर्शन

अकेली औरत

शीर्षक पढ़कर ही अजीब सा एहसास होता है ना? कैसे गंदे-गंदे ख़याल आ जाते हैं मन में.  ”एक तो औरत, ऊपर से अकेली. कहाँ है, कैसी है, मिल जाती तो हम भी एक चांस आजमा लेते.” … ऐसा ही होता है. अकेली … Continue reading

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बाऊजी की बातें

मेरे बाऊजी बहुत दिलचस्प इंसान थे. चीज़ों को देखने का उनका खुद का नजरिया होता था और वो बड़ा अलग और अनोखा था. किसी भी विषय में मेरी उत्सुकता का उत्तर वे बहुत तार्किक ढंग से देते थे. ऐसे कि … Continue reading

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इस मोड़ से जाते हैं …

बहुत-बहुत मुश्किल होता है अपने ही फैलाए हुए जाल से बाहर निकलना. पहले तो हम चीज़ों को सीरियसली लेते ही नहीं, हर काम पेंडिंग में डालते चलते हैं और जब यही पेंडिंग बातें, मसले, फैसले आपस में उलझ जाते हैं, … Continue reading

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एक बैचलर का कमरा, धुआँ और दर्शन

१. कमरे का एक कोना. ज़मीन पर बिछा बिस्तर. उसके बगल में फर्श पर राख से पूरी भरी हुयी ऐश ट्रे और उसमें जगह न पाकर इधर-उधर छिटकी अधजली सिगरटें. एक कॉफी मग, जिसमें एक तरफ  रखी हुयी इमर्सन राड. … Continue reading

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चलत की बेरिया

हमारा देश दार्शनिकों का देश है, दर्शन का देश है. दर्शन यहाँ के जनमानस के अन्तर्मन में समाया हुआ है, जनजीवन में प्रतिबिम्बित होता है. कुछ लोग कर्मवादी हैं, तो कुछ लोग भाग्यवादी. पर समन्वय इतना कि कर्मवादी लोग भी … Continue reading

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