एक
कक्षा की सबसे आगे वाली पंक्ति में एक लकड़ी की छोटी डेस्क के बीच पीतल की बनी हुई स्याहीदानी थी। उन दिनों स्याही बनाने की गोलियां आया करती थी। स्कूल का चपरासी उन गोलियों को पीस कर पानी में घोल दिया करता था। कक्षा में रखी हर डेस्क की स्याहीदानी को आधा भर दिया जाता था। हर डेस्क की दराज़ में एक स्याही सोखू होता था। फ़ोम का छोटा टुकड़ा।
एक दिन एक स्मार्ट सा फाउंटेन पेन कक्षा में आया।
नीले आँसू रो पड़ी स्याहीदानी। स्याहीसोखू ने भरी भरी आँखों से वक़्त की धूल में खो जाने से पहले पीतल वाली स्याहीदानी से कहा।
जब भी भर जाता हूँ तुम्हारे रंग से
कोई भी चीज़ उड़ा नहीं सकती मुझे।
* * *
दो
उन दिनों दीवार पर लिखने वाले बच्चों को माएँ कहती थी। दोबारा कुछ भी लिखा तो स्नानघर में बंद कर दूँगी। बच्चों ने देखा कि स्नानघर के भी दीवारें थी। बच्चों को जहां भी दीवार मिलती लिखना याद रहता और माँ को भूल जाते।
आखिर बच्चे पिट जाते। दीवारें दिन भर उदास रहती और बच्चों के सो जाने के बाद माँ बहुत देर तक अकेली रोती रहती।
***
तीन
सफ़ेद फ़्राक वाली लड़की को पालथी मार कर बैठे हुये अपनी गोदी में इरेज़र रखने की आदत थी। छोटी निकर और लंबी टांगों वाले लड़के के पास एक लंबा इरेज़र था। जो उसके इंजीनियर मामा ने दिया था। लड़की उस लंबे इरेज़र को गोदी में रखने के बाद महसूस करती कि आज उसकी फ़्राक सबसे ज्यादा भारी है। इसे उड़ा नहीं सकता कोई भी हवा का झौंका।
एक नए आए लड़के के पापा डॉक्टर थे। दवा कंपनियों ने जापान से आयात किए हुये कुछ खुशबू वाले इरेज़र डॉक्टरों को बाँट दिये थे। उस दिन से लड़की ने चाहा कि गोदी भारी होने के साथ साथ खुशबू से भरी होनी चाहिए।
लंबी टांगों और छोटी निकर वाले लड़के ने इरेज़र को भुला दिया। अब वह कक्षा से बाहर भाग जाने की जुगत में लगा रहता था। सारे दिन नीम के पेड़ की ऊंची शाख पर चढ़ता और कूदा करता।
एक दिन स्काउट वाले माड़साब देर से स्कूल आए। उनके घर में कोयले नहीं थे और अंगीठी समय पर नहीं जल पाई थी। चाय देरी से बनी थी और खाना बन नहीं पाया था। उन्होने रेसिस में दुबले लड़के को पेड़ से कूदते देख लिया था। थोड़ी ही देर बाद लड़की ने लड़के को पिटते हुये देख लिया था।
लड़के ने इरेज़र के बाद स्कूल को भी छोड़ दिया।
***
चार
एक लड़के की पेंसिल के साथ गज़ब की दोस्ती थी। वह छोटे छोटे टुकड़े बचा कर रखता था। उसके बस्ते में रखे पेंसिलों के उन छोटे टुकड़ों को सिर्फ उसकी अंगुलियाँ ही पकड़ सकती थी।
शर्मा सर हिन्दी पढ़ाने को स्कूल में नियुक्त थे मगर सारे दिन चित्र बनाया करते थे। त्यागी सर अँग्रेजी पढ़ाने के लिए थे मगर सारे दिन स्कूल का अनुशासन बनाने में लगे रहते थे।
लड़के को शर्मा सर पसंद थे और त्यागी सर नापसंद। एक दिन त्यागी सर को इस बात के बारे में मालूम हो गया। उन्होने पूछा – चिल्ड्रेन की स्पेलिंग बोलो। लड़के ने कहा – सी एच आई एल डी आर ई एन... सर ने कहा बस्ते में क्या देख रहे हो। बस्ते की तलाशी ली तो उसमें से पेंसिल के पैंतालीस टुकड़े निकले।
सर ने अँग्रेजी में कहा- “देखो, भविष्य का कबाड़ी” पूरी कक्षा के सामने बस्ता उलट दिया। सब तरफ पेंसिलों के नन्हें टुकड़े बिखर गए। लड़के की माँ स्कूल आई। उसने सर से माफी मांगी।
अगले दिन लड़के ने देखा। उसकी अंगुलियाँ स्केल की मार से सूज गयी है। अब वह इन छोटे टुकड़ों को नहीं पकड़ पाएगा। उसने माँ से कहा। अब मैं कभी कचरा इकट्ठा नहीं करूंगा। तुम इन सबको फेंक दो।
लड़का सो गया और माँ रात भर पेंसिल के टुकड़ो को देखती हुई अपनी माँ को याद करती रही।
छह
लड़के ने कहा – “सुनो, मैं सफ़ेद रंग की खड़िया हूँ” उसने ब्लेकबोर्ड पर आड़ी तिरछी रेखाएँ बनानी शुरू की। ब्लेकबोर्ड असंख्य अनगढ़ रेखाओं से भर गया। कक्षा में शोरगुल बढ़ता ही गया। हेड माड़साब ने पीटीआई को घूर कर देखा। पीटीआई ने बेंत उठाई और कक्षा की ओर चल पड़े।
खिड़की के पास बैठी लड़की उठ कर ब्लेक बोर्ड की ओर भागी। उसने लड़के को धक्का देकर गिरा दिया। ज़ोर से बोली- “मैं डस्टर हूँ” जितने तेज़ कदमों से पीटीआई कक्षा की तरफ आ रहे थे, वह उससे भी ज्यादा तेज़ी से ब्लेकबोर्ड पर डस्टर घुमा रही थी।
पीटीआई ने कहा- “अच्छा नयी मेडम आई है” उन्होने लड़की की चोटी पकड़ी और हेड माड़साब के रूम की तरफ ले गए।
***
सात
ये कहानी नहीं है।
तीसरी मंज़िल पर एक छोटा कमरा था। उसमें एक आदमी बैठा था। उसका सेल फोन बंद पड़ा हुआ था जबकि खुली हुई थी याद के शब्दों से भरी एक अदृश्य किताब। प्रेम कहानियों का कारवां गुज़रता जा रहा था। नवंबर महीने की पहली रात को आसमान बादलों से भर गया था। रेत के समंदर पर खिले चाँद को घटाओं ने ढ़क लिया।
अचानक से रेत, पानी की तरह बहने लगी। उस आदमी ने शराब की खाली बोतल में एक सँदेसा रख कर, पानी में बहा दिया।
छाई घटा घनघोर
ओ मेरे इंतज़ार अब कितने प्याले और?
आखिर रात बीत गयी। न मौत आई न सँदेसे का जवाब।
* * *
कक्षा की सबसे आगे वाली पंक्ति में एक लकड़ी की छोटी डेस्क के बीच पीतल की बनी हुई स्याहीदानी थी। उन दिनों स्याही बनाने की गोलियां आया करती थी। स्कूल का चपरासी उन गोलियों को पीस कर पानी में घोल दिया करता था। कक्षा में रखी हर डेस्क की स्याहीदानी को आधा भर दिया जाता था। हर डेस्क की दराज़ में एक स्याही सोखू होता था। फ़ोम का छोटा टुकड़ा।
एक दिन एक स्मार्ट सा फाउंटेन पेन कक्षा में आया।
नीले आँसू रो पड़ी स्याहीदानी। स्याहीसोखू ने भरी भरी आँखों से वक़्त की धूल में खो जाने से पहले पीतल वाली स्याहीदानी से कहा।
जब भी भर जाता हूँ तुम्हारे रंग से
कोई भी चीज़ उड़ा नहीं सकती मुझे।
* * *
दो
उन दिनों दीवार पर लिखने वाले बच्चों को माएँ कहती थी। दोबारा कुछ भी लिखा तो स्नानघर में बंद कर दूँगी। बच्चों ने देखा कि स्नानघर के भी दीवारें थी। बच्चों को जहां भी दीवार मिलती लिखना याद रहता और माँ को भूल जाते।
आखिर बच्चे पिट जाते। दीवारें दिन भर उदास रहती और बच्चों के सो जाने के बाद माँ बहुत देर तक अकेली रोती रहती।
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तीन
सफ़ेद फ़्राक वाली लड़की को पालथी मार कर बैठे हुये अपनी गोदी में इरेज़र रखने की आदत थी। छोटी निकर और लंबी टांगों वाले लड़के के पास एक लंबा इरेज़र था। जो उसके इंजीनियर मामा ने दिया था। लड़की उस लंबे इरेज़र को गोदी में रखने के बाद महसूस करती कि आज उसकी फ़्राक सबसे ज्यादा भारी है। इसे उड़ा नहीं सकता कोई भी हवा का झौंका।
एक नए आए लड़के के पापा डॉक्टर थे। दवा कंपनियों ने जापान से आयात किए हुये कुछ खुशबू वाले इरेज़र डॉक्टरों को बाँट दिये थे। उस दिन से लड़की ने चाहा कि गोदी भारी होने के साथ साथ खुशबू से भरी होनी चाहिए।
लंबी टांगों और छोटी निकर वाले लड़के ने इरेज़र को भुला दिया। अब वह कक्षा से बाहर भाग जाने की जुगत में लगा रहता था। सारे दिन नीम के पेड़ की ऊंची शाख पर चढ़ता और कूदा करता।
एक दिन स्काउट वाले माड़साब देर से स्कूल आए। उनके घर में कोयले नहीं थे और अंगीठी समय पर नहीं जल पाई थी। चाय देरी से बनी थी और खाना बन नहीं पाया था। उन्होने रेसिस में दुबले लड़के को पेड़ से कूदते देख लिया था। थोड़ी ही देर बाद लड़की ने लड़के को पिटते हुये देख लिया था।
लड़के ने इरेज़र के बाद स्कूल को भी छोड़ दिया।
***
चार
एक लड़के की पेंसिल के साथ गज़ब की दोस्ती थी। वह छोटे छोटे टुकड़े बचा कर रखता था। उसके बस्ते में रखे पेंसिलों के उन छोटे टुकड़ों को सिर्फ उसकी अंगुलियाँ ही पकड़ सकती थी।
शर्मा सर हिन्दी पढ़ाने को स्कूल में नियुक्त थे मगर सारे दिन चित्र बनाया करते थे। त्यागी सर अँग्रेजी पढ़ाने के लिए थे मगर सारे दिन स्कूल का अनुशासन बनाने में लगे रहते थे।
लड़के को शर्मा सर पसंद थे और त्यागी सर नापसंद। एक दिन त्यागी सर को इस बात के बारे में मालूम हो गया। उन्होने पूछा – चिल्ड्रेन की स्पेलिंग बोलो। लड़के ने कहा – सी एच आई एल डी आर ई एन... सर ने कहा बस्ते में क्या देख रहे हो। बस्ते की तलाशी ली तो उसमें से पेंसिल के पैंतालीस टुकड़े निकले।
सर ने अँग्रेजी में कहा- “देखो, भविष्य का कबाड़ी” पूरी कक्षा के सामने बस्ता उलट दिया। सब तरफ पेंसिलों के नन्हें टुकड़े बिखर गए। लड़के की माँ स्कूल आई। उसने सर से माफी मांगी।
अगले दिन लड़के ने देखा। उसकी अंगुलियाँ स्केल की मार से सूज गयी है। अब वह इन छोटे टुकड़ों को नहीं पकड़ पाएगा। उसने माँ से कहा। अब मैं कभी कचरा इकट्ठा नहीं करूंगा। तुम इन सबको फेंक दो।
लड़का सो गया और माँ रात भर पेंसिल के टुकड़ो को देखती हुई अपनी माँ को याद करती रही।
***
पाँच
विच कलर यू वोंट? खेलते हुये अचानक से लड़की बोली – देखो, दरी के बीच जो ये फूल बना हुआ है, ये मैं हूँ। लड़के ने पूछा – मैं क्या हूँ?
लड़की ने ज़रा देर सोचा और कहा – तुम ये दरी किनारों पर बनी हुई चोटियाँ हों।
लड़का उदास हो गया।
लड़की ने उसकी उदासी की ओर देखते हुये कहा – “माँ कहती है जब तक ये किनारी उधड़ेगी नहीं तब तक दरी सही सलामत रहेगी” लड़की ने उसके हाथ को थामा और कहा- “ ये बात याद रखना”
अगले महीने स्कूल से दरियाँ हटा ली गयी और लोहे का फर्नीचर आ गया था जिस पर लकड़ी के तख्ते लगे थे। अच्छा हुआ कि उसी महीने ग्रीनेडियर यूनिट का तबादला आगरा हो गया। लड़की चली गयी।
***
पाँच
विच कलर यू वोंट? खेलते हुये अचानक से लड़की बोली – देखो, दरी के बीच जो ये फूल बना हुआ है, ये मैं हूँ। लड़के ने पूछा – मैं क्या हूँ?
लड़की ने ज़रा देर सोचा और कहा – तुम ये दरी किनारों पर बनी हुई चोटियाँ हों।
लड़का उदास हो गया।
लड़की ने उसकी उदासी की ओर देखते हुये कहा – “माँ कहती है जब तक ये किनारी उधड़ेगी नहीं तब तक दरी सही सलामत रहेगी” लड़की ने उसके हाथ को थामा और कहा- “ ये बात याद रखना”
अगले महीने स्कूल से दरियाँ हटा ली गयी और लोहे का फर्नीचर आ गया था जिस पर लकड़ी के तख्ते लगे थे। अच्छा हुआ कि उसी महीने ग्रीनेडियर यूनिट का तबादला आगरा हो गया। लड़की चली गयी।
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छह
लड़के ने कहा – “सुनो, मैं सफ़ेद रंग की खड़िया हूँ” उसने ब्लेकबोर्ड पर आड़ी तिरछी रेखाएँ बनानी शुरू की। ब्लेकबोर्ड असंख्य अनगढ़ रेखाओं से भर गया। कक्षा में शोरगुल बढ़ता ही गया। हेड माड़साब ने पीटीआई को घूर कर देखा। पीटीआई ने बेंत उठाई और कक्षा की ओर चल पड़े।
खिड़की के पास बैठी लड़की उठ कर ब्लेक बोर्ड की ओर भागी। उसने लड़के को धक्का देकर गिरा दिया। ज़ोर से बोली- “मैं डस्टर हूँ” जितने तेज़ कदमों से पीटीआई कक्षा की तरफ आ रहे थे, वह उससे भी ज्यादा तेज़ी से ब्लेकबोर्ड पर डस्टर घुमा रही थी।
पीटीआई ने कहा- “अच्छा नयी मेडम आई है” उन्होने लड़की की चोटी पकड़ी और हेड माड़साब के रूम की तरफ ले गए।
***
सात
ये कहानी नहीं है।
तीसरी मंज़िल पर एक छोटा कमरा था। उसमें एक आदमी बैठा था। उसका सेल फोन बंद पड़ा हुआ था जबकि खुली हुई थी याद के शब्दों से भरी एक अदृश्य किताब। प्रेम कहानियों का कारवां गुज़रता जा रहा था। नवंबर महीने की पहली रात को आसमान बादलों से भर गया था। रेत के समंदर पर खिले चाँद को घटाओं ने ढ़क लिया।
अचानक से रेत, पानी की तरह बहने लगी। उस आदमी ने शराब की खाली बोतल में एक सँदेसा रख कर, पानी में बहा दिया।
छाई घटा घनघोर
ओ मेरे इंतज़ार अब कितने प्याले और?
आखिर रात बीत गयी। न मौत आई न सँदेसे का जवाब।
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