कुछ फिल्में भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में माइलस्टोन के तौर पर जानी जाती हैं, जिनमें कि मेनस्ट्रीम फिल्मों के साथ-साथ क्षेत्रिय फिल्में भी आती हैं. ऐसी ही एक माइलस्टोन मराठी फिल्म इन दिनों महाराष्ट्र के सिनेमाघरों में चल रही है – ‘काकस्पर्श’. महेश मांजरेकर द्वारा निर्मित, गिरीश जोशी की पटकथा पर आधारित इस फिल्म के नाम को देखकर मैं कुछ दिनों पहले चौंका था क्योंकि काकस्पर्श आमफहम शब्द नहीं हैं, यह अपने आप में सुनने में ही एक किस्म की विशिष्टता दर्शा देता है.
हाल ही में जब मुंबई के चित्रा सिनेमा में यह फिल्म देखा तो जो पहली प्रतिक्रिया मन में उभरी वह यही कि जो मुकाम ऑस्कर प्राप्त फिल्म ‘THE ARTIST’ को हासिल है, काकस्पर्श भी लगभग उसी मुकाम को हासिल करने की सहज हकदार है. हांलाकि दोनों फिल्मों की विषयवस्तु भिन्न है, दोनों का कथानक बिल्कुल अलग है, दोनों फिल्मों की मानसिकता अलग है, लेकिन दोनों फिल्मों में जो चीज कॉमन है वह है ‘टाईम फ्रेम’ और उस टाईम फ्रेम को प्रस्तुति का सलीका. जी हां, यह फिल्म सन् 1930-31 के आसपास के टाईम फ्रेम को कैप्चर करती है, ठीक उसी 1930-31 के टाईम फ्रेम को जिसे The Artist फिल्म में ब्लैक एण्ड वाइट के जरिये फिल्माया गया है. लेकिन काकस्पर्श उस ब्लैक एण्ड वाइट से अलग हटकर अपनी पूरी रंगीनियत के साथ पर्दे पर उतरती है. हरा भरा कोंकण इलाके का माहौल, वहां की शीतलता, वहां की ठसक सब पर्दे पर जैसे साकार हो जाते हैं.
फिल्म में कोंकण क्षेत्र में रहने वाले एक ब्राह्मण परिवार की कथा है जिसका मुखिया हरी (सचिन खेडेकर) है. प्रगतिशील विचारों वाला हरी मंदिर में बलि देने जैसी प्रथा का विरोधी है, कई बार रूढ़िवादियों को आड़े हाथों ले चुका है, ब्राह्मण समाज का कोप भी झेल चुका है. उन्हीं दिनों चल रही बालविवाह की प्रथानुसार हरी अपने छोटे भाई महादेव की सगाई हेतु कोंकण के ही एक गाँव जाता है. लड़की देखी जाती है, हरी उस लड़की से उसका नाम पूछता है, उसकी पढ़ाई के बारे में पूछता है और आश्वस्त होकर छोटे भाई महादेव का विवाह उस बालिका से कर देता है. विवाहोपरान्त अगले दिन महादेव को मुंबई जाना है अपनी पढ़ाई के लिये लेकिन अभी-अभी शादी हुई है, नई नवेली दुल्हन उमा घर में है और उससे विदा लेना महादेव को अच्छा नहीं लगता. तभी दोनों के बीच चल रही घिचपिच को देख महादेव की भाभी तारा यानि हरी की पत्नी अपने देवर को इशारा करती है कि फणस (कटहल) तब तक नहीं खाना चाहिये जब तक पका न हो. जाहिर है, यह कूट शब्दावली उस बालिका वधू उमा के लिये थी जो अभी शारीरिक और मानसिक तौर पर तैयार नहीं है. महादेव लजा जाता है.
समय बीतता है और एक दिन उमा रजस्वला होती है. महादेव की भाभी तारा को पता चलता है कि देवरानी अब बड़ी हो गई है तो प्रथानुसार उसके बड़े होने पर परिवार में समारोह होता है, महिलायें मंगल गीत गाती हैं. तारा अपने देवर को संदेशा भेजती है कि उसकी पत्नी उमा अब बड़ी हो गई है, फलशोधन विधी ( प्रथम मिलन ) का समय नजदीक है. फलां तारीख को पूजा आदि रखी गई है समय पर आ जाना. पत्र पढ़कर महादेव खुश होता है लेकिन उसकी तबियत खराब हो जाती है. किसी तरह गिरते पड़ते घर पहुंचता है. उसका भाई हरि चिंतित होता है कि इसकी खराब तबियत में विधि कैसे हो. लेकिन दूसरों की सलाह पर महादेव तैयार हो जाता है कि पूजा पर बैठेगा. कार्यक्रम तय समय पर शुरू होता है और पूजा में रह रहकर महादेव को खराब तबियत की वजह से दिक्कत होती है. उधर तारा और महादेव दोनों चिंतित होते हैं. किसी तरह पूजा पाठ का कार्यक्रम खत्म होता है और सुहागरात का समय आता है. इधर दुल्हन बनी उमा सेज पर बैठी है और लड़खड़ाते कदमों से महादेव कमरे में प्रवेश करता है. उमा को अपने ओक में भरना चाहता है लेकिन खराब तबियत उसे ऐसा करने नहीं देती. एक दो बार हाथ आगे बढ़ा उमा के चेहरे को देख उसकी ओर ताकता है और सेज पर ही धराशायी हो जाता है. उसकी तुरंत ही मृत्यु हो जाती है.
पूरे परिवार पर वज्रपात हो जाता है. उमा को अभी से अपनी दुनिया वीरान लगने लगती है. भाई की मौत से टूटा हुआ हरी मृ्त्युपरांत क्रियाकर्म के दौरान कौओं को भोजन रखता है लेकिन कोई कौआ नहीं आता, दोपहर होने लगती है और आसपास खड़े लोगों की बेचैनी के बीच हरी आगे बढ़ कुछ बुदबुदाता है और कौवे आ जाते हैं.
उधर घर में एक बूढ़ी विधवा गाँव के नाई को बुला लाती है ताकि उमा के सिर के बाल काटे जांय, उसे विधवारूप दिया जाय, लेकिन हरी अड़ जाता है कि उमा के बाल नहीं काटे जायेंगे वह जैसे रहना चाहे रह सकती है. लोग तरह तरह के आरोप लगाते हैं कि हरी हमेशा धर्म के विरूद्ध जाता है, मंदिर में भी बलि प्रथा का विरोध किया यह उसी का कुफल है लेकिन हरि किसी की नहीं सुनता और उमा का पक्ष लेता है. घर में पूजा-पाठ के दौरान बूढ़ी विधवा अत्या चाहती है कि उमा घर में पूजा-पाठ में न रहे, उसके हाथ का पानी ईश्वर को नहीं चलेगा लेकिन यहां भी हरि अड़ जाता है कि ईश्वर की पूजा उमा ही करेगी. हरी की पत्नी तारा को अपने पति द्वारा उमा का इतना ज्यादा पक्ष लेना अजीब लगता है. धीरे-धीरे उसे शक होने लगता है कि कहीं उसके पति उमा पर आसक्त तो नहीं. उधर उमा अपने जेठ हरि द्वारा जताई गई सहानुभूति से अभिभूत होती है. उसे लगने लगता है कि इस घर में उसकी देख-रेख करने वाला कोई तो है. उमा के मायके से उसके पिता आते हैं कि कुछ दिनों के लिये उमा को लिवा जांय लेकिन हरी विरोध करता है कि नहीं उमा का यहां विवाह हुआ है, अब वह यहीं रहेगी. हरी की पत्नी तारा को अजीब लगता है कि आखिर उसके पति उमा को उसके मायके जाने क्यों नहीं दे रहे. इस बीच तारा को अचानक पेट की गंभीर बीमारी जकड़ लेती है. उसे बिस्तर से उठने बैठने की मनाही है. ऐसे में घर का सारा कार्य उमा के सिर आ जाता है. जेठ हरी के लिये कपड़ों का इंतजाम करना, तारा के बच्चों के लिये भोजन आदि का इंतजाम करना और ऐसे तमाम काम जोकि तारा अब तक करती रही है. चूंकि वैद्य के अनुसार तारा को पेट की बीमारी है और ऐसे में उससे कोई भी शारीरिक काम नहीं लेना है, तारा का पति हरि घर के बाहर ओटले पर सोता है. उसी दौरान तारा को अंदर ही अंदर शक होने लगता है कि कहीं उमा और हरि के बीच कुछ चल तो नहीं रहा. यही जानने के लिये तारा बिस्तर से उठ जाती है और जब देखती है कि उसके पति बाहर ओटले पर अकेले सो रहे हैं तो समाधान पाकर वापस मुड़ने को होती है लेकिन वहीं लड़खड़ाकर गिर जाती है. हरी की नींद खुल जाती है और तारा को उठाकर बिस्तर पर ले जाया जाता है. वहां तारा को पश्चाताप होता है कि उसने नाहक अपने पति पर शक किया लेकिन गंभीर बीमारी और अपने बच्चों की चिंता के बीच वह उमा से कहती है कि मेरे मरने के बाद तुम जेठ हरी से शादी कर लेना. दूसरी कोई आएगी तो मेरे बच्चों को नहीं देखेगी. उमा हक्का बक्का रह जाती है. उसे समझ नहीं आता कि यह क्या कहा जा रहा है. हरी भी हतप्रभ रहता है. बीमारी में की गई बकबक समझ ज्यादा तवज्जो नहीं देता. अगले ही दिन तारा की मृत्यु हो जाती है.
अब परिवार में हरी है, तीन बच्चे हैं, एक बूढी विधवा अत्या है, और हाल ही में विधवा हुई उमा है. गांव के लोग तरह तरह की बातें करेंगे सोचकर बूढ़ी अत्या हरी से कहती है कि अब वह उमा से विवाह कर ले, वह भी उसे चाहती है लेकिन हरी तैयार नहीं होता. हां, इतना जरूर करता है कि उसके रहने-खाने, या कपड़ों आदि की कोई कमी न होने पाये. लोगों को बातें बनाने का मौका न मिले इसलिये ज्यादातर उमा से कटा-कटा रहने लगता है. समय बीतता है और बच्चे बड़े होते हैं. उन्हीं में से एक की जब शादी होती है तो बगल के कमरे में नवविवाहित जोड़े की आपसी बातें सुनकर उमा उनके दरवाजे के करीब कान लगाकर सुनती है. उन दोनों की बातें सुन रोमांचित होती है और तभी उसके सामने नजर आता है हरी जो गुस्से से उमा की इस हरकत को देख रहा था. उमा का जी धक् से हो जाता है कि जाने हरी उसके बारे में क्या सोचें. वह बिस्तर पर जाकर रो पड़ती है. अगले दिन जब हरी को उमा राशन लाने की लिस्ट देती है तो हरी सीधे न लेकर नौकर के हाथ से लेता है. अब से उमा के प्रति वह एक किस्म की बेरूखी दर्शाता है. लगातार एक ही घर में रहते हुए हरी द्वारा किये जा रहे इस अन्जाने व्यवहार से उमा आहत सी होती है. उसे समझ नहीं आता कि हरी आखिर ऐसा क्यों कर रहे हैं. उधर हरी गांव वालों को बातें बनाने का मौका नहीं देना चाहता और उमा द्वारा किसी बाहरी पुरूष से बातचीत करने पर भी रोक लगा देता है. यहां तक कि अपने परम मित्र बलवंत तक से रार ले लेता है जिससे कि उमा केवल अपना दुख प्रकट कर रही थी कि आखिर उनका मित्र क्यों इतना रूखा व्यवहार कर रहा है, हो सकता है कुछ गलती की हो मैंने लेकिन इतना सख्त व्यवहार ? उसी दौरान हरी वहां पहुंच जाता है और अपने मित्र को ताकीद देता है कि आज के बाद वह कभी बहू से बात न करे. जो कुछ कहना है घर के बाहर ही मुझसे कहे. दोनों दोस्तों में अनबन हो जाती है. समय बीतता है और उसी के साथ हरी द्वारा छोटे भाई की विधवा उमा के प्रति बेरूखी भी जारी रहती है जबकि उमा अपने जेठ द्वारा बरती गई सदाशयता और सहृदयता के कारण उसे अब भी बहुत मानती थी. विधवा होने के बाद जिस तरह हरी ने उसका साथ दिया वह एक विलक्षण बात थी लेकिन हरी द्वारा उसके प्रति कटा-कटा सा रहने वाला व्यवहार उसे असह्य हो जाता है.
एक वक्त ऐसा आता है कि उमा और बेरूखी बर्दाश्त नहीं कर पाती और अन्न जल त्याग देती है. उसकी तबियत से घर के सभी लोग चिंतित हो जाते हैं. वैद्य द्वारा समझाये जाने पर कि उमा की तबियत ज्यादा खराब है और उसे जल्द से जल्द भोजन कराना होगा, हरी चिंतित हो जाता है. वह अब अपनी बेरूखी पर अंदर ही अंदर पश्चाताप करने लगता है. उसे बात लग जाती है कि उसके ही कारण आज उमा की यह स्थिति बन आई है. तब हरी अपने उस मित्र के पास पहुंचता है जिससे बोलचाल बंद हो गई थी. उसे उमा की हालत का वास्ता देकर मनाता है कि चल कर उमा को भोजन करने कहे. मित्र तुरंत तैयार हो जाता है. उमा के सामने जाकर वह मनौवल करता है कि कुछ पी लो, खा लो लेकिन उमा नहीं मानती. अंत में बाहर खड़े हरी का धैर्य जवाब दे जाता है. वह कमरे में आता है और सभी लोग बाहर निकल जाते हैं. उसी दौरान उमा को वह राज बताता है कि उसने अब तक क्यों उसके प्रति बेरूखी अपनाई थी, क्यों अब तक कटा-कटा रहा था. दरअसल जब महादेव की मृत्यु हुई थी तो उसके बाद कौवों को भोजन खिलाने के समय कोई कौवा बहुत ज्यादा देर तक न आया था. तब हरी ने आगे बढ़कर बुदबुदाते हुए कहा था कि – महादेव मैं जानता हूं कि तुम्हारे प्राण उमा में अटके हैं, क्योंकि तुम प्रथम मिलन के समय ही शय्या पर मृत हुए थे, मैं प्रण करता हूं कि मेरे जीवित रहते कोई दूसरा पुरूष तुम्हारी पत्नी को स्पर्श न कर पायेगा. और उसके बाद ही तुरंत ढेर सारे कौवे आ गये थे. यह बात हरी के मन को लग गई थी और यही कारण था कि वह जीवन भर उमा के लिये अच्छा-अच्छा खाने पहनने का इंतजाम करने के बावजूद उसके करीब न हुआ. लेकिन अब जबकि उमा के मन में अपने प्रति इतना प्रेम देख रहा है, उसकी जान पर आई देख रहा है तो वह तैयार है उमा से विवाह करने के लिये.
उसी वक्त हरी अंदर जाकर अपनी पू्र्वपत्नी तारा का मंगलसूत्र लेकर लौटता है लेकिन उसके बाहर आते आते उमा अपने प्राण त्याग देती है. उमा के चेहरे पर मृत्यु पूर्व एक संतोष का भाव नजर आता है.
ऐसे में हरी के मन में एक फांस रह जाती है कि उमा की तबियत इतनी तो नहीं खराब थी कि अंदर के कमरे से मंगलसूत्र लाते-लाते उसके प्राण निकल जांय.
तब ?
और तब उसे एहसास होता है कि उमा उसे यानि हरी को इतना चाहती थी कि हरी द्वारा अपने छोटे भाई को दिया वचन कि ‘कोई अन्य पुरूष उसे स्पर्श न करेगा’ का मान रह जाय.
यहां फिल्म की कहानी संक्षेप में बताने का कारण यह है कि ऐसे लोग जो मराठी नहीं जानते, वे भी यदि थियेटर या सीडी आदि पर ‘काकस्पर्श’ देखें तो उन्हें समझने में आसानी हो. जिन लोगों को कोकण की प्राकृतिक छटा देखनी है वे भी इस फिल्म को जरूर देखें. देखें कि वहां की 1930 की वेशभूषा किस तरह की थी, लोगों का रहन सहन कैसा था.
इस फिल्म की एक और खास बात है ‘मराठी श्रमगीत’ जिनमें जांता डोलाते हुए गीत गाया जाता है, तो कभी दही मथने के दौरान गीत गाया जाता है. पहली बार रजस्वला होने पर महिलाओं द्वारा गाये जाने वाले ओव्ही गीत भी हैं तो एक गीत जो मैं बचपन से सुनते आया हूं वह कई बार बजा है जिसके बोल हैं –
महेश मांजरेकर और उनकी पूरी टीम को बधाई इस शानदार फिल्म के लिये. उम्मीद करता हूं इस फिल्म को हिन्दी के अलावा और भाषाओं में भी डब की जाय ताकि और लोग इस बेहतरीन फिल्म का आनंद ले सकें.
- सतीश पंचम
हाल ही में जब मुंबई के चित्रा सिनेमा में यह फिल्म देखा तो जो पहली प्रतिक्रिया मन में उभरी वह यही कि जो मुकाम ऑस्कर प्राप्त फिल्म ‘THE ARTIST’ को हासिल है, काकस्पर्श भी लगभग उसी मुकाम को हासिल करने की सहज हकदार है. हांलाकि दोनों फिल्मों की विषयवस्तु भिन्न है, दोनों का कथानक बिल्कुल अलग है, दोनों फिल्मों की मानसिकता अलग है, लेकिन दोनों फिल्मों में जो चीज कॉमन है वह है ‘टाईम फ्रेम’ और उस टाईम फ्रेम को प्रस्तुति का सलीका. जी हां, यह फिल्म सन् 1930-31 के आसपास के टाईम फ्रेम को कैप्चर करती है, ठीक उसी 1930-31 के टाईम फ्रेम को जिसे The Artist फिल्म में ब्लैक एण्ड वाइट के जरिये फिल्माया गया है. लेकिन काकस्पर्श उस ब्लैक एण्ड वाइट से अलग हटकर अपनी पूरी रंगीनियत के साथ पर्दे पर उतरती है. हरा भरा कोंकण इलाके का माहौल, वहां की शीतलता, वहां की ठसक सब पर्दे पर जैसे साकार हो जाते हैं.
फिल्म में कोंकण क्षेत्र में रहने वाले एक ब्राह्मण परिवार की कथा है जिसका मुखिया हरी (सचिन खेडेकर) है. प्रगतिशील विचारों वाला हरी मंदिर में बलि देने जैसी प्रथा का विरोधी है, कई बार रूढ़िवादियों को आड़े हाथों ले चुका है, ब्राह्मण समाज का कोप भी झेल चुका है. उन्हीं दिनों चल रही बालविवाह की प्रथानुसार हरी अपने छोटे भाई महादेव की सगाई हेतु कोंकण के ही एक गाँव जाता है. लड़की देखी जाती है, हरी उस लड़की से उसका नाम पूछता है, उसकी पढ़ाई के बारे में पूछता है और आश्वस्त होकर छोटे भाई महादेव का विवाह उस बालिका से कर देता है. विवाहोपरान्त अगले दिन महादेव को मुंबई जाना है अपनी पढ़ाई के लिये लेकिन अभी-अभी शादी हुई है, नई नवेली दुल्हन उमा घर में है और उससे विदा लेना महादेव को अच्छा नहीं लगता. तभी दोनों के बीच चल रही घिचपिच को देख महादेव की भाभी तारा यानि हरी की पत्नी अपने देवर को इशारा करती है कि फणस (कटहल) तब तक नहीं खाना चाहिये जब तक पका न हो. जाहिर है, यह कूट शब्दावली उस बालिका वधू उमा के लिये थी जो अभी शारीरिक और मानसिक तौर पर तैयार नहीं है. महादेव लजा जाता है.
समय बीतता है और एक दिन उमा रजस्वला होती है. महादेव की भाभी तारा को पता चलता है कि देवरानी अब बड़ी हो गई है तो प्रथानुसार उसके बड़े होने पर परिवार में समारोह होता है, महिलायें मंगल गीत गाती हैं. तारा अपने देवर को संदेशा भेजती है कि उसकी पत्नी उमा अब बड़ी हो गई है, फलशोधन विधी ( प्रथम मिलन ) का समय नजदीक है. फलां तारीख को पूजा आदि रखी गई है समय पर आ जाना. पत्र पढ़कर महादेव खुश होता है लेकिन उसकी तबियत खराब हो जाती है. किसी तरह गिरते पड़ते घर पहुंचता है. उसका भाई हरि चिंतित होता है कि इसकी खराब तबियत में विधि कैसे हो. लेकिन दूसरों की सलाह पर महादेव तैयार हो जाता है कि पूजा पर बैठेगा. कार्यक्रम तय समय पर शुरू होता है और पूजा में रह रहकर महादेव को खराब तबियत की वजह से दिक्कत होती है. उधर तारा और महादेव दोनों चिंतित होते हैं. किसी तरह पूजा पाठ का कार्यक्रम खत्म होता है और सुहागरात का समय आता है. इधर दुल्हन बनी उमा सेज पर बैठी है और लड़खड़ाते कदमों से महादेव कमरे में प्रवेश करता है. उमा को अपने ओक में भरना चाहता है लेकिन खराब तबियत उसे ऐसा करने नहीं देती. एक दो बार हाथ आगे बढ़ा उमा के चेहरे को देख उसकी ओर ताकता है और सेज पर ही धराशायी हो जाता है. उसकी तुरंत ही मृत्यु हो जाती है.
पूरे परिवार पर वज्रपात हो जाता है. उमा को अभी से अपनी दुनिया वीरान लगने लगती है. भाई की मौत से टूटा हुआ हरी मृ्त्युपरांत क्रियाकर्म के दौरान कौओं को भोजन रखता है लेकिन कोई कौआ नहीं आता, दोपहर होने लगती है और आसपास खड़े लोगों की बेचैनी के बीच हरी आगे बढ़ कुछ बुदबुदाता है और कौवे आ जाते हैं.
उधर घर में एक बूढ़ी विधवा गाँव के नाई को बुला लाती है ताकि उमा के सिर के बाल काटे जांय, उसे विधवारूप दिया जाय, लेकिन हरी अड़ जाता है कि उमा के बाल नहीं काटे जायेंगे वह जैसे रहना चाहे रह सकती है. लोग तरह तरह के आरोप लगाते हैं कि हरी हमेशा धर्म के विरूद्ध जाता है, मंदिर में भी बलि प्रथा का विरोध किया यह उसी का कुफल है लेकिन हरि किसी की नहीं सुनता और उमा का पक्ष लेता है. घर में पूजा-पाठ के दौरान बूढ़ी विधवा अत्या चाहती है कि उमा घर में पूजा-पाठ में न रहे, उसके हाथ का पानी ईश्वर को नहीं चलेगा लेकिन यहां भी हरि अड़ जाता है कि ईश्वर की पूजा उमा ही करेगी. हरी की पत्नी तारा को अपने पति द्वारा उमा का इतना ज्यादा पक्ष लेना अजीब लगता है. धीरे-धीरे उसे शक होने लगता है कि कहीं उसके पति उमा पर आसक्त तो नहीं. उधर उमा अपने जेठ हरि द्वारा जताई गई सहानुभूति से अभिभूत होती है. उसे लगने लगता है कि इस घर में उसकी देख-रेख करने वाला कोई तो है. उमा के मायके से उसके पिता आते हैं कि कुछ दिनों के लिये उमा को लिवा जांय लेकिन हरी विरोध करता है कि नहीं उमा का यहां विवाह हुआ है, अब वह यहीं रहेगी. हरी की पत्नी तारा को अजीब लगता है कि आखिर उसके पति उमा को उसके मायके जाने क्यों नहीं दे रहे. इस बीच तारा को अचानक पेट की गंभीर बीमारी जकड़ लेती है. उसे बिस्तर से उठने बैठने की मनाही है. ऐसे में घर का सारा कार्य उमा के सिर आ जाता है. जेठ हरी के लिये कपड़ों का इंतजाम करना, तारा के बच्चों के लिये भोजन आदि का इंतजाम करना और ऐसे तमाम काम जोकि तारा अब तक करती रही है. चूंकि वैद्य के अनुसार तारा को पेट की बीमारी है और ऐसे में उससे कोई भी शारीरिक काम नहीं लेना है, तारा का पति हरि घर के बाहर ओटले पर सोता है. उसी दौरान तारा को अंदर ही अंदर शक होने लगता है कि कहीं उमा और हरि के बीच कुछ चल तो नहीं रहा. यही जानने के लिये तारा बिस्तर से उठ जाती है और जब देखती है कि उसके पति बाहर ओटले पर अकेले सो रहे हैं तो समाधान पाकर वापस मुड़ने को होती है लेकिन वहीं लड़खड़ाकर गिर जाती है. हरी की नींद खुल जाती है और तारा को उठाकर बिस्तर पर ले जाया जाता है. वहां तारा को पश्चाताप होता है कि उसने नाहक अपने पति पर शक किया लेकिन गंभीर बीमारी और अपने बच्चों की चिंता के बीच वह उमा से कहती है कि मेरे मरने के बाद तुम जेठ हरी से शादी कर लेना. दूसरी कोई आएगी तो मेरे बच्चों को नहीं देखेगी. उमा हक्का बक्का रह जाती है. उसे समझ नहीं आता कि यह क्या कहा जा रहा है. हरी भी हतप्रभ रहता है. बीमारी में की गई बकबक समझ ज्यादा तवज्जो नहीं देता. अगले ही दिन तारा की मृत्यु हो जाती है.
अब परिवार में हरी है, तीन बच्चे हैं, एक बूढी विधवा अत्या है, और हाल ही में विधवा हुई उमा है. गांव के लोग तरह तरह की बातें करेंगे सोचकर बूढ़ी अत्या हरी से कहती है कि अब वह उमा से विवाह कर ले, वह भी उसे चाहती है लेकिन हरी तैयार नहीं होता. हां, इतना जरूर करता है कि उसके रहने-खाने, या कपड़ों आदि की कोई कमी न होने पाये. लोगों को बातें बनाने का मौका न मिले इसलिये ज्यादातर उमा से कटा-कटा रहने लगता है. समय बीतता है और बच्चे बड़े होते हैं. उन्हीं में से एक की जब शादी होती है तो बगल के कमरे में नवविवाहित जोड़े की आपसी बातें सुनकर उमा उनके दरवाजे के करीब कान लगाकर सुनती है. उन दोनों की बातें सुन रोमांचित होती है और तभी उसके सामने नजर आता है हरी जो गुस्से से उमा की इस हरकत को देख रहा था. उमा का जी धक् से हो जाता है कि जाने हरी उसके बारे में क्या सोचें. वह बिस्तर पर जाकर रो पड़ती है. अगले दिन जब हरी को उमा राशन लाने की लिस्ट देती है तो हरी सीधे न लेकर नौकर के हाथ से लेता है. अब से उमा के प्रति वह एक किस्म की बेरूखी दर्शाता है. लगातार एक ही घर में रहते हुए हरी द्वारा किये जा रहे इस अन्जाने व्यवहार से उमा आहत सी होती है. उसे समझ नहीं आता कि हरी आखिर ऐसा क्यों कर रहे हैं. उधर हरी गांव वालों को बातें बनाने का मौका नहीं देना चाहता और उमा द्वारा किसी बाहरी पुरूष से बातचीत करने पर भी रोक लगा देता है. यहां तक कि अपने परम मित्र बलवंत तक से रार ले लेता है जिससे कि उमा केवल अपना दुख प्रकट कर रही थी कि आखिर उनका मित्र क्यों इतना रूखा व्यवहार कर रहा है, हो सकता है कुछ गलती की हो मैंने लेकिन इतना सख्त व्यवहार ? उसी दौरान हरी वहां पहुंच जाता है और अपने मित्र को ताकीद देता है कि आज के बाद वह कभी बहू से बात न करे. जो कुछ कहना है घर के बाहर ही मुझसे कहे. दोनों दोस्तों में अनबन हो जाती है. समय बीतता है और उसी के साथ हरी द्वारा छोटे भाई की विधवा उमा के प्रति बेरूखी भी जारी रहती है जबकि उमा अपने जेठ द्वारा बरती गई सदाशयता और सहृदयता के कारण उसे अब भी बहुत मानती थी. विधवा होने के बाद जिस तरह हरी ने उसका साथ दिया वह एक विलक्षण बात थी लेकिन हरी द्वारा उसके प्रति कटा-कटा सा रहने वाला व्यवहार उसे असह्य हो जाता है.
एक वक्त ऐसा आता है कि उमा और बेरूखी बर्दाश्त नहीं कर पाती और अन्न जल त्याग देती है. उसकी तबियत से घर के सभी लोग चिंतित हो जाते हैं. वैद्य द्वारा समझाये जाने पर कि उमा की तबियत ज्यादा खराब है और उसे जल्द से जल्द भोजन कराना होगा, हरी चिंतित हो जाता है. वह अब अपनी बेरूखी पर अंदर ही अंदर पश्चाताप करने लगता है. उसे बात लग जाती है कि उसके ही कारण आज उमा की यह स्थिति बन आई है. तब हरी अपने उस मित्र के पास पहुंचता है जिससे बोलचाल बंद हो गई थी. उसे उमा की हालत का वास्ता देकर मनाता है कि चल कर उमा को भोजन करने कहे. मित्र तुरंत तैयार हो जाता है. उमा के सामने जाकर वह मनौवल करता है कि कुछ पी लो, खा लो लेकिन उमा नहीं मानती. अंत में बाहर खड़े हरी का धैर्य जवाब दे जाता है. वह कमरे में आता है और सभी लोग बाहर निकल जाते हैं. उसी दौरान उमा को वह राज बताता है कि उसने अब तक क्यों उसके प्रति बेरूखी अपनाई थी, क्यों अब तक कटा-कटा रहा था. दरअसल जब महादेव की मृत्यु हुई थी तो उसके बाद कौवों को भोजन खिलाने के समय कोई कौवा बहुत ज्यादा देर तक न आया था. तब हरी ने आगे बढ़कर बुदबुदाते हुए कहा था कि – महादेव मैं जानता हूं कि तुम्हारे प्राण उमा में अटके हैं, क्योंकि तुम प्रथम मिलन के समय ही शय्या पर मृत हुए थे, मैं प्रण करता हूं कि मेरे जीवित रहते कोई दूसरा पुरूष तुम्हारी पत्नी को स्पर्श न कर पायेगा. और उसके बाद ही तुरंत ढेर सारे कौवे आ गये थे. यह बात हरी के मन को लग गई थी और यही कारण था कि वह जीवन भर उमा के लिये अच्छा-अच्छा खाने पहनने का इंतजाम करने के बावजूद उसके करीब न हुआ. लेकिन अब जबकि उमा के मन में अपने प्रति इतना प्रेम देख रहा है, उसकी जान पर आई देख रहा है तो वह तैयार है उमा से विवाह करने के लिये.
उसी वक्त हरी अंदर जाकर अपनी पू्र्वपत्नी तारा का मंगलसूत्र लेकर लौटता है लेकिन उसके बाहर आते आते उमा अपने प्राण त्याग देती है. उमा के चेहरे पर मृत्यु पूर्व एक संतोष का भाव नजर आता है.
ऐसे में हरी के मन में एक फांस रह जाती है कि उमा की तबियत इतनी तो नहीं खराब थी कि अंदर के कमरे से मंगलसूत्र लाते-लाते उसके प्राण निकल जांय.
तब ?
और तब उसे एहसास होता है कि उमा उसे यानि हरी को इतना चाहती थी कि हरी द्वारा अपने छोटे भाई को दिया वचन कि ‘कोई अन्य पुरूष उसे स्पर्श न करेगा’ का मान रह जाय.
यहां फिल्म की कहानी संक्षेप में बताने का कारण यह है कि ऐसे लोग जो मराठी नहीं जानते, वे भी यदि थियेटर या सीडी आदि पर ‘काकस्पर्श’ देखें तो उन्हें समझने में आसानी हो. जिन लोगों को कोकण की प्राकृतिक छटा देखनी है वे भी इस फिल्म को जरूर देखें. देखें कि वहां की 1930 की वेशभूषा किस तरह की थी, लोगों का रहन सहन कैसा था.
इस फिल्म की एक और खास बात है ‘मराठी श्रमगीत’ जिनमें जांता डोलाते हुए गीत गाया जाता है, तो कभी दही मथने के दौरान गीत गाया जाता है. पहली बार रजस्वला होने पर महिलाओं द्वारा गाये जाने वाले ओव्ही गीत भी हैं तो एक गीत जो मैं बचपन से सुनते आया हूं वह कई बार बजा है जिसके बोल हैं –
अरे संसार संसार, जसा तवा चुल्ह्यावर
आधी हाताला चटके, तेव्हा मिळते भाकर
( यह सांसारिक जीवन चूल्हे पर रखे गर्म तवे की तरह है, इससे पहले उंगलीयां जलती हैं और तब जाकर कहीं भोजन मिल पाता है)
- सतीश पंचम