शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

जागरण

प्रार्थना के अर्घ्य सम
अलस मंत्र गीति लय
निशा जागरण आँजुरी भर
पीना चाहता हूँ।

प्रात नव स्निग्ध नम
रक्तिम नींद अधर पर
ले चुम्बन एक पलक भर
सोना चाहता हूँ।

न कहना -
जागना चाहता हूँ!

_______________


गिरिजेश राव 

गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

और वे मंत्र हो गये!

समझता हूँ स्पर्श तुम्हारे नयनों के 
लालिमा फूटती भी है गह्वर में 
उलझा निज विधा सायास 
रोकता हूँ रुख तक आने से 
आ गयी जो 
नयन वही होंगे तुम्हारे 
किंतु स्पर्श खो जायेंगे 
तुम्हारा यूँ निहारना मुझे 
रुचता है, मोहता है 
मैं खोना नहीं चाहता 
रोकता हूँ लालिमा निज की इसलिये।
जाने कितने क्षण अक्षण हुये 
ऐसे में कुछ किया नहीं मैंने 
बस अपने गीतों को 
तुम्हारा नाम दिया 
और वे मंत्र हो गये!
_______________

~ गिरिजेश राव 

शनिवार, 23 नवंबर 2013

हुई लाल!



साँझ को 
निशा निमंत्रण 


सूरज ने फेरा हाथ 
गोरी गंगा लाज 

हुई लाल! 

रविवार, 10 नवंबर 2013

आवश्यक है रचना

आवश्यक है रचना एक शृंगार कविता 
तुम्हारी कमर सीधी करती भंगिमा पर
जैसे आवश्यक है तुम्हारा मुस्कुराना 
ऐनक काँच जमी मेरी अंगुलियों पर 
ये दवा हैं उस रोग की जिसे आयु कहते हैं 
आयु देह की नहीं, आयु मन की नहीं 
आयु प्रेम की जिसकी हर साँस पहरे हैं - 
वाद के, कृत्रिम उपचार के, कथित यथार्थ के
आवश्यक है झूठ होना, दुखना, दुखाना
इस युग तो सही सुख की बातें सभी करते हैं!

बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

साखी

रात नम तुम्हारे होठों की तरह
लाज की बात है आँखें मूँदनी हैं
मुझे चूमनी हैं साँसें अंधकार में
ऊष्ण उड़ेगी निविड़ में प्रीत सन
प्रात कसे जग हमें जो शुचिता पर
साखी होंगी बूँदें टँगी दूब पर!
___________
- गिरिजेश राव 201310302254