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Thursday 18 December 2008

बहुत समानता है देहाती औरतों के झगडे और आमिर-शाहरूख के झगडे में :)


कभी आपने देहाती औरतों को लडते हुए देखा है - हाथ चमका-चमका कर झगडा करेंगी और साथ ही साथ अपना काम भी करते जाएंगी । इस झगडे मे धीरे-धीरे आस पडोस की अन्य औरतों के नाम आते जाएंगे और झगडा करने वालियों की संख्या बढती जाएगी, कभी कोई कहेगी - तू अपने वाले को क्यों नहीं देखती, दिन भर दीदा फाड कर यहां वहां आने-जाने वालियों को देखा करता है तो दूसरी कहेगी - और जो तेरा वाला झिंगुरी की बहुरिया से लटर-पटर करता है, वो -उसे कौन कोठार में तोपेगी। बस इतना कहना होगा कि झिंगुरी की बहुरिया मैदान में हाजिर, फिर क्या - ऐसे-ऐसे देसी घी में तले हुए शब्द सुनने मिलेंगे कि बस , आप सुनते जाईये, लेकिन एक बात जो देखने मिलेगी वो ये कि इनका काम कभी नहीं रूकता, उसी हाथ को चमका कर झगडा भी करेंगी, उसी हाथ से बच्चों के नाक को भी पोछती रहेंगी और उसी हाथ से जरूरत पडने पर एक दूसरे के बाल पकडकर झोटउवल भी कर लेंगी, लेकिन इनका काम नहीं रूकेगा। एक दो दिन की मुह फूला-फूली के बाद खुद ही मेल-मेलौवल भी कर लेंगी।
कुछ यही हाल आपको बॉलीवुड में भी देखने मिलेगा, एक फिल्म स्टार दूसरे को गरियाता ही दिखेगा, कभी शाहरूख, अमिताभ को कुछ कहते सुने जाएंगे , तो कभी आमिर अपने को शाहरूख से आगे बताएंगे। अभी हाल ही में आमिर और शाहरूख ने अपने आप को नंबर वन घोषित मानते हुए एक दूसरे पर छींटाकशी की है, इस बीच सलमान ने झगडे में कूदते हुए आमिर के शर्ट उतार कर गजनी में एक्टिंग करने पर चुटकी ली है - ठीक झिंगुरी की बहुरिया की तरह जो दो लोगों के झगडे में फट् से कूद गई और अपने मन में उठते डाह को सार्वजनिक करने से नहीं चूकी। अभी कुछ दिन पहले सलमान और अमिताभ में ठनी थी। दोनों एक दूसरे को देखना या आमने-सामने पडने तक से बचते दिख रहे थे, पता चला दोनों में बाद में मेल-मिलौवल हो गया है और दोनों ही एक फिल्म - गॉड तुस्सी ग्रेट हो - में एक साथ काम किये, यानि इनका काम कभी नहीं रूकता, चाहे जितना आपस में सिर-फुटौवल कर लें।

इस बीच ये सिर-फुटौवल कभी-कभी दिखावटी भी होती है - फिल्म को प्रमोट करने के लिए, राखी जैसी तो इस मामले में उस्ताद महिलाएं है ही - कभी मिका को लेकर हलकान रहेंगी तो कभी किसी टी वी शो को लेकर, और रह रह कर इनके काम करने के रेट बढते रहते हैं, यानि फिर वही बात - काम नहीं रूकना चाहिए, क्योंकि काम रूक जाएगा तो झगडा किस लिए करेंगे।
कभी-कभी सोचता हूं कि इन लोगों से अच्छी तो देहाती औरते हैं जो मन लगा कर झगडा करती है, इन लोगों की तरह झगडा करने के पैसे तो नहीं लेतीं।
:)

- सतीश पंचम


( आमिर-शाहरूख और सलमान के बीच चली बतकूचन पर यह पोस्ट कुछ परिवर्तनों के साथ फिर से प्रकाशित )



Saturday 13 December 2008

बच्चों के स्कूल में चल रही महिलाओं की एक बतकूचन (वाकया)


कभी-कभी आस पास खडे लोगों की बातें सुनने से भी ज्ञान-चक्षु खुलते हैं। ऐसा ही एक वाकया हुआ है। अक्सर शनिवार के दिन मैं ही बच्चों को स्कूल से लाने और ले जाने का काम निपटाता हूँ , जो कि अक्सर श्रीमती जी ही करती हैं। हफ्ते में पाँच दिन की वर्किंग होने पर शेष दो दिनों में से एक दिन पत्नी के हवाले ही सही :) खैर, जब भी स्कूल जाता हूँ तो बडा अजीब लगता है। ज्यादातर महिलायें ही अपने बच्चों को लाने ले-जाने के लिये आती हैं। पुरूष कम ही दिखते हैं, ज्यादातर अपने Duty time पर होने की वजह से ही शायद । ऐसे मे थोडा अलग हट कर खडा होना पडता है, एक तो जगह कम उपर से अगल बगल बतकूचन करती महिलाओं की बातें सुनों तो हँसी रोके न रूके। कोई अपनी सास की निंदा करती है तो कोई अपनी साडी के इतिहास को बयान करती है - ये वाली दादर से ली है पल्लरी शो रूम से....उधर बहुत महंगा मिलता है। जाने पर ठंडा एसी एकदम कूल कर देता है। कोई कहती है मेरा लडके का कपडा कल Cambridge ( शो-रूम) से लिया था कहते वक्त यह भाव होता है जैसे कि बेटा Cambridge में ही पढ रहा है :) यदि ऐसी ही ढेरों बातें सुनते रहें और पकने की क्षमता हो तो और भी गूढ बातें पता चलें पर जल्द ही मैं ऐसी बातों से पकने लगता हूँ।

बच्चों के स्कूल से ही सटा एक कॉलेज भी है। वहाँ पर शायद कोई साडी डे मनाया जा रहा था। लडके कोट पैंट पहने आये थे, लडकियाँ साडी पहने। जिस जगह मैं खडा था वहाँ बगल में ही कोई घर था। उसके सामने ढेरों कॉलेज की लडकियाँ जमा थीं। एक भीतर जाती तो दूसरी बाहर इंतजार करती। दूसरी निकलती तो तिसरी....इस तरह लडकियाँ जा-आ रहीं थी। थोडा ध्यान देने पर पता चला कि आज साडी डे है, कई लडकियों को साडी बाँधने नहीं आती, सो वे इस घर की नई बहू के द्वारा ढंग से साडी पहन रही हैं। कई लडकियों के इस तरह आ जाने से शायद उस घर की मालकिन यानि उस महिला की सास को अच्छा नहीं लग रहा था कि बार-बार लडकियाँ आयें और इस तरह घर में भीड-भाड हो। खैर, जैसे तैसे इस मची हुई बमचक को झेल रहा था कि तभी आस पास खडी महिलाओं के बीच चली चर्चा ने ध्यान खींचा।

मेरे बगलवाली के बच्चे लोग बडे स्कूल में पढते है, उधर भी ऐसे ही कुछ न कुछ डे वगैरह रहता है। उन लोगों की शनिवार-रविवार को छुट्टी रहती है।

इन लोगों को भी देनी चाहिये छुट्टी।

हाँ क्यों नहीं, छुट्टी होने से सबको लगेगा तो सही कि बडा स्कूल है।


यह कहकर वे सभी आपस में हँस पडीं। मुझे यह नई बात पता चली कि यदि Five day working हो तो वह संस्थान बडा माना जाता है। बच्चों को स्कूल से ले वापस लौटानी में काफी देर तक मैं उस महिला की बात को मन ही मन घोंट-पीस रहा था - क्या नायाब नुस्खा है.....हफ्ते में दो दिन की ऑफिशियल छुट्टी रखो और बडे बन जाओ :)

- सतीश पंचम

Saturday 6 December 2008

फाफामऊ वाली पतोहू और सकलदीप की माई


अचार बनाते समय रमदेई ने फाफामऊ वाली पतोहू को तनिक हाथ धोकर ही छूने-छाने को क्या कह दिया, फाफामऊ वाली तो आज उधान हो गई है। रह-रहकर अपना काम करते समय सामने आ जाती है और तीखे व्यंगबाण छोडती है -

कुछ काम तो है नहीं, बस राबडी देवी की तरह तर्जनी अंगुरी उठा कर लहकारे रहेंगी कि, छू-छा मत करो.....हाथ धो लो.....हुँह, जैसे हम कोई छूतिहर हैं, बेटा को हमसे बियाहे बेला नहीं देखा था कि साफ सुथरी हैं कि नहीं, आज आई हैं हमें सफाई दिखाने।

रमदेई भी क्या करें, जब तक जांगर था अपने हाथ की कर-खा लेती थी, अब तो जब खुद की देह ढल गई है तब औरों को क्या दोस दे। सदरू अलग इस रोज-रोज की किच-किच से परेशान रहते थे। खैर, जैसे तैसे दिन बीत रहे थे, यह मानकर संतोख कर लेते कि, जहाँ चार बासन होंगे वहाँ पर आपस में बजेंगे ही। सदरू यही सब सोचते अपने दरवाजे पर बैठे हुए थे।

उधर फाफामऊ वाली पतोहू आँगन में एक बोरा बीछा कर उस पर बैठ अपने छोटे लडके को उबटन लगा रही थी। उबटन साडी में न लग जाय इसलिये घुटनों तक साडी को उपर भींच लिया था, दोनों पैरों को सामने की ओर रखकर, उसके उपर बच्चे को लिटाकर उबटन मलते हुए तो फाफामऊ वाली को कोई नहीं कह सकता कि यह झगडालू है, उस समय तो लगता है कि ये सिर्फ एक माँ है जो अपने बेटे को उबटन लगा कर, मल-ओलकर साफ सुथरा कर रही है। इधर बेटा अपनी मां को देखकर ओठों से लार के बुलबुले बनाता अपनी बुद् बुबद् .....बद्....की अलग ही ध्वनि निकाले जा रहा था। तभी दरवाजे पर किसी के आने की आहट हुई।

कौन.....बिमला....आओ आओ।

अरे क्या बेटवा को उबटन लगा रही हो......और देखो तो कैसे मस्त होकर उबटन लगवाये जा रहा है......बिलकुल मेरे सकलदीप की तरह।

सकलदीप की तरह, हुँह आई है बडी जोड मिलाने वाली......कहाँ मेरा लल्ला और कहाँ इसका नाक चुआता सकलदीप। मन ही मन भुनभुनाते हुए पतोहू ने कहा - अम्मा उधर रसोई में हैं।

फाफामऊ वाली के इस तेवर से बिमला समझ गई आज लगता है खटपट हुई है घर में। फिर भी थोडा सा माहौल को सहज करने की कोशिश करते हुए कहा - अरे हैं तो हैं, क्या हो गया, क्या मैं तुमसे ही मिलने नहीं आ सकती..........आई बडी अम्मा वाली।

पतोहू को अब जाकर थोडा महसूस हुआ कुछ गलत हो गया है.......भला क्या जरूरत बाहर वालों के सामने अपना थूथन फुलाये रखने की। संभलते हुए बोली - अरे नहीं, उबटन से मेरा हाथ खराब है न सो मैंने सोचा कोई लेने देने में तुम्हें अनकुस न लगे, तभी अम्मा की ओर बताया था। बैठो-बैठो, और कहो - क्या हाल है घर ओर का।

बिमला को अब दिलासा हुई कि चलो अभी थोडा ही गदहा खेत खाया है। बैठने के लिये लकडी की छोटी पीढी को अपनी ओर खींचती हुई बिमला ने अपने घर की बिपदा बयान करनी शुरू की। अरे क्या कहूँ बहिन - मेरी सास तो एकदम आजकल भगतिन हो गई है, कहती है बरतन ठीक से माँजो, तनिक साफ-सफाई का ख्याल करो....... हाथ धो-धाकर ही अचार छुओ।

फाफामऊ वाली का जी धक् से हो गया - हाथ धो-धाकर ही अचार छुओ........ये क्या कह रही है। यही बात तो आज के झगडे की जड बना है। और ये बडकी सहुआईन वही कह रही हैं जो मेरी सास ने कहा। अरे अभी सुन लें तो मेरे घर में फिर महाभारत मच जाय। सोचेंगी न समझेंगी बस, यही कहेंगी कि ऐसे घर-फोरनियों के ही कारन सब घर बिगडते जा रहे हैं। खुद कुछ काम न करेंगी और दूसरों के घर काम बिगाडने चल देंगी। पतोहू ने सोचा अब कोई दूसरी बात करू नहीं तो ये अपना रूदन लेकर बैठी रहेगी और सुनना मुझे पडेगा।

अच्छा सकलदीप कैसा है

वो तो ठीक है, उसको क्या होगा.....जो होगा मेरी अम्मा को ही होगा.......उसे देखकर कहती हैं कि कितना खाता है रे घोडमुंहा.....पेट है कि मडार।

इधर पतोहू सोच में पड गई - फिर वही सास की बात, अभी अम्मा रसोई में सुन ले तो हाथ में जलती लुक्की लेकर दौडेंगी। इसे अब सीधे-सीधे दूसरी बात करने के लिये कहूँ वही ठीक होगा।

अच्छा अब दूसरी बात करो, क्या वही पुरानी-धुरानी लेकर बैठी हो.....और सुनाओ......छुटकी का क्या हाल है।

पुरान-धुरान बात.......... बिमला को अब भी पतोहू के असली मंतव्य का पता न चल रहा था कि किसी तरह बात सास से हटकर किसी और मुद्दे पर आ जाय लेकिन वह माने तब न। कुढते हुए बोली - अरे इसे पुरान-धुरान बात कह रही हो......ये तो अब पुराना होने से रहा......रोज ही ऐसी और कई बातें नये ढंग से मेरे घर में होती हैं, वो तो मैं हूँ जो संभाल ले जाती हूँ......मेरी सास का चले तो........।

बिमला की बात अधूरी रह गई......रसोई से बाहर निकलते रमदेई ने कहा - ए सकलदीप के माई,.... तनिक हाथ लगा दो तो छत पर सूखते मकई को उतार लूँ।

फाफामऊ वाली पतोहू समझ गई........ अम्मा जान गई हैं कि मैं बात टाल रही हूँ और ये बतफोरनी मुझसे बार-बार सास-बेसास करे जा रही है, उसे चुप कराने के लिये ही अम्मा ने अपने काम में उसको लगा दिया है। ये बतफोरनी काम में लगी रहेगी और बात बदल जायगी। आज पहली बार अपनी सास पर मन ही मन गर्व हो रहा था फाफामऊ वाली को.....झगडा और झगडे की जड को कैसे ढंका-तोपा जाता है यह कोई रमदेई अम्मा से सीखे।

उधर सदरू आँगन से बाहर बैठे अपने बडे पोते बड्डन के साथ खेल रहे थे - बड्डन ने दो चुंबक अपने हाथ में लेकर उन्हें चिपकाने की कोशिश कर रहा था। दोनों चुंबकों के समान ध्रुवों के N-N पोल को जोडता, लेकिन वो दूर भागते....जैसे ही N- S पोल को जोडता, वह चिपक जाते। सदरू यह सब बडे मगन होकर देख रहे थे - उन्हें लग रहा था - सकलदीप की माई बिमला और मेरी पतोहू इस N-N पोल की तरह हैं, जितना ही सास का नाम लेकर सकलदीप की माई चिपकने की कोशिश करती, पतोहू उतनी ही जोर लगाकर बात बदलने की कोशिश करती है। जैसे ही रमदेई और सकलदीप की माई का संवाद चला, विरोधी ध्रूव जुड गये, N-S पोल की तरह। जरूरी नहीं कि आपस में विचार मिलते हो तो घनिष्ठता बढे ही......इसका उल्टा भी हो सकता है, ठीक चुंबक की तरह।
उधर छत के उपर से रमदेई सूखी मकई कि चेंगारी भर कर पकडा रही थी,सकलदीप की माई बिमला नीचे खडी अपने दोनों हाथों से चेंगारी थाम रही थी। तभी चुंबक से खेलते हुए पोते ने कहा - दद्दा ये देखो....एक चुंबक उपर है, उससे चिपका दूसरा नीचे से लटक रहा है, गिरता भी नहीं। सदरू ने देखा....उपर वाले चुंबक का N पोल, नीचे वाले चुंबक के S पोल से जुडा था ।

- सतीश पंचम

फोटो ब्लॉग 'Thoughts of a Lens'

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