आज का दिन बहुत खुशगवार गुज़रा...जब से नोएडा आया हूं शायद पहली बार अपने वीकली ऑफ का इतना बढ़िया सदुपयोग हुआ...इरफ़ान भाई ने दस-पंद्रह दिन पहले ही वादा ले लिया था कि आज कि दोपहर कोई ज़रूरी काम न रखूं...
इरफ़ान नाम ऐसा है जो आज किसी परिचय का मोहताज नहीं...कार्टून की दुनिया में इरफ़ान को देश में वही मकाम हासिल है जो सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट में, अमिताभ बच्चन को बॉलीवुड में और समीर लाल समीर को ब्लॉगिंग में...पिताजी के अस्वस्थ होने की वजह से मैं शनिवार को मेरठ में था लेकिन इतवार को सुबह ही नोएडा आ गया...इरफ़ान भाई की सख्त इंस्ट्रक्शन थी कि दो बजे मैं प्रेस क्लब में मौजूद रहूं...
इरफ़ान भाई के चेहरे पर प्रदर्शनी की कामयाबी की खुशी
शुक्र हो मेट्रो का जिसने दिल्ली में कहीं आना-जाना आसान कर दिया है...मैं टाइम से बस दस-पंद्रह मिनट लेट प्रेस क्लब पहुंच गया...इरफ़ान भाई उस वक्त थोड़ी देर के लिए कहीं गए थे...प्रेस क्लब की गैलरी में इरफ़ान के कॉर्टून करीने से सजे हुए थे...विषय था
वेल्थ गेम्स 2010...कॉमनवेल्थ गेम्स की गफ़लत को लेकर सरकार, दिल्ली सरकार और आर्गनाइजिंग कमेटी पर इरफ़ान की दिमागी कूची के एक से बढ़ कर एक चुटीले प्रहार...
सारे कॉर्टून्स का अवलोकन कर ही रहा था कि प्रेस क्लब के सर्वेसर्वा
पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ नज़र आ गए...उनके साथ ही प्रेस क्लब के एक और पदाधिकारी नरेंद्र भल्ला खड़े थे...दोनों कार्यक्रम की तैयारी को अंतिम रूप दे रहे थे...पुष्पेंद्र से चार-पांच साल पहले मिला था...दुआ-सलाम हुई..इस बीच स्निफर डॉग ने आकर आयोजन स्थल को खंगालना शुरू कर दिया...दरअसल चीफ गेस्ट पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी का आने का वक्त तीन बजे निर्धारित था...उससे पहले ही सिक्योरिटी वालों ने आकर अपनी पोजीशन ले ली थी...
इस बीच
शुक्रवार पत्रिका के संपादक प्रदीप पंडित आ पहुंचे...इरफ़ान शुक्रवार मैगजीन के लिए भी कॉर्टून और सज्जा का काम देखते हैं...सबकी आंखें इरफ़ान भाई को ही ढूंढ रही थी...इरफ़ान भाई तब तक भाभी
आरती जी और बच्चो
सरगम और
अपूर्व के साथ आ पहुंचे...वो उन्हें ही लेने गए थे...
घड़ी की सुई ने जैसे ही तीन बजाए...प्रेस क्लब के गेट पर हलचल शुरू हो गई...आडवाणी ठीक टाइम पर आए...साथ में उनकी बेटी प्रतिभा आडवाणी थीं...वो पेशे से पत्रकार और टीवी प्रेंज़ेटेटर हैं...कॉर्टून प्रदर्शनी का रिबन काटने की रस्म हुई...आडवाणी ने एक-एक कॉर्टून को बड़े ध्यान से देखा...इसके बाद उन्हें मंच तक ले जाया गया...
प्रेस क्लब की ओर से आडवाणी और प्रतिभा आडवाणी को बुके देकर सम्मानित किया गया...इस मौके पर इरफ़ान भाई ने आडवाणी का शुक्रिया अदा किया कि उन्होंने अपने व्यस्त कार्यक्रम के बावजूद प्रदर्शनी के लिए वक्त निकाला....
आडवाणी जिस राजनीतिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं, उसका मैं किसी भी लिहाज से कायल नहीं हूं...लेकिन बोलते हुए वो शब्दों की मर्यादा का जिस तरह पालन करते हैं, वो प्रभावित करने वाला है...राजनीति में मतभेद होते हैं, लेकिन शालीन रह कर भी विरोधियों पर निशाना साधा जा सकता है...देश में इस परिपाटी पर चलने वाले अब गिनेचुने ही नेता रह गए हैं...
खैर, इरफ़ान भाई ने मुझे बताया कि तीस साल पहले मॉस्को ओलंपिक के दौरान कॉर्टून के एक संग्रह से बड़े प्रभावित हुए थे..तभी से हमेशा उनमें ये कुलबुलाहट रही कि वो खेलों पर इसी तरह अपने कॉर्टून जारी करें...कॉमनवेल्थ गेम्स दिल्ली में होने तय हो गए तो इरफ़ान को लगा कि अब उनके मन की बरसों से दबी इच्छा पूरी हो जाएगी...लेकिन इरफ़ान को क्या पता था कि उनके कॉर्टूनों का फोकस कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों की खामियां बन जाएंगी...इरफ़ान के मुताबिक उन्हें उम्मीद थी कि कॉमनवेल्थ के चलते दिल्ली भी बीजिंग, शंघाई या सियोल जैसी दिखेगी, ट्रैफिक तरतीब से चल रहा होगा...अफसोस कॉमनवेल्थ गेम्स के शुरू होने के ठीक पहले तक दिल्ली में हर तरफ उलटा-पुलटा ही नज़र आता रहा..
मैं ये सोच ही रहा था कि आ़़डवाणी ने मंच से दो शब्द कहना शुरू कर दिया...सबसे पहले उन्होंने राजनीति में आने से पहले अपने पत्रकारिता के दिनों को याद किया...
आडवाणी के मुताबिक एक पत्रकार को जिस शख्स से सबसे ज़्यादा ईर्ष्या होती है वो कॉर्टूनिस्ट ही होता है...क्योंकि पत्रकार लंबी चौड़ी रिपोर्ट तैयार करता है...और कॉर्टूनिस्ट एकाध लाइन के पंच से ही सारी वाहवाही बटोर लेता है...कॉमनवेल्थ पर आडवाणी ने इतना ही कहा कि उनकी पार्टी के लोग इस पर बोल रहे हैं लेकिन उन्होंने इसके विरोध में एक शब्द नहीं बोला...आडवाणी के अनुसार वे यही चाहते हैं कि कॉमनवेल्थ गेम्स सफल हो...आडवाणी ने इतना ज़रूर कहा कि आज सरकार की कोशिश यही रह गई है कि किसी तरह ये गेम्स हो जाए...उसके बाद दावे किए जा सकें कि कॉमनवेल्थ गेम्स का कामयाब आयोजन कराया गया...
एक बात और आडवाणी ने काम की बताई...वो ये कि 2003 में कॉमनवेल्थ गेम्स जब दिल्ली में होने तय हुए, उस वक्त केंद्र में एनडीए की सरकार थी...तब दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल
विजय कपूर ने सरकार को एक प्रस्ताव भेजा था कि कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए जो विलेज बनाया जाए वो इस तरह हो कि खेलों के बाद उसे विशाल हॉस्टल का रूप दिया जा सके...जिससे दिल्ली यूनिर्विसिटी में देश के दूर-दराज से पढ़ने के लिए आने वाले छात्रों के लिए हॉस्टल की कमी की समस्या काफी हद तक दूर हो सके...आडवाणी ने अफसोस जताया कि केंद्र में 2004 में सरकार बदल जाने के बाद ये हॉस्टल का प्रस्ताव भी ठंडे बस्ते में चला गया...
आडवाणी ने राजनीति से इतर कुछ अपनी रूचियों की भी चर्चा की...आडवाणी के मुताबिक पहले उन्हें फिल्में देखने का बड़ा शौक था...लेकिन बाद में सिक्योरिटी की वजह से दूसरों को परेशानी न हो इसलिए उन्होंने हाल मे फिल्म देखने के लिए जाना छोड़ दिया...अब बेटी प्रतिभा घर पर ही डीवीडी ला देती हैं...
आडवाणी ने बताया कि कुछ साल पहले उन्होंने परिवार के साथ चाणक्य थिएटर में फिल्म...हम आपके हैं कौन...देखने का मन बनाया...साथ ही हॉल वालों को कह दिया गया कि वो फिल्म शुरू होने के थोड़ी देर बाद पहुंचेंगे जिससे कि अंधेरे में लोगों को पता न चले और किसी को असुविधा न हो...लेकिन न जाने ये बात कैसे लीक हो गई...और मीडिया वाले पहले ही हॉल में पहुंच गए...अगले दिन टेलीग्राफ में रिपोर्ट छपी थी कि आडवाणी फिल्म के बीच में पॉपकॉर्न लेने के लिए आए तो गाना गुनगुना रहे थे...दीदी तेरा देवर दीवाना...एक दिन बाद हिंदुस्तान टाइम्स में सुधीर तैलंग का एक कॉर्टून भी छपा...जिसमें दिखाया गया था कि चुनाव के लिए आडवाणी ने वोट फॉर बीजेपी की तख्ती उठा रखी है...साथ ही एक दीनहीन व्यक्ति कटोरा लेकर बैठा है और पूछ रहा है- हम आपके हैं कौन...
मंच पर आडवाणी का संबोधन होने के बाद कॉमनवेल्थ पर इरफ़ान के कार्टूनों की स्मारिका का विमोचन किया गया...ये कार्यक्रम खत्म होने के बाद प्रेस क्लब के पदाधिकारी मुख्य अतिथि को चाय के लिए अंदर हॉल में ले गए...आडवाणी और प्रतिभा आडवाणी जिस टेबल पर बैठे थे, इरफ़ान भाई ने मुझे भी अपने साथ बिठा लिया...इरफ़ान भाई के इस स्नेह से मैं अभिभूत था...आडवाणी को विदा करने के लिए फिर सब प्रेस क्लब के गेट पर आए...इस मौके पर इरफ़ान भाई के फैंस तो बड़ी तादाद में मौजूद रहे ही मीडिया की भी प्रभावशाली उपस्थिति रही...
अब तक पांच बज चुके थे...मुझे मेरठ के लिए निकलना था...मैंने इरफ़ान भाई और भाभी जी से मजबूरी बताते हुए विदा ली...अरे हां एक बात तो बताना भूल ही गया
इस मौके पर ब्लॉगर बिरादरी की तरफ से राजीव कुमार तनेजा और शाहनवाज़ सिद्दीकी ने भी बिजी होने के बावजूद कार्यक्रम के लिए वक्त निकाला...इस प्रदर्शनी में
दिनेश राय द्विवेदी सर की भी आने की बहुत इच्छा थी...लेकिन मकान चेंज करने की वजह से व्यस्त होने की वजह से नहीं आ सके...उन्होंने ई-मेल के ज़रिए मुझे इसकी सूचना दी और साथ ही इरफ़ान भाई तक उनकी बधाई पहुंचाने के लिए कहा...लीजिए यहां प्रदर्शनी में लगे इरफ़ान भाई के एक और कॉर्टून का मजा लीजिए...इरफ़ान भाई से आग्रह करूंगा कि वो प्रदर्शनी के सभी कार्टून्स को ब्लॉगजगत तक पहुंचाने का इंतज़ाम करें...