खुशदीप सहगल
बंदा 1994 से कलम-कंप्यूटर तोड़ रहा है

Royal Wedding...बदहाल ब्रिटेन में 1 अरब डॉलर का चोंचला...खुशदीप



पिछली २६ मार्च को लंदन में करीब ढाई लाख लोगों ने प्रदर्शन किया था...सरकार की ओर से पब्लिक फंडिंग में कटौती और संस्थानों में हो रही छंटनी के विरोध में...ऊपर से प्रिंस विलियम और प्रिंसेस केट की शाही शादी का चोंचला और...कहने वाले कह रहे हैं कि इस शादी से ब्रिटेन को आर्थिक मंदी से उबरने में थोड़ी मदद मिलेगी...लेकिन हक़ीक़त ठीक इससे उलट है...पूरी दुनिया में दो अरब लोगों के टीवी पर इस शादी के गवाह बनने की ख़बर दी जा रही है...शादी के लिए दुनिया भर से १९०० खास लोगों को ही शाही परिवार की ओर से शिरकत का न्यौता भेजा गया था...

मौजूदा क्वीन एलिजाबेथ की २० नवंबर को प्रिंस फिलीप के साथ २० नवंबर १९४७ को विवाह बंधन में बंधने के बाद ब्रिटेन के राजघराने में ये तीसरी बड़ी शादी हुई...२९ जुलाई १९८१ को प्रिंस चार्ल्स और प्रिंसेस डायना...और अब २९ अप्रैल २०११ को प्रिंस विलियम और प्रिंसेस केट...कहने को १९७३ में क्वीन की बेटी एनी की प्रिंस मार्क फिलीप के साथ और फिर २००५ में प्रिंस चार्ल्स की कैमिला पार्कर बोल्स से भी शादी हुईं...लेकिन वो इतने चर्चित आयोजन नहीं बनीं जितनी कि १९४७, १९८१ और अब २०११ की शादियां...इन तीनों शादियों में सबसे बड़ी समानता है तीनों ही बार -ब्रिटेन की आर्थिक तौर पर खस्ता हालत...

१९४७ में प्रिंसेस एलिजाबेथ (क्वीन १९५२ में बनीं) और प्रिंस फिलीप की शादी के वक्त ब्रिटेन दूसरे विश्व युद्ध के बाद के झटकों की मार सह रहा था...आर्थिक हालत ये थी कि जब एलिजाबेथ और फिलीप शाही चर्च वेस्टमिंस्टर एबे से शादी के बाद महल में लौटे तो सिर्फ १५० मेहमानों के लिए ही खाने का इंतज़ाम किया गया था...

इसी तरह २९ जुलाई १९८१ को चार्ल्स-डायना की शादी के वक्त भी ब्रिटेन ज़बरदस्ती मंदी की चपेट में था...उस वक्त ब्रिटेन में महंगाई की दर ११.९ फीसदी की दर से आसमान पर थी...करीब २७ लाख लोग बेरोज़गार थे...उस वक्त ३६४ अर्थशास्त्रियों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्ग्रेट थैचर को चिट्ठी लिखकर शाही शादी में कमखर्ची बरतने की सलाह दी थी। तब भी ४० लाख डॉलर का खर्च आ गया था...

अब कल हुई विलियम-केट मिडिलटन शादी की बात करें तो जिन गाड़ियों से सारे हिज़ हाईनेस और हर हाईनेस चर्च पहुंचे, उन गाड़ियों को चलाने वाला पेट्रोल करीब पौने दो पौंड (१३० रुपये) पर मिल रहा है...इसी से समझी जा सकती है वहां आर्थिक स्थिति की हालत...आर्थिक मंदी की मार के चलते हज़ारों लोगों को पिछले दो साल मे नौकरियों से हाथ धोने पड़े हैं...ब्रिटेन में इस वक्त २५ लाख लोग बेरोज़गार हैं...बैंक पब्लिक फंडिग में कटौती के चलते बेहाल हैं...बीबीसी जैसे संस्थान को कमखर्ची के चलते स्टॉफ कम करना पड़ा है...लेकिन इसके उलट शाही शादी पर देखिए किस तरह पैसा बहाया गया-

रिसेप्शन पार्टी- छह लाख डॉलर

फूलों की सजावट- आठ लाख डॉलर

प्रिंसेस केट का वैडिंग गाउन- ४ लाख ३४ हज़ार डॉलर

केक- अस्सी हज़ार डॉलर

साफ़-सफ़ाई- ६४ हज़ार डॉलर

शादी से जु़ड़े सीधे खर्चों के लिए बेशक शाही परिवार और प्रिंसेस केट का परिवार आर्थिक योगदान दे रहा हो लेकिन अकेले सिक्योरिटी अरेंजमेंट पर ही ब्रिटेन सरकार को तीन करोड़ डॉलर खर्च करने पड़ रहे हैं...ये सारा पैसा टैक्सपेयर्स की जेब से ही जाएगा...वैसे भी ब्रिटेन के शाही परिवार को हर साल सरकारी खजाने से एक करोड़ तीस लाख डॉलर के भत्ते दिए जाते हैं...

शादी के लिए कल पूरे ब्रिटेन में सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया था...इससे होने वाले मैनडे लॉस को जोड़ लिया जाए तो शाही शादी से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को कम से कम एक अरब डॉलर की चपत लगेगी...ब्रिटेन में अब ऐसा कहने वाले लोग भी बढ़ते जा रहे हैं कि राजशाही की अब तुक ही क्या है...क्यों इतना पैसा राजघराने पर खर्च किया जाता है...

लेकिन कल जिस तरह भारत में भी इस शाही शादी के लिए मीडिया पलक-पांवड़े बिछा रहा था, उसे देखकर बस यही याद आ रहा था- बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना...
 
Mr Laughter's Corner-
Know your future in seconds, to find click this
Read More...

SHAME...किस मुंह से बनते हो संविधान के कस्टोडियन...खुशदीप



अन्ना हज़ारे के सामने सांसद कुतर्क देते हैं कि उन्हें भी जनता चुन कर ही भेजती है...इसलिए सिविल सोसायटी से ज़्यादा वो जनप्रतिनिधि हैं...लेकिन कोई सांसद महोदय ये भी बताएंगे कि जनता एक बार चुनने के बाद सांसद-विधायकों को मनमानी छूट का अधिकार भी दे देती है क्या...जैसा चाहे आचरण करें उन्हें कोई कुछ कहने वाला नहीं है...कल लोक लेखा समिति (पीएसी) की बैठक के दौरान जो हुआ, जिस तरह अखाड़ा बना दिया गया, क्या उसके बाद भी हमें ये कहने का हक़ बाकी रह जाता है कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र है...क्या सरकार और उनके पिछलग्गु और क्या विरोधी दल, सभी ने संसदीय मर्यादा को एक बार फिर तार-तार किया...अगर ऐसे ही पार्टी लाइन पर काम करना है तो फिर इन संसदीय समितियों का मतलब ही क्या रह जाता है...अगर आपके मतलब की बात की जा रही है तो तो आप उसे मानेंगे, नहीं की जा रही तो चाहे आप अल्पमत में है, हंगामे और बाहुबल के दम पर आप मनमानी करके ही छोड़ेंगे...इस पीएसी के चेयरमैन मुरली मनोहर जोशी ने ड्राफ्ट रिपोर्ट में प्रधानमंत्री, पीएमओ, कैबिनेट सचिवालय, चिदंबरम को टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में राजा को खुला मैदान देने के लिए कटघरे में खड़ा किया तो जाहिर है सरकार और डीएमके को तो नागवार गुज़रना ही था....और उन्होंने साम दाम दंड भेद से जोशी की रिपोर्ट को खारिज करने की ठान ली...


लेकिन इस मामले में जोशी और विरोधी दलों का आचरण भी संसद की श्रेष्ठ परंपराओं के अनुसार अनुकरणीय नहीं रहा...इस पीएसी का कार्यकाल 30 अप्रैल को खत्म हो रहा है...इसलिए रिपोर्ट देने की जल्दी को समझा जा सकता था...लेकिन क्या ये ज़रूरी नहीं था कि पार्टी लाइन से ऊपर उठ कर पीएसी में ही सहमति बनाई जाती है...अगर नहीं बनती तो वोटिंग के ज़रिए किसी नतीजे पर पहुंचा जाता...जोशी ने ऐसा नहीं किया और पीएसी की आखिरी बैठक होने से पहले ही ड्राफ्ट रिपोर्ट मीडिया में लीक हो गई...सरकार को अपनी गोटियां ठीक करने का वक्त मिल गया...मुलायम सिंह यादव और मायावती को साथ देने के लिए सेट कर लिया गया...मुलायम और मायावती धुर विरोधी होने के बावजूद जिस तरह बार बार सरकार के संकटमोचक बन रहे हैं, उससे ये संदेह होता है कि यूपी में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीएसपी में आपस में खिंची तलवारों का मतलब ही क्या रह जाता है...

हां तो मैं बात कर रहा था पीएसी की...पीएसी संविधान की प्रदत्त वो व्यवस्था है जिसके ज़रिए सरकारी खज़ाने के रुपये के लेनदेन में गड़बड़ी पाए जाने पर जांच कराई जा सके...कमेटी में बाइस सदस्य होते हैं, लेकिन मौजूदा समिति कांग्रेस के अश्विनी कुमार के मंत्री बन जाने की वजह से 21 सदस्यों की ही रह गई थी...इसमें कांग्रेस के सात, चेयरमैन जोशी समेत बीजेपी के चार, डीएमके और एआईडीएमके के दो-दो, शिवसेना, समाजवादी पार्टी, बीएसपी, बीजेडी, सीपीएम और जेडीयू के एक सदस्य थे...कांग्रेस, डीएमके, समाजवादी पार्टी और बीएसपी के एक पाले में आने से सरकारी साइड का पीएसी में बहुमत यानि ग्यारह सदस्य हो गए...बाकी सारे दस सदस्य जोशी के साथ विरोधी खेमे में हो गए...यहां एक बड़ा ही दिलचस्प तथ्य ये है कि जोशी के पाले में खड़े जेडीयू के एनके सिंह का नाम नीरा राडिया से टेप में बातचीत की वजह से सामने आया था...यानि जिस आदमी के दामन पर खुद दाग हो वो फिर भी मुंसिफ़ों की कमेटी में बना रहा...एन के सिंह ने एक बार हटने की इ्च्छा भी जताई थी लेकिन न जाने क्या सोचकर उन्हें पीएसी में बनाए रखा गया...


क्या सरकार और क्या विरोधी दल किस तरह एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं, ये समझने के लिए आपको मेरे साथ आठ साल पीछे 2003 में चलना होगा...जैसे आज टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले का हल्ला है, ऐसे ही उस वक्त करगिल युद्ध के शहीदों के ताबूतों की खरीद समेत डिफेंस सौदों में गड़बड़ी को लेकर हायतौबा मची हुई थी...तब वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार थी...जांच का काम इसी तरह पीएसी के ज़िम्मे आया था...उस वक्त बूटा सिंह पीएसी के चेयरमैन थे...

इस बार जिस तरह जोशी ने पीएसी चेयरमैन की हैसियत से मनमोहन सरकार को अपने हिसाब का आईना दिखाने की कोशिश की, आठ साल पहले ठीक इसी तरह बूटा सिंह ने भी इसी हैसियत से वाजपेयी सरकार को कटघरे में खड़ा करना चाहा था...जोशी टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में चेयरमैन के नाते रिपोर्ट पेश करने को अपना हक़ मानते हैं लेकिन सत्ताधारी दल जोशी को चेयरमैन न मानते हुए उन्हें ही खारिज कर देता है और सैफ़ुद्दीन सोज़ को अपना चेयरमैन मान लेता है...2003 में बूटा सिंह ने डिफेंस सौदों से जुड़े घोटाले पर अपनी रिपोर्ट पेश करते वक्त पीएसी के किसी दूसरे सदस्य के दस्तखत कराना भी गवारा नहीं समझा था...

जिस तरह आज कांग्रेस और उनके संकटमोचक मायावती-मुलायम पीएसी की रिपोर्ट को जोशी की रिपोर्ट बताते हुए खारिज कर रहे हैं ठीक इसी तरह आठ साल पहले बीजेपी समेत समूचे एनडीए ने बूटा सिंह पर राजनीतिक द्वेष का आरोप जड़ दिया था...जैसे आज कांग्रेस ने जोशी पर रिपोर्ट लीक करने का आरोप लगाया, ठीक ऐसा ही आरोप पर बूटा सिंह पर तब एनडीए ने लगाया था....दरअसल तब ताबूत खऱीद समेत करगिल में ऑपरेशन विजय के लिए डिफेंस खरीद को लेकर तत्कालीन डिफेंस मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस चौतरफ़ा आरोपों के घेरे में थे...बूटा सिंह ने उस वक्त पीएसी रिपोर्ट में साफ़ कहा था कि सरकार के सहयोग न देने की वजह से वो घोटाले की जांच को लेकर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके...उस वक्त डिफेंस मंत्रालय ने घोटाले को उजागर करने वाली सीवीसी रिपोर्ट को गोपनीयता का हवाला देते हुए पीएसी को नहीं सौंपा था...सरकार का ये रुख बताने वाला कम छुपाने वाला ज़्यादा था...उस वक्त सीएजी रिपोर्ट को लेकर बावेला मचा हुआ था...सीएजी रिपोर्ट में 2163 करोड़ रुपये के 123 डिेफेंस सौदों में कई गड़बड़ियों को इंगित किया था...

बताते हैं कि उस वक्त सीएजी को ही खारिज करने के लिए जॉर्ज फर्नांडीस ने सीएजी पर अपमानजनक टिप्पणी वाली एक किताब भी सभी सांसदों में बंटवाई थी...जॉर्ज ने सीवीसी रिपोर्ट पीएसी को न सौंपने के पीछे तर्क दिया था कि इसमें आईबी और सीबीआई से जुड़े कुछ टॉप सीक्रेट दस्तावेज़ों का हवाला है...जॉर्ज ने ये भी कहा था कि आज पीएसी इन्हें खोलने की मांग कर रही है तो कल को बॉर्डर खोलने के लिए भी कह सकती है....यानि कहने का लबोलुआब यही है कि उस वक्त बूटा सिंह एनडीए सरकार की आंखों की किरकिरी बने तो आज जोशी यूपीए सरकार की नज़रों में कांटा बन गए...लेकिन मेरा सवाल यही है कि संसदीय समितियों जैसी परंपराओं का यूंही पार्टीलाइन पर चीरहरण करना है तो फिर इन्हें बनाने का औचित्य ही क्या है...क्या यहां हमारा संविधान फेल नहीं हो रहा...और फिर जब संविधान के गैर-प्रासंगिक हो जाने का यही सवाल अनुपम खेर उठाते हैं तो उन्हें देशविरोधी क्यों करार दिया जाने लगता है....

Read More...

HARMONY- मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना...खुशदीप



मज़हब या धर्म...मैं अक्सर इस विषय पर लिखने से बचता हूं...मेरी इस बारे में क्या राय है, ये मैं तेहरान रेडियो को दिए इंटरव्यू में स्पष्ट कर चुका हूं...धर्म कोई भी हो, इनसान से इनसान को प्यार करना ही सिखाता है, नफ़रत करना नहीं...ये तो हम इनसान ही है जिन्होंने अपने अपने हिसाब से धर्म की व्याख्या कर इसे झगड़े-फ़साद की वजह बना दिया...और ज़्यादा कुछ नहीं कहता, बस दो गानों के ज़रिए अपनी बात समझाने की कोशिश करता हूं...पहले हिंदी सिनेमा के सबसे सुंदर और प्रभावशाली भजन की बात...1952 में रिलीज़ फिल्म बैजू बावरा के इस भजन को लिखा शकील बदायूंनी साहब ने, संगीत दिया नौशाद साहब ने और आवाज़ की नेमत बख्शी मोहम्मद रफ़ी साहब ने...सुनिए ये भजन...


मन तड़पत हरि दर्शन को आज...

अब एक और गाने की बात जो मुझे दिल से बहुत पसंद है...1979 में रिलीज़ फिल्म दादा के इस गाने को गाया सुमन कल्याणपुर जी ने, संगीत दिया ऊषा खन्ना जी ने और बोल दिए गौहर कानपुरी साहब ने...सुनिए...

अल्लाह तू करम करना, मौला तू रहम करना...


दोनों गानों को यू ट्यूब पर भी देख सकते हैं...





 
Mr Laughter Corner
Why tears are not coming out from Makkhan's eyes, to find click this...


Read More...

Kalmadi- चप्पल से अर्श, चप्पल से फ़र्श...खुशदीप


1977- सुरेश कलमाड़ी ने मोरारजी देसाई की कार पर चप्पल चलाई...

2011- सुरेश कलमाड़ी पर पटियाला हाउस कोर्ट परिसर में कपिल ठाकुर नाम के शख्स ने चप्पल चलाई...

सुरेश कलमाड़ी के लिए वक्त का पहिया कैसे 360 डिग्री पर घूमा, इसे समझने के लिए चप्पल से अच्छा ज़रिया और कोई नहीं हो सकता...पहले कलमाड़ी के शुरूआती दिनों की बात कर ली जाए...डा शामाराव कलमाडी के चार पुत्रों में सबसे बड़े सुरेश कलमाडी को उनके पिता डॉक्टर ही बनाना चाहते थे...लेकिन पढ़ाई में होशियार कलमाड़ी ने अपने सपनों को उड़ान देने के लिए भारतीय वायुसेना से करियर शुरू किया...लेकिन जल्दी ही कलमाड़ी को समझ आ गया कि उनके पंखों को परवाज़ देने के लिए भारतीय वायुसेना का कैनवास छोटा पड़ेगा...1974 में कलमाड़ी स्क्वॉड्रन लीडर रहते हुए स्वैच्छिक रिटायरमेंट लेकर पुणे लौट आए...यहां उन्होंने पहले से चल रहे एक होटल को खरीदा और उसे पूना कॉफी हाउस का नाम दिया...ये महाराष्ट्र की राजनीति पर बहस के लिए अच्छा अखाड़ा था...यहीं से कलमाड़ी राजनेताओं के संपर्क में आने लगे...फर्राटेदार अंग्रेज़ी और तेज़ दिमाग वाले कलमाड़ी राजनीति के घाघ खिलाड़ी शरद पवार की नज़र पड़ी और पुणे में यूथ फॉर रिकन्स्ट्रक्शन नामक एनजीओ की गतिविधियों की कमान कलमाड़ी को मिल गई...जल्दी ही कलमाड़ी पुणे यूथ कांग्रेस के प्रमुख भी बन गए...लेकिन कलमाड़ी की कोशिश यही थी कि किसी तरह दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान की नज़र उन पर पड़ जाए...उस वक्त कांग्रेस आलाकमान का मतलब संजय गांधी को माना जाता था...जल्दी ही कलमाड़ी को मौका भी मिल गया...मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री रहते हुए 1977 में पुणे के दौरे पर आए...कलमाड़ी ने विरोध जताने के लिए अपने साथी श्याम पवार के साथ मिलकर चप्पल मोरारजी की कार पर उछाल दी...कलमाड़ी का तीर निशाने पर बैठा...संजय गांधी ने अगले दिन अखबार में रिपोर्टिंग देखते ही कलमाड़ी के बारे में सारी जानकारी महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं से मंगाई...फिर व्यवहारकुशल कलमाड़ी को संजय गांधी से पटरी बैठाने में देर नहीं लगी...इसी कलमाड़ी को को कल निशाना बनाकर मध्यप्रदेश के शख्स कपिल ठाकुर ने चप्पल उछाली...पुलिस की मुस्तैदी से कलमाड़ी चप्पल खाने से बच गए और कपिल ठाकुर को मौके पर ही धर लिया गया...



लौटता हूं कलमाड़ी के राजनीति के शुरूआती वर्षों में...1980 में संजय गांधी की विमान हादसे में मौत के बाद कलमाड़ी ने राजीव गांधी से तार जोड़ने के लिए हाथ-पैर मारना शुरू किया...अच्छी अंग्रेज़ी और पायलट की पृष्ठभूमि के चलते कलमाड़ी को पायलट से नेता बने राजीव गांधी से भी तार जोड़ने में देर नहीं लगी...



कलमाड़ी का ये हुनर नरसिंह राव के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी काम आया...नरसिंह राव ने अपने मंत्रिमंडल में रेल राज्यमंत्री बनाकर लालबत्ती की गाड़ी से नवाज़ा...यानि शरद पवार के दबदबे के बावजूद कलमाड़ी ने राजनीति और खेल प्रशासन में पुणे के मराठा के तौर पर पहचान बनाए रखी...पिछले तीन दशकों में पुणे मैराथन हो या पुणे फेस्टिवल, या फिर कॉमनवेल्थ यूथ गेम्स, पुणे में ऐसा कोई आयोजन नहीं हुआ, जिससे कलमाड़ी का नाम न जुड़ा रहा हो..लेकिन उसी कलमाड़ी पर आज दिल्ली में चप्पल चली तो सोमवार रात को पुणे में उनके दफ्तर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने ही हमला किया...यानि दिल्ली हो या पुणे, कलमाड़ी की पहचान ने चप्पल के जिस अंदाज़ से उड़ान भरी, उसी चप्पल के निशाने से गोता भी लगाया....


WANT TO MEET REAL HAPPY HOME MAKER, CLICK THIS...
Read More...

Tihar Jail VIP Guests...तेरे जीवन का है कर्मों से नाता...खुशदीप




इरफ़ान भाई के इस जबरदस्त कार्टून के बाद देखिए कौन कौन वीआईपी है इस वक्त दिल्ली की तिहाड़ जेल के मेहमान-


कॉमनवेल्थ घोटाले के कलंक-

सुरेश कलमाड़ी- नेता बनाम खेल प्रशासक, कांग्रेस से निलंबित, इंडियन ओलंपिक संघ के चीफ़ पद से होगी छुट्टी

ललित भनोट- कॉमनवेल्थ आर्गनाइजिंग कमेटी के पूर्व महासचिव

वी के वर्मा- कॉमनवेल्थ आर्गनाइजिंग कमेटी के पूर्व महानिदेशक



2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के कलंक-


ए राजा- पूर्व टेलीकॉम मंत्री


शाहिद उस्मान बलवा- डीबी रियल्टी के सर्वेसर्वा


संजय चंद्रा- यूनिटेक वायरलेस (तमिलनाडु) के चेयरमैन


विनोद गोयनका- एमडी, डीबी रियल्टी


गौतम दोषी- ग्रुप डायरेक्टर, रिलायंस टेलीकॉम-अनिल धीरू भाई अंबानी ग्रुप


सुरेंद्र पिपरा- ग्रुप प्रेज़ीडेंट, रिलायंस टेलीकॉम-अनिल धीरू भाई अंबानी ग्रुप


हरि नायर- सीनियर वाइस प्रेज़ीडेंट, रिलायंस टेलीकॉम-अनिल धीरू भाई अंबानी ग्रुप


आसिफ़ बलवा- डायरेक्टर, कुसेगांव फ्रूट्स एंड वेजीटेबल्स प्राइवेट लिमिटेड


राजीव अग्रवाल-डायरेक्टर, कुसेगांव फ्रूट्स एंड वेजीटेबल्स प्राइवेट लिमिटेड


छह मई को तिहाड़ भेजे जा सकते हैं...


कनिमोझी- राज्यसभा सांसद और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि की बेटी


शरद कुमार- एमडी, कलाईनार टीवी


करीम मोरानी- प्रमोटर, सिनेयुग फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड



ये सभी राजनीति और कारपोरेट के वो दिग्गज हैं जिनके एक इशारे पर कारिंदों की फौज सामने खड़ी हो जाती थी- ये कहते हुए...क्या हुक्म है मेरे आका...लेकिन अब ये एयरकंडीशन्ड दफ्तर, कार और घर के चैन से दूर तिहाड़ जेल के मेहमान हैं...सुबह साढ़े पांच बजे इन्हें आम कैदियों की तरह ही लाइन में लगकर गिनती करानी पड़ती है...एक घंटे बाद नाश्ते में चाय और ब्रेड के दो पीस मिलते हैं...नौ बजे तक हर कैदी को नहा-धो कर तैयार हो जाना पड़ता है...नौ बजे ही दाल, रोटी, चावल और एक सब्जी का भोजन बंट जाता है...दोपहर को परिचित मुलाकातियों से मिलने की इजाजत दी जाती है...तीन बजे दो बिस्कुट, चाय मिलती है...तीन बजे ही कैदियों को कुछ खाली वक्त मिलता है जिसमें अखबार या सामूहिक सेल में टीवी देखा जा सकता है...रात का खाना भी छह बजे तक बंट जाता है...हां, कैदी चाहे तो उसे बाद में भी खा सकता है, लेकिन खाना लेना छह बजे ही होगा....

अब ये गाना सुनिए-

तेरे जीवन का है कर्मों से नाता...

What is the height of "oohh and shit", to find click this


Read More...

It happens only in India...अद्भुत तस्वीरें...खुशदीप

आज लिखने का मूड नहीं हैं...बस कुछ तस्वीरें देखिए...

सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं...
ललित शर्मा भाई जी की शागिर्दी का कमाल

नो कमेंट्स....(फोटो आभार देखोजी.कॉम)

चक्कर खा गए हम तो रे भइया देख के ये एडवा...(फोटो आभार देखोजी.कॉम)

क्या कर रहा है बे...जो लिखा है उसे ही मानेगा क्या...

Read More...

Big Blogger...बोलो अर्द्धब्लॉगेश्वर महाराज की जय...खुशदीप

यदा-कदा ऐसी पोस्ट पढ़ने को मिलती रहती हैं कि बड़ा ब्लॉगर कौन ?...बड़ा ब्लॉगर कौन?...अजब अजब तर्क दिए जाते हैं...अभी अनवर जमाल भाई ने बड़ा ब्लॉगर बनने के लिए रामबाण फॉर्मूला सुझाया है- अगर किसी को बड़ा ब्लॉगर बनना है तो उसे औरत की अक्ल से सोचना चाहिए, क्योंकि औरतों की छठी इंद्रिय बहुत तेज़ होती है...

अब इसका पूरा राज़ तो अनवर जमाल जी कोई थीसिस लिखेंगे तो ही समझ आएगा...

हां ज़ाकिर अली रजनीश भाई ने कुछ महीने पहले अपनी एक पोस्ट में साइकोलॉजिस्ट की किताब का हवाला देते हुए बड़ा ब्लॉगर बनने का बेहतरीन नुस्खा सबको सुझाया था-कुछ इस अंदाज़ में-

जब मैं यह समाचार पढ़ रहा था तथा मेरे एक साइकालॉजिस्ट की किसी किताब के कुछ अंश गूँजे, जिसके अनुसार दुनिया में जितने भी लोग पाए जाते हैं, उनमें किसी न किसी विषय को लेकर हल्का सा पागलपन पाया जाता है। वैसे आम आदमी की नजर में पागल होना या सनकी होना क्या है? जब कोई व्यक्ति किसी काम के लिए दुनिया की बाकी सारी चीजों की उपेक्षा/अवहेलना करने लगता है, तो दुनिया उसे सनकी अथवा पागल कहने लगती है। चाहे कोई अच्छा लेखक हो, चाहे खिलाड़ी, चाहे समाजसेवी, चाहे प्रशासनिक अधिकारी या फिर प्रेमी, उसे अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए उस सनकीपन/पागलपन के दौर से गुजरना ही पड़ता है। क्यों सही कहा न? तो फिर यह बात तो ब्लॉगर पर भी लागू होती है। तो अब बताइए कि आप इस टेस्ट में कितने खरे उतरते हैं? यानी कि आप ब्लॉगिंग को लेकर अभी सनकीपन के किस पायदान तक पहुँचे हैं? और आपकी नज़र में सबसे बड़ा सनकी... आई मीन सबसे बड़ा ब्लॉगर कौन है?

ज़ाकिर भाई को पढ़ने के बाद लगा कि उन्हें सलाह दूं कि वो अपने साइंटिफ़िक फोरम की मदद से सनकामीटर का अविष्कार कराएं...इससे ब्लॉग जगत का बड़ा उपकार होगा...सब सनकामीटर से झट से भांप लेंगे कि ब्लॉगिंग को लेकर सनक के किस लेवल तक पहुंचे हैं...यानि ज़ंज़ीरों से बांधने की नौबत तो नहीं आ गई...

खैर ये तो रही अनवर भाई और ज़ाकिर भाई की बात...अब मैं बड़े ब्लॉगर को लेकर अपना फंडा बताता हूं...मेरी नज़र में जो अर्द्धब्लॉगेश्वर है, वही ब्लॉगिंग के असली ईश्वर हैं...अब आप कहेंगे कि ये अर्द्धब्लॉगेश्वर क्या भला होती है...आपने नरसिंह भगवान के बारे में सुना होगा आधे नर आधे सिंह...हिरण्यकश्यप का वध कर भक्त प्रहलाद को बचाने वाले नरसिंह भगवान...ऐसा ही कुछ ब्लॉगिंग के साथ भी है...



इससे पहले कि आपको सेरिडॉन की ज़रूरत पड़े अपनी बात साफ कर ही देता हूं...ब्लॉगिंग के दो पार्ट अहम होते हैं...

पहला- पोस्ट लिखकर दूसरों की टिप्पणियों का इंतज़ार करना...ये गाते हुए...आजा रे अब मेरा दिल पुकारा, रो-रो के गम भी हारा...

दूसरा अहम पार्ट होता है- दूसरे ब्ल़ॉगरों की पोस्ट पर जाकर टिप्पणी कर ये याद दिलाते रहना कि ओ ब्लॉगर प्यारे, बांके-प्यारे, कभी-कभी नहीं, रोज़ मेरी गली आया करो...

ये दूसरा पार्ट इसलिए भी अहम हो जाता है कि अगर आप इसे पूरे मनोयोग से नहीं निभाते तो फिर आपकी खुद की पोस्ट पर टिप्पणियों की धारा सिकुड़ती जाती है...हो सकता है एक दिन सरस्वती नदी की तरह विलुप्त ही हो जाए...ऐसी नौबत न आए इसलिए टिप्पणी से टिप्पणी की जोत जलाते चलो,  दूसरों के ब्लॉग पर अपने विचारों की गंगा बहाते चलो...

अरे ये फंडा बताते-बताते मैं अर्द्धब्लॉगेश्वर को भूल ही न जाऊं...अर्द्धब्लॉगेश्वर वो होता है जो सिर्फ पोस्ट लिखता है...कभी भूल कर भी दूसरों की पोस्ट पर टिप्पणी नहीं करता...यानि ब्लॉगिंग का सिर्फ आधा धर्म ही निभाता है...लेकिन फिर भी उसकी पोस्ट पर टिप्पणियों का कभी अकाल नहीं पड़ता...यानि उसके कंटेंट में इतनी जान होती है कि दूसरों को वो चुंबक की तरह अपनी ओर खींच ही लेता है...ऐसे अर्द्धब्लॉगेश्वर ही हैं सही मायने में सबसे बड़े ब्लॉगर...चलिए अब गिनने बैठते हैं, कौन-कौन हैं अपने ब्लॉग जगत में अर्द्धब्लॉगेश्वर...

Want to know why Fox is so angry these days, click this




Read More...

Lavish Lucknow...मुस्कुराइए कि आप लखनऊ में है...खुशदीप




क्या किसी शहर की तहज़ीब बदल सकती है, मिजाज़ बदल सकता है...क्या वक्त किसी शहर को भी बदल सकता है...

नखलऊ...मुआफ़ कीजिए लखनऊ...नाम लेते ही दिल को कैसा सुकून मिलता है...बातचीत का वो शऊर जो गैर से गैर को भी अपना बना ले...अवध की शाम...किस्सागोई की महफ़िलें...

लेकिन सत्ता की धमक कैसे किसी शहर को अपने आगोश में लेती है, यही आपको आज इस पोस्ट में दिखाता हूं दो वीडियो के ज़रिए...

लेकिन पहले दिल को चीर देने वाले सिएटल, अमेरिका में बसे अभिनव शु्क्ल के ये अल्फाज़...

जिनके अपनों की कब्रें हैं,
फूल चढ़ा लेने दो उनको,
जब झगड़ा था, तब झगड़ा था,
अब कोई टकराव नहीं है,
मौसम बदल चुका है सारा,
मज़ारों पर जूता चप्पल,
मेहमानों पर ईंटा पत्थर,
ये लखनऊ की तहज़ीब नहीं है...

पहले देखिए वो लखनऊ जो हमारे दिलों में बसा है...



अब देखिए मायावती का लखनऊ...



वाकई लखनऊ बदल गया है...बुत ही बुत नज़र आते हैं...इनसान कहीं छुप गए हैं या छुपा दिए गए लगते हैं...


Want to know why Fox is so angry these days, click this


Read More...

Sprite post...आज सीधी बात, नो बकवास...खुशदीप

मक्खनी मक्खन से...सुनो जी जब आप देसी पीते हो मुझे पारो कहते हो...विलायती पीते हो मोना डॉर्लिंग बुलाते हो, ये आज भूतनी क्यों कह रहे हो...

मक्खन गुस्से से...आज मैंने स्प्राइट पिया है, इसलिए सीधी बात, नो बकवास...



 चलिए आज मैं उलटा चल कर देखता हूं...इसलिए हंसी-ठठा पहले ही कर लिया...आज स्प्राइट पोस्ट लिखने के मूड में हूं, इसलिए सीधे काम की बात, नो बकवास...कुछ तीखे शब्दों का इस्तेमाल करूंगा, इसलिए पहले ही सबसे माफ़ी मांग लेता हूं...इस देश के लिए मेरे समेत सब बातें तो बहुत बहुत बड़ी करते हैं लेकिन दिल पर हाथ रखकर कहिए, कितने हैं जो ईमानदारी से अपने भीतर भी झांक कर देखते हैं...आज हम दो तरह के लोग हैं...एक ये कहने वाले...इस देश का कुछ नहीं हो सकता...ऊपर से नीचे तक सारा सिस्टम सड़ चुका है...दूसरे ये कहने वाले...रातों-रात क्रांति कर दो...भ्रष्टाचारियों का सिर कलम कर दो...

मेरी नज़र में ये दोनों बातें ही अपराध हैं...या यूं कहिए कि सच्चाई से मुंह मोड़ने वाली बात है...हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं तो हम किस मुंह से कह सकते हैं कि कुछ नहीं बदलने वाला...जब आपने कुछ करना ही नहीं तो चुपचाप बैठ कर माला फेरिए न जनाब...कुछ सवाब ही मिल जाएगा...दूसरी बात, कागज़ी क्रांतिवीरों से...गरज़ना छोड़ो, बरसना सीखो...जोश के साथ होश से काम नहीं लोगे तो खुद ही शहीद होगे, भ्रष्टाचारियों का एक बाल भी नहीं उखाड़ पाओगे...एक अन्ना हज़ारे से इतनी बड़ी उम्मीदें मत पाल लो कि वो देश के सिस्टम को घोट कर कोई मैजिक पिल खिला देंगे और देश से भ्रष्टाचार का नामोंनिशान मिट जाएगा....

आप सिस्टम को कोसते हैं, अन्ना को मसीहा बना देते हैं लेकिन खुद क्या करते हैं...बस इसी सवाल पर गौर करिए...मैं ये नहीं कह रहा कि कट्टा-तमंचा अंटी में लगाइए और निकल पड़िए भ्रष्टाचारियों को शूट करने...ऐसा करेंगे तो कल के अखबार में खुद ही ख़बर बने होंगे...कोई पुलिस वाला आपके साथ मूछों पर ताव देता हुआ फोटो खिचवा रहा होगा...अफसोस आप ही उस फोटो को नहीं देख सकेंगे...होंगे तो देखेंगे न...अन्ना हजारे टॉप लेवल पर टकरा रहे हैं...उन्हें उनका काम करने दीजिए...आप सिस्टम से जूझने के अपने खुद के इजाद किए हुए छोटे-छोटे तरीके निकालिए...यकीन मानिए देश बदलेगा तो हम सबके इसी रास्ते पर चलने से बदलेगा...बस आपको ये सोच छोड़नी होगी कि हमारा काम निकलना चाहिए, बाकी किसी से हमें क्या लेना...यही है वो सोच जिसकी वजह से इस देश को भ्रष्टाचार की दीमक चाट रही है...ऐसी नौबत आने देने के लिए दोषी और कोई नहीं, हम खुद हैं...

कड़ी से कड़ी जोड़िए और कसम खा लीजिए भ्रष्टाचार किसी भी रूप में सामने आए, बर्दाश्त नहीं करेंगे...अपने आस-पास कोई भ्रष्टाचारी दिखता है तो सब मिलकर उसका विरोध कीजिए...विरोध का तरीका ये नहीं कि उसकी ठुकाई कर क़ानून अपने हाथ में ले लीजिए...और भी कई कारगर तरीके हैं...जैसे सब मिलकर भ्रष्टाचारी कहीं जा रहा हो तो उसकी तरफ़ बस उंगली उठा दीजिए...एक साथ कई उंगलियां उठा कर इंगित करो आंदोलन चलाइए...बेल बजाइए...भ्रष्टाचारियों के सामने बैठकर सामूहिक भजन-कीर्तन कीजिए...वो पहले बौखलाएंगे लेकिन फिर धीरे-धीरे लाइन पर आ जाएंगे...मैं जानता हूं जो सब लिख रहा हूं उसके कोई मायने नहीं हैं...हम बातें बेशक आसमां में सुराख़ करने की कर लें लेकिन आपस में ही एक दूसरे का हाथ नहीं पकड़ सकते...इसी सोच में कि दूसरा कहीं मुझे सिरफिरा न समझ लें...जब आपस में मिलकर गली मोहल्ले, चौपाल-चौबारे, गांव-कस्बे में ही हम सामूहिक तौर पर कोई एक्शन नहीं ले सकते तो फिर किस मुंह से देश के सिस्टम के खिलाफ गज़ गज़ भर के फक्कड़ तौलते हैं....आप इसे मेरा नॉन प्रैक्टीकल होना भी कह सकते हैं...

चलिए अब थोड़ी उनकी बात भी कर ली जाए जो ये कहते हैं कि इस देश में रहना अपना भविष्य खराब करना है...यहां भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, बेइमानी, लूट-खसोट, कामचोरी इतनी है कि कोई विदेश से वापस आ भी जाए तो थोड़े दिनों में ही उसके हौसले पस्त हो जाते हैं...हां, अगर ये सब न हो तो हम फौरन मातृभूमि पर बसने के लिए तैयार हैं...वाह क्या बात है जनाब...सब कुछ मीठा मीठा हो जाए तो फिर तो उसे हर कोई गप कर लेगा...क्या आप इस देश की माटी से नहीं जन्मे हैं..क्या आप का अपनी मातृभूमि के लिए कोई फर्ज़ नहीं है...आपकी सारी काबलियत का आज कौन फ़ायदा उठा रहा है...सारी दुनिया को अपनी मुट्ठी में रख कर चलने का सपना देखने वाला अमेरिका या फिर बरसों तक हमें गुलाम बनाकर हमारी दौलत लूट कर ले जाने वाला ब्रिटेन...आज अगर मां बीमार है तो हम उसकी बीमारी दूर करने की कोशिश करेंगे या उसे उसके हाल पर ही छोड़ देंगे...ये कहते हुए इसका कुछ नहीं हो सकता...हां खुद ठीक हो जाएगी तो हम इसके साथ रहने लगेंगे...और अगर आप तस्वीर बदलने के लिए कुछ योगदान नहीं दे सकते तो माफ़ कीजिए, आपको इसे कोसने का भी कोई हक़ नही है...इसे रहने दीजिए फिर जिस हाल में ये है...लड़ाई ग्राउंड ज़ीरो पर ही रह कर लड़ी जा सकती है...

समीर जी की किताब में लिखी बात याद आ गई...जड़ों से कटने का आप हर वक्त गम जताते हैं, लेकिन जड़ ने आपको नहीं छोड़ा था, बल्कि आपने ही उसे छोड़ा था...यहां ये सबको स्वीकार करना चाहिए कि हम अपना खुद का मुकद्दर संवारने के लिए घर से बाहर निकले...आप भारत से तो निकले लेकिन आपके दिल से भारत को कोई माई का लाल नहीं निकाल सकता...

आप अब लिपसर्विस मत करिए बस दिल से कोशिश करिए कि भारत बदले...आपका छोटे से छोटा कदम भी इस दिशा में बढ़ेगा तो भारत सही दिशा में खुद-ब-खुद आगे बढ़ेगा...जिस तरह घर पर कोई आपदा आती है तो सब मिलकर उसका सामना करते हैं, यही एप्रोच आज हम सबको अपनाने की ज़रूरत है...सिर्फ भारत में ही रहने वालों को नहीं बल्कि सारी दुनिया के भारतवंशियों को...आज भ्रष्टाचार का रावण सामने खड़ा है तो सबको मिलकर उस पर तीर चलाने चाहिए...आज किसी राम के आने की उम्मीद मत कीजिए...राम हम सबके अंदर है, बस ज़रूरत है उसे जगाने की...


वाकई आज मैं कुछ ज़्यादा ही बोल गया हूं...किसी को बुरा लगा हो तो अपना समझ कर जाने दीजिएगा...

अब बस इस तरह की छोटी-छोटी पहलें कीजिए...इस वीडियो के आखिर में बुज़ुर्ग साहब के भ्रष्टाचार से लड़ने के तरीके को ज़़रूर देखिएगा...



Every problem has a solution...click this,,,


Read More...

Pulitzer Hero : डॉ सिद्धार्थ मुखर्जी आपकी भारत को बेहद ज़रूरत है...खुशदीप

डॉक्टरी के पेशे से जुड़ी दो ख़बरें आज देखने को मिली...एक अच्छी और एक बुरी...


पहले अच्छी ख़बर...



दिल्ली के सफदरजंग एन्क्लेव मे जन्मे, सेंट कोलंबस स्कूल में पढ़े और अब अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर-कैंसर फिजीशियन डॉक्टर सिद्धार्थ मुखर्जी को प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार से नवाज़ा गया है...मुखर्जी को ये पुरस्कार कैंसर पर उनकी चर्चित पुस्तक 'The Emperor of All Maladies: A Biography of Cancer' के लिए दिया गया...पुलित्जर पुरस्कार राशि के रूप में लेखक को 10,000 डॉलर की राशि दी जाती है...इस पुस्तक में मुखर्जी ने सदियों पहले कैंसर की स्थिति के बारे में प्रकाश डाला है और बीमारी के ऐतिहासिक परिदृश्य को आज के दौर के साथ समेटने की कोशिश की है... मुखर्जी ने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और हारवर्ड मेडिकल स्कूल जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से पढ़ाई की है...

40  साल के मुखर्जी का कहना है- "भारत समेत दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों में कैंसर आश्चर्यजनक रूप से बढ़ रहा है...भारत में कैंसर के बढ़ रहे मामलों से निपटने के लिए धूम्रपान निरोधी एक मजबूत अभियान चलाया जाना चाहिए...साथ ही स्तन कैंसर की जांच को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए...मुखर्जी की इस उपलब्धि से दिल्ली में उनके पिता सिबेश्वर मुखर्जी और माता चंदाना मुखर्जी बहुत खुश हैं...मुखर्जी से पहले सिर्फ तीन भारतीयों को ही पुलित्जर पुरस्कार मिला था-1937 में पत्रकारिता के लिए गोबिंद बिहारी लाल, 2000 में फिक्शन राइटर झुंपा लाहिरी और 2003 में पत्रकार गीता आनंद...डॉक्टर मुखर्जी को इस उपलब्धि के लिए बहुत बहुत बधाई...

अब बुरी ख़बर...

पानीपत में कल रात दो छोटे बच्चों की मां सोनी खाना बनाते वक्त बुरी तरह झुलस गई...नब्बे फीसदी से ज़्यादा जली सोनी को पानीपत ज़िला अस्पताल ले जाया गया...वहां बस नाम की फर्स्ट एड देने के बाद उसे रोहतक पीजीआई के लिए रेफर कर दिया गया...अब रात के वक्त सोनी को इस हालत में उसका पति रामबीर रोहतक कैसे ले जाता...उसने ज़िला अस्पताल के स्टॉफ़-डॉक्टरों से गुहार लगाई कि सरकारी एंबुलेंस से सोनी को रोहतक पहुंचा दिया जाए...सोनी दो घंटे तक अस्पताल के बाहर दर्द से चीखें मारती रही लेकिन ज़िला अस्पताल के कर्ताधर्ताओं का दिल नहीं पसीजा...सोनी का चार साल का मासूम बेटा ड्रिप की बोतल हाथ में पकड़े बैठा था...अस्पताल वालों को जब याद दिलाया गया कि गरीब मरीजों के लिए सरकारी एंबुलेंस की सुविधा जुटाई जाती है तो उलटे रामबीर से कहा गया कि वो पहले साबित करे कि वो गरीब है...साथ ही गरीबों को दिए जाने वाला बीपीएल कार्ड भी दिखाए...एक फैक्ट्री में पेंटर रामबीर काफी देर तक हाथ-पैर जोड़ता रहा...बाद में पानीपत के एक धर्मार्थ जनसेवा संस्थान की एंबुलेंस से सोनी को रोहतक पहुंचाया गया...वहां अब वो आईसीयू में ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रही है...

आपने दोनों ख़बरें पढ़ लीं...दोनों का आपस में कोई जुड़ाव नहीं है...लेकिन अगर ये दोनों ख़बरें जुड़ें तो भारत के हेल्थ सेक्टर की तस्वीर में क्या सुधार नहीं आएगा...डॉक्टर मुखर्जी जब भारत में थे तो उन्होंने एक कैंसर मरीज़ को अपने घर तक में ठहरा लिया था...लेकिन अब डॉक्टर मुखर्जी भारत के नहीं अमेरिका के नागरिक हैं...उनकी किताब से बेशक भारत समेत दुनिया भर के लोगों को लाभ मिलेगा...लेकिन कैंसर फिजीशियन के नाते वो अपनी सेवाएं अमेरिका में ही दे रहे हैं...यही भारत की त्रासदी है...डॉक्टर मुखर्जी ने भारत के ही मेडिकल कॉलेज से डाक्टरी की पढ़ाई करने के बाद अमेरिका का रुख किया होगा...निश्चित रूप से उन्होंने अमेरिका में आगे पढ़ाई और करियर के अच्छे प्रोस्पेक्ट देखते हुए ही अमेरिका जाने का फैसला लिया होगा...ऐसे प्रतिभावान को अमेरिका भी हाथों-हाथ लेने में देर नहीं लगाता...यहां कहने का तात्पर्य यही है कि जो पौधा भारत में परवान चढ़ा और जब उस पर फल लगने का वक्त आया तो अमेरिका उसका लाभ उठाने लगा...क्या डॉक्टर मुखर्जी और विदेशों में बसे दूसरे होनहार डॉक्टरों की आज भारत को ज़्यादा ज़रूरत नहीं है...कैंसर के पीड़ितों की भारत में संख्या बढ़ रही है तो यहां कैंसर के चिकित्सक भी बड़ी संख्या में चाहिए...कैंसर का महंगा इलाज गरीबों के बस से बाहर की बात है...तो क्या डॉ मुखर्जी जैसे रहमदिल डॉक्टर के भारत आने से कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा...बेशक अमेरिका जैसी सुख-सुविधाएं यहां नहीं मिलेंगी...लेकिन सम्मानजनक जीवन जीने के लिए यहां भी मौके कम नहीं है...

ऊपर पानीपत में सोनी की आपबीती मैंने इसीलिए सुनाई कि यहां गरीबों के साथ किस तरह का अमानवीय व्यवहार किया जाता है...अगर डॉक्टर मुखर्जी जैसे डॉक्टर भारत में होंगे तो कैंसर से पीड़ित कुछ गरीबों को तो राहत मिलेगी...बूंद-बूंद से सागर बनता है...बस डॉक्टर मुखर्जी जैसी प्रतिभाओं को ज़रूरत है भारत के लिए कुछ करने का जज़्बा दिखाने की...यकीन मानिए यहां आकर गरीबों के चेहरे पर खुशी लाने का अहसास पुलित्जर पुरस्कार से कहीं बड़ा होगा...

To get laughter dose click this link-
If English speaking is your problem, get Punjab way...
Read More...

Victory of New Media...ये न्यू मीडिया की जीत है...खुशदीप




राजनीतिक पार्टियां हलकान है्ं...

क्राउड मैनेजमेंट करने वाली कंपनियां हैरान हैं...

रिसर्च हो रही हैं कि आखिर अन्ना हजारे के अनशन के दौरान इतना जनसमर्थन जुटा तो जुटा कैसे...

राजनीतिक रैलियों के लिए जो काम पैसा पानी की तरह बहाने के बावजूद नहीं किया जा सकता, वो जंतर मंतर पर पांच अप्रैल से लेकर नौ अप्रैल तक हुआ कैसे...वो भी तब जब पूरा देश क्रिकेट वर्ल्ड कप दूसरी बार जीतने के खुमार में था...लेकिन जो हुआ वो पूरी दुनिया ने देखा...अ्न्ना ने जादू की छड़ी तो घुमाई नहीं थी जो पूरे देश को अपने पीछे कर लिया...

ये सच बात है कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कर्मठ कार्यकर्ताओं ने जन लोकपाल बिल के लिए लोगों का समर्थन जुटाने के लिए कड़ी मेहनत की...महीनों पहले ही इसका प्रचार शुरू कर दिया..माउथ पब्लिसिटी कितनी असरदार हो सकती है वो लोगों के खुद-ब-खुद जंतर-मंतर की ओर बढ़ने से पता चला...लेकिन इस आंदोलन की सफलता का असली हीरो न्यू मीडिया है...आईटी की नई तकनीक है...ब्लॉगिंग, एसएमएस, ई-मेल, फेसबुक, ट्विटर, आरकुट, बज़, माइक्रोसाइट्स, सोशल फोरम सभी ने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ ऐसा माहौल तैयार किया जिसका सीधा फायदा इंडिया अंगेस्ट करप्शन की मुहिम को मिला...करीब साढ़े तीन दशक पहले जेपी के आंदोलन के बाद ये पहला मौका था कि लोगों में सत्ता के गलियारों के ख़िलाफ़ इतना गुस्सा देखने को मिला...ऐसा दबाव बना कि चार दिन में सरकार को अन्ना हज़ारे की मांगें माननी पड़ीं...

यहां ये ज़िक्र करना भी ज़रूरी है कि पिछले तीन-चार महीने में ट्यूनीशिया, मिस्र जैसे देशों में जास्मिन क्रांति के ज़रिए लोगों ने दशकों से जमे तानाशाहों के पैर उखड़ते देखे...जास्मिन क्रांति यानि वो क्रांति जिसका कोई राजनीतिक रंग न हो...न्यू मीडिया ने लोगों के दबे हुए गुस्से को बाहर निकलने के लिए आउटलेट दिया...वो अक्स भी देश वालों के ज़ेहन में ताजा थे...देश की जनता में कहीं न कहीं ये संदेश गया कि एकजुट होकर सत्ता को झुकाया जा सकता है...

फिर देश ने पिछले एक डेढ़ साल में जितने घोटाले देखे, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था...लाखों करोड़ों की बंदरबांट से देश की जनता को यही लगा कि भ्रष्ट नेता दोनों हाथों से देश का पैसा लूटने में लगे हैं और केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है...टू-जी घोटाले के आरोपी ए राजा के मंत्री बनने के पीछे प्रधानमंत्री का गठबंधन धर्म की मजबूरी का हवाला देना किसी भी देशवासी के गले नहीं उतरा...नीरा राडिया टेप बमों से बरखा दत्त, वीर सांघवी जैसे दिग्गज पत्रकारों की साख को बट्टा लगते देखा तो स्थापित मीडिया की विश्वसनीयता पर भी सवालिया निशान लगे...ऐसे में न्यू मीडिया के ज़रिए लोगों को अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम मिला...ऐसा माध्यम जिसकी अपनी कोई लाइन नहीं, लोगों को हर तरह की भावनाओं को जताने के लिए मंच मिला...मुद्दों पर जैसी ज्वलंत बहस यहां दिखी, वो अभूतपूर्व थी...

न्यू मीडिया की ताकत का देश ने पहली बार किस शिद्दत के साथ अहसास किया, इसे सबसे अच्छी तरह लालकृष्ण आडवाणी ने अपने ब्लॉग में इंगित किया है...आडवाणी देश में सबसे बड़े विरोधी दल के सबसे वरिष्ठ सक्रिय राजनेता हैं...अगर वो भी मानने लगें कि आईटी ने सभी को पीछे धकेल दिया है तो आप खुद ही समझ सकते हैं कि न्यू मीडिया आने वाले वक्त में देश की तकदीर तय करने में कितनी प्रभावी भूमिका निभाने वाला है...आडवाणी ने लिखा है...

अण्णा हजारे के केस में टी.वी. का स्थान आई.टी. ने ले लिया और इसने 73 वर्षीय पूर्व सैनिक को न केवल देश में अपितु दुनियाभर के भारतीयों में एक दूसरा नायक बना दिया। इसका तत्काल असर यह हुआ कि जिस जेपीसी को एनडीए सहित समूचे विपक्ष ने दो महीने के बाद हासिल किया और वह भी पूरे शीतकालीन सत्र में संसद को कोई कामकाज न करने देकर इतिहास बनाने के बाद; वहीं हजारे द्वारा आमरण अनशन की घोषणा करने के चार दिनों के भीतर उनके सीमित लक्ष्य कि और प्रभावी लोकपाल बनाया जाए, को हासिल करने में सफल रहे।

आडवाणी के इस बयान में कहीं न कहीं कसक दिखती है, सरकार की विफलता के खिलाफ लोगों को एकजुट करने का जो काम अपोज़िशन नहीं कर पाया, उसे अन्ना हजारे के अनशन ने कर दिखाया...यानि जनता अब उसी की सुनेगी जो राजनीतिक स्वार्थ से हटकर वाकई देश के भले की बात सोचता हो...सोचता ही नहीं हो उसे अमल में ला कर भी दिखाता हो...आज तक देश में विरोधी दल भारत-बंद जैसे आह्वान तो करते आए हैं लेकिन उनका कभी कोई नेता किसी मुद्दे पर आमरण अनशन पर क्यों नहीं बैठा...यही सवाल अन्ना हज़ारे की ताकत बना...

If English speaking is your problem, read this..



Read More...

जनता या मंदिर का घंटा, जो चाहे आकर बजा दे...खुशदीप


नेता...हम जनता के नुमाइंदे हैं...
सिविल सोसायटी- हम जनता के नुमाइंदे हैं...


नेता...विरोधी कुछ भी कहें, हमें जनता चुन कर भेजती है..
सिविल सोसायटी...सरकार, नेता कुछ भी कहें, हम जनता की असली आवाज़ हैं...


नेता...हमारे विरोधी हम पर आरोप द्वेष भावना के चलते लगाते हैं जिससे हम चुनाव न जीत सकें...
सिविल सोसायटी...भ्रष्टाचारी नेता एकजुट होकर हम पर आरोप लगा रहे हैं जिससे भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मुहिम पटरी से उतर जाए...

नेता...जब तक अदालत (वो भी सुप्रीम कोर्ट) दोषी करार न दे दे हम निर्दोष हैं...
सिविल सोसायटी...झूठा आरोप लगाने वालों को अदालत में जवाब देना होगा...अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहें...


मॉरल ऑफ द स्टोरी...सब दूध के धुले हैं, कमबख्त ये जनता ही मतिभ्रष्ट है, जो चांद को खिलौना समझ कर छूने की जिद करने लगती है...हम होंगे कामयाब...हम होंगे कामयाब...


चलिए अब दिमाग़ पर ज़ोर मत डालिए...नीचे का वीडियो गौर से और पूरा देखिए...क्या जनता का भविष्य यही है....



Want to know why wife is called Virus, click this

Read More...

KBL...कौन बने लोकपाल, आप भी सुझाइए नाम...खुशदीप




KBC की तर्ज पर KBL...

KBC नॉलेज के सूरमाओं को करोड़पति बनाता था...

KBL का विचार ऐसे देश को बनाने का है जो आज़ादी के 63 साल बाद भी दुर्भाग्य से नहीं बन पाया...ऐसा देश जहां सच में ही जनता की चुनी सरकार, जनता की सरकार, जनता के लिए देश को चलाए...अन्ना हजारे इस सपने को जन लोकपाल के ज़रिए पूरा कराना चाहते हैं....रास्ता कितना मुश्किल है इसका अंदाज़ तभी लग गया जब अन्ना को बिल का ड्राफ्ट तैयार करने वाली कमेटी में सिविल सोसायटी के नुमाइंदों को शामिल कराने के लिए ही आमरण अनशन का सहारा लेना पड़ा...अन्ना के पीछे भारी जनसमर्थन आ जुटा तो सरकार को भी झुकना पड़ा...या यूं कहिए सोनिया गांधी ने सरकार से झुकने के लिए कहा...अन्ना के अनशन के ज़रिए देश ने पहली बार न्यू मीडिया की ताकत को भी देखा...बिना किसी राजनीतिक शक्ति के दखल के पूरे देश में अन्ना के समर्थन में माहौल बना...ब्लॉग, फेसबुक, ट्विटर, एसएमएस, ई-मेल, नुक्कड़ नाटक के ज़रिए अन्ना का संदेश सिर्फ भारत के कोने-कोने में ही नहीं पूरी दुनिया में वहां-वहां भी पहुंचा, जहां-जहां भारतवंशी रहते हैं...

खैर राम-राम करते किसी तरह सरकार के पांच नुमाइंदे सिविल सोसायटी के पांच नुमाइंदों के साथ एक टेबल पर बैठने के लिए तैयार हुए...लेकिन बैकडोर से कीचड़ उछलवाने का खेल भी चलता रहा...अच्छा रहा कि दोनों तरफ़ से समझदारी दिखाई गई और लोकपाल बिल का ड्राफ्ट तैयार करने वाली कमेटी की पहली बैठक शनिवार 16 अप्रैल को सौहार्दपूर्ण माहौल में निपट गई...अब 2 मई को कमेटी के दस सदस्य फिर मिलेंगे...फिर हर हफ्ते बैठक होगी जिससे 30 जून तक लोकपाल बिल का ड्राफ्ट तैयार कर लिया जाए और हर हाल में इसे मानसूत्र सत्र में संसद में पेश कर दिया जाए...

बैठक में मोटे तौर पर लोकपाल बिल को लेकर कुछ संशोधनों पर भी सहमति बनी...जैसे कि...

लोकपाल और इसके 10 सदस्यों को चुनने के लिए तीन चरणों वाली प्रक्रिया अपनाई जाए...


सिविल सोसायटी की ओर से तैयार जन लोकपाल बिल के पुराने मसौदे में था कि जो पैनल लोकपाल और दस सदस्यों को चुनने के लिए बनाया जाएगा, उसके मुखिया उपराष्ट्रपति यानि राज्यसभा के सभापति रहेंगे और लोकसभा स्पीकर सदस्य के तौर पर शामिल होंगे...लेकिन कल की बैठक में सहमति बनी कि इस पैनल के मुखिया प्रधानमंत्री रहेंगे और लोकसभा में अपोज़िशन लीडर को भी सदस्य के तौर पर शामिल किया जाएगा...यानि राज्यसभा के सभापति और लोकसभा स्पीकर दोनों ही लोकपाल को चुनने वाले पैनल में शामिल नहीं हो सकेंगे...


पुराने मसौदे में सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम जज, हाईकोर्ट के दो वरिष्ठतम चीफ जस्टिस और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन को भी लोकपाल को चुनने वाले पैनल में शामिल करने की बात थी...लेकिन नए मसौदे में सुप्रीम कोर्ट के दो सबसे युवा जज, हाईकोर्ट के दो सबसे युवा चीफ जस्टिस शामिल करने की बात है...राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन अब पैनल में शामिल नहीं किए जाएंगे...


पुराने मसौदे में था कि लोकपाल को सरकारी सेवक और जनसेवक दोनों के ख़िलाफ़ जांच करने का अधिकार होगा...इसमें सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जज भी शामिल होंगे...लेकिन नए मसौदे में जज के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार की कोई शिकायत आती है तो वो पहले लोकपाल के एक सदस्य वाली स्क्रीनिंग कमेटी के पास भेजी जाएगी...स्क्रीनिंग के बाद लोकपाल के सात सदस्यों वाली बेंच आगे की कार्रवाई करने या न करने पर फैसला करेगी...

लोकपाल को फोन इंटरसेप्ट करने और इंटरनेट को मॉनीटर करने का भी अधिकार होगा...


लोकपाल बिल का अंतिम ड्राफ्ट तैयार करने का काम तो 30 जून तक (कोई अड़ंगा न लगा तो) पूरा हो ही जाएगा...लेकिन अब यहां ये सवाल नहीं उठता कि लोकपाल या उसकी मदद करने वाले सदस्यों के लिए देश में से बेदाग़ छवि, बेजोड़ साख वाले लोग लाए कहां से जाएंगे...जिस लोकपाल पर पूरे देश की उम्मीद टिकी हो, ज़रूरी है उस शख्स को पूरे देश का भरोसा भी हासिल होना चाहिए...लोकपाल के दूसरे सदस्य भी ईमानदारी के साफ़ ट्रैक की मिसाल होने चाहिए...ऐसे लोग देश में है ही कितने...

चलिए ब्लॉगजगत की ओर से हम ही पहल करते हैं, मैग्नीफाइंग ग्लास लेकर हर फील्ड से ढूंढते हैं...नैतिकता, शुचिता और ईमानदारी के पैमाने पर खरा उतरने वाले लोगों को...मैंने इस लिहाज़ से अपनी पसंद के लोगों की लिस्ट बनाई है...आपको भी जो जो हस्तियां खरी लगती हों, उनके नाम सुझाइए...फिर सिविल सोसायटी तक ये नाम पहुंचाएं जाएंगे...कोशिश यही है कि देश में जितने भी नेक और ईमानदार लोग अपनी मेहनत से किसी मकाम तक पहुंचे हैं वो ज़रूर किसी न किसी रूप में लोकपाल की उस प्रक्रिया से जुड़ें जो देश की तकदीर बदल सकती है...


मेरी पसंद के नाम...



डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम
डॉ कलाम पूर्व राष्ट्रपति ही नहीं पीपुल्स प्रेज़ीडेंट के तौर पर लोगों के दिलों में राज करते हैं,पूरा देश इनके बारे में हर बात अच्छी तरह जानता है...










ई श्रीधरन
मेट्रोमैन के नाम से मशहूर ई श्रीधरन ने देश में आज़ादी के बाद विकास के सबसे बड़े काम दिल्ली मेट्रो को सफलता की वो मिसाल बना दिया, जिसका अनुसरण हर फील्ड में किया जाए तो देश का नक्शा ही पलट जाए, ये वहीं श्रीधरन हैं जिन्होंने दिल्ली में मेट्रो का एक पिल्लर गिरने पर इस्तीफ़ा देने में एक मिनट की भी देर नहीं लगाई थी...लेकिन सरकार के पास उनका विकल्प कहां से आता, बड़ी मुश्किल से श्रीधरन इस्तीफ़ा वापस लेने को तैयार हुए...इन्हीं श्रीधरन को हैदराबाद मेट्रो में सलाहकार बनने के लिए न्यौता दिया गया था, लेकिन श्रीधरन ने प्रोजेक्ट रिपोर्ट देखते ही उसमें भ्रष्टाचार को सूंघ लिया और साफ तौर पर उससे जुड़ने से इनकार कर दिया था, जहां तक मेरी पसंद की बात है तो ई श्रीधरन देश के लिए बढ़िया लोकपाल साबित हो सकते हैं...


सोमनाथ चटर्जी
लोकसभा के पूर्व स्पीकर सोमनाथ चटर्जी को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए...सोमनाथ चटर्जी ही वो शख्स हैं जिन्होंने स्पीकर के पद की मर्यादा को नई ऊंचाई दी...न्यूक्लियर डील के मुद्दे पर सोमनाथ दा पर उनकी पार्टी सीपीएम का ही दबाव था कि वो इस्तीफा देकर पार्टी लाइन को मानें...लेकिन सोमनाथ दा ने जो फैसला किया, वो इस बात की मिसाल था कि स्पीकर का पद दलगत राजनीति से नहीं जुड़ा होता...


 
 
 
 
 
एन राम
हिंदू के एडीटर इन चीफ एन राम को पत्रकारिता के पुरोधा के तौर पर पूरा देश जानता है...लेकिन एन राम वो शख्स हैं जिन्होंने सबसे पहले ज़ोर देकर कहा कि अगर मीडिया को भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठानी है तो पहले उसे खुद भी पूरी तरह भ्रष्टाचार से मुक्त और शुचिता के पैमाने पर खरा उतरना चाहिए....एन राम ने ही राडियागेट कांड में बरखा दत्त और वीर सांघ्वी जैसे दिग्गजों का नाम आने पर साफ तौर पर कहा था कि उन्होंने अपने अधिकारों का अतिक्रमण किया, इसलिए उनकी माफ़ी को स्वीकार नहीं किया जा सकता...एन राम के मुताबिक बीबीसी, न्यूयॉर्क टाइम्स और फाइनेंशियल टाइम्स जैसे संस्थान होते तो अपने वरिष्ठ पत्रकारों का इस तरह का व्यवहार कतई बर्दाश्त नहीं करते...


जे एम लिंग्दोह
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त और सरकारी सेवा के लिए 2003 में मैग्सेसे अवार्ड विजेता जे एम लिंग्दोह का बेदाग रिकार्ड रहा है...पी जे थॉमस की सीवीसी पद के लिए नियुक्ति के मनमोहन सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने वाली हस्तियों में लिंग्दोह प्रमुख थे...ये लिंग्दोह ही हैं जिन्होंने 2002-03 में मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर रहते गुजरात में बीजेपी सरकार की विधानसभा भंग करने की सिफारिश के बाद शीघ्र चुनाव कराने के सुझाव को नहीं माना था...लिंग्दोह को लगा था कि बीजेपी उस वक्त गुजरात के माहौल को राजनीतिक तौर पर भुनाने के लिए शीघ्र चुनाव कराना चाहती थी...लिंग्दोह ने पूरे इंतज़ाम के लिए पूरा वक्त लेने के बाद ही गुजरात में चुनाव कराने का फैसला किया था...


अभयानंद
अभयानंद 1977 बैच के आईपीएस हैं और इस वक्त बिहार के एडिशनल डायरेक्टर जनरल है...लेकिन अभयानंद की इससे बड़ी पहचान सुपर 30 प्रोग्राम से जुड़े रहने से बनी...फिजिक्स में कॉलेज टॉपर रहे अभयानंद ने आनंद कुमार के साथ मिलकर सुपर 30 को ऐसा प्रोग्राम बना दिया जिसकी गूंज भारत के साथ पूरे विश्व में सुनाई देती है...इसमें 30 गरीब बच्चों को आईआईटी में दाखिले के एग्जाम की तैयारी के लिए कोचिंग के लिए चुना जाता...फिर उन्हें किताबें, खाने, रहने की सभी सुविधा देकर तैयारी कराई जाती थी...अभयानंद सर्विस करते हुए भी बच्चों को फिजिक्स पढ़ाने के लिए वक्त निकालते रहे...ये प्रोग्राम कितना कामयाब रहा इसका अंदाज़ इसी से लगाया जा सकता है कि इसके सारे ही बच्चे 2008 में आईआईटी के लिए चुने गए...2008 में ही अभयानंद ने खुद को सुपर 30 चलाने वाले रामानुजन स्कूल ऑफ मैथेमैटिक्स से अलग किया...अभयानंद ने खुद को इसी तर्ज पर अलग रहमनी सुपर 30 योजना से जोड़ा जिससे मुस्लिम समाज के गरीब बच्चों को भी आईआईटी में दाखिले के लिए तैयार किया जा सके...2009 में ऐसे ही एक बच्चे को आईआईटी में दाखिला लेने में कामयाबी भी मिली...

लोकपाल और इसके सदस्यों को चुनने वाले पैनल को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हेड करने और लोकसभा में अपोजिशन की नेता सुषमा स्वराज के सदस्य के तौर पर भी किसी को ऐतराज़ नहीं होना चाहिए...दोनों देश की दो मुख्य राजनीतिक धाराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं...जिसको नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता...

इसके अलावा सिविल सोसायटी से अरविंद केजरीवाल, जस्टिस संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण भी ऐसे नाम हैं जिन्हें अन्ना हजारे की सरपरस्ती में लोकपाल और उसके सदस्य चुनने की प्रक्रिया से जुड़े रहना चाहिए...हां, शांति भूषण जी का नाम जैसे सवा अरब रुपये की संपत्ति और सीडी को लेकर विवादों के घेरे में घसीटा जा रहा है, उसमें खुद ही उन्हें ड्राफ्ट कमेटी से अलग हो जाना चाहिए...अब ये आरोप बेशक झूठे भी हों लेकिन शांतिभूषण जी को इस्तीफा देकर नैतिकता की मिसाल कायम करनी चाहिए...भ्रष्टाचार के खिलाफ यही तो सिविल सोसायटी के सदस्यों के साथ पूरे देश की जनता की भी आवाज़ है, जिनकी छवि पर दाग आए उन्हें तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए...और इंतज़ार करना चाहिए,जब तक उनका नाम जांच में पूरी तरह बेदाग़ साबित नहीं हो जाता...
Read More...

बुल्ला कि जाने असीमा कौन...खुशदीप




मैं कौन हूं...मैं असीमा हूं...इस सवाल की तलाश में तो बड़े बड़े भटकते फिरते हैं...फिर चाहे वो बुल्लेशाह हों-बुल्ला कि जाना मैं कौन..या गालिब हों...डुबोया मुझको होने ने...ना होता मैं तो क्या होता...सो इसी तलाश में हूं मैं...मुझे सचमुच नहीं पता कि मैं क्या हूं...बड़ी शिद्दत से यह जानने की कोशिश कर रही हूं...वैसे कभी कभी लगता है...मैं मीर,फैज और गालिब की माशूका हूं तो कभी लगता है कि निजामुद्दीन औलिया और अमीर खुसरो की सुहागन हूं...शायद लोगो को लग रहा होगा कि पागल हूं...होश में नहीं हूं...मुझे ये पगली शब्द बहुत पसंद है..,कुछ कुछ दीवानी सी...



ये ऊपर की पंक्तियां पढ़ कर आपको कुछ हुआ...मेरे अंदर तो सिहरन सी दौड़ गई...लगा कि क्या कोई शब्दों से भी अभिनय कर सकता है...ऊपर लिखा पढ़ कर खुद को रोक नहीं सका इस शख्सियत के बारे में और जानने से...असीमा भट्ट...प्रोफेशन- अभिनय...मुंबई में डेरा...अल्फाज़ों से ये क्या जादू जगा सकती हैं, चांद, रात और नींद में देखिए...

एक बार इनके यहां जाकर देखिए, मुझे याद रखेंगे...और हां इनकी हौसला-अफ़ज़ाई करना मत भूलिएगा...
Read More...

राज जी ने राज़ न रहने दिया...खुशदीप


शुरू करूं इससे पहले ज़रा ये एड देख लीजिए...


अब आप भी मान लीजिए, कोई सस्पेंस थ्रिलर फिल्म देखने गए हैं...फिल्म में एक हत्या को लेकर छह-सात लोगों पर शक जाता है कि इन्हीं में से किसी ने हत्या की होगी...फिल्म में बिल्कुल आखिर में जाकर पता चलता है कि ख़ूनी कौन था...लेकिन अभी फिल्म शुरू भी नहीं हुई कि आपकी साथ वाली सीट पर बैठा शख्स आपको ये बता दे कि फिल्म में आखिर में ख़ूनी कौन निकलेगा...तो आप पर क्या बीतेगी.. फिल्म का सस्पेंस तो गया भाड़ में आपका तीन घंटे हॉल में बैठना ही भारी हो जाएगा...लेकिन उसके बाद भी कोई फिल्म पूरी देखता है तो उसके धैर्य को दाद दी जानी चाहिए...

इस एड में लड़के को वो राज भाटिया जी मानिए जो आज से बारह-पंद्रह साल पहले दिखते होंगे...राज जी दिल से, विचारों से आज भी पूरे जवान हैं...जर्मनी से रोहतक आकर जिस तरह से उन्होंने ब्लॉगरों की खातिरदारी की थी, वो मैं कभी नहीं भूल सकता...कल मैं अपनी पोस्ट पर कुछ फोटो डालकर बड़ा तुर्रम खां बन रहा था...लेकिन मेरी बेबसी देखिए, इधर पोस्ट डाली नहीं कि राज जी ने तड़ से कमेंट जड़ कर सारा राज़ खोल दिया...

अजी यह कुदरत का कोई करिश्मा नही...इंसान का करिश्मा हे, यह बच्चे मार्जीपेन ( बादाम के आटे) से बने हैं, और यहां बिकते हैं...वैसे तो मार्जीपेन खाने मे बहुत स्वादिष्ट होता हैं, लेकिन मुझे नही लगता कि लोग इन आकृतियो को खाते हो...वैसे इन्हें क्रिसमस के त्योहारों पर सजाने के लिये काम मे लाते हैं,या फ़िर अन्य धार्मिक मौकों पर...

राज़ खुल गया तो खुल गया...अब आगे स्पोर्ट्समैनशिप दिखाते हुए मुझे पोस्ट तो लिखनी ही होगी...राज जी ने बस एक चीज़ नहीं बताई,वो मैं आपको बता देता हूं कि इसमें बादाम के आटे के साथ अंडे के व्हाइट का भी इस्तेमाल किया जाता है...इन दोनों के मिश्रण से ही मार्जीपेन बनता है...मार्जीपेन से बने ये कुकीज़ किस कमबख्त का खाने का जी करता होगा, वही सोच कर हैरान हूं...अब इस फोटो में देखिए कि मार्जीपेन से कैसे बच्चों को ढाला जा रहा है...




स्लॉग ओवर

1975 में सुपरमैन, स्पाइडरमैन और बैटमैन तीनों भारत के ऊपर से उड़ रहे थे...अचानक तीनों की मौत हो गई, क्यों भला...
....

....

न बाबा न, हर एक चीज़ का जवाब रजनीकांत नहीं होता...तो फिर...

...

...

याद नहीं गब्बर ने शोले में तीन गोलियां हवा में चलाई थीं...

Read More...

ये कुदरत का करिश्मा या कुछ और...खुशदीप


आज मुझे ई-मेल से मिली ये अद्भुत फोटो देखिए...बस पोस्ट में आज इतना ही...इसके बारे में कल जो आपको बताऊंगा, वो वाकई चौंकाने वाला होगा...













Read More...

ब्लॉगरों से अख़बारों की चोट्टागिरी...खुशदीप

छपास का रोग बड़ा बुरा, बड़ा बुरा,
माका नाका गा भाई माका नाका,
ऐसा मेरे को मेरी  मां  ने कहा,
माका नाका नाका भाई माका नाका...

ब्लॉगिंग में हम पोस्ट चेप चेप कर कितने भी तुर्रम खान बन जाए लेकिन जो मज़ा प्रिंट मीडिया के कारे-कारे पन्नों में खुद को नाम के साथ छपा देखकर आता है, वो बस अनुभव करने की चीज़ है, बयान करने की नहीं...अब बेशक अखबार वाले ब्लॉग पर कहीं से भी कोई सी भी पोस्ट उठा लें, बस क्रेडिट दे दें तो ऐसा लगता है कि लिखना-लिखाना सफ़ल हो गया...अब ये बात दूसरी है कि बी एस पाबला जी अपने ब्लॉग इन मीडिया के ज़रिए सूचना न दें तो ज़्यादातर ब्लॉगर को तो पता ही न चले कि वो किसी अखबार में छपे भी हैं...

खैर, अब मुद्दे की बात पर आता हूं...अखबार किसी लेखक की रचना छापते हैं तो बाकायदा उसका मेहनताना चुकाया जाता है...लेकिन जहां बात ब्लॉगरों की आती है तो उनकी रचनाओ को सारे अखबार पिताजी का माल समझते हैं...कहीं से भी कभी भी कोई पोस्ट निकाल कर चेप दी जाती है...पारिश्रमिक तो दूर लेखक को सूचना तक नहीं दी जाती है कि उसकी अमुक रचना छपी है...अखबार इतनी दरियादिली ज़रूर दिखाते है कि पोस्ट के साथ ब्लॉगर और उसके ब्लॉग का नाम दे देते हैं...कभी-कभी तो ये भी गोल हो जाता है...



यहां तक तो ठीक है, लेकिन बात इससे कहीं ज़्यादा गंभीर है...कहते हैं न कि गलत काम पर न टोको तो  सामने वाले का हौसला बढ़ता ही जाता है...ऐसा ही हाल अखबारो का भी है...अभी हाल में ही एक अखबार के किए-कराए की वजह से भाई राजीव कुमार तनेजा को अनूप शुक्ला जी को लेकर गलतफहमी हुई...उन्होंने त्वरित प्रतिक्रिया में आपत्तिजनक टाइटल देते हुए पोस्ट लिख डाली...ये सब आवेश में हुआ...बाद में गलती समझ में आने पर राजीव जी ने वो पोस्ट अपने ब्ल़ॉग से हटा भी दी...लेकिन जो नुकसान होना था वो तो हो ही गया...और ये सब जिस अखबार ने किया, उसको रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा...हुआ ये था कि इस बार होली पर अखबार ने अनूप जी की पिछले साल होली पर लिखी हुई पोस्ट बिना अनुमति उठा कर धड़ल्ले से छापी और साथ रंग जमाने के लिए राजीव जी के ब्लॉग से कुछ चित्र उड़ा कर भी ठोक डाले...राजीव जी से भी इसके लिए कोई अनुमति नहीं ली गई...राजीव जी को ऐसा लगा कि सब कुछ अनूप शुक्ला जी ने किया है...जबकि वो खुद भी राजीव जी की तरह ही भुक्तभोगी थे...अब क्या इस अखबार के खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू नहीं की जानी चाहिए...

चलिए इस प्रकरण को छोड़िए...अखबार ब्लॉगरों के क्रिएटिव काम को घर का माल समझते हुए कोई पारिश्रमिक नहीं देते, कोई पूर्व अनुमति नहीं लेते...यहां तक ब्लॉगर झेल सकते हैं...लेकिन ये कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है कि कोई आपके लिखे से खिलवाड़ करे और अपनी तरफ से उसमें नए शब्द घुसेड़ दे...पोस्ट को जैसे मर्जी जहां से मर्जी काट-छांट कर अपने अखबार के स्पेस के मुताबिक ढाल ले...शीर्षक खुद के हिसाब से बदल ले...वाक्य-विन्यास के साथ ऐसी छेड़छाड़ करे कि अर्थ ही अलग निकलता दिखाई दे...और ये सब आपका नाम देकर ही किया जाए...अखबार के पाठक को तो यही संदेश जाएगा कि जो भी लिखा है ब्लॉगर ने ही लिखा है...क्या ये चोट्टागिरी ब्लॉगर की रचनात्मकता के लिए खतरा नहीं...

आज ऐसा ही मेरी एक पोस्ट के साथ हुआ...लखनऊ के डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट अखबार ने मेरी पोस्ट अन्ना से मेरे दस सवाल को छापा...अब आप फर्क देखने के लिए मेरी पोस्ट को पहले पढ़िए....और फिर अखबार ने देखिए छापा क्या....



पहले तो शीर्षक ही बदल दिया गया...मेरा शीर्षक था अन्ना से मेरे दस सवाल और अखबार ने छापा अन्ना को कुछ सुझाव...दूसरी लाईन में मैंने लिखा कि अन्ना की ईमानदारी और मंशा को लेकर मुझे कोई शक-ओ-शुबहा नहीं...अखबार ने छापा...अन्ना की ईमानदारी और मंशा पर किसी को कोई शक नहीं...मैंने लिखा...कांग्रेस और केंद्र सरकार...छापा गया कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार...फिर कुछ लाइनें गोल कर दी गईं...और अखबार ने लिखा...मेरा कहना है कि नेता कौन से अच्छे है और बुरे, ये देश की जनता भी जानती है...जबकि मैंने यहां ये कहीं नहीं लिखा था कि मेरा कहना है...इस तरह के तमाम विरोधाभास मेरे नाम पर ही अखबार ने जो छापा उसमें भर दिए...मेरी सबसे ज़्यादा आपत्ति उस पैरे को लेकर है जिसमें मैंने स्वामी रामदेव के बारे में लिखा था...

मैंने अन्ना को अपने चौथे सवाल में लिखा था-
स्वामी रामदेव जैसे 'शुभचिंतकों' से सतर्क रहें...शांतिभूषण जी और प्रशांत भूषण को साथ कमेटी में रखे जाने को लेकर जिस तरह रामदेव ने आपको कटघरे में खड़ा किया, वैसी हिम्मत तो सरकार ने भी नहीं दिखाई...


और अखबार ने छापा...
स्वामी रामदेव जैसे शुभचिंतकों से जितना सतर्क रहा जा सके उतना ही अच्छा हो...आखिर उनकी शिक्षा ही कितनी है कि शांतिभूषण और प्रशांत भूषण को कमेटी में रखे जाने का विरोध करें...रामदेव ने तो अन्ना तक को कटघरे में खड़ा किया...ऐसी हिम्मत सरकार ने भी नहीं दिखाई...


देखिए है न कितना उलट...मैंने कब स्वामी रामदेव की शिक्षा जैसा प्रश्न उठाया...लेकिन जो भी अखबार में लेख को पढ़ेगा वो तो यही समझेगा कि मैंने ही ये लिखा है...साथ ही ये भी आभास होता है कि रामदेव ने तो अन्ना तक को कटघरे में खड़ा किया...जबकि मैंने वो बात शांतिभूषण और प्रशांत भूषण के संदर्भ को देते हुए लिखी थी...लेकिन आभास ऐसा हो रहा है कि रामदेव ने किसी और मुद्दे पर अन्ना को कटघरे में खड़ा किया...

आपने सब पढ़ लिया...आप खुद ही तय कीजिए कि अखबारों की ये मनमानी क्या जायज़ है...क्या इसीलिए ब्ल़ॉगर चुप बैठे रहें कि अखबार हमें छाप कर हमारे पर बड़ी कृपा कर रहे हैं...क्या अपनी रचनात्मकता से ऐसा खिलवाड़ बर्दाश्त किया जाना चाहिए...अखबार कोई चैरिटी के लिए नहीं छापे जा रहे हैं...अखबार सर्कुलेशन और एड दोनों से ही कमाई करते हैं...अपने कमर्शियल हित साधने के लिए ही वो ब्लॉग से अच्छी सामग्री उठा कर अपने पेज़ों की वैल्यू बढ़ाते हैं...इससे उनकी कमाई बढ़ती है...फिर वो क्यों ब्लॉगरों को पारिश्रमिक देने की बात भी नहीं सोचते...ऊपर से ब्लॉगरों के लिखे का इस तरह चीरहरण...आज मेरे साथ हुआ, अनूप शुक्ला जी के साथ हुआ, राजीव तनेजा जी के साथ हुआ...कल और किसी के साथ भी हो सकता है...क्या ब्लॉगजगत को अखबारों की ये निरंकुशता रोकने के लिए एकजुट होकर आवाज़ नहीं उठानी चाहिए...
Read More...

अन्ना, अंधभक्ति और राजनीति...खुशदीप


अन्ना के अन्दर लोगों ने असली गांधी देख लिया है, उनका निष्पाप जीवन दधीचि की याद दिलाता है जिसने अपनी हड्डियां, राक्षसों से किये जाने वाले युद्ध के लिये वज्र बनाने के लिये दान कर दीं...


यह तौल तौल कर बोलना,और हर बोल के राजनैतिक परिणाम सोच कर बोलना, उस मानसिकता का प्रतीक है जो बिके हुये मीडिया के जरिये माहौल बनाती बिगाड़ती है...


सवाल सिर्फ एक है आप अन्ना के साथ है या नहीं ! हमें गर्व है कि हम अन्ना के अन्धभक्त हैं...

ये तीन पंक्तियां कल अपनी पोस्ट पर सम्वेदना के स्वर की दो टिप्पणियों से ली हैं...सोलह आने सही बात है कि देश के हर इनसान को अब सोचना होगा कि वो कहां खड़ा है...किसके साथ चलना चाहता है...हर पांच साल में धोखा देने वाले राजनेताओं के साथ या 73 साल के नौजवान ख़ून अन्ना के साथ...अन्ना पर अंधभक्ति रखना सबूत है कि देश की जनता कितनी त्रस्त हो चुकी है...किस तरह का लावा उसके अंदर घर कर चुका है...



ये जोश अच्छी बात है...लेकिन सिर्फ जोश दिखाने से ही काम नहीं बनता...जोश के साथ होश भी बहुत ज़रूरी है...हमें देखना चाहिए कि हमारे मुकाबिल कौन है...वो राजनीति जिसकी कोई नीति ही नहीं...हर तौल-मौल कर बोलने वाला ज़रूरी नहीं कि राजनीतिक परिणाम सोच कर ही बोलता हो...आपको सामने वाले खेमे की हर चाल का पूर्वानुमान लगाना आना चाहिए...तभी तो उस चाल का तोड़ आप ढूंढ पाएंगे...लोहे को लोहा ही काटता है...जंग मुश्किल है...इसे सिर्फ बाजुओं के दम पर ही नहीं जीता जा सकता...दिमाग का खम दिखाना भी ज़रूरी है...

ये अच्छी बात है कि अन्ना के पास अरविंद केजरीवाल, जस्टिस संतोष हेगड़े, शांतिभूषण, प्रशांत भूषण जैसे थिंकटैंक मौजूद हैं...ये भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई को तार्किक अंजाम तक पहुंचाने के लिए पूरी तरह काबिल हैं...बस इन्हें सियासत की शतरंज पर सामने से चले जाने वाले हर मोहरे की काट पहले से ही सोच कर रखनी होगी...

अब यहां एक किस्से के ज़रिए बताना चाहूंगा कि राजनीति कितनी ख़तरनाक शह होती है...नीचे लिखी एक एक लाइन ज़रा गौर से पढ़िएगा...

जॉर्ज बुश अमेरिका के राष्ट्रपति थे तो एक स्कूल में गए...बच्चों से अनौपचारिक परिचय के बाद बुश ने कहा कि अगर वो कोई सवाल पूछना चाहते हैं तो पूछ सकते हैं...


एक बच्चे ने अपना हाथ उठाया और सवाल पूछने के लिए खड़ा हो गया...


बुश ने बच्चे से कहा... पहले अपना नाम बताओ...


बच्चा... जॉन...


बुश...सवाल क्या है...


जॉन...सर, मेरे तीन सवाल हैं...


1) अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र की अनुमति के बिना इराक पर हमला क्यों किया...


2) ओसामा कहां है...


3) अमेरिका पाकिस्तान पर इतना फ़िदा क्यों है...इतनी मदद क्यों करता है...


बुश... तुम बुद्धिमान छात्र हो, जॉन...(तभी स्कूल की आधी छुट्टी की घंटी बज जाती है)...ओह, हम इंटरवल के बाद बातचीत जारी रखेंगे...


आधी छुट्टी के बाद...


बुश...हां तो बच्चों हम कहां थे...कोई किसी तरह का सवाल पूछना चाहता है...


पीटर अपना हाथ खड़ा करता है..


बुश...बच्चे, नाम क्या है...


पीटर...सर, मेरे पांच सवाल हैं...


1) अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र की अनुमति के बिना इराक पर हमला क्यों किया ?


2) ओसामा कहां है ?


3) अमेरिका पाकिस्तान पर इतना फ़िदा क्यों है...इतनी मदद क्यों करता है ?


4) आधी छुट्टी की घंटी निर्धारित वक्त से 20 मिनट पहले ही कैसे बज गई ?


5) मेरा दोस्त जॉन कहां हैं ?

यही राजनीति है...!!


अब अन्ना को ज़ेहन में रखकर ये गाना सुनिए...इसका एक-एक बोल अन्ना की शख्सियत पर पूरी तरह फिट बैठता है...

निर्बल से लड़ाई बलवान की...
ये कहानी है दिए की और तूफ़ान की...

Read More...

अन्ना से मेरे दस सवाल...खुशदीप



जिसका अंदेशा था, वही हुआ...जंतर-मंतर पर जली लौ से जो उम्मीद जगी थी, वो लड़ाई की शुरुआत में ही टिमटिमाने लगी है...अन्ना की ईमानदारी और मंशा को लेकर मुझे कोई शक-ओ-शुबहा नहीं लेकिन अनशन टूटने के 48 घंटे में ही जो घटनाक्रम घटा है, वो ज़्यादा उत्साहित करने वाला नहीं है...कांग्रेस और केंद्र सरकार के साथ पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और शिवसेना को भी अन्ना पर प्रहार करने के लिए खाद-पानी मिल गया है...सरकार या विरोधी दलों से देश की जनता की तरह ही मुझे कोई आस नहीं लेकिन अन्ना से  हैं...इसलिए जिसे अपना समझा जाए, उसे आगाह करना भी सच्चे शुभचिंतक का फ़र्ज होता है...इसलिए आज स्प्रराइट की तर्ज पर सीधी बात, नो बकवास करते हुए अन्ना से 10 सवाल...

1... क्या ये बेहतर नहीं कि आप जो भी बोलें, तौल-मोल कर बोलें...इस वक्त देश में कौन नेता अच्छा, कौन बुरा जैसे बयान देने की जगह पूरा फोकस भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम पर रखना  क्या श्रेयस्कर नहीं है...नेता कौन से अच्छे हैं, कौन बुरे, ये देश की जनता भी जानती है...आप किसी को इंगित करेंगे तो राजनीति को आप पर निशाना साधने का मौका मिल जाएगा, जैसा कि आपके नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी पर दिए बयान को लेकर हुआ....

2... आपसे हर कोई इस वक्त ज़्यादा से ज़्यादा बुलवाना चाहता है...लेकिन आप वहीं बोलें जो कि आप बोलना चाहते हैं...वो नहीं जो कि आपके मुंह से से बुलवाया जाए...ये बहुत नाज़ुक दौर है, ज़रा सी भी चूक इस पूरी मुहिम को पटरी से उतार सकती है...

3...आप या आपकी टीम में कहीं विरोधाभास न दिखाई दे...ज़रा सा भी अलग बयान विरोधियों को ये कहने का मौका देगा कि आपके घर में ही फूट है...किरन बेदी एक दिन गला खराब होने की वजह से अनशन-स्थल पर नहीं आई तो तिल का ताड़ बनाया जाने लगा...बेहतर यही होगा कि आप अपनी टीम में से किसी प्रखर वक्ता को प्रवक्ता नियुक्त कर दें...जो मुहिम की लाइन हो, बस उसी पर बोला जाए...


4...स्वामी रामदेव जैसे 'शुभचिंतकों' से सतर्क रहें...शांतिभूषण जी और प्रशांत भूषण को साथ कमेटी में रखे जाने को लेकर जिस तरह रामदेव ने आपको कटघरे में खड़ा किया, वैसी हिम्मत तो सरकार ने भी नहीं दिखाई...स्वामी रामदेव को बताया जाए कि शांतिभूषण वो शख्स हैं जिन्होंने ज्यूडिशियरी में भ्रष्टाचार को लेकर सीना ठोक कर कहा और खुद को सज़ा देने की चुनौती तक दे डाली...और उनके बेटे प्रशांत भूषण ने जनहित के मुद्दों पर जितनी क़ानूनी लड़ाई लड़ी  है, उसकी भी देश में ढूंढे से मिसाल नहीं मिलती...अब ऐसे लोगों के कमेटी में होने पर सवाल उठाने वाला कैसे आपका शुभचिंतक हो सकता है....

5...आपसे प्रधानमंत्री बनने के बारे में पूछे जाने पर आपने कहा कि मैं बाहर रह कर जो बेहतर काम कर सकता हूं वो प्रधानमंत्री बने रह कर नहीं कर सकता...ऐसे में सरकार की ओर से सवाल किया जा सकता है कि प्रधानमंत्री बनने की चुनौती इतनी मुश्किल है तो फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मजबूरी को भी समझा जाना चाहिए...

6...ये वक्त बड़ा नाज़ुक है...क्या ये अच्छा नहीं कि इस वक्त बयानबाज़ी की जगह सारा ध्यान लोकपाल बिल का ड्राफ्ट तैयार करने में लगाया जाए...

7...क्या ये संभव नहीं कि आपकी टीम के सहयोगियों और मुहिम से जुड़ने वाले हर नागरिक से ये शपथ दिलवाई जाए कि वो न जीवन में कभी रिश्वत किसी से लेंगे और न ही किसी को देंगे...खुद या अपने घरवालों की खातिर न ही किसी अनैतिक कार्य को बढ़ावा देंगे...उलटे जहां ये सब होता देखेंगे, वहां चुप नहीं बैठेंगे बल्कि पुरज़ोर आवाज़ में उसका विरोध करेंगे...

8...कपिल सिब्बल कह रहे हैं कि ये भ्रम नहीं पालना चाहिए कि लोकपाल बिल से देश की तस्वीर में ज़्यादा बदलाव होगा...लोकपाल बिल लोगों को तालीम, अस्पताल, रसोई गैस नहीं दे देगा...क्या कपिल सिब्बल से आपकी ओर से साफ सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि जब आपकी ये सोच है तो फिर इतनी मगज़मारी की ज़रूरत ही क्या है...और लोगों को आज़ादी के 63 साल बाद भी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल सकीं तो इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है...क्या कांग्रेस नहीं जो पांच दशक से भी ज़्यादा तक केंद्र में हुकूमत में रही...

9...ये सवाल अरविंद केजरीवाल को लेकर है...मैं आरटीआई कानून के वजूद में आने के लिए सबसे ज़्यादा योगदान अरविंद केजरीवाल का ही मानता हूं...उनका बहुत सम्मान करता हूं...लेकिन अतीत में उनका एक कदम मुझे आज भी कचोटता है...2009 में अरविंद केजरीवाल ने आरटीआई में विशिष्ट योगदान देने वालों को सम्मान देने के लिए कार्यक्रम का आयोजन किया था...लेकिन सम्मान जिन्हें दिया जाना था, उन नामों को छांटने के लिए जो नौ सदस्यीय कमेटी या जूरी बनाई गई थी, उसमें एक नाम ऐसे अखबार के संपादक का था जिस अखबार पर चुनाव में पेड न्यूज के नाम पर दोनों हाथों से धन बटोरने का आरोप लगा था...पेड न्यूज यानि भ्रष्ट से भ्रष्ट नेता, बड़े बड़े से बड़ा अपराधी भी चाहे तो पैसा देकर अपनी तारीफ में अखबार में खबर छपवा ले...दिवंगत प्रभाष जोशी जी ने उस वक्त अरविंद केजरीवाल को आगाह भी किया था कि ऐसे लोगों को कमेटी में न रखें...लोगों में क्या संदेश जाएगा कि भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले ही तय करेंगे कि आरटीआई अवार्ड किसे दिया जाए...उस वक्त केजरीवाल जी ने सफाई दी थी कि दबाव की वजह से ये करना पड़ा...ऐसे में क्या गारंटी कि भविष्य में फिर दबाव में ऐसा ही कोई फैसला न लेना पड़ जाए...


10...बड़ी मुश्किल से लोगों में आपके ज़रिए ये भरोसा जगा है कि सूरत बदली जा सकती है...आपकी एक आवाज़ पर करोड़ों लोग घरों से बाहर आ सकते हैं...इस आवाज़ को लोग देववाणी समझने लगे हैं...ये देववाणी हमेशा देववाणी ही रहे, आपके साथी हमेशा संदेह से परे रहें, यही मेरी उम्मीद है और यही मेरा भविष्य भी...

देखिए कैसी विडंबना है मुझे अपनी बात को खत्म करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कहे शब्दों को ही कोट करना पड़ रहा है... "Julius Caesar's wife must be above suspicion."
Read More...

धोनी से साक्षी नाराज़ ?...खुशदीप


अन्ना हजारे ने साफ़ कर दिया है कि 15 अगस्त तक लोकपाल बिल संसद में पेश नहीं हुआ तो जंतर-मंतर पर फिर देश का मेला लग जाएगा...तब तक इंतज़ार करते हैं कि ऊंट किस करवट बैठता है...चलिए अब थोड़ा ज़ायका बदल लिया जाए...पिछले पांच दिन से ब्लॉगजगत समेत पूरा देश अन्नामयी था...अन्ना के अनशन से पहले पूरा देश क्रिकेट में वर्ल्ड कप की जीत के खुमार में डूबा था...धोनी के धुरंधरों ने कपिल के करामातियों के करिश्मे को दोहरा कर कमाल कर दिखाया था...अब बेचारी क्रिकेट टीम के सम्मान के लिए जगह-जगह समारोह शुरू होते कि 5 अप्रैल से पूरा देश अन्ना के पीछे हो लिया...अब अन्ना का उपवास टूटने के बाद मीडिया का रुख फिर क्रिकेट यानि आईपीएल के तमाशे की ओर मुड़ा है...



धोनी ने चेन्नई सुपरकिंग्स की कमान संभाल ली है...लेकिन जब पूरा देश अन्ना के पीछे था तो मक्खन ने कमाल का काम किया...खोजी पत्रकारिता से कोई वास्ता न होते हुए भी मक्खन ने विकीलीक्स सीक्रेट्स जैसा ही बड़ा तीर मारा है...मक्खन ने पता लगाया है कि 2 अप्रैल से ही साक्षी पतिदेव धोनी से नाराज़ चल रही हैं...अब आप कहेंगे कि धोनी ने फाइनल में कप्तान की पारी खेल कर भारत की नैया पार लगाई...पूरी दुनिया धोनी की जय-जयकार करने लगी तो फिर साक्षी कैप्टन कूल से नाराज़ क्यों...साक्षी का माथा ठनका हुआ है कि पूरे वर्ल्ड कप में धोनी का बल्ला नहीं बोला फिर फाइनल में ऐसा क्या हुआ कि दे घुमा के, दे दनादन करने लगा...पिछले पांच दिन से धोनी सफ़ाई देते देते हार गए हैं लेकिन साक्षी है कि यकीन करने को ही तैयार नहीं...अब आप ही बताइए कि धोनी क्या सफ़ाई दे रहे हैं...

...

...

...

यकीन मानो डार्लिंग...मेरी इस पारी का पूनम पांडे के प्रपोज़ल से कुछ लेना-देना नहीं था...
(व्यंग्य)

स्लॉग ओवर
मक्खन टुन होकर घर आया...बेटे गुल्ली ने ये देखकर पिता को समझाने की गरज़ से कहा...डैडी ए कि रोज़ रोज़ दा वतीरा (रवैया) पड़या होया वे...छड दे ए दारू-शारू...


मक्खन...ओ काके, पी लैण देया कर...नाल कि लै के जाणा ऐस दुनिया तो...


गुल्ली...जे ऐस तरह ही खांदा-पिंदा रया ना ते तू छड के वी कुछ नहीं जाणा...



(अगर ये पंजाबी समझ नहीं आई तो अनुवाद के लिए कहिएगा)
Read More...

अन्ना ये जीत नहीं, शुरुआत है...खुशदीप




अन्ना के लिए ये आंदोलन है...आम आदमी के लिए जीने-मरने का सवाल...और खाए-अघायों के लिए बौद्धिक जुगाली का उत्सव...दिल्ली के जंतर-मंतर पर आज अन्ना अपना अनशन तोड़ देंगे...बशर्ते कि सरकारी आदेश जारी होने में सरकार की तरफ से कोई खेल न हो...अन्ना हजारे और सरकार के बीच दो मुद्दों पर बात अटकी हुई थी...पहली बात- लोकपाल बिल का ड्राफ्ट तैयार करने वाली साझा कमेटी के लिए सरकार अधिसूचना जारी करे...दूसरी बात-कमेटी का चेयरमैन कौन बने...सहमति इस बात पर बनी है कि सरकार कमेटी बनाने के लिए अधिसूचना की जगह सरकारी आदेश जारी करेगी...कमेटी में अब सरकार और सिविल सोसायटी दोनों की तरफ से ही एक-एक चेयरमैन होगा...अन्ना की तरफ से पूर्व क़ानून मंत्री शांतिभूषण कमेटी के चेयरमैन होंगे...सरकार की ओर से चेयरमैन के लिए प्रणब मुखर्जी का नाम लिया जा रहा है...दोनों तरफ से कमेटी में चेयरमैनों समेत पांच-पांच सदस्य होंगे...अन्ना की तरफ़ से कमेटी के बाकी चार सदस्यों में एक अन्ना खुद होंगे, बाकी सदस्य प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण, अरविंद केजरीवाल और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज संतोष हेगड़े होंगे...क़ानून मंत्री वीरप्पा मोइली कमेटी के संयोजक होंगे...सरकार की ओर से कमेटी के अपने बाकी सदस्यों का ऐलान होना बाकी है...अन्ना के प्रतिनिधियों से तीन दौर की बातचीत करने वाले दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने ये भी बताया है कि कमेटी के सदस्य जल्दी ही बातचीत शुरू कर देंगे जिससे कि 30 जून से पहले लोकपाल बिल का मसौदा तैयार कर लिया जाए और मानसून सत्र में उसे संसद में पेश किया जा सके...

अन्ना हजारे जी, आपने सलाहकारों से मंत्रणा करने के बाद ये फैसला लिया तो ठीक ही होगा...ये पूरी दुनिया ने देखा कि समाज के हर तबके के लोग, क्या जवान, क्या बूढ़े और क्या बच्चे आपके समर्थन में आ डटे थे...बॉलीवुड के सितारे भी आम आदमी के बीच घुलेमिले दिखाई दिए...ये सब स्वतस्फूर्त हुआ...यही आपकी सबसे बड़ी ताकत है...देश में पहली बार लोगों को लगा कि वो एकजुट होकर आवाज़ लगाए तो कानों में तेल डालकर बैठी सरकार को जागने के लिए मजबूर किया जा सकता है...ये चेताया जा सकता है कि चुनाव जीतने से ये न समझ लिया जाए कि पांच साल तक उन्हें मनमानी का लाइसेंस मिल गया...कोई उन्हें रोक-टोक नहीं सकता...ऐसे देश में बहुत कम ही उदाहरण होंगे जहां सरकार को इस तरह झुकना पड़ा हो...दो दिन से सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री की पूरी कोशिश थी कि किसी तरह अन्ना का अनशन टूटे...आपने कल सरकारी आदेश देखने के बाद अनशन तोड़ने की बात कही तो सबसे ज़्यादा राहत सोनिया गांधी को पहुंची होगी...

लेकिन यहां कुछ सवाल मेरे ज़ेहन में कौंध रहे हैं...क्या सरकार की मंशा वाकई साफ़ है...क्या वो सभी भ्रष्ट मंत्रियों, नेताओं, अफसरों को सही में सज़ा दिलाना चाहती है...या फिर उसने अभी जंतर-मंतर के ज़रिए देश भर की जनता में आ रहे उबाल को डिफ्यूज़ करने के लिए कोई चाल चली है...अन्ना जी बहुत दिनों बाद देश को आप में आइकन दिखा है...इसलिए हर एक का भरोसा आपके साथ है...ऐसे में एक ज़रा सी चूक से इस जनता का गुस्सा भड़क भी सकता है...आपको सरकार के हर कदम पर नज़र रखने के साथ ये भी देखना होगा कि आपके सहयोगी हमेशा सही दिशा में रहे...सरकार के पास प्रलोभन देने के लाख साधन होते हैं...पूरी कोशिश होगी कि फूट डालकर आंदोलन को कमज़ोर किया जाए...यानि लड़ाई शुरू होने से पहले ही इसके योद्धाओं को पंगु बना दिया जाए...

इस पूरे प्रकरण में मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि अधिसूचना और कमेटी के चेयरमैन को लेकर सरकार की बात मानने में जल्दी क्यों दिखाई गई...जिस तरह पूरे देश से सरकार पर प्रैशर बन रहा था, उसमें ये आज नहीं तो कल इन दोनों मुद्दों पर भी झुक ही जाती...झुकना उसकी मजबूरी होता...अब ये स्पष्ट नहीं हो पा रहा कि शांति भूषण जी इस कमेटी के चेयरमैन होंगे या को-चेयरमैन...क्या उन्हें भी सरकार की ओर से बनने वाले चेयरमैन के बराबर ही अधिकार हासिल होंगे...और अगर होंगे तो किसी मुद्दे पर टकराव होने की स्थिति में किसकी बात फाइनल होगी...अधिसूचना की जगह सरकारी आदेश पर सहमत होना भी मुझे थोड़ा पेचीदा लग रहा है....क्या सरकारी आदेश की भी वही अहमियत होती है जो अधिसूचना की....मेरा एक बार फिर निवेदन है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई बहुत लंबी है...इसमें सही कामयाबी तभी मिलेगी जब मंत्री, अफसर, कारपोरेट भ्रष्ट आचरण में लिप्त होने की बात सोच कर ही थर्र-थर्र कांपें....इस दिशा में मंज़िल तक तभी पहुंचा जा सकेगा जब सारा देश जंतर-मंतर जैसी स्प्रिट लगातार दिखाता रहे...आपने अपने नेतृत्व से पूरे देश को उम्मीद की एक लौ दिखाई है...बस इसे सरकार की चालबाज़ियों के थपेड़ों से बचाए रखना होगा...
 
भ्रष्टाचार का दानव हर बाज़ी हारेगा बस हमें खेलना होगा जी-जान से....
 
Read More...
 
Copyright (c) 2009-2012. देशनामा All Rights Reserved | Managed by: Shah Nawaz