भारत के मुसलमानों को लीडरशिप से ज़्यादा शिक्षा की ज़रूरत है... देश से मांगने की जगह देने के हालात बनाने होंगे।
मेरा यह मानना है कि समाज में बदलाव साक्षरता और जागरूकता फैलाने तथा गरीबों को ख़ुदमुख्तार बनाए जाने से ही आ सकता है। खासतौर पर आज की ज़रूरत महिलाओं और पुरुषों में शिक्षा का विस्तार, स्वास्थ्य, सामाजिक बराबरी, सामाजिक साझेदारी, दयानतदारी की भावना और अपने समाज के अन्दर तथा अन्य समाजों के साथ जोड़ की पुरज़ोर कोशिशों की है।
हकीक़त यह है कि इमदाद, ज़कात, फितरा, खैरात का अगर सही इस्तेमाल होने लगे तो किसी की ओर देखने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। इसके लिए ज़रूरी है अपना पैसा दान करते समय पूरी तरह छानबीन करें, बिना उचित जानकारी के एक भी पैसा ना दें। थोडा-थोडा पैसा अनेकों जगह देने की जगह कोशिश करें कि किसी एक ही जगह दें, जिससे कि बाद में हालात पर नज़र रखना आसान रहे। मदद अगर किसी शिक्षा संस्थान को दे रहे हैं तो यह अवश्य ध्यान रखें कि केवल दीनी तालीम से काम नहीं चलेगा, इसलिए अच्छी तरह से पुष्टि करलें कि शिक्षा स्तरीय हो। बल्कि खुद भी कभी-कभी जा कर चेक करें। ध्यान रखना ज़रूरी है कि अगर पैसा सही जगह नहीं लगा तो उसका सवाब (पुन्य) नहीं मिलेगा और जो फ़र्ज़ है उसे फिर से अता करना पड़ेगा।
आजादी के बाद जितनी भी मुस्लिम लीडर्स उभरे हैं, उसमें से अधिकतर ने राजनैतिक पार्टियों के हाथों कौम के वोटों के मोलभाव के अलावा कुछ नहीं किया।
मैं अपने स्तर पर कोशिशें कर रहा हूँ, आप अपने स्तर पर करें। लीडरशिप की ओर देखना छोड़ो, खुद उठो और आगे बढ़ो।
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