''बेगम साहिबा की छींक का कारण था, उनकी जूती के नीचे आ गया मुआ नीबू का छिलका।'' यह भी कहा जाता है कि सर्दी-जुकाम ऐरे गैरों को होता है, लखनवी तहजीब वालों को सीधे नजला होता है। मुस्लिमों के साथ नजाकत-तहजीब, शेरो-शायरी, बिरयानी और जिक्र आता है ताजमहल का। वैसे कई-एक की नजर में ''ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर, प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तेजो महालय कहा जाता था।'' चलिए, इसी बहाने हमारी श्रद्धा बनी रहे मानव कौशल के इस नायाब नमूने पर। वैसे भी संरचनाओं का शैलीगत वर्गीकरण हो सकता है, लेकिन ईंट-पत्थर को उससे जुड़ी आस्था ही हिन्दू या मुस्लिम बनाती है और ऐसे दरगाह कम नहीं जो हिन्दू श्रद्धा के भी केन्द्र हैं।
गुजरात के हजरत सैयद अली मीराँ दातार की दरगाह से पं. जागेश्वर प्रसाद तिवारी, चिल्ला के साथ ईंट ले कर आए थे और 2 दिसंबर 1967 को शंकर नगर, रायपुर में मीरा दातार स्थापित किया। मीरा दातार बाबा के इस स्थान पर मूर्ति नहीं है लेकिन हनुमान जी और शंकर जी हैं। तब से यह रायपुर का एक प्रमुख निदान केन्द्र रहा, सोमवार और गुरुवार को मुरादियों का मेला लग जाता। 30 अगस्त 1990 को पं. तिवारी के निधन के बाद, 10 सितंबर 2010 को श्रीमती महालक्ष्मी तिवारी के निधन तक इसका महत्व बना रहा।
अब रायपुर में इसके अलावा मीरा दातार का एक अन्य दरबार समता कालोनी में है, जहां प्रमुख मुस्लिम महिला हैं, लेकिन महादेव घाट वाला मीरा दातार तिवारी जी के शिष्य भोलासिंह ठाकुर के निवास 'मन्नत' में है। यहां भी शंकर नगर दरबार की तरह त्रिशूल लगा है। उर्स मुबारक के फ्लैक्स में यहां कुरान खानी आदि का उल्लेख, गुरुदेव श्री मंशाराम शर्मा जी, चिश्ती दादा रमेश वाल्यानी जी, सरकार बी.एस. ठाकुर और चन्दु देवांगन के नाम सहित है।
रायपुर में अनुपम नगर गणेश मंदिर का निर्माण के.ए. अंसारी ने 1985 में कराया और इसके बाद श्रीराम नगर फेज-I और II विकसित किया। |
रायपुर से 20 किलोमीटर दूर गांव चरौदा-धरसीवां का शिव मंदिर सरपंच बाबू खान साहब की पहल और अगुवाई में, गांव और इलाके भर के श्रमदान से 1970 में बना। धरसीवां से थोड़ी दूर कूंरा उर्फ कुंवरगढ़ गांव में दो संरचनाएं मां कंकालिन मंदिर और मस्जिद एक ही चबूतरे पर साथ-साथ हैं।
कुंवरगढ़ के ही श्री अमीनुल्लाह खां लम्बे समय से श्री रामलीला मंडली के कर्ता-धर्ता हैं। वे मानस गायन के साथ लीला में मेघनाथ और दशरथ की भूमिका निभाते हैं। धरसीवां और कुंवरगढ़ में हिन्दू-मुस्लिम मितानी के भी कई उदाहरण हैं।
कुरुद-धमतरी में स्कूली दिनों से मानस की लगन लगाए रामायणी दाउद खान गुरुजी हैं। आपका जन्म 25 जुलाई 1923 को हुआ। आपको सालिकराम द्विेदी और पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का सानिध्य प्राप्त हुआ। आपके मानस प्रवचन का सिलसिला 1947 से आरंभ हुआ। वे कहते हैं कि नैतिक संस्कारों के विकास के लिए रामचरित मानस का अध्ययन जरूरी है और ''सियाराम मय सब जग जानी, करहुं प्रणाम जोर जुग पानी' मानस का प्रमुख संदेश है।
• कवर्धा-गंडई के साईं फिर्रू खां पुश्तैनी भजन गायक हैं।
• हडुवा-घुमका, राजनांदगांव के गीतकार-रामायणी रहीम खां अन्जाना जीवन-पर्यन्त नाचा, हरि-कीर्तन से जुड़े रहे।
• केनापारा, बैकुंठपुर निवासी बिस्मिल्ला खान बचपन से ही रामायण गाते थे। मानस मर्मज्ञ खान साहब ने गांव के बच्चों की रामायण मंडली भी बनाई थी और शारदा मानस मंडली से जुड़े रहे। आपका निधन 17 सितंबर 2010 को बनारस में हुआ।
• लाखागढ़, पिथौरा के करीम खान लंबे समय से दशहरा पर रामलीला का संचालन करते आ रहे हैं। नवापारा-राजिम के इकबाल खां युवा पीढ़ी के रामायणी हैं। बैजनाथपारा, रायपुर के एक पुराने कव्वाल जनाब सईद की पंक्ति 'श्रीराम जी आ के रावन को मारो' लोग अब भी याद करते हैं और दूसरी तरफ गुढि़यारी के गायक गजानंद तिवारी, छत्तीसगढ़ी गीतों को, कव्वाली तर्ज में ही गाने के लिए मशहूर रहे हैं।
• केनापारा, बैकुंठपुर निवासी बिस्मिल्ला खान बचपन से ही रामायण गाते थे। मानस मर्मज्ञ खान साहब ने गांव के बच्चों की रामायण मंडली भी बनाई थी और शारदा मानस मंडली से जुड़े रहे। आपका निधन 17 सितंबर 2010 को बनारस में हुआ।
• लाखागढ़, पिथौरा के करीम खान लंबे समय से दशहरा पर रामलीला का संचालन करते आ रहे हैं। नवापारा-राजिम के इकबाल खां युवा पीढ़ी के रामायणी हैं। बैजनाथपारा, रायपुर के एक पुराने कव्वाल जनाब सईद की पंक्ति 'श्रीराम जी आ के रावन को मारो' लोग अब भी याद करते हैं और दूसरी तरफ गुढि़यारी के गायक गजानंद तिवारी, छत्तीसगढ़ी गीतों को, कव्वाली तर्ज में ही गाने के लिए मशहूर रहे हैं।
कंडरका-कुम्हारी, दुर्ग के लोकधारा सांस्कृतिक मंच के प्रमुख शेर अली को रामायण गाने की प्रेरणा, हरि कीर्तन गायक पिता रज्जाक अली से मिली। |
कवर्धा-खरोरा के कवि मीर अली मीर से उनकी चर्चित पंक्तियां 'जंजीर बोलती थी वंदेमारतम, शमशीर बोलती थी वंदेमातरम्, कश्मीर बोलता है वंदेमातरम्' सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। |
बिलासपुर के हिदायत अली कमलाकर की कृति'समर्थ राम' और उनका सौहार्द, अपने आप में मिसाल है। |
• छत्तीसगढ़ हज कमेटी के चेयनमैन डॉ. सलीम राज ने अयोध्या विवाद पर कहा कि 'मुस्लिम समुदाय के पक्ष में भी निर्णय आने पर उस स्थल को राम मंदिर के निर्माण के लिए सहृदयतापूर्वक दे देना चाहिए।' हबीब तनवीर के नया थियेटर का अभिवादन 'जय शंकर' तो प्रसिद्ध है ही। होली, दीवाली मनाने वाले मुसलमान मिल ही जाते हैं, नवरात्रि का विधि-विधान पूर्वक कठोर व्रत रखने वाली मुस्लिम महिलाएं भी हैं तो धरसीवां जैसे गांव में रोजा रखने वाले हिन्दू भी हैं। मोहर्रम पर ताजिएदारी निभाते हुए बच्चों को ताजिए के नीचे से गुजारा जाना आम है, लेकिन अकलतरा में मोहर्रम पर हर साल दुलदुल घोड़े की नाल हमारे घर के पुराने हिस्से से निकलती थी।
नारों और नसीहतों से अधिक असरदार, ज्यादा जीवंत, सौहार्द-सद्भाव का रस यहां इतनी सहजता से प्रवाहित है कि नजरअंदाज होता रहता है।
- यह पोस्ट रायपुर से प्रकाशित पत्रिका 'इतवारी अखबार' के 23 सितम्बर 2012 के अंक में प्रकाशित।