Dec 29, 2010

ठंडे पानी से स्‍नान की बात ही कुछ और है ....

ठंडी मे जो मजा ठंडे पानी नहाने का वह गरम पानी से नही, अभी 10 मिनट पहले नहाया हूँ, नहाने के बाद ठंड नाम की कोई चीज लग ही नही रही है। दो वर्ष पूर्व घर मे ही किसी ने कहा कि माघ मास मे गर्म पानी से नही नहाना चाहिये जो पानी सामान्‍य तारीके से प्राप्‍त हो उसी से नहाना च‍ाहिये।

माघ मास मे प्रयाग(इलाहाबाद) मे लाखो करोड़ो की संख्‍या मे श्रद्धालु आते है और गंगा मॉ के आंचल मे स्‍नान करते है। माघ मास के सन्‍दर्भ मे पौराणिक माहात्म्य का वर्णन किया गया है कि व्रत दान व तपस्या से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी माघ मास में ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानमात्र से होती है।चूकिं यह भी कहा जाता है कि यह ऐसा पुण्‍य मास होता है कि आपको जहाँ भी उपलब्‍ध जल मिल वह गंगा जल की भातिं पुण्‍य दायी होता है।

मै तो कहूँगा कि जिनको ठंड़ी ज्‍यादा लगती है वो ठंठे पानी से प्रात: 6 बजे तक स्‍नान आदि कर ले, ठंठ तो उन्‍हे लगेगी नही और माघ मास मे स्‍नान से मिलने वाले पुण्‍य से भी वो लाभान्वित होते रहेगे। :)

Dec 28, 2010

मनमोहन की हठ - जेपीसी नही पीसीए

2जी एस्पेक्ट्रम लाइसेंस आवंटन विवाद संसद क्‍या रूकी प्रधानमंत्री को यह कहना पड़ा कि संसदीय प्रणाली खात्‍मे की ओर है। कांग्रेस भी करीब 10 साल विपक्ष की भूमिका मे रही है और उसने भी सरकार के समक्ष विपक्ष की भूमिका निभाई है किन्‍तु भ्रष्‍टाचार मे संलिप्‍त यूपीए सरकार ने जिस प्रकार विपक्ष की जेपीसी की मांग को खारिज कर रही है उससे तो यही प्रतीत होता है कि वकाई सरकार पर दाग गहरे है। आज जनता जानने को उत्सुक है कि अ‍ाखिर क्‍यो सोनिया ने कहा कि जेपीसी नही है, तो मनमोहन का कहना भी स्‍वाभाविक है कि जेपीसी नही, किन्‍तु आज सरकार सबसे बड़ी बात यह बताने मे विफल रही कि जेपीसी क्‍यो नही है? आख्रिर क्‍या बात है कि यह वही प्रधानमंत्री है जो कि लोक लेखा समिति पीएसी के समक्ष हाजिर होने के तैयार हो जाते है किन्‍तु जेपीसी के सामना नही करना चा‍हते है।
जहाँ तक निष्‍पक्षता की बात आती है तो पीएसी को तो लोकसभा के अध्‍यक्ष की अनु‍मति के बिना मंत्रियों को भी बुलाने का अधिकार नहीं है प्रधानमंत्री की बात ही दूर है प्रधानमंत्री लाख पीएसी के समक्ष उ‍पस्थित होने की बात कहे किन्‍तु बिना लोकसभा अध्‍यक्ष की अनुमति के बिना पीएसी के अध्‍यक्ष उन्‍हे बुला नही सकते। मनमोहन की पीएसी के समक्ष जाने की जिद्द तो यही कहती है कि छोटा बच्‍चा मोतीचूर के लड्डू के लिये कर बैठता है चाहे उसे कितनी ही कीमती सामान न दो वो उसी लड्डू के लिये के लिये ही हठ किये बैठा रहेगा। अगर प्रधानमंत्री को लगता है कि पीएसी ही उचित मंच है तो मनमोहन जी को चाहिये कि पीएसी के समक्ष उपस्थित होने की क्‍या जरूरत है जरूरी है कि एक पंचायत बुला ले जो पंच कह देगे वही मान्‍य होगा।

Dec 8, 2010

भाजपा के प्रदेश दफ्तर मे अमर उजाला का चाटुकार पत्रकार

लखनऊ यात्रा के दौरान एक दिन भाजपा के प्रदेश कार्यालय पर जाना हुआ। साथ मे एक सम्‍मान‍ित पत्रकार थे जिन्‍होने कही कि चल कर कुछ मित्र नेताओ की फोटो ले लिया जाये। मैने भी हॉमी भर दी, जब वहाँ पहुँचे तो भाजपा के बडे नेता ने उन पत्रकार महोदय ये पूछा कि महोदय यह क्या करवा रहे है? (मजाकिये लहजें) उन पत्रकार महोदय ने कोई उत्तर न दिया मेरे मुँह से निकल आया कि सर अपने मोस्‍ट वान्‍टेड के चित्र संग्रह कर रहे है। हल्‍की सी मुस्‍कान के साथ बात खत्म हो रही थी किन्‍तु वहाँ उन नेताजी के साथ घूम रहे एक अमर उजाला के पत्रकार उम्र करीब 30 की रही होगी, मेरी बात उनको बहुत खराब लग गई।

नेताजी के सामने अपना कद और मै नेताजी का हितैही हूँ साबित करने के लिये तपाक से मेरे से बोले कि तमीज से बात करों, जान नही रहे हो कि किससे बात कर रहे हो।
मैने भी उनकी तमीज उनके मुँह पर दे मारी और बोला कि अपनी लमीज अपने पास रखों और ये देखो की बात का माहौल किस ल‍हजे का है।
फिर उनको अपनी चटुकारिका की पत्रकारिता का दम्‍भ दिखा और बोले कि फोटोग्राफर हो, फोटो ग्राफर की तरह रहो।
मैने भी बोल दिया कि जिस हद(चाटुकारिता) की पत्रकारिता कर सकते तो तुम वही कर रहे हो, और जब किसी को फोटोग्राफर कभी लेकर टहल सकना तो किसी को फोटोग्राफर कहना।
उसने कहा कि तुम हो कौन ?
इसी बीच मामला गम्‍भीर होता जा रहा था, हमारे साथ के वरिष्‍ठ पत्रकार ने हस्‍तक्षेप करते हुये, मेरा परिचय दिया कि फला मेरे मित्र है और इलाहाबाद से आये और अधिवक्ता है मेरे आग्रह पर कुछ चित्र लेने चले आये।
यह बात सुन कर अमर उजाला के चाटुकार का चेहरा मुझे घूरे जा रहा था पता नही क्‍यो ? और हम वहाँ से मंद मंद मुस्‍कारा दिये और अपने काम को सम्पन्‍न कर वहाँ से चल दिये पर वो अभी तक मुझे देख रहा था।

मेरे मन ने मन ही मन मे कहा कि वाह पत्रकारिता (चाटुकारिता)