33 responses to “गर्मी, पाठक और अप्रसांगिक होने के खतरे”

  1. मुकेश कुमार तिवारी

    अनूप जी,

    बहुत ही रोचक चर्चा, जिसमें मैं अपनी नानी के गाँव चैनपुर(मवैया, जिला : उन्नाव) पहुँच ही गया। वो डोलना की ठंडाती गर्म हवा में सूखते पसीने का सुख भूलते नही बनता। और जिस बारीकी से चित्रण किया है बचपन की यादों का तो मैं सिर्फ यही कहूँगा कि आजकल जो हमारी गोद में खेल रहे हैं वो बच्चे किसी व्यव्सथा का हिस्सा हैं बच्चे नही धमाचौकड़ी मचाते हमारी तरह।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

  2. ताऊ रामपुरिया

    फजा में जहर हवाओं ने ऐसे घोल दिया,
    कई परिन्दे तो अबके उडान छोड़ आये.

    बहुत सही कहा. हा ए.सी. की शुरुआत मे ऐसा ही लगता है. पर बाद मे चद्दर छोड के रजाई ओढ कर सोने लगता है आदमी. आप भी लग गये काम से अब तो.:) वैसे ए.सी. मे पोस्ट ठेलन बहुत उम्दा होता है.

    रामराम.

  3. सिद्धार्थ जोशी

    अनूप जी नमस्‍कार

    मैं लम्‍बे समय से आपके बारे में सुनता रहा हूं। यहां सुनने का अर्थ है दूसरी पोस्‍टों में आपकी बातें। पढ़ी गई बातें।
    आपको पढ़ा पहली बार है। हर एक पैराग्राफ में इतनी बातें घुसी हैं। जहां रुक गए वहीं प्‍याज की परतें उतरने लगती हैं। एसी के साथ हैव और हैव नॉट का चिंतन, प्रासंगिकता के साथ हिन्‍दी का चिंतन और दो बांके भी, :)

    कोशिश करुंगा कि अब से आपको नियमित पढूं। आपके ब्‍लॉग पर। चिठ्ठा चर्चा में तो पढ़ता रहा ही हूं।

  4. Dr.Manoj Mishra

    सही कह रहें हैं सर जी .

  5. रवि

    मैंने यदि दो-चार साल कहा था तो दो+चार मानें. :), वैसे, रचनाकार जैसे सामग्री-समृद्ध ब्लॉग पर अब प्रतिदिन पेज हिट्स संख्या औसतन हजार हो गई है. दस हजारी आंकड़ा, मेरा विश्वास है कि साल-दो साल के भीतर कम से कम आधा दर्जन ब्लॉग तो इसे पार कर ही लेंगे. बीबीसी के हिन्दी ब्लॉग की पाठक संख्या, मेरे मत में, इस जादुई आंकड़े को पार कर चुकी है. जल्दी ही बीबीसी-हिन्दी के तर्ज पर और भी मीडिया संस्थान आगे आएंगे खांटी ब्लॉगरों को लेकर. यकीनन. :)

  6. ज्ञानदत्त पाण्डेय

    अप्रासंगिक दो प्रकार से हो सकते हैं। एक तो ट्यूब खाली हो जाये और दूसरे ब्लॉगिन्ग की विधा दम तोड़ दे।
    दूसरे प्रकार का फेटीग नजर आने लगा है!

  7. Kajal Kumar

    गर्मी, कूलर, ए.सी.- सही बात है, घर कार दफ्तर सब ए.सी., गर्मी बस स्वाभाव में बची है और शहरों में तो ये और भी बढ़ती जा रही है.
    अप्रसांगिक होने का डर- जब कोई हरिवंश राय बच्चन को ये कह कि मिलवाये कि ये अमिताभ बच्चन के पिता हैं तो पिता को बुरा नहीं लगता, अच्छा लगता है.

  8. हिमांशु

    समीर जी के आँकड़े से प्रसन्न मन को इतनी जल्दी चिंतनशील करने की क्या जरूरत थी ! आँकड़े से खुश ब्लॉगर को आपने आँकड़ेबाजी में उलझा दिया ।

    अप्रासंगिक होने का डर यदि बातचीत में है तो अन्तर में भी कहीं ठहरा ही होगा । आपके जवाब ने खासा प्रभावित किया इस सन्दर्भ में । धन्यवाद ।

  9. seema gupta

    हमारी उम्र तो शायद सफर में गुजरेगी,
    जमीं के इश्क में हम आसमान छोड़ आये.

    “बेहद खुबसूरत पंक्तियाँ मन को भा गयी”

    regards

  10. Shiv Kumar Mishra

    बहुत गजब का एसी चिंतन है. यही तो हो रहा है. कमरा ठंडा रखने के लिए हम धरती गरम कर रहे हैं.
    आप और अप्रासंगिक? कभी नहीं.

  11. संजय बेंगाणी

    कमरा ठंडाने के लिये धरती गर्मा रहे हैं हम। जब कहीं ए.सी. चलता देखता हूँ, पहला विचार यही आता है.
    बाकी चकाचक चिंतन है. हम हिंदी ब्लॉगिंग से ज्यादा ही आशा लगाए है, दस हजार रोज की हीट दूर की कौड़ी है.

  12. दिनेशराय द्विवेदी

    आंकड़े बाजी तो पतंग उड़ाना सीखने के दौरान ही की थी। उस के बाद से बिलकुल छूट गई। लिखने का खब्त था। वह भी वकालत ने स्टे कर दिया था। पर वकालत मे जब से मुकदमे ज्यादा और अदालतें कम हुई हैं। फुरसत मिलने लगी है। तो खब्द का स्टे हटा है। जब भी जितनी फुरसत होती है लिखते हैं। इस मायने में आप की बिरादरी के हैं। ब्लाग लेखन में कोई झंझट नहीं है। इधर लिख, उधर प्रकाशन। कोई संपादक का झंझट नहीं। सराहने वाले भी आ ही लेते हैं। वे न मिलें तो गाली देने वाले तो जरूर ही आ धमकते हैं। कोई आता तो है। ये ज्ञान जी ट्यूब खाली होने से बड़े डरते हैं। ये तो वो टुयूब है जो ज्यों ज्यों खरचे त्यों त्यों बढ़े, इस लिए खाली होने वाली नहीं है। ब्लागरी भी नष्ट होने वाली नहीं हाँ रूप बदलती रहेगी।

  13. kanchan

    aapki pasand fir pasand aai

    kal ek bargad ko dekha tha, jo jis beej se nikala tha use munh chidha raha tha ki dekho ab kaun poonchh raha hai. aur vo beej muskurate hue nisshabd hi khush tha ki bargad ab kitna vishaal, chhayadar aur harabhara hogaya hai, kitne hi log us ke neeche chhaya paa rahe haiN, kitne hi panchhi us me ghar basa rahe haiN, kitni hi panharineN vaha sukh dukh baNt rahi haiN….!

    asal me baad me maine dekha ki beej aur baragad dono hi khush the, ek paa kar aur dene vale ko chhota samajh kar aur dusara de kar aur paane vale ko khush samjh kar.

    are vaah kavita ban gayi to, inter maar kar atukanta kavita kah kar post kar dun kya apane blog par ??

  14. Abhishek Ojha

    यूँ तो एसी, कमरे का एकल हो जाना और अप्रासंगिकता वाली बातें भी पसंद आई पर यह पैराग्राफ दिल ले गया:
    “भयंकर गर्मी के बावजूद गर्मी का एहसास कम होने का कारण शायद बचपन में देखी/झेली गयी गर्मी के बिम्ब दिमाग में सुरक्षित होना भी हो। मुझे याद है …..

    … इसी में राहत सामग्री सी कोई ठंडी हवा की लहर जो किसी पेड़ के आसपास लेटने से ही मिलती अनिर्वचनीय आनंद दे जाती।

  15. विवेक सिंह

    हमारे रहते आप अप्रासंगिक कैसे हो सकते हैं ! हम आपको प्रासंगिक बनाने वाली हरकतें करता रहूँगा :)

  16. महामंत्री तस्‍लीम

    आपकी पोस्‍ट पढकर पसीना निकलने लगा है।

    ———–
    SBAI TSALIIM

  17. vandana A dubey

    क्या बात है अनूप जी! एक्दम सच्ची बात.कूलर लोगों को जोड्ता है, ए.सी. काट रहा है.

  18. Dr.Arvind Mishra

    मजेदार !

  19. dhiru singh

    सच मे आज अपना कूलर मुझे अच्छा लगने लगा आखिर उसके छुपे गुण जो दिखने लगे

  20. dr anurag

    ये ए सी का ही कमाल है शुक्ल जी…..की अप्रासंगिक होने की बात .ओर सड़क का कोलतार याद आ गया ..समय .विज्ञानं ..शरीर को आराम तलबी की आदत लगा देते है…ढाई महीने बाद दूसरी पोस्ट का इंतजार रहेगा

  21. समीर लाल 'उड़न तश्तरी वाले'

    एसी कमरे का एकाकीपन
    और उससे जन्मा
    ठकुरासीपन-
    एसी में रह कर
    जान ही जायेंगे ..
    और तब शायद,
    शोर गुल वाले कमरे
    रास नहीं आयेंगे….

    नेता हैं
    संसद में रहेंगे..
    जनता के पास
    क्यूँ जायेंगे.

    ——-

    -आंकड़े तो आंकड़े हैं.
    क्या क्या गिनें और कैसे कैसे.
    जिस दिन कुछ लिखो नया..
    हजारा लगाता है,
    अगले दिन २०० रह जाता है,
    तीसरे दिन १०० भी
    मुश्किल से पाता है और
    चौथे दिन भी नया कुछ न लिखा..
    तो खुद की यात्रा छोड़,
    सिफर ही हाथ आता है.

    ——

    आप की पसंद
    हर बार की तरह
    इस बार भी
    कर गई मन प्रसन्न!!

    —-

    बाकी तो आपकी जय हो..दो दो बार जो हमारी पोस्ट पढ़े हैं. :)

  22. LOVELY

    shiv ji ki tippni ko meri bhi tippni samjhi jay

  23. amit

    ए.सी. और कूलर की बात चली तो बतायें कि इसी साल हम लोगों ने एक ए.सी. लिया। हमारी सहमति न होने के बावजूद।

    जल्दी बिजली के बड़े बिल का भी आपको सहमति न होने के बावजूद स्वागत करना पड़ेगा, ही ही ही! ;)

    अगर कमरा झकाझक मल्टीस्टोरी की तरह झकास ठंडा है तो कमरे का बाहर का हिस्सा तंदूर की तरह गर्मागर्म। कमरा ठंडाने के लिये धरती गर्मा रहे हैं हम।

    बाहर पौधे लगा लीजिए और एसी में जहाँ से पानी निकलता है उस जगह एक पाइप लगा के पौधों की क्यारी में डाल दीजिए। हमने तो यहाँ यही किया हुआ है, एक गमले में पाइप का रूख किया हुआ है तो इसलिए पानी बेकार नहीं जाता और गर्मी में उस पौधे को भी निरंतर पानी मिलता रहता है। यानि कि एसी का लाभ ही लाभ हो रिया है! ;)

    अगर यह मानें कि साल भर पहले ही उड़नतश्तरी पर काउंटर लगा तो और इस दौरान एक लाख लोगों ने इसे पढ़ा तो औसतन प्रतिदिन पढ़ने वालों की संख्या 274 हुई। यह भी तब है जब हम जैसे और लोग भी होंगे जो उड़नतश्तरी की पोस्टों को कई बार देखते हैं कि कौन क्या टिपियाया। इससे लगता है फ़िलहाल हिंदी ब्लागिंग के औसत पाठक बहुत कम हैं। जब उड़नतश्तरी जैसे पाठक प्रिय ब्लाग की पाठक संख्या इतनी सीमित है तो बाकी चिट्ठों क्या हाल होगा?

    ज़रा यहाँ भी देखें। समीर जी का स्टैटकाऊँटर कुछ ही देर में दोबारा तिबारा आने वाले व्यक्ति को नहीं गिनता होगा, अमूमन स्टैट सॉफ़्टवेयर/काऊँटर नहीं गिनते आजकल (मैंने तो ऐसा ही देखा है)। तो इसलिए उनके ब्लॉग पर एक लाख का आंकड़ा वाकई मायने रखता है, दोबारा तिबारा वालों को गिनता होता तो दो-तीन लाख हो जाना था। :)

    वैसे यह पाठक संख्या के आंकड़े स्टॉक एक्सचेन्ज की भांति हैं, ऊपर नीचे आवाजाही इनकी निरंतर लगी रहती है। अपने ब्लॉग की ही कह सकता हूँ तो वहाँ किसी महीने औसत 1500 पन्ने प्रतिदिन की चली जाती है और दूसरे महीने 500 प्रतिदिन पर भी आ जाती है! सब मोह माया है, हम लोग तो ऐसे ही ठेलने वाले हैं तो बस लगे रहिए पुण्यकार्य में!! :D

  24. मीनाक्षी

    अभी दिल्ली दूर है फिर भी हमे एसी कूलर और गर्मी याद आ रही है… ऊपर से आप ने सोचने पर विवश कर दिया कि अपने कमरे को ठंडा करने के लिए धरती को गर्म करे या न करे…. या इस पर कोई नया उपाय सोचे…

  25. गौतम राजरिशी

    गर्मी का तो पता नहीं देव…हम तो वादिये-कश्मीर में हैं…किंतु हवाओं के बँटवारे की चर्चा बड़ी दिलचस्प लगी और आपका बेताबी से अप्रसांगिक होने की, बाट जोहने की बात ने कायल कर दिया…

    “जमीं के इश्क में हम आसमान छोड़ आये”-शाहीद रजा के इस मिस्‍रे पर करोड़ों वाह-वाह!!!!

  26. Antarman

    Waah fursatiya ji waah!! Kya khoon likha hai! Gahazal bhi mast hai!

  27. anitakumar

    हमेशा की तरह एक पोस्ट हजारों चिन्तन अपने गर्भ में समेटे हुए और हर पाठक को कई बातें याद दिलाते हुए। ए सी कमरे में पूरी रात सोना हमें भी बर्दाश्त नहीं, सुबह उठो तो सर भारी होता है और गला बैठ जाता है। बम्बई जैसे शहर में तो कूलर भी काम नहीं करते। अपना तो अचूक बाण, सोने से पहले पानी के फ़व्वारे के नीचे खड़े हो लो और फ़िर पंखे के नीचे मार्बल के फ़र्श पर पसर लो, चैन की मीठी नींद आती है। एक्दम सही कहा आप ने ए सी लोगों को बांट देता है।
    अप्रासंगिक ? और आप? सवाल ही नहीं उठता

  28. cmpershad

    “इससे लगता है फ़िलहाल हिंदी ब्लागिंग के औसत पाठक बहुत कम हैं। जब उड़नतश्तरी जैसे पाठक प्रिय ब्लाग की पाठक संख्या इतनी सीमित है तो बाकी चिट्ठों क्या हाल होगा? ”
    सही है कि हिंदी ब्लागिंग के औसत पाठक बहुत कम है। हम उडन तश्तरी के कुछ सौ फालोअर से विभोर हैं जबकि अंग्रेज़ी लेखिका शोभा डे के लगभग ८०० फालोअर हैं। तो यह है विश्व की सबसे अधिक बोली जानेवाली भाषाओं में से एक ‘हिंदी’की शोचनीय स्थिति:(

  29. vinodtripathi

    ANOOP JI EK JAMINEE LEKHAK HAIN.YEH LEKH SAHAJTTA KE SATH KAI BAATEN KAH JATA HAI LAAJAAB…

  30. बेवड़ा पाठक


    अरे दादा, मुझसे अनजाने में इतनी बेहतरीन रचना को अनदेखा कर देने का पाप होते होते रह गया । हे राम, यह कैसे हुआ होगा, भला ? ईश्वर उस सुधी पाठक को लम्बी उम्र दे, जिसने आज की ” चिट्ठाचर्चा पर टिप्पणियों में ” इसका लिंक दे रखा है ।
    कलम कापी लेकर पढ़े जाने वाला सँदर्भ है, यह तो ! बुकमार्क कर लिया है, टिप्पणी भले माडरेट हो जाय, पढ़ने पर रोक थोड़ेई है ?
    नहीं नहीं, अपने पर जिन ले लीजो,
    ऎंवेंईं मन भर आया, सो निकल गया इस बेलगाम कीबोर्ड से…

  31. हंसती, खिलखिलाती, बतियाती हुई लड़कियां

    [...] सेल्फ़ डिफ़ेन्स वाली बात पर पहिले ही एक शहीदाना अंदाज में बयान दे चुके हैं। इसे हमारा सेल्फ़ डिफ़ेन्स न [...]

  32. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176

    [...] गर्मी, पाठक और अप्रसांगिक होने के खतरे… [...]

  33. चंदन कुमार मिश्र

    चलिए हम तो ए.सी. के बारे में नहीं सोचते। आँकड़ों का हाल अब ढाई साल बाद पता नहीं कैसा है। हालांकि संख्या और गुण का सीधा सम्बन्ध कम होता है…हिन्दी किताबों वाली स्थिति चिट्ठाजगत में भी?
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..जय हे गांधी ! हे करमचंद !! (कविता)

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