32 responses to “अईसी कान्फ़िडेंट डेमोक्रेसी और कहां?”

  1. गिरिजेश राव

    हँस रहा हूँ। सीरियस हो रहा हूँ। फिर हँस रहा हूँ कि ब्रेक ! सीरियस हो रहा हूँ . .इसे कहते हैं पाठक को नचाना। कितनी दूर से डोर हाथ लिए बैठे हो !

    गनीमत है मलिकाइन नहीं हैं आस पास में। नाहीं तो मेरी दिमागी हालत पर हलकान हो जातीं।
    वैसे ही बड़ी परीशान हैं बेचारी। कल रात में मुझे दस्त लगे थे और वो सोए सोए कह रही थीं,”रहने भी दीजिए। इतनी रात गए लिखना बन्द क्यों नहीं कर देते।”

    !!@#$

    लम्बा लिखने को सोचा था लेकिन आप खुदे इतनी लम्बी हाँक दिए हैं कि हिम्मत डोल गई।

  2. Dr.Arvind Mishra

    बहुत झकास और बिंदास चिंतन -कविता दोनों बेजोड़ -पनिया अभी बरस रहा है की थम गया !

  3. गिरिजेश राव

    वैसे बारिश को हड़का कर आप ने अच्छा नहीं किया। आपे जइसे पापियों के कारण सूखा पड़ा हुआ है।

  4. दिनेशराय द्विवेदी

    मस्त है, मस्ती में सब कुछ कह दिया है। फुटकर शेरों वाली नवी गजल (ग़ज़ल नहीं) पसंद आई। ये नवी गजल वो है। फलाउन अफलातून नहीं होते। जब आई, जैसै आई कह दी और मस्ती ले ली। गोरख पांडे की कविता खूब याद रखी आप ने। आज बहुत कविताएँ आई हैं जो संग्रहणीय हैं। अच्छी खबर यह है कि पानी यहाँ भी बरसा है पर झमाझम नहीं बल्कि होले होले। बहा नहीं बैठ गया। किसान खुश हुए!

  5. Jagdish Bhatia

    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

  6. हिमांशु

    गिरिजेश जी की बात में दम है – आपकी लेखनी की अँखपुतरी नाचती बहुत है । सब कनखियाने की आदत है उसकी , और लड़ जाय तो नैन मटक्का भी कर ही ले ।

    इतनी वेरायटी कहाँ मिलती है इतने थोक के लेखन में ।

  7. anita kumar

    मास्साब बरसात में पोस्ट कुछ ज्यादा ही लंबी नहीं हो गयी क्या? लेकिन हम गिरीजेश से सहमत(शेम टू शेम) कभी हंस रहे हैं कभी गंभीर हो रहे हैं…।जैसा आप की कलम नचा रही है वैसा नाच रहे हैं …बहुत सुंदर पोस्ट

  8. सतीश पंचम

    वाह! क्या धांसू फांसू हांसू पोस्ट है। कहीं हंसते हुए हलकान हो रहे थे तो कभी सोच में पडते सोचायमान हो रहे थे।

    बहुत सुंदर।

    जहां तक पोस्ट की लंबाई की बात है तो वो तो होना ही था वरना ‘पठनरस’ कैसे मिलता।

    बहुत खूब।

  9. सतीश पंचम

    और ये फोटो जो लगा रखी है उसमें शायद ‘अनरसा’ खाया जा रहा है जो कि बरसात में ही ज्यादा खाया खिलाया जाता है ।

    Am I right ?

  10. वन्दना अवस्थी दुबे

    कमाल…हमेशा की तरह. ऐसा करारा व्यंग्य..इतना गम्भीर चिन्तन इतने मस्तमौला अन्दाज़ में! समझ नहीं आता हंसे या रोयें?

  11. anil kant

    ha ha ha ha :)
    ab kya kahun aapne hi bahut kuchh kah diya

  12. venus kesari

    ऐसी झमाझाम बारिश हुई की हमारा पिकनिक का प्रोग्राम चौपट हो गया
    वीनस केसरी

  13. अर्कजेश

    सम्मोहक शैली, मारक व्यंग
    लाजवाब
    हँस नहीँ सका ।

  14. Anonymous

    sahee baat hai, jab hansaa ja saktaa ho to aazaadee ka rona rone kee kya zaroorat?
    badhiya fursatiya type post, aur Gorakh jee kee kavitaa bhee badhiyaa!

  15. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

    स्वतंत्रता दिवस पर आने वाली सभी पोस्टों में सर्वोत्कृष्ट लगी यह पोस्ट। जिस प्रवाह और प्रभाव से आपने हमारे कॉन्फिडेण्ट इण्डिया का चित्र खींचा है वह सहज ही आँखों के सामने नाचने लगता है। हम आधुनिक ब्लॉगजगत के परसाई जी से साक्षात्कार कर रहे हैं।

    आपके व्यंग्यों का संकलन छपना चाहिए, अब समय आ गया है। जो सिर्फ़ कागजों पर ही पढ़ सकते हैं उन्हें भी इस गम्भीर व्यंग्य लेख का सुख मिलना चाहिए।

  16. ताऊ रामपुरिया

    भाई इमानदारी से कहें तो हमको आप कठपुतली जैसा नचाये हो. और फ़ुटकर शेर और उसकी तस्वीर घणी पसंद आई.

    रामराम.

  17. रवि कुमार, रावतभाटा

    बहुत ही हल्के-फुल्के तरीके से अपने इस व्यंग्य में कई गहरे तीर मारे हैं आपने…
    आखिर में तो आपने एक बडा ही रहस्य खोल दिया है…
    चूंकि ड्यूटी बजाई जा रही है, इसीलिए हंस कर बजाई जा रही है आज अधिकतर….
    और इसकी इतनी आदत पड गई है कि यह भूल गये कि यह एक मजबूरी में शुरू हुई थी…

    और अब रोने वाले उल्टे तकलीफ़ पैदा करने लगे हैं…
    लगता है हमारे हंसने पर आत्मग्लानि पैदा कर रहे हैं….

    बेहतर पोस्ट…शुक्रिया..

  18. ज्ञानदत्त पाण्डेय

    हम तो आजादी सो कर मनाये। आपने देश भक्ति से सराबोर हो कर – दोनो में अंतर जरूर है; पर खास अंतर है क्या?

  19. विवेक सिंह

    ठीक ही कहा गया है कि “आजाद देश में चीख पुकार अधिक होती है, कष्ट कम होता है . जबकि पराधीन देश में चीख पुकार कम होती है कष्ट अधिक होता है .”

  20. Abhishek

    वाह आजादी पर पोस्ट हो तो ऐसी. क्यूटनेस पर कुर्बान होने वाली बात में दम है. टसुआ बहाने का कौनो फायदा तो है नहीं… तो हम भी मगन हैं :)
    हम तो आज एम्पायर स्टेट पर तिरंगा देख आये जी. अपनी आजादी कौनो मजाक थोड़े है कल शिल्पा को भी देख आयेंगे. देख के बताते हैं आजादी पर वो क्या बोलती/करती हैं.

  21. संजय बेंगाणी

    बड़े-बुजुर्ग लोग तूफ़ान से देश की किश्ती को निकाल के लाये थे- कोई मजाक नहीं। ठीक है जी, हम सोचे हम चिंता करेगें तभी देश बचेगा, मगर अब ज्ञान चक्षु खुल गए हैं. :)

  22. Anonymous

    मैं भी इस आजादी से खुश नहीं था, लेकिन आपकी पोस्ट और गजल पढ़ने के बाद लगने लगा है कि सब ठीकठाक चल रहा है. चिंता की कोई बात नहीं.

  23. Shiv Kumar Mishra

    गजब पोस्ट है. वाह! ही वाह!.
    हम भी सिद्धार्थ जी से सहमत हैं. किताब छपनी चाहिए अब.

    “गरदनिया स्पांडलाइटिस के कारण जो लोग ऊपर नहीं देख नहीं पा रहे थे उन्होंने नीचे देखे-देखे ही झंडे को सलामी ठोंक दी। उनकी झुकी हुई गरदन देखकर तमाम बातें लोगों ने कह डालीं लेकिन निजता के उल्लंघन के डर से वो लिख नहीं रहा हूं।”

    कुछ लोग त डंडे तक ही देख पाए. हरा तक भी नहीं पहुंचे. ई हम निजता का उलंघन करके बता रहे हैं….:-)

  24. Kartikeya

    कतई पाजिटिव पोस्ट लिखी है..

    जब तलक इत्ते सकारात्मक लोग बिलागजगत में हैं, माँ कसम देश की प्रगति की रफ़्तार कम नहीं हो सकती।

    हमारी अनुपस्थिति आपको खली, जानकर हम तो निहाल हो गये। अभी एकाध दिन में अपनी क़ब्र से बाहर निकलता हूँ।

  25. काजल कुमार

    “देश अपना भौत बड़ा है। आजादी भी इसी हिसाब से भौत है।…” वाह भई, और आपने भी भौत अच्छा लिक्खा है.

  26. Ranjana

    Pnaja mathe par laga salamee de rahi hun aapki lekhni aur is aalekh ko…..

    iske aage aur kya kahun …kuchh bhi nahi soojh raha….

    Simply great !!!!

  27. puja

    एतना बड़ा पोस्ट पर केतना बड़ा कमेन्ट लिखें? आजादी दिवस था टिपियाने से आजादी मनाये रहे थे…न कुछ लिखे न छापे न पढ़े…ज्ञान जी एकदम ज्ञान की बात बोले हैं, हम भी उनके ही पाले में हैं चादर तान के सोये रहे…अब सब दिवस ख़तम हो गया है, दो दिन का छुट्टी उड़ गया…कल ऑफिस जाने के बदहवासी में रात को बिलाग के के बैठे हैं…तो सोचे आपको भी टिपिया ही दें…एतना बढ़िया पोस्ट है, कमेन्ट तो बनता है :D

  28. गौतम राजरिशी

    “चकित च चिंतित हुये हम (कायदे से हमको विस्मित च किलकित होना चाहिये लेकिन अब जो हो लिये सो हो लिये”…इतनी रात गये पोस्ट की शुरूआत में ही इन पंक्तियों ने ठहाका लगाने पर विवश किया, फिर घबड़ा कर चुप हो गया कि बाहर खड़ा संतरी जाने क्या सोचे..! दबी जुबान में अब भी हँसे जा रहा हूँ, देव! फिर आजादी की वारंटी ने और नीचे इन फुटकर शेरों की अदायगी ने…इस “टिच्चन” को पेटेंट करवा लिया है ना देव?
    अंत में गोरख जी को पढ़वा कर….

  29. कान्फ़िडेंट इंडियन

    अईसी कान्फ़िडेंट पोस्ट अउर कहां ?

  30. Ashish Khandelwal

    कमाल का व्यंग्य.. हैपी ब्लॉगिंग

  31. Laxmi N. Gupta

    सही कहा है:

    “हरेक को लुटने की आजादी है, हरेक को लूटने की आजादी है। हरेक को पिटने की आजादी है, हरेक को पीटने की आजादी। जिसको जो रोल मन में आये अख्तियार कर ले। कोई किसी को रोकता-टोंकता नहीं। बहुत हुआ तो थोड़ा झींक लेता है- क्या जमाना आ गया है!”

    फुटकर शेर भी पसन्द आए। अब समाजवाद का जमाना कहाँ रहा। पूँजीवाद धड़ल्ले से चल रहा है, भारत में भी।

  32. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176

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