By फ़ुरसतिया on August 26, 2009
वे हिन्दी ब्लागिंग के शुरुआती दिन थे। साथी ब्लागरों को लिखने के लिये उकसाने के लिये देबाशीष ने अनुगूंज का विचार सामने रखा। इसमें एक दिये विषय पर लोगों को लिखना था। लिखने के बाद अक्षरग्राम पर लेखों की समीक्षा होती। पहली अनुगूंज का विषय था- क्या देह ही है सब कुछ? 25 अक्टूबर को […]
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By फ़ुरसतिया on June 15, 2008
हमने जब पूछिये फ़ुरसतिया से यहां शुरू किया तो देबाशीष की उलाहना भरी मेल आई जिसका लब्बो-लुआब यह है कि हम निरंतर को निकालने के लिये कुछ नहीं कर रहे। निरंतर के कुछ अंक निकले। हम लोगों ने बड़ी मेहनत की। लेकिन उसकी निरंतरता बरकरार न रख सके। समय का अभाव और आर्थिक जुगाड़ की […]
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By फ़ुरसतिया on June 8, 2008
हमारी पिछली पोस्ट में तमाम लोगों ने आग्रह किया कि हम पूछिये फ़ुरसतिया से शुरू करें। कुछ लोगों ने सवाल भी भेज दिया। जीतेंन्द्र ने पुराने अनुत्तरित सवालों का हवाला दिया है। जैसा कि होता है इस तरह के काम एक तात्कालिक चिरकुटई के तहत ही किये जाते हैं। लोग एकाध सवाल पूछते हैं फिर […]
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