Showing posts with label विधि. Show all posts
Showing posts with label विधि. Show all posts

Thursday, April 4, 2019

मिट्ठी का स्वागत है अपने घर में , ढेरों प्यार से -सतीश सक्सेना

अंततः इंतज़ार समाप्त हुआ , विधि, गौरव की पुत्री मिट्ठी ने, आज (3April) म्युनिक, जर्मनी में जन्म लिया और मुझे बाबा कहने वाली इस संसार में आ गयी !

मिट्ठी का स्वागत है अपने घर में , ढेरों प्यार से !
गुलमोहर ने भी बरसाए लाखों फूल गुलाल के !

नन्हें क़दमों की आहट से,दर्द न जाने कहाँ गए
नानी ,दादी ,बुआ बजायें ढोल , मंगलाचार के !

Tuesday, August 6, 2013

ये लड़कियां -सतीश सक्सेना


सावन में, हरियाली तीजों का त्यौहार,लड़कियों के लिए बहुत महत्व रखता है  ! हरियाली तीज अथवा कजली पर विवाहित लड़कियों को घर (जो विवाह बाद ही समाज द्वारा, मायके में बदल दिया जाता है ) बुलाने का रिवाज़ है , और बेटियों को भेंट आदि दी जाती हैं !
विवाह के बाद, पूरे जीवन ये स्नेही बेटियाँ अपने पिता और भाई की तरफ आशा भरी नज़र से देखती हैं कि सावन में, उसके घर से  पिता अथवा  भाई ,उसे अपने घर ले जाने ,उसकी ससुराल आएगा !

आज के माहौल में, अधिकतर घरों में लड़कियों को वह स्नेह नहीं मिल पाता, जिसकी वे हकदार होती हैं , इसके पीछे अक्सर ननद भाभी के मध्य उत्पन्न कडवाहट ही अधिक होती है ! दुखद है कि माँ बाप के कमज़ोर होते होते, यह तेजतर्रार लड़कियां, धीरे धीरे अपने घर (मायके)  से बिलकुल कट सी जाती हैं !

अक्सर लड़कियां,अपने आपको, अपने भाई का सबसे बड़ा हितचिन्तक समझती हैं , नतीजा अनजाने में , बहू के प्रति, माँ और बेटी की आपस में खुसुर पुसुर शुरू हो जाती है, यही कडवाहट की पहली वज़ह होती है ! कोई भी लड़की यह नहीं चाहती कि उसके परिवार में ननद की दखलंदाजी हो, नतीजा एक रस्साकशी की बुनियाद, पहले दिन से ही, उनके घर में रख जाती है , और भुक्त भोगी होता है पति, जो बेचारा यह तय ही नहीं कर पाता कि वह क्या करे !

लड़कियों को चाहिए कि शादी के बाद वे,अपनी भाभी को, भाई से अधिक सम्मान , दिल से दें, मायके में अनाधिकार हस्तक्षेप न करके, अपने नए घर की परवाह करें और उसे संवारने में अपना समय लगाएं न कि पूरे जीवन के लिए अपनी  भाभी के घर में लड़ाई की नींव रखें , ऐसा होने पर यकीन करें, भाभी इस कष्ट को कभी भुला न पायेगी !याद रखने की आवश्यकता है कि कोई लड़की अपने ऊपर हर समय नज़र रखा जाना पसंद नहीं करेगी ! 

                  यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि नयी बहू, को अधिक देर तक उसके हको से वंचित नहीं किया जा सकता और समझदार माता पिता कभी भी , आने वाली बच्ची पर अपनी इच्छाएं नहीं लादते बल्कि अपनी बेटी से अधिक उसे पहले दिन से प्यार करते हैं ! 

                  और आज जब मैं किसी बहिन को, अपने ही घर के ड्राइंग रूम में, मेहमान की तरह बैठे देखता हूँ तब मुझे बेहद तकलीफ होती है  !

अगर यह विषय अच्छा लगा हो तो यह भी पढ़ें ...क्लिक  करें  

Saturday, November 17, 2012

गुडिया की रंगोली -सतीश सक्सेना


यह खूबसूरत रंगोली मेरी बेटी हर वर्ष अपने घर के आंगन में बनाती रही है ! इस वर्ष से उसका अपना घर , मायके में बदल जाएगा अतः उसकी यह अंतिम रंगोली है जिसे उसने अपनी भाभी विधि के साथ बनाया है ! संयोग से विधि की, अपने घर में, यह पहली रंगोली है !

मेरी गुडिया ने, विवाह से पूर्व, इस घर के प्रति अपनी  जिम्मेवारियां, विधि को सौंपने की शुरुआत, इस रंगोली से कर दी, और विधि ने अपने घर में पहली रंगोली बनायी !
                                            चार्ज देने और लेने की परम्परा,  सुख से अधिक दुखदायी है ...मोह छोड़ा नही जाता , बेटी से बिछड़ना, बेहद कष्ट कारक है , मगर हकीकत स्वीकारनी होगी !

इस मौके पर, विश्वयात्री एडम परवेज़  ने भी जमकर, इन दोनों की मदद की ! एडम बेटी के विवाह में शामिल होने के लिए, आजकल हमारे मेहमान है ! विश्व भ्रमण पर निकला यह अमेरिकन ४६५ दिन से, अपने घर से बाहर है और हमारा देश, इस यात्रा में उसका ६५ वां देश है ! दिवाली के दिन इस रंगोली पर एडम ने लगभग ४ घंटे काम किया ! हिन्दुस्तानी कल्चर में यह विदेशी योगदान भुलाया नहीं जाएगा !

Friday, March 16, 2012

बेटी या बहू ? - सतीश सक्सेना

हमारी बेटी 
आज गुरदीप सिंह, अपनी सोफ्टवेयर इंजीनियर बेटी को लेकर घर आये थे , वे अपनी बेटी को गौरव और विधि से मिलवाना चाहते थे जिससे उनकी बेटी को भविष्य में अपने कैरियर को, लेकर उचित मार्गदर्शन मिल सके !
हाथ में टेनिस रैकिट और शर्ट पाजामा पहने विधि ने दरवाजा खोलकर उनका स्वागत किया ! चाय आने पर गुरदीप ने मेरी बहू के बारे में पूंछा कि वह कहाँ है तो हम सब अकस्मात् हंस पड़े कि वे विधि को पहचान ही नहीं पाए कि साधारण घर की बेटी लग रही, इस घर की नव विवाहिता बहू भी वही है !
और मुझे बहुत अच्छा लगा कि मैं अपनी इच्छा पूरी करने में कामयाब रहा ....

लोग नयी बहू पर, अपने ऊपर भुगती, देखी, बहुत सारी अपेक्षाएं, आदेश लाद देते हैं और न चाहते हुए भी, आने वाले समय में, घर की सबसे शक्तिशाली लड़की को, अपने से, बहुत दूर कर देते हैं !

किसी और घर के अलग सामाजिक वातावरण में पली लड़की को  , उसकी इच्छा के विपरीत दिए गए आदेशों के कारण, हमेशा के लिए उस बच्ची के दिल में अपने लिए कडवाहट घोलते, सास ससुर यह समझने में बहुत देर लगाते हैं कि वे गलत क्या कर रहे हैं  ?

अपनी बहू को,आदर्श बहू बनाने के विचार लिए, अपने से कई गुना समझदार और पढ़ी लिखी लड़की को होम वर्क कराने की कोशिश में, लगे यह लोग, जल्द ही सब कुछ खोते देखे जा सकते हैं ! 


घर से बाहर प्रतिष्ठित देशी विदेशी कंपनियों में काम कर रहीं, ये  पढ़ी लिखीं, तेज तर्रार लड़कियां, अपने सास ससुर की आँखों में स्नेह और प्यार की जगह, एक प्रिंसिपल और अध्यापिका का रौब पाकर, उनके प्रति शायद ही कोई स्नेह अनुभूति, बनाये रख पाती हैं ! 


समय के साथ इन बच्चों की यही भावना सास ससुर के प्रति, उनकी आवश्यकता के दिनों ( वृद्धावस्था ) में  उपेक्षा बन जाती है जबकि उस समय, उन्हें अपने इन समर्थ बच्चों से,  मदद की सख्त जरूरत होती है , और यही वह कारण है जब आप ,वृद्ध अवस्था में अक्सर बहू बेटे द्वारा माता पिता  के प्रति उपेक्षा और दुर्व्यवहार की शिकायतें अखबारों में सुनने को मिलती हैं !

अक्सर हम अपने कमजोर समय ( वृद्धावस्था )में बेटे बहू को भला बुरा कहते नज़र आते हैं, मगर हम भूल जाते हैं कि बहू की नज़र में सास -ननद, अक्सर विलेन का रूप लिए होती है , जिन्होंने उनके हंसने  के दिनों में (विवाह के तुरंत बाद ), उसे प्यार न देकर वे दिन तकलीफदेह  बना दिए और वह यह सब, न चाहते हुए भी भुला नहीं पाती !

शादी के पहले दिन से, जब लड़की नए उत्साह से, अपने नए घर को स्वर्ग बनाने में स्वप्नवद्ध होती है तब हम उसे डांट ,डपट और नीचा दिखा कर, अपने घर का सारा भविष्य नष्ट करने की, बुनियाद रख रहे होते हैं !

मेरे कुछ संकल्प :

-मुझे ख़ुशी है कि मैं अपनी बहू को यह अहसास दिलाने में कामयाब रहा हूँ कि वह ही घर की वास्तविक मालकिन है, इस घर में वह अपने फैसले ले सकने के लिए पूरी तरह से मुक्त है ! उसको मैंने पारिवारिक रीतिरिवाज़ और बड़ों को सम्मान देने की दिखावा करतीं, घटिया प्रथाओं आदि से, पहले दिन से, मुक्त रखा है !

-विधि ज्ञानी ,  विधि सक्सेना और गौरव सक्सेना , गौरव ज्ञानी का कर्तव्य पूरा करें और यह सिर्फ कास्मेटिक दिखावा न होकर, इसे ईमानदारी एवं विश्वास के साथ अमल में लाया जाए !

-विधि के आते ही, मेरा इच्छा उसका लासिक आपरेशन करवा कर, बचपन से लगाये ,  भारी भरकम चश्मे को उतरवाना था जो उसने हँसते हुए मान लिया , १३ मार्च को डॉ अमित गुप्ता द्वारा किये गए  इस शानदार आपरेशन का परिणाम देखकर ,हम सब आश्चर्य चकित रह गए थे ! विधि की माँ (विमला जी ) की  शिकायत थी  कि पिछले पांच साल से उनका किया ,अनुरोध इसने कभी  नहीं माना था तो विधि का जवाब था कि पापा (मैंने ) ने मुझसे अनुरोध नहीं किया वह तो आदेश था और मैं मना, कैसे कर सकती थी ?

-विधि के माता पिता को कभी यह अहसास न हो सके कि गौरव उनका अपना पुत्र  नहीं है , उनके स्वास्थ्य और हर समस्या का ध्यान रखना, विधि के कहने से पहले, गौरव की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए !

- राजकुमार ज्ञानी ( समधी )से मैंने वायदा किया है कि विधि सक्सेना के घर में उनका उतना ही अधिकार होगा जितना कि सतीश सक्सेना का और वे इसे मेरा वचन माने जिसे मैं मरते दम तक निभाऊंगा !

-मुझे ख़ुशी है कि दिव्या ने बहू को बेटा समझ प्यार करने में मेरा पूरा साथ दिया और अब चार बेटों ( बेटा बहू और पुत्री दामाद )वाले इस घर में हर समय ठहाके गूंजते सुनाई पड़ रहे हैं  जिसके लिए मैं परम पिता परमात्मा और अपने मित्रों की शुभकामनाओं के प्रति आभारी हूँ !
अन्य घरों की प्यारी बच्चियों  (अपनी बहुओं ) के साथ मैं 
उपरोक्त व्यक्तिगत पोस्ट लिख दी ताकि सनद रहे ...

Monday, June 27, 2011

परिवार में विषबेल बोते हम लोग - सतीश सक्सेना

मानव कुल में रहते हम लोग, शायद अपने सांस्कृतिक पारिवारिक गुणों को भूलते जा रहे हैं ! पीढ़ियों से चलता आया परस्पर पारिवारिक स्नेह, आज न  केवल  दुर्लभ नज़र आता है , बल्कि  एक चालाकी और चतुरता का भाव अवश्य सब जगह नज़र आता है , जिसके चलते हम लोग एक दूसरे के प्यार पर शक करते हुए भी, साथ रहने को बाध्य होते हैं !

पारिवारिक व्यवस्था में सबसे पहले बहू का स्थान आता है , यह नवोदित लड़की, आने वाले समय में इस घर की मालकिन होगी इस तथ्य को लोग कभी याद ही नहीं करना चाहते न कोई उसे यह अहसास दिलाता  है कि वह घर में प्रथम सदस्य का दर्ज़ा महसूस कर सके ! छोटे छोटे फैसले लेते समय भी, वह बच्ची अपनी सास अथवा पति के मुँह देखने को मजबूर रहती है और अक्सर परिवार के लोग इस बात पर खुश होते हैं कि बहू आज्ञाकारी मिली है ! शुरुआत के दिनों में, अपने ही घर में कोई निर्णय न ले सकने की, उस घुटन का अहसास, करने का कोई प्रयत्न नहीं करता ! समय के साथ ,अपने मन को अभिव्यक्त न कर पाने की तड़प, न चाहते हुए भी उस बच्ची को इस नए परिवार से दूरी बनाये रखने को, पर्याप्त आधार देने के लिए, काफी होती है  ! 

इस प्रकार एक अनचाहा  कड़वा बीज, घर के आँगन में कब लग गया, कोई नहीं जान पाता और हम लोग समय समय पर, अनजाने में, इसे खाद पानी और देते रहते हैं !

जहाँ तक माँ बाप का सवाल है वे अपनी ही असुरक्षा में घिरे रहते हैं ! अपनी ही औलाद से, अपनी जीवन भर की कमाई को, पढ़ाई लिखाई और बच्चों की परिवरिश पर खर्च हो चुकी, बताने में कोई कसर नहीं छोड़ते ! उन्हें अक्सर यह लगता है कि बच्चों ने अगर बुढापे में मदद न की तो क्या होगा ? अतः अपनी शेष जमापूंजी आदि बच्चों की नज़र से दूर ही रखा जाए तभी अच्छा होगा ! उनकी यह समझ और झूठ , बच्चों को पता लगते अधिक देर नहीं लगती ! अपने ही बड़ों द्वारा, उन पर विश्वास न किये जाने पर, रिश्तों में ठहराव और एक बड़ी दरार आना स्वाभाविक हो जाता है ! 

अक्सर  अपनी असुरक्षा की भावना लिए, बड़ों की यह बेईमानी, उस परिवार में अपनों के प्रति शक के माहौल को पैदा करने में, बड़ी भूमिका निभाती है एवं अनजाने में एक भयंकर विष बीज और रोप दिया जाता है ! जहाँ ममता, स्नेह और सुनहरे भविष्य का मज़बूत आधार, परस्पर मिलकर तैयार किया जाना चाहिए वहीँ शक और शिकायतों का एक मजबूत आधार बन जाता है !   

मुझे याद आता है ,मेरे एक सीधे साधे साथी के रिटायरमेंट पार्टी पर, उनकी पत्नी तथा बच्चों ने मुझसे आखिरी चेक की रकम फुसफुसाते हुए जाननी चाही  और साथ ही यह भी कि उनके पति, को इस बारे में न बताया जाए , तो मैं  निशब्द रह गया !


पुत्री सबसे अधिक अपने परिवार से जुडी होती है ! कुछ समय बाद अपने घर से दूर हो जाने का भय उसे अपने परिवार के प्रति और भी भावुक बना देता है ! अनजाने में सबसे अधिक अन्याय इसी के साथ किया जाता है, अपने घर में भी और नए घर में भी ! अफ़सोस है कि उसकी माँ भी उसे यह अहसास दिलाने में आगे रहती है कि यह घर उसके भाई का है जबकि अधिकतर लड़कियां अपने भाई के लिए कुछ भी देने के लिए तैयार रहती हैं ! अगर भावनात्मक तौर पर ही भाई और माँ उसे स्नेह का विश्वास दिला दें तो शायद ही कोई लड़की अपने आपको अकेला महसूस करे  !


हर भाई को अपनी बहिन से स्नेह चाहिए मगर हर बार हम भूल जाते हैं कि परिवार वृक्ष  की यह सबसे सुन्दर टहनी ही सबसे कमजोर होती है और वह जीवन भर अपने पिता और भाई से प्यार की आशा लगाए रहती है ! और हम ...??
आइये, पूंछे अपने दिल से   !


( यह लेख दैनिक जागरण में दैनिक जागरण में ७ जुलाई २०११ को छपा है )

Sunday, January 16, 2011

मेरे मरने के बाद ...- सतीश सक्सेना

कभी सोचा आपने कि हमारे जाने के बाद क्या फर्क आएगा हमारे परिवार में ....कुछ ऐसा काम कर चलें जिससे कुछ यादें दर्ज हो जाएँ हमेशा के लिए, जो हमारे अपनों को सुख दे पायें ! आज मैं याद करना चाहता हूँ अपने उन प्यारों को, जिन्होंने मुझे खड़ा करने में मदद की !
  • सबसे पहले उन्हें, जिन्होंने मुझे उंगली पकड़ के चलना सिखाया , अगर वे हाथ मुझे सहारा न देते तो शायद मेरा अस्तित्व और यह भरा पूरा परिवार और मुझे चाहने वाले , कोई भी न होते ! उनमें से कुछ हैं और कुछ मेरी  अथवा परिवार की लापरवाही के कारण, समय से पहले, छोड़ कर चले गए  ! शायद समय रहते उनकी अस्वस्थता पर उचित ध्यान दिया जाता तो वे अभी हम लोगों के साथ होते !  इन बड़ों के साथ, मैं अपने आपको हमेशा स्वार्थी महसूस करता हूँ , उनके साथ ही सबसे कम कर पाया और हमेशा उनका ऋणी ही रहूँगा , उनका कर्जा लेकर मरना मेरी नियति होगी ...
  • इसके बाद वे, जो मेरे अपने नहीं थे , जिनसे कोई रिश्ता नहीं था उसके बावजूद इन "गैरों " ने , जब जब मुझे अकेलापन और अँधेरा महसूस हुआ , मेरा साथ नहीं छोड़ा ! मुझे लगता है पिछले जन्म का कोई रिश्ता रहा होगा, जिसका बदला उन्होंने इस जन्म के कष्टों में, साथ देकर पूरा किया ! निस्वार्थ प्यार और स्नेह का कोई मोल नहीं होता ! जब भी अकेले में, मैं इन प्यारों का दिया संग याद करता हूँ तो आँखों में आंसू छलक आते हैं ...बस यही कीमत अदा कर सकता हूँ इन अपनों की ! और मेरे पास कुछ नहीं इन्हें देने को !      
  • पत्नी को किसी के आगे हाथ न फैलाना  पड़े , आज हमारे दोनों बच्चे बेहतरीन कंपनियों में मैनेजर हैं और अपनी माँ को बहुत प्यार करते हैं ! इतना है उनके पास कि  बचे शेष जीवन में वे इतनी मज़बूत रहें कि उनके आँख में कभी धन की कमी के कारण आंसू  न आ पाए  ! शायद पत्नी की अपेक्षाओं पर उतरना बेहद मुश्किल होता है और मैं भी अपवाद नहीं रहा . जो काम मैं नहीं कर सका उसके  लिए  मैं अपनी अयोग्यता को दोषी ठहराता हूँ  !
  • पिता के जाने के बाद, बेटी अपने को, अधिक असुरक्षित महसूस करती है , एक संतोष है कि अपने दोनों बच्चों के लिए मैंने बराबर किया है !  भाई के बेहद प्यार के बावजूद कही न कहीं  मायके में उसका भविष्य, भाभी के व्यवहार पर निर्भर होता है ! उम्मीद करता हूँ कि मेरा सुयोग्य बेटा अपनी प्यारी बहिन को कभी अकेले  महसूस नहीं होने देगा ! मेरी पुत्री का बेहद मेहनती और स्नेही होना, उसका सुखद भविष्य  सुनिश्चित करने को काफी है ! उसकी बेहतरीन कार्यक्षमता, दिन पर दिन निखरेगी इसका मुझे विश्वास है !  
  • पुत्र में, मैं अपना अंश और व्यवहार पाता हूँ ! चूंकि मैं अपने जीवन से संतुष्ट हूँ सो अपने बेटे पर पूरा विश्वास है कि वह जीवन में अच्छा करेगा और सारे कर्त्तव्य हँसते हुए पूरे करेगा ! मैं जानता हूँ कि मेरे द्वारा पैदा किया गया, शून्य उसे बहुत खलेगा ! कुशाग्रबुद्धि और आत्मविश्वास उसे अपनी कठिनाइयों पर विजय दिलाने में सहायक रहेंगे !              अपनी इच्छाएं सार्वजनिक करने का मतलब ताकि सनद रहे , मेरे न रहने पर, यह मेरे  प्यार का दस्तावेज होगा  उन सबके लिए जो मेरे बाद मेरी कमी महसूस करेंगे !

Wednesday, August 25, 2010

तलाश एक लडकी की -सतीश सक्सेना

आजकल अपने पुत्र के लिए एक योग्य पत्नी ढूंढ रहा हूँ  !
-तलाश एक ऐसी बहू की जो मेरी डांट खा सके और मुझे अक्सर डांटने की हिम्मत भी रखे क्योंकि अपनी बेटी गरिमा की डांट खाते खाते लगता है कि मैं ही अधिक गलती करता हूँ !
-मैं विरोध करता हूँ ऐसे दहेज़ न लेने वालों का ,जो अपने होने वाली बहू के माता पिता से  यह कहते हैं कि हमें दहेज़ नहीं चाहिए हाँ आपके द्वारा, अपनी बेटी को जो कुछ देने की इच्छा हो उन पैसों को हमारे अनुसार ही खर्च करें ! और नवोदित बच्ची के घर आने से पहले ही, उसके घर बालों को निचोड़ कर, यह उम्मीद करते हैं कि यह बच्ची हमारे घर को स्वर्ग बनाने  में पूरा योग देगी !
-मैं विरोध करता हूँ ऐसे माँ बाप का , जो अपने ही बच्चों की खुलकर आर्थिक मदद नहीं करते हैं और अपनी सामर्थ्य और पैसा अपने भविष्य के लिए उनसे छिपाकर रखते हैं !
- मैं विरोध करता हूँ ऐसे माँ बापों का , जो अपने बेटे को बी टेक और अन्य प्रोफेशनल डिग्री दिलाने के लिए हर जगह डोनेशन देने के लिए भागते दौड़ते देखे जाते हैं वही अपनी पुत्री को सामान्य डिग्री दिलवा कर अधिक से अधिक पैसा बचाते हैं !
- मुझे आनंद आता है जब मुसीबत में, अपने समर्थ पुत्र को मदद न करते देख, भला बुरा कहते समय लोगों को देखकर , उस समय केवल बेटी ही इनके पास मदद के लिए बैठी दिखाई देती है !
- मुझे अफ़सोस है ऐसी बुद्धि और दुहरी मानसिकता पर जो जीवन भर ,अपनी करनी को दोष न देकर, प्रारब्ध और बच्चों  में दोष निकाल कर रोना रोते हैं !
"   बोया पेड़ बबूल का  आम कहाँ से होय "
Related Posts Plugin for Blogger,