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Thursday, January 10, 2013

ये गठरियाँ



बिस्तर से उठने का उसका मन नहीं था पर उसने अपने  आप को समेटा और उठ खड़ी हुई ...सिलवटें देखकर चेहरे पर मुस्कान दौड़ गई एक ब्लैक कॉफ़ी के लिए कदम रसोई की तरफ बढ़ गए ... पिछले तीन सालों से वो अपने मन की ज़िन्दगी जी रही थी जहां दिन उसकी मर्ज़ी के थे और रातें भी उसकी मर्ज़ी की ...उसकी मर्ज़ी ...
अपनी उम्र के लगभग 3 दशक उसने अपनी मर्ज़ी समझने में लगा दिए ... जो वो अपनी मर्ज़ी समझती थी वो वास्तव में उसकी नहीं दुनिया की मर्ज़ी थी और वो एक कठपुतली। अस्पताल में लोगों की ज़िन्दगी मौत का फैसला लेने वाली ...अपने फैसले लेने में इतनी दयनीय स्थिति में पहुँच जाती के उसको खुद यकीन नहीं आता के वो एक डॉक्टर है ...उसकी योग्यता एक तरफ और नारी होना दूसरी तरफ ...

कर्त्तव्य ,मर्यादा ,सही ,गलत ,विवेक ,संस्कार ,धर्म ,त्याग,शील  की गठरियाँ जो एक -एक करके उसको सौपी गई थी दादी -नानी ,मासी -चाची जैसे अपनों के द्वारा और आज वो धरोहर बोझ की तरह हो गई थी, जब वो अपने बारे में सोचना चाहती तो ये गठरियाँ  उस पर हमला कर देती और वो एक अपराध भाव से भर उठती ...ये ग्लानि  धीरे धीरे उसे निगल लेती और फिर वो इंसान से नारी में तब्दील हो जाती ...

पिता के जाने के बाद  घर की जिम्मेदारियों के बीच वो अपने को भुला चुकी थी ...समय बीत रहा था।कैलेण्डर में सालों के बदलने के साथ वो भी अपने में परिवर्तन महसूस कर रही थी। अच्छी नौकरी थी भाई बहन भी सेटल होने की राह पर थे ..पर अभी भी सब अधपका था ...शामें तो ठीक थी पर रातें उसे बेचैन कर देती ...ये बेचैनी उस नीली आँखों वाले डॉक्टर के अस्पताल में आने के बाद कुछ ज्यादा बढ़ गई थी ..उसकी आँखों में उतरता आकर्षण ..उसके दिल की धड़कने तेज कर देता। कोई इतना सहज और सरल कैसे हो सकता है ...बिना बनावट अपनी बात कह देता ...कई बार वो अपनी पसंद भी जाहिर कर चुका था , और वो भी तो उसे पसंद करने लगी थी .. उसका दिल किसी तरुनी की मानिंद धड़क उठता ...मचल जाता मुझे बस वही नीली आँखे चाहिए ..ओ मुझे प्यार और सम्मान से देखती है ...

उसी पल वो  गठरियाँ एक एक कर खुल कर पसर जाती ...उनके ढेर के बीच वो नीली आँखे ना जाने कहाँ खो जाती ....

घर पर बात करने का कोई मतलब नहीं था ...एक बार सोचा पर जानती थी ...भाई के भीतर का मर्द जाग उठेगा ... सब अचानक ज़िम्मेदार हो उठेंगे और अपनी ये गठरियाँ खोलकर उसकी गठरियों को और भारी कर देंगे ..के वो फिर उठ भी नहीं पाएगी,जहां अपने गोत्र में शादी करने पर जान का खतरा हो वहाँ किसी  की बात करना खुदको और उसको खतरे में डालने से ज्यादा कुछ नहीं था ....

एक दिन वही घटा जिसके घटने के  इंतज़ार में पिछले कुछ दिनों से थी  उन नीली आँखों ने जुबां खोल दी एक लाल गुलाब के साथ उस गुलाब की खुशबू से एक पल वो कस्तूरी हो उठी काश ... इस दुनिया में बस मैं वो और ये गुलाब रह जाये ..सब गायब हो जाए ..होंठो पे मुस्कान और आँखों में आंसू ... सामने एक मासूम चेहरा जो एक "हाँ" सुनने को बेचैन है
उसके लिए प्रेम दो दिलो दो इंसानों के बीच का रिश्ता था ...पर ये जानती थी उसके यहाँ प्रेम ही अपराध है, अपनी ज़िन्दगी का इतना बड़ा फैसला वो खुद नहीं ले सकती थी।। दिल हाँ कह रहा था पर गठरियो के बोझ तले वो हाँ किसी सिसकी सी दब गई ...
"मुझे थोडा समय दो " वो संयत होकर बोली
"यू कैन टेक योर टाइम स्वीटहार्ट " उसने उसे हौले से गले लगाकर कहा
वो पिघलते पिघलते बची ...
एक पल में सितार सी हो गई वो ...कुछ था दिल में जो बगावत कर रहा था खुद से अपने आप से ...आईने के सामने देर तक निहारती रही खुद को उसने मुझे पसंद किया क्योंकि मैं, मैं हूँ हर महीने घर पैसे लाने वाली मशीन नहीं, आज वो अपने आप को जानना चाहती थी ..मैं कौन हूँ क्या चाहती हूँ ...किसी ने कभी नहीं पूछा पर आज वो खुद से सवाल कर रही थी बंद कमरे में कई तूफ़ान उठे और बिखर गए ... एक एक कर कई गठरियो से सवाल उठे और उसने उनका सामना किया ...अभी तो ये सवाल खुद से पूछ रही थी ...पर जब ये सवाल उसके अपनों के मुह से बरसेंगे ..आंसू और गुस्से के साथ ...तब ...तब
"देखा जाएगा " उसने खुद को जवाब दिया ..
आज वो बागी हो उठी थी अपने लिए अपनी ख़ुशी के लिए ...जानती थी लोग स्वार्थी कहेंगे ...ताने देंगे, कोसेंगे कह देगी मुझे माफ़ करो छोड़ दो ...
क्रासिंग से दो गुलाब खरीदे .... एक ले जाकर अपनी टेबल पर लगाया ..एक पूरी हिम्मत के साथ उसे सौंप दिया
"यू डिड इट " वो शरारत से मुस्कुरा रहा था
फिर बातों के लम्बे सिलसिले में कितने कॉफ़ी के प्याले खाली हुए भरे ..याद नहीं ....आज वो बोल रहा था ... और ये मुग्ध सी उसका चेहरा देख रही थी ...
जिन लम्हों में वो खुद को अकेला पा रही थी ...उन पलों को भी वो समझ रहा था .. वो सिर्फ प्यार और साथ चाहता था ... और रिश्ता जब मैं चाहू ....पुरुष के दोस्ती भरे रूप से वो अनजान थी ...पिता ,भाई, रिश्तेदार सबको उसने कलफ लगी अकड़ के साथ ही देखा था ... वो माहोल ही एसा था वहां ....इस नीली आँखों वाले साथी का मिलना किसी शहजादे से मिलने से कम नहीं था ....
वो खुश थी ,जिन पलों में वो उसका हाँथ थामकर निश्चिन्त ही जाना चाहती ... अक्सर गठरिया जीवित हो उठती ... डराती चिल्लाती ...कभी सिनेमा हाल में ,कभी पिकनिक में ... वो एक एक कर उनको अपने से अलग कर रही थी ... रेत से फिसलते वक़्त के दरमियाँ वो कुछ चमकीले टुकड़े अपने लिए बचाना सीख रही थी
प्यार में होना आपके चेहरे को फेशियल सा असर देता है और शरीर को स्पा सा सुकून ...होंठो से बरबस निकल पड़ने वाले गीतों के मुखड़े और अंतरे चुगली कर देते है,
तो जीने दो ना उसे ....

एक रोज़  ... वो अपने शहजादे के साथ  घर से निकल आई, एक छोटे से आशियाने में जहां वो अपनी मर्ज़ी से रह सके ...जिम्मेदारियों के साथ खुद भी जी सके बिना डरे फैसले ले सके, उसके हाँथ और पैर काँपे नहीं ...उन गठरियों को देहरी के बाहर छोड़ दिया, आज वो भारी कदमो से नहीं बल्कि आत्मविश्वास से चल रही थी, दिनों के पंख लगे और रातें मादक हो उठी ... प्यार से सराबोर हो उठी ...प्यार पा रही थी और प्यार बाँट रही थी .... निखर रही थी ,
सपनीले दिनों में एक नन्ही किलकारी गूँज उठी उसकी फरिश्तों सी  मासूमियत ने पत्थर दिलो को भी मोम कर दिया ... टूटे रिश्ते जुड़ गए ... उसके साथ बुरा घटने का इंतज़ार करते करते कुछ सो कॉल्ड शुभचिंतक आशा खो बैठे ......

रात वो नीली आंखे कुछ कह रही थी ... उन्हें फ़रिश्ते का  साथ देने के लिए एक परी चाहिए थी ....
"हाँ वो परी ही होगी, आकाश दूँगी मैं उसे ... गठरियों की बजाय एक टोकरी सौपूंगी खुद चुनेगी " बुदबुदाकर कब एकाकार हो गई खुद ना जान पाई


Thursday, December 13, 2012

पिया बिदेस


ओ री सखी
सूनी बहियाँ
सीली अंखिया
बहकी बतिया
बिरहन रतियाँ

ओ री सखी
पिया बिदेस
जोगन भेस
रूखे केश
जीवन क्लेश
भेज संदेस

ओ री सखी
पूस मास
भूली हास
धूमिल आस
भारी सांस
अधूरी प्यास



Thursday, March 15, 2012

एक नया वादा कर ले


अपनी तन्हाइयों का
मुझसे सौदा कर ले
आज दिल कहता है
एक  नया वादा कर ले
बहुत हुए रेशमी साए
जुल्फों के तेरे शानो पर
सपनीली  आँखों को चल
धूप में सूखा कर ले
वफ़ा मिली भी मुझे
और निभाई भी दिल से
क्यों ना किसी लम्हा
दिल से कोई धोखा कर ले 
महंगी है दुनिया बहुत
महंगे है जीने के सवाल
खुद इन ख्वाहिशो को
थोडा सा सस्ता कर ले
बलिस्त भर कम पड़ जाते है
मेरी पहुँच से तारे-आसमां 
ज़रा नीचे एड़ी के
एक टुकड़ा हौसला रख दे

Friday, November 25, 2011

प्यार के पापकार्न

आजकल जहाँ से गुजरते है एक सोंधी सी खुशबू ठिठकने पर मजबूर कर देती है लगता है कहीं ना कहीं कुछ पापकार्न पक रहे है ये मक्के वाले नहीं ,जी ये तो प्यार वाले पापकार्न है ,छोटे शहरों में जो मोहल्ले की छतों पर,पार्क के कोनो में हुआ करता था आज वो हर सड़क और गली ,मॉल और पार्क ,कैफे और बाज़ार में सामने दिखता है .

मारल पुलिस प्लीज़ माफ़ करो मुझे तो ये गुलाबी मौसम बहुत  पसंद है , जब हवा में सिर्फ प्यार छाया हो .

माना छतें और शामें आज की तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी से माइनस हो चुकी है पर दिल तो वही है ना और दिलदार भी साथ ही है, फिर ज्यादा कुछ करना भी तो नहीं है,बस एक कॉम्प्लीमेंट ,एक गुलाब ,एक कप चाय या छोटी सी वाक. सारा नज़ारा बदल देगा .सब सामने ही है पर रोज़ कि व्यस्तताओं  नें आँखों  पर काला चश्मा लगा दिया है 

 सिर्फ युवा  ही नहीं आज हर जोड़ा खुलकर अपने प्यार का इज़हार करता है,चाहें जन्मदिन हो ,valentine डे या यूँही , आखिर बुराई क्या है ,जिस जीवन साथी ने हर सुख दुःख में आपका साथ दिया है अगर उसका हाँथ थाम कर दुनिया के नज़ारे देखने निकल पड़े तो भवें क्यों तिरछी क्यों की जाए,चाहें बरसात के मौसम में एक साथ भुट्टे का मज़ा लेना हो या खोमचे पर खड़े होकर चाट खाना और अपनी "प्रियतमा" को गोलगप्पे खाते हुए देखना.

कुछ द्रश्य जो आज से कुछ साल पहले तक शायद दीखते नहीं थे आज आम है .ऐसे दृश्य हमें एहसास दिलाते है ज़िन्दगी सिर्फ भागने के लिए नहीं है ,कुछ पल सुकूं से गुज़ारने के लिए भी है,किसी रिश्ते में बंधने से पहले वो पल जैसे भी हो निकाले जाते थे और जिए भी जाते थे डर था ना अपने साथी को खोने का ,और आज जब वो साथ है तो वक़्त की कमी का रोना क्यों ?

तीन घंटे पिक्चर हाल में गुजारना कुछ लोगों को पैसे या टाइम की बर्बादी लग सकता है पर कोई बताये सिर्फ साथ रहने के लिए अपनी व्यस्त शाम में से तीन घंटे कौन निकाल पाता है, कितने लोग है जो शाम को जल्दी आकर कहते है चलो तैयार हो जाओ कहीं घूम कर आते है , आसमान में बादल छाते  है ,बरस जाते है जब तक हम आप बाहर निकलते है तब हमें सिर्फ कीचड और ट्रेफिक जाम याद आता है,
 
आज कोई बुजुर्ग जोड़ा जब मॉल में एक कॉफ़ी टेबल पर एक साथ सुकून से काफ़ी का मज़ा ले रहा होता है तो कितने युवा जोड़ों के दिल में यही उम्मीद जगाती है काश हमारा बुढ़ापा भी ऐसे हाँथ में हाँथ डालकर बीते एक दुसरे के साथ. अजीब बात है सबको रश्क है टीनएजर युवाओं से रश्क कर रहे है "जब हम Independent  होंगे तो जैसे चाहें एन्जॉय करेंगे ", युवा अधेड़ों से रश्क करते है "यार हम भी सेटल   हो जाए फिर लाइफ जियेंगे " और बुजुर्ग पीछे मुड कर देखते है और सोचते है काश ..थोडा वक़्त अपने लिए भी निकाला होता . बस यूँही फिसल जाते है हसीं लम्हें रेत कि मानिंद हांथों से
बड़ों के लिहाज के चलते ऐसे पलों का मज़ा सिर्फ पहाड़ों पर छुट्टियों के दौरान ही उठाते थे ना ,आज वीकेंड वही मौक़ा देता है हर हफ्ते आप पर है आप कितना एन्जॉय कर पाते है ,प्यार तब भी था प्यार अब भी है बस पहले जताते नहीं थे अब छिपाते नहीं.
भले ही युवा जोड़ों को गुटर-गूं करते देख दिल में टीस उठे कभी उनको बे-शर्म भी कह दे पर वो टीस खुद वो लम्हे ना एन्जॉय कर पाने की होती है, तो रोका किसने है ज़िन्दगी तो यूँही भागती रहेगी जब तक जोड़ों के दर्द आपको धीमे चलने के लिए मजबूर नहीं कर देंगे क्या पता तब वक़्त हो ,पैसा हो पर साथी ना हो ,लम्हे तो चुराने ही पड़ेंगे ना ,

ये प्यार के पोपकोर्न है आपके हाँथ थामने भर से खिल उठेंगे और अपनी सोंधी खुशबू से मजबूर कर देंगे कि बस एक रूमानी सा ब्रेक तो बनता ही है ना .