"भारत में नारीवाद को पश्चिमी परिप्रेक्ष्य में देखा गया है, जबकि ज़रूरत उसे भारतीय परिप्रेक्ष्य में समझने की है. यद्यपि पितृसत्ता हर युग और काल में मौजूद रही है, पर भारत में यह अत्यधिक जटिल ताने-बाने के साथ उपस्थित है, जिसमें जाति, वर्ण, वर्ग और धर्म सभी सम्मिलित हैं. इसे 'ब्राह्मणवादी पितृसत्ता' का नाम दिया गया है. इसका यह अर्थ नहीं कि इसका निशाना कोई एक जाति है. यह भारतीय समाज में व्याप्त स्त्री की पराधीनता के अलग-अलग रूपों को दर्शाता है.
मेरी कोशिश नारीवाद को इसी भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य में समझने की और मौजूदा समस्याओं को इस आधार पर विश्लेषित करने की है."

मंगलवार, 7 मई 2013

पैतृक सम्पत्ति पर बेटी का अधिकार क्यों न हो?

कुछ  दिन पहले मैंने अपने पिता की सम्पत्ति पर अपने अधिकार के सम्बन्ध में श्री दिनेशराय द्विवेदी जी से उनके ब्लॉग 'तीसरा खम्बा' पर एक प्रश्न पूछा था. उनके उत्तर से मैं संतुष्ट भी हो गयी थी और सोचा था कि कुछ दिनों बाद मैं पिता की सम्पत्ति पर अपना दावा प्रस्तुत कर दूँगी. लेकिन मैंने देखा कि जिसे भी इस सम्बन्ध में बात करो, वही ऐसा न करने की सलाह देने लगता है. मैं ऐसे लोगों से कुछ प्रश्न पूछना चाहती हूँ. और साथ ही द्विवेदी जी से भी कुछ प्रश्न हैं इसी सन्दर्भ में.
मेरे पिताजी ने हम तीनों भाई-बहनों का एक समान ढंग से पालन-पोषण किया. उन्होंने कभी हममें लड़का-लड़की का भेदभाव नहीं किया. अपने अंतिम समय में वे भाई से थोड़ा नाराज़ थे. तो उन्होंने गुस्से में ये तक कह दिया था कि "मैं अपनी सम्पत्ति अपनी दोनों बेटियों में बाँट दूँगा. इस नालायक को एक कौड़ी तक नहीं दूँगा." मैंने हमेशा बाऊ जी की सेवा उसी तरह से की, जैसे कोई बेटा करता (हालांकि बेटे ने नहीं ही की थी, पिताजी के अनुसार)
फिर मैं उनकी सम्पत्ति की उत्तराधिकारिणी क्यों नहीं हो सकती? किस मामले में मैं अपने भाई से कम हूँ? और 2005 के हिंदू उत्तराधिकार कानून में संशोधन के बाद से ये कानूनी हक भी है. लेकिन मेरे भाई ने पिताजी के देहांत के बाद से घर पर कब्ज़ा कर लिया. अभी कुछ दिन पहले ज़मीन के कागज़ की नक़ल निकलवाई तो पता चला कि वो अपने आप भाई के नाम ट्रांसफर हो गयी है. जब 2005 के कानून के अनुसार बेटी भी अब ठीक उसी तरह अपनी पैतृक सम्पत्ति में उत्तराधिकार और विभाजन की अधिकारी होगी, जैसा अधिकार एक बेटे का है, तो ज़मीन अपने आप भाई के नाम क्यों हो गयी? क्या मेरी जगह कोई भाई होता, तो भी ऐसा ही होता. अगर नहीं तो इस कानून का मतलब क्या? जब मुझे लड़कर ही अपना हक लेना पड़े, तो वो हक ही क्या?
अगर कोई कृषि भूमि के कानूनों का हवाला देता है, तो क्या ये ठीक है कि पैतृक सम्पत्ति में बेटी को हक ना दिया जाय, सिर्फ इसलिए कि ज़मीन के अधिक टुकड़े हो जायेंगे? फिर वही बात कि फिर उस कानून का मतलब क्या? क्योंकि हमारे गाँवों में तो उतराधिकार योग्य सम्पत्ति में अधिकतर कृषि भूमि ही होती है. ऐसे तो लड़कियों को पैतृक सम्पत्ति में समान अधिकार के कानून का कोई मतलब ही नहीं रह जाता.
मेरे लिए उस सम्पत्ति का महत्त्व इसलिए नहीं है कि उससे मुझे कोई लाभ होगा. मेरे लिए सम्पत्ति में उतराधिकार की लड़ाई अपने पिता के प्रेम पर मेरे हक की लड़ाई है. और अगर कोई यह तर्क देता है कि लड़कियों के संपत्ति में हक माँगने से भाई-बहन के सम्बन्ध टूट जाते हैं, तो मेरे भाई से मेरे सम्बन्ध वैसे ही कौन से अच्छे हैं और अगर अच्छे होते भी, तो भी मैं अपना हिस्सा माँगती. रही बात दीदी की, तो उनदोनो ने तो पहले ही कह रखा है कि तीन भाग हो जाने दो, फिर अपना हिस्सा हम तुम्हें दे देंगे. क्योंकि हम दोनों बहनों के सम्बन्धों के बीच पैसा-रुपया-धन सम्पत्ति कभी नहीं आ सकती. जिनमें सच्चा प्यार होता है, वहाँ ये सभी मिट्टी के धेले के समान होता है.
मुझे लगता है कि इस प्रकार के ऊटपटांग तर्क देकर लड़कियों के उतराधिकार के हक को रोकने वाले लोग, न सिर्फ सामाजिक बल्कि कानूनी अपराध भी कर रहे हैं. याद रखिये कि जब आप ये कहते हैं कि लड़कियों को पिता की सम्पत्ति में हिस्सा लेने का क्या हक है, वे तो अपने पति के यहाँ चली जाती हैं, तो आप एक ओर तो उनके जैविक अभिभावक का हक उनसे छीन रहे होते हैं, दूसरी ओर 2005 के हिन्दू उतराधिकार कानून का उल्लंघन कर रहे होते हैं. लड़कियों का विवाह हुआ है या नहीं, उन्हें पति के घर जाना है या नहीं, इससे उनके माता-पिता के प्रेम पर हक क्यों कम होना चाहिए? और अगर माँ-बाप के प्रेम पर पूरा हक है, तो सम्पत्ति पर क्यों नहीं होना चाहिए?
अपनी अगली पोस्टों में मैं पैतृक सम्पत्ति में बेटियों के उत्तराधिकार और विभाजन के विषय में विस्तार से बताऊँगी. फिलहाल मैं जानती हूँ कि बहुत सी लड़कियाँ इस विषय में कोई जानकारी नहीं रखती हैं. इस पोस्ट के माध्यम से मैं सभी लड़कियों को ये बताना चाहती हूँ कि अब अपने बाप-दादा की ज़मीन पर तो उनका हक है ही, अपने पिता के आवास में रहने का हक भी है. कोई उनसे पैतृक सम्पत्ति पर उनके हक और पिता के घर में रहने का अधिकार नहीं छीन सकता है.

3 टिप्‍पणियां:

  1. मुक्ति जी
    जहा तक मेरी जानकरी है की बेटियों को पिता की संपत्ति में अधिकार वाला कानून कृषि भूमि पर लागू नहीं है , अब संपत्ति पर आते है मेरे पिता ने अपने पिता की संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं लिया उनका कहना था की पिता ने व्यापार शुरू करने में मदद की और उस व्यापार से उन्होंने अपनी खुद की संपत्ति बना ली फिर उन्हें पिता की संपत्ति लेने की क्या जरुरत है , यदि ईमानदारी से देखे तो पिता ये कह सकते है की वो व्यापार मैंने शुरू करवाया था तो तुम्हारी संपत्ति भी मेरी हुई , दुसरे जो पिता का घर है उसमे पहले से ही दो छोटे भाई रह रहे है यदि मै उसमे बटवारा करू तो वो दोनों कहा जायेंगे , ५ में से तिन अपना घर बना अलग हो गए और दो पिता के घर में रह गए सभी पिता की संपत्ति में हिस्सा मांगेगे तो नतीजा ये होगा की उस घर को ही बेचना पड़ेगा क्योकि वो इतना बड़ा नहीं है की उसमे ९ हिस्से लगे ८ बच्चे और एक दादी , ये विचार ही बेफकुफाना है उनके लिए , वैसे ही मेरे पिता ने भी भाई के साथ हम तिन बहनों को पढ़ाया लिखाया और बराबर पैसे खर्च किये अब उस पढाई लिखाई के बल बूते हम चारो भाई बहन कमा रहे है और संपत्ति भी बना रहे है , फिर हम किस अधिकार से पिता की संपत्ति मांगे वो उनकी संपत्ति है वो जिसे चाहे दे , जब वो और माता जी वसीयत नहीं बनायेंगे तब ही हम उनके बाद अधिकार की बात कर सकते है , उस घर को और माँ के गहनों में हमारी कोई रूचि नहीं है , पहले तो हम खुद अपने पैरो पर खेड़े है जब भाई को KAH सकते है की तुम अपने पैरो पर खड़े हो तो तुम्हे दूसरो से दहेज़ लेने की क्या आवश्यकता है तो यही बात हम पर भी लागु होती है , फिर उस घर में हमें रहना नहीं है हिस्सा लेने के लिए हमें उसे बेचना होगा , फिर इससे बड़ी मुर्खता की बात क्या होगी की हम अपनी यादो को बेच कर पैसा ले ले | ये हमारी निजी बात रही , अब सभी के लिए , विधवा, तलाकशुदा , और आर्थिक रूप से कमजोर बेटियों को जरुरत के समय ( क्योकि कई बार विधवा बेटी को उसके ससुराल में ही अच्छी जगह प्राप्त होती है ) जरुर उसके पिता के घर में रहने का हक़ मिलना चाहिए , जहा तक मेरी जानकरी है वो घर में रह तो सकती है उसे बेचने का हक़ उन्हें नहीं है , आप चाहती है एक आदर्श स्थिति की हर पिता अपनी बेटियों को अपनी सम्प्पति में बराबर का हक़ दे , और मै चाहती हूँ की हर पिता अपनी बेटी को इतना पढाये लिखाये ताकि वो खुद अपने पैरो पर KHADI हो सके उसमे उसका JYADA भला होगा , क्योकि अनपढ़ और कम समझदार बेटी को पिता की संपत्ति में हिस्सा भी मिला तो वो पति के और ससुराल वालो के हाथ में चला जायेगा उसकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा , जरुरी है की बेटियों को शसक्त और अपने फैसले लेने के लायक बनाया जाये, मुझे लगता है ये ज्यादा आदर्श स्थिति है |

    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  2. पर आप तो उत्तर प्रदेश की है ना?
    मैंने सुना है वहाँ तो कृषि भूमि में बेटियों को भी हक दिए जाने संबंधी कानून है।और अब कहीं कहीं दिया भी जाने लगा है।आपको इस संबंध में पता करना चाहिए।

    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  3. मैंने भी मेरे पिता की संपत्तिमें हिस्सा मागा ...पिताजी के गुझर जाने के बाद मां का खयाल भी बहुत रखा. अंतिम दिओं में सेवा भी बहुत करी. मेरे ही घर में उसने आख्री सांस ली शांति से. मैंने मां से कहा था वो अपना मृत्यु पत्र बनाए .. और यह भी कहा था मेरा हिस्स भी रखे.. तीनों भैयों के साथ बरराबर. उसे कठिन लगा था.. उसे यह भी लगा था मैं भाइओंसे संपन्न हुं फिर मुझे क्युं मिलना चाहिए हिस्सा.. फिर शायद डर से की यह बेटी तो कोरट कचेरी भी जा सकती है उसने मेरा हिस्सा बराबर रखा. भाइओंको पसंद नही था..पर मां ने तो अपनी बहुओं का भी अलग हिस्सा रखा.. उसका कहना था बहुएं ही सारा संभालती है तो उनका भी हिस्सा होना चाहिए.. मां ने सोच बद्लि और अधिक संवेदन्शील रही.

    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं

बहस चलती रहे, बात निकलती रहे...

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

बहस के साथी