एक लम्बे अरसे से लोगों को बिजली देने के काम के सरकारी तंत्र में अटका सा हुआ हूँ । फिर भी 'जहाँ हूँ जैसे हूँ' के आधार पर मुस्तैद रहते हुए भरसक कोशिश रहती है कि लोगों के काम आ सकूँ । इस दौरान बिजली आपूर्ति में होने वाले बहुत से 'फाल्ट' देखे ,सैकड़ों तरह के 'फाल्ट' और उनसे उपजी सैकड़ों तरह की 'परिस्थितियां' । उन सभी 'फाल्ट' को दूर कर प्रायः विद्युत् कर्मी तत्काल बिजली चालू करने का प्रयास करते हैं । परन्तु मेरा ध्यान हमेशा उन फाल्ट के उत्पन्न होने के कारणों पर ही केंद्रित रहा । मैंने लगभग सभी तरह के फाल्ट के कारणों का पता लगाने का प्रयास किया जिससे तंत्र में ऐसे सुधार कर लिए जाएँ कि उन फाल्ट्स की पुनरावृत्ति न होने पाये ।
फाल्ट्स जो प्रायः देखने को मिलते हैं जैसे तार का टूटना , जम्पर का जलना , फ्यूज़ उड़ना , ट्रांसफार्मर का क्षति ग्रस्त होना , खम्भे से केबिल का सिरा जल जाना , मुख्य केबल का जल जाना , उपकेंद्रों पर ब्रेकर का क्षतिग्रस्त होना ,इत्यादि । इन सभी प्रकार के फाल्ट्स में मुख्य भूमिका 'करेंट' की रहती है ।
'करेंट' की विशेषता यह है कि जैसे भगवान् अपने भक्तों से प्रसन्न हो कर उनके बुलावे पर नंगे पाँव दौड़े चले आते हैं बस उसी तरह 'करेंट' से भी जो कोई जुड़ जाता है और जितना भी चाहता है , 'करेंट' दौड़ कर उसकी इच्छा पूरी करता है और इच्छा पूरी की इसी भागा दौड़ी में 'करेंट' को दौड़ने के लिए अगर उचित पथ नहीं उपलब्ध रहता है तो वह अपना रास्ता ही तोड़ देता है ,जिसे 'ओवरलोडिंग' कहते हैं और अगर रास्ता तो है परन्तु रास्ता सुगम नहीं है और 'करेंट' को इस रास्ते से कूद फांद कर चलना पड़ रहा है तब 'करेंट' उस कूद फांद वाले मोड़ को लांघने के प्रयास में फिर अपना रास्ता ही जला डालता है जिसे 'लूज़ कनेक्शन' कहते हैं ।
जितने तरह के भी फॉल्ट होते हैं वह सभी इन्ही दो फाल्ट्स की उत्पत्ति से ही उत्पन्न होते हैं । इन दो फाल्ट्स के अतिरिक्त बिजली के तंत्र में कोई अन्य फाल्ट नहीं होता । तकनीकी रूप से अगर कहें तो यदि सभी उपकरण उचित क्षमता के हों और अपनी निर्धारित सीमा से अधिक अधिभारित न हों तो बिजली के बाधित होने का कोई कारण ही नहीं उत्पन्न हो सकता परन्तु कुछ संसाधनों का अभाव और बहुत कुछ समग्रता में योजनाओं का अभाव इन 'ओवरलोडिंग' और 'लूज़ कनेक्शन' का कारण बनते हैं ।
समाज में , परिवार में , दो व्यक्तियों के बीच , पति पत्नी के बीच अथवा प्रेमी प्रेमिका के बीच के संबंधों में प्रायः उत्पन्न होने वाले दोष के कारणों का अगर परिक्षण किया जाए तो इसके परिणाम भी बिजली व्यवस्था में पाये जाने वाले दोष के कारणो जैसे ही प्राप्त होते हैं ,वही दो कारण 'ओवरलोडिंग' और 'लूज़ कनेक्शन' ।
'लूज़ कनेक्शन'----संवाद की स्थिति में अगर दोनों एक दूसरे को ध्यानपूर्वक नहीं सुन रहे हों अथवा बौद्धिक स्तर में अंतर होने के कारण संवाद सुगम न हो पा रहा हो तो बिजली के तंत्र में होने वाले 'लूज़ कनेक्शन' की सी स्थिति उत्पन्न हो जाती है । जैसे 'फैक्स' भेजने से पहले 'फैक्स टोन' का मिलना आवशयक है उसी तरह संवाद के सफल होने के लिए दो व्यक्तियों का आपस में उचित बौद्धिक जोड़ होना नितांत आवश्यक है । इसके न होने पर भावनाओं का उचित सम्प्रेषण नहीं हो पाता और नाहक ही विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है ।ऐसी स्थिति में संवाद तो होता है परन्तु 'कनेशन लूज़' होने के कारण तापक्रम इतना बढ़ जाता है कि सम्बन्ध ,संवाद समाप्त होते होते स्वयं ही समाप्तप्राय होने लगते हैं ।
'ओवरलोडिंग'-------व्यक्ति के मस्तिष्क में सदैव एक से विचार अथवा भाव नहीं होते । कभी उसके मन मस्तिष्क में अनेक कल्पनाएं , योजनाएं , चिंताएं अथवा भय व्याप्त रहता है और कभी उसका मस्तिष्क विचार शून्य भी हो जाता है । मस्तिष्क की अधिभारिता की स्थिति में उस पर जरा सा भी दबाव और पड़ने पर मस्तिष्क अपनी कार्यशीलता खोने लगता है और अनाप शनाप तरीके से व्यवहार करने लगता है । संवाद करने से पहले एक दूसरे के मन / मस्तिष्क की स्थिति को समझने की बहुत आवश्यकता होती है । इसी के अभाव में संवाद विफल तो होता ही है ,व्यक्ति अधिभारिता के कारण असामान्य प्रकृति का होने लगता है और असमय मृत्यु को भी प्राप्त हो जाता है । इसी को ही 'ओवरलोडिंग' कहा जा सकता है ।
आपसी सम्बन्धों को मधुर और सफल रखने के लिए नितांत आवश्यक है कि एक दूसरे के मस्तिष्क को अधिभारित नहीं होने देना चाहिए और यदि किसी कारणवश मस्तिष्क अधिभारित है तब पहले उस अधिभारिता को स्नेह पूर्वक समझ कर दूर करना चाहिए और तभी संवाद स्थापित करना चाहिए । इसके अतिरिक्त संवाद के दौरान 'कनेक्शन' कदापि 'लूज़' नहीं होने देना चाहिए ।