सोमवार, 31 मार्च 2014

भारतीय नव वर्ष(विक्रम संवत २०७१)की शुभकामनायें

मित्रों कल(31 मार्च २०१४) का दिन क्या आप के लिए कोई महत्त्व का दिन है या रोज की तरह आप इसे एक सामान्य दिन की तरह दफ्तर में उबासी लेती चाय की चुस्कियों, बार में चिकन टिक्का और बियर की ठंढी गिलासों या शाम को सब्जी लाने में व्यतीत करने वाले है..इससे पहले की कुछ और लिखना शुरू करू आप को ३ माह पहले ले जाना चाहूँगा जब 31दिसंबर २०१३ और इसके लगभग २०-२५ दिन पहले से हमने आप ने नव वर्ष की रट लगनी शुरू कर दी और 1 जनवरी की कडकडाती हुई ठंढ में जब घरो से निकलना संभव नहीं होता है सभी इष्ट मित्रों को नए साल  की बधाइयाँ प्रेषित की. मगर मित्रों क्या वो नव वर्ष आप का अपना था?क्या उसमे कोई नवीनता थी? या अब भी हम अंग्रेजो और अंग्रेजी मानसिकता की गुलामी में बाहर नहीं निकल पाए हैं?? हमारी प्राचीनतम और वैज्ञानिक रूप से सनातन प्रणाली में नव वर्ष भारतीय पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल प्रतिपदा के प्रथम दिन भारतीय नव वर्ष मनाया जाता है..

हमारी वर्तमान मान्यताएं और आज का भारतीय : वर्तमान परिवेश में पश्चिम का अन्धानुकरण करते हुए हम ३१ दिसम्बर की रात को कडकडाती हुए ठण्ड में नव वर्ष काँप काँप कर मनाते है..पटाके फोड़ते है,मिठाइयाँ बाटते हैं और शुभकामना सन्देश भेजते है..कहीं कहीं मास मदिरा तामसी भोजन का प्रावधान भी होता है..अश्लील नृत्य इत्यादि इत्यादि फिर भी हमें ये युक्तिसंगत लगता है..विश्व में हजारों सभ्यताएं हुई हैं और हजारों पद्धतियाँ है सबकी अपनी अपनी. शायद ३१ दिसम्बर की रात या १ जनवरी को नव वर्ष मनाने का कोई वैज्ञानिक आधार हो,मगर मैंने आज तक नहीं देखा. फिर भी ये यूरोप और अमरीका की अपनी पद्धति हैमगर हमारी दुम हिलाने की आदत गयी नहीं आज तकशुरू कर देते है पटाके फोड़ना..विडंबना ये है की क्या कभी आप ने किसी यूरोपियनया या अमेरिकी को भारतीय नव वर्ष मानते देखा है..मैं ये कहना जरुरी समझता हूँ की १ जनवरी को कुछ भी वैज्ञानिक दृष्टि से नवीन नहीं होता मगर फिर भी नव वर्ष होता है..
भारतीय नव वर्ष का धार्मिक एवं सांकृतिक आधार:  
1  ऐसी मान्यता है की सतयुग का प्रथम दिन इसी दिन शुरू हुआ था..
2 एक अन्य मान्यता के अनुसार ब्रम्हा ने इसी दिन सृष्टि का सृजन शुरू किया था..
3 भारत के कई हिस्सों में गुडी पड़वा या उगादी
  पर्व मनाया जाता है.इस दिन घरों को हरे पत्तों से सजाया जाता है और हरियाली चारो और दृष्टीगोचर होती है.
4  मर्यादा पुरूषोत्‍तम श्रीराम का राज्‍याभिषेक आज के ही दिन हुआ
5 मॉं दुर्गा की उपासना की नवरात्र व्रत का प्रारम्‍भ आज के दिन से होता है. हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में(प्रथम नवरात्री) छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं, फिर अश्विन मास की नवरात्रि में शेष छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं।
6 महाराज विक्रमादित्य ने आज के ही दिन  राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की। साथ ही यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई।
इस वर्ष पश्चिमी कलेंडर के अनुसार ये वर्ष31 मार्च २०१4 को शुरू होगा..
मित्रों मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा पद्धति की मानसिक गुलामी पीढ़ियों से हमारे ऊपर हावी है अतः ऐसा संभव है हमारे आपके या मैकाले के मानस पुत्रों के विचार में भारतीय नव वर्ष का सांस्कृतिक और धार्मिक आधार कपोल कल्पित हो तो उस समस्या के समाधान के लिए मैंने भारतीय नव वर्ष के सन्दर्भ में कुछ वैज्ञानिक और प्राकृतिक तथ्य संकलित किये हैं जो अपेक्षाकृत आसानी से दृष्टिगोचर एवं वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है ..
भारतीय नव वर्ष का प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक आधार :  
1 भारतीय नव वर्ष के आगमन का सन्देश प्रकृति का कण कण देता है पुरातन का संपन और नवीन का सृजन प्रकृति का हर एक कोना कहता है. वृक्ष पेड़ पौधे अपनी पुरानि पत्तियों,छालो से मुक्ति पा के नवीन रूप से पल्लवित होते हैं
2 महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने प्रतिपादित किया है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से दिन-मास-वर्ष और युगादि का आरंभ हुआ है। युगों में प्रथम सतयुग का आरंभ भी इसी दिन से हुआ है। कल्पादि-सृष्ट्यादि-युगादि आरंभ को लेकर इस दिवस के साथ अति प्राचीनता जुड़ी हुई है। सृष्टि की रचना को लेकर इसी दिवस से गणना की गई है, लिखा है-
चैत्र-मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेहनि ।
शुक्लपक्षे समग्रे तु तदा सूर्योदये सति ।।

भास्कराचार्य ने इसी दिन को आधार रखते हुए गणना कर पंचांग की रचना की जो की विभिन्न ग्रहों,चंद्रमा  एवं सूर्य की गति एवं दिशाओं का उतना ही प्रमाणिकता से निर्धारण करता है जितना आधुनिक सैटलाईट..
3 हमारे हिन्दुस्थान में सभी वित्तीय संस्थानों का नव वर्ष अप्रैल से प्रारम्भ होता है .यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है। इसमें रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं. ठंढ की समाप्ति और ग्रीष्म का प्रारंभ अत्यंत ही मधुर और आनंददायक अनुभव देता है.
4 इसी समय बर्फ पिघलने लगती है। आमों पर बौर आने लगता है। पेड़ों पर नवीन पत्तियों और कोपलों का आगमन होता है..पतझड़ ख़तम होता है और बसंत की शुरुवात होती है. प्रकृति में हर जगह हरियाली छाई होती है प्रकृति का नवश्रृंगार होता है.
5 आकाश व अंतरिक्ष हमारे लिए एक विशाल प्रयोगशाला है। ग्रह-नक्षत्र-तारों आदि के दर्शन से उनकी गति-स्थिति
, उदय-अस्त से हमें अपना पंचांग स्पष्ट आकाश में दिखाई देता है। अमावस-पूनम को हम स्पष्ट समझ जाते हैं। पूर्णचंद्र चित्रा नक्षत्र के निकट हो तो चैत्री पूर्णिमा, विशाखा के निकट वैशाखी पूर्णिमा, ज्येष्ठा के निकट से ज्येष्ठ की पूर्णिमा इत्यादि आकाश को पढ़ते हुए जब हम पूर्ण चंद्रमा को उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के निकट देखेंगे तो यह फाल्गुन मास की पूर्णिमा है और यहां से नवीन वर्ष आरंभ होने को १५ दिवस शेष है। इन १५ दिनों के पश्चात जिस दिन पूर्ण चंद्र अस्त हो तो अमावस (चैत्र मास की) स्पष्ट हो जाती है और अमांत के पश्चात प्रथम सूर्योदय ही हमारे नए वर्ष का उदय है।इस प्रकार हम बिना पंचांग और केलेंडर के प्रकृति और आकाश को पढ़कर नवीन वर्ष को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं। ऐसा दिव्य नववर्ष दुर्लभ है।
6 ये भारतीय नव वर्ष की वैज्ञानिक प्रमाणिकता ही है जो किसी के नाम का मोहताज नहीं बल्कि वैज्ञानिक गणनाओं से शुरू होता है जबकि सभी नव वर्ष बिना किसी वैज्ञानिकता के किसी धर्मगुरु या प्रवर्तक के जन्म से प्रारंभ कर दिए गए.
7 स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात नवम्बर 1952 में वैज्ञानिको और औद्योगिक परिषद के द्वारा पंचांग सुधार समिति की स्थापना की गयी । समिति के 1955 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में विक्रम संवत को भी स्वीकार करने की सिफारिश की । किन्तु
, तत्कालिन प्रधानमंत्री पं. नेहरू के आग्रह पर ग्रेगेरियन केलेण्ड़र को ही राष्ट्रीय केलेण्ड़र के रूप में स्वीकार लिया गया ।आप ही सोचे क्या जनवरी के माह में ये नवीनता होती है नहीं तो फिर नव वर्ष कैसा..शायद किसी और देश में जनवरी में बसंत आता हो तो वो जनवरी में नव वर्ष हम क्यूँ मनाये???
वर्तमान में एक कुप्रथा चली है  मुर्ख दिवस मानाने की वो भी भारतीय नव वर्ष के शुरुवात में और बौधिक
 गुलाम लोग  सबको अप्रैल फूल बनाते हैं.अर्थात अंग्रेजो और पश्चिम ने ये सुनिश्चित कर दिया है तुम मुर्ख हो और खुद के भाई बहनों को नव वर्ष में शुभकामना सन्देश भेजने की बजाय मुर्ख कहो और मुर्ख बनाओ और मुर्ख रहो..इसी का परिणाम है की आजादी के वर्षों बाद भी हमारी बौधिक गुलामी नहीं गयी जिस नव वर्ष को हमे पूजा पाठ और खुशहाली से मनाना चाहिए उस दिन हम एक दुसरे की मुर्खता का उपहास करते हैं..
हम चाहे जितने भी तथाकथित गुलाम यूरोपियन माडर्न हो जाएँ मगर बच्चे के जन्म से लेकर,घर खरीदना,सामान खरीदना,शादी विवाह,मृत्यु या जीवन के हर अवसर पर भारतीय पंचांग पर आश्रित है जो भारतीय नव वर्ष पर आधारित है मगर उसी दिन हम अपने द्वारा अनुसरित की जा रही मान्यताओं का अप्रेल फूल( यूरोपियन इसे फूल इंडियन ही कहते होंगे )उपहास उड़ाते हैं ये कितनी बड़ी विडम्बना है..
चलिए आप सभी को नव वर्ष की ढेरों शुभकामनायें आशा करूँगा की ये नव वर्ष आप सभी के जीवन में अपार हर्ष और खुशहाली ले कर आये..
भारतीय पंचांग महीनो के नाम और पश्चिम में कैलेंडर में उस माह का अनुवाद

चैत्र--- मार्च-अप्रैल,               वैशाख--- अप्रैल-मई,     ज्येष्ठ---- मई-जून,   
आषाढ--- जून-जुलाई,           श्रावण--- जुलाई – अगस्त,

भाद्रपद- अगस्त –सितम्बर,     अश्विन्--- सितम्बर-अक्टूबर,  
कार्तिक--- अक्टूबर-नवम्बर,    मार्गशीर्ष-- नवम्बर-दिसम्बर

पौष--दिसम्बर -जनवरी,         माघ---- जनवरी –फ़रवरी,  फाल्गुन-- फ़रवरी-मार्च

अब क्रिकेट की कुछ क्रिकेट के दीवानों लिए: भारतीय टीम के दो सदस्यों के नामआश्विन एवं कार्तिक भी  हिंदी महीनो के नाम पर है,किसी क्रिकेटर का नाम है क्या भारतीय क्रिकेट टीम में अगस्त सितम्बर या जुलाई ??

नव वर्ष मंगल मय हो...
आशुतोष की कलम से

मंगलवार, 11 मार्च 2014

केजरीवाल के साथ मीडिया की सट्टेबाजी एवं टीवी टुडे की राजनीति में बुरे फसे पुण्य प्रसून वाजपेयी

दो दिन पहले आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल का एक वीडियो सामने आया जिसमे वो एक खबरिया चैनेलआज तक के एंकर पुण्य प्रसून वाजपेयी के साथ खबर फिक्स करते हुए स्पष्ट सुने जा सकते हैं. सोशल मिडिया पर आज तक चैनेल के पुण्य प्रसून वाजपेयी की आम आदमी पार्टी के साथ साठगांठ की खबरे पहले से आती रही हैं मगर कोई पुख्त्ता प्रमाण न होने के कारण इसे सम्पादकीय विशेषाधिकार की श्रेणी में रखते हुए इलेक्ट्रानिक मिडिया ने कभी कवर नहीं किया.हालाँकि इससे पूर्व भी आम आदमी पार्टी का गुणगान करते करते IBN7 के पत्रकार आशुतोष गुप्ता केजरीवाल की पार्टी के नेता बन चुके हैं..
उस वीडियों में एक बात और भी जो दृष्टिगत है पुण्य प्रसून वाजपेयी और केजरीवाल उस साक्षात्कार में किस प्रकार भगत सिंह के नाम का उपयोग वोट लेने के लिए इस्तेमाल किया जाये,
इस पर बाकायदा विचार विमर्श कर रहे है.इस बात की कड़ी निंदा भगत सिंह के परिवारजनो ने भी की है.ज्ञातव्य है इसी केजरीवाल के अभिन्न मित्र और आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में भगत सिंह को आतंकवादी साबित किया है.
अब यक्ष प्रश्न ये है की क्या केजरीवाल ने मिडिया के दलाल किस्म के पत्रकारों से गठबंधन करके उनके सत्ता का लालीपाप दिखाकर राजनीति करने की एक नयी परंपरा प्रारंभ की है
 ?? क्यूकी पत्रकारिता जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहते हैं क्या इस स्तर तक गिर गयी है जो राजीनीति के रहमोकरम पर पले. एक नेता जो खुद को ईमानदारी और पारदर्शिता का ठेकेदार कहता हैएक स्वयं को सबसे तेज चैनेल के सबसे तेज पत्रकार को ये निर्देशित कर रहा है की उसे क्या टीवी पर दिखाना है क्या नहीं दिखाना है ?? क्या आप मिडिया में संपादक की कुर्सी राजनेताओं के लिए आरक्षित करने की राजनीति में,एक पत्रकार की हैसियत सिर्फ चन्द टुकडो पर पलने वाला या राजनेता की टोपी पहनने को उत्सुक एक दलाल की बन गयी है?
वर्तमान हालात देखेते हुए इतना कह सकते हैं की पत्रकारिता इसी दिशा में बढ़ रही है और BEA एवं अन्य पत्रकारों तथा संपादको के संगठन को इस बात का संज्ञान ले के कुछ आत्मालोचना करनी होगी वरना हमाम में सब नंगे जैसे माने जायेंगे..इस खबर के आने के बाद zee News ने काफी सक्रियता दिखाई है क्या ये पत्रकारिता के उच्च मानदंड है जो zee News ने इस खबर को निरंतर दिखने का निर्णय लिया हैयदि आप इस मुगालते में हैं तो ऐसा बिलकुल भी नहीं है. अगर थोड़े दिन पीछे जाएँ तो जिंदल और zee News का कोयले घोटाले की खबर से सम्बंधित दलाली खाने का विवाद आप को याद ही होगा.जब नवीन जिंदल ने स्टिंग कर के ZEE के दो पत्रकारों को जेल भिजवा दिया. उस समय आज तक के वर्तमान एंकर पुण्य प्रसून वाजपेयी ZEE TV के प्राइम टाइम एंकर थे.उस समय इसे जिंदल और सरकार की इमरजेंसी कहने वाले पुण्य प्रसून ने कांग्रेस सांसद और इंडिया टुडे ग्रुप से अच्छी खासी पेशगी ले कर ZEE News छोड़ कर AAJ TAK ज्वाइन कर लिया. अब यदि जिंदल,कांग्रेस,पुण्य प्रसून और केजरीवाल के गठबंधन पर नजर डाले तो आम आदमी पार्टी या केजरीवाल ने कभी भी जिंदल के कोयला घोटाले पर कभी नहीं बोला कारण केजरीवाल की पार्टी को मिलने वाला मोटा चंदा.कांग्रेस और केजरीवाल दिल्ली में साथ साथ थे सरकार बनाने में.यहीं से ZEE ग्रुप की कांग्रेस,जिंदल,पुण्यप्रसून और आज तक से दुश्मनी शुरू होती है. अब मौका मिलते ही ZEE ने जिंदल के चहेते केजरीवाल और पुण्य प्रसून को लपेटे में ले लिया है..
एक शंका सब के मन में होगी की ये वीडियो आज तक आफिस से लीक हुआ कैसे 
?? हालाँकि आज तक के कई जूनियर स्तर के कर्मचारियों पर इसकी गाज गिर चुकी है मगर असली लड़ाई इंडिया टुडे ग्रुप में एक अन्य पत्रकार राहुल कँवल और पुण्य प्रसून के वर्चस्व को ले कर है.. याद कीजिये इंडिया टुडे कानक्लेव जिसमे पुण्य प्रसून के चहेते केजरीवाल को राहुल कँवल ने किस प्रकार सोमनाथ भारती के मुद्दे पर धो डाला था जबकि पुण्य प्रसून को आप कभी भी केजरीवाल चालीसा गाते सुन सकते हैं. आज तक आफिस में भी दो समूह बन गए हैं उनमे से राहुल कँवल समर्थक ग्रुप ने अवसरवादी पुण्य प्रसून को बाहर का रास्ता दिखने हेतु ये वीडियो जान बूझ कर लीक किया ..
 आज तक ने इसका खंडन किया है मगर ये आज तक की सफाई कम मज़बूरी ज्यादा लगती है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार zee ग्रुप सुधीर चौधरी के साथ खड़ा था ...
जैसे भी ये प्रकरण उठा हो मगर इससे स्पष्ट हो गया की स्वच्छ रानीति का ढोल पीटने वाले केजरीवाल और उनकी पार्टी ने भी कांग्रेस के साथ गठबंधन के वे सभी हथकंडे सीख कर अपनाने शुरू कर दिए हैं जिसे इस्तेमाल करके कांग्रेस पिछले ६० सालो से सत्ता के शिखर पर काबिज रही....



आशुतोष की कलम से

शुक्रवार, 7 मार्च 2014

नक्सलवाद और खून खराबे की राह पर अरविन्द केजरीवाल .

पिछले कुछ दिनों से केजरीवाल मिडिया के कैमरों के फोकस से दूर हो रहे थे. कांग्रेस के साथ गठबंधन करके घसीटी गयी दिल्ली सरकार केजरीवाल के प्रधानमंत्री बनने की पागलपन भरी महत्त्वाकांक्षा के बोझ के नीचे दब के ठहर गयी. अगर ध्यान से देखें तो शुरू से ही केजरीवाल की पार्टी विरोध की राजनीति करती आई है. भारतीय राजनीति के स्वघोषित ईमानदार ने जब दिल्ली की सत्ता 49 दिन में छोड़ दी इस कारण  दिल्ली की जनता खुद को ठगा महसूस कर रही थी और केजरीवाल का जनाधार तेजी से निचे जा रहा था अतः एक बार पुनः केजरीवाल ने अपना पुराना दांव चलते हुए हिन्दुस्थान के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता और भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए गुजरात के विकास कार्यों का जायजा लेने के लिए गुजरात भ्रमण के कार्यक्रम का एक और स्टंट चला .यहाँ एक बात ध्यान देखने योग्य है की अब केजरीवाल जैसा व्यक्ति जिसने  दिल्ली की सत्ता ढंग से दो माह भी नहीं चला पाया और मैदान छोड़ कर भाग  गया वो पिछले १२ वर्षों से सफल शासन देने वाले नरेंद्र मोदी के कार्यों का मूल्यांकन करने का अद्भुत स्टंट करने गुजरात को निकला है.. राजनितिक दृष्टिकोण से देखें तो कांग्रेस में उर्जा नहीं बची है जो गुजरात में मोदी का विरोध कर सके अतः कांग्रेस से अपने पुराने अस्त्र के रूप में केजरीवाल को परोक्ष समर्थन दे कर नरेंद्र भाई मोदी को रोकने का एक अंतिम प्रयास कर लेना चाहती है. इस कुख्यात गठबंधन में कुछ न्यूज़ चैनेल और पुन्य प्रसून वाजपेयी जैसे दलाल पत्रकार भी सम्मिलित हैं. 5 मार्च को जैसे ही आम चुनावो के तारीखों की घोषणा हुई केजरीवाल ने आदर्श चुनाव संहिता और हिन्दुस्थान के कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए लगभग २० गाडियों के काफिले के साथ गुजरात भ्रमण पर निकले रास्ते में चुनाव आयोग के नियमो के अनुसार पुलिस ने केजरीवाल के काफिले को रोक कर, जब २० से ज्यादा वाहनों के एक साथ चुनाव प्रचार करने पर प्रश्न किया तो केजरीवाल ने खुद को गिरफ्तार करने की मांग रक्खी. दरअसल केजरीवाल चाहते भी यही थे की गुजरात में उन्हें गिरफ्तार किया जाये जिससे वो तथाकथित ईमानदारी के एकमात्र पुरोधा और नायक बन कर उभरे और एक ही दिन में नरेंद्र मोदी के समकक्ष आ खड़े हो जाएँ और केजरीवाल और उनकी गैंग अपनी इस राजनीति में काफी हद तक तब सफल होती दिखी जब गुजरात के पाटन में  पुलिस ने उन्हें लगभग २० मिनट तक थाने में बैठाये रक्खा.इस खबर को केजरीवाल के मिडिया के मित्रों ने अनवरत चलाना शुरू कर के पुनः केजरीवाल को युगपुरुष साबित करना प्रारंभ कर दिया और यहाँ तक बाते की जाने लगी की क्या मोदी केजरीवाल से डर गए हैं?? सच कहें तो शाम को ५बजे से पहले तक केजरीवाल अपने मनसूबे में सफल होते नजर आये मगर जैसे ही चुनाव आयोग का कडा रुख केजरीवाल ने देखा, प्रसिद्धि पाने हेतु उन्होंने अपना माओवादी और नक्सली रूप दिखाने का निर्णय लेते हुए मिडिया और एस एम एस द्वारा अपने सभी कार्यकर्ताओं को बीजेपी आफिस पर हमले का आदेश जारी कर दिया, जिसे आम आदमी कार्यकर्त्ता शांतिपूर्ण प्रदर्शन का नाम देते रहे. शाम लगभग 5.15 बजे आम आदमी के पत्रकार से नेता बने आशुतोष गुप्ता और पत्रकार से नेता बनी शाजिया इल्मी के नेतृत्व में सैकड़ो आम आदमी कार्यकर्ताओं ने पुनः चुनाव आचार संहिता का उलंघन करते हुए दिल्ली के बीजेपी कार्यालय में हमला बोल दिया और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पोस्टरों को फाड़ डाला एवं तोड़फोड़ शुरू कर दिया
.
लाठी डंडे से लैस हो कर केजरीवाल प्रायोजित हमला 

केजरीवाल के कार्यकर्त्ता लाठी डाँडो से लैस होकर तोड़फोड़ करते रहे और दिल्ली पुलिस मूकदर्शक बनी रही. जब स्थिति बिगड़ने लगी तो भाजपा के कार्यकर्ताओं ने आत्मरक्षार्थ प्रतिरोध प्रारंभ किया और लगभग ४५ मिनट बाद ये अराजकता का कार्यक्रम दिल्ली पुलिस द्वारा बंद कराया गया . ज्ञातव्य हो की इस प्रदर्शन हेतु केजरीवाल की पार्टी ने कोई अनुमति नहीं ली थी और पूर्णरूप से गैरकानूनी रूप से भाजपा कार्यालय पर एकत्र हुए उसके बाद उग्र एवं हिंसक प्रदर्शन किया .

अब सवाल ये है की गाँधी के आदर्शों की बात करने वाली आम आदमी पार्टी को माओवादियों और आतंकियों जैसे स्टंट करने की क्या जरुरत आन पड़ी .. इस पर एक गहन विचार की आवश्यकता है , सत्य ये है की जब व्यक्ति अपने बुरे दौर से गुजरता है तो वास्तविक रूप में आ जाता है कुछ ऐसा ही है केजरीवाल के लोगो के साथ.दरअसल माओवाद और अलगाववाद के आधार पर खडी और पाकिस्तान और बिदेशी चंदे के खाद पानी का असली रूप यही है.नक्सलवाद की तर्ज पर बात बात पर सड़क पर उतर कर छापामार तरीके से अराजकता और हिंसा फैला कर केजरीवाल की पार्टी ने शहरी माओवाद का जो ताना बाना बुनना शुरू किया है उसका परिणाम चुनाव की घोषणा होते ही पहले दिन देखने को मिल गया.
आम आदमी पार्टी के विधायक बीजेपी कार्यालय पर हमला करते हुए 


जिस प्रकार नरेंद्र मोदी का कद प्रतिदिन राष्ट्रिय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहा है देश के साथ साथ बिदेश में भी कई शक्तियां इससे विचलित हैं. चीन और अमरीका कभी नहीं चाहेंगे की भारत राजनितिक रूप से मजबूत हो और यहाँ  एक स्थिर और रीढ़ वाली सरकार बने जो आर्थिक और सामरिक दृष्टि से मजबूत निर्णय ले सके . चूकी नरेंद्र मोदी ने अपना आर्थिक सामरिक और विदेशनीति का अजेंडा मजबूती से कई मंचों पर रक्खा है जो अब भारतविरोधियों के माथे पर चिंता की लकीरे खीच रहा है. ये बात इससे भी पुष्ट हो जाती है की इस चुनाव का केंद्र बिंदु और कांग्रेस की गोंद में बैठी सभी पार्टियों का  एकमात्र विरोध का अजेंडा  नरेंद्र मोदी ही हैं..
मीडिया द्वारा पोषित  और विश्व के बचे एकमात्र स्वघोषित ईमानदार पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल दिन रात मोदी पर हमले कर रहे हैं जिससे की कम से कम एक बार नरेंद्र मोदी उनके आरोपों पर मुह खोले और वो रातो रात मीडिया के सहायता से नरेंद्र मोदी के समकक्ष खड़े होकर उनकी शक्ति को कमजोर करके भारत में पुनः एक राजनितिक अस्थिरता के मार्ग में धकेल कर खोखला किया जाये. मगर नरेन्द्रमोदी ने अपने एक कुशल प्रशासक का गुण और सालो का राजनितिक अनुभव दिखाते हुए “हाथी चलता रहता है और कुत्ते भोंकते रहते हैं” की नीति का अनुसरण करते हुए अपने राष्ट्रधर्म की लक्ष्य साधना में लगे हुए हैं. कांग्रेस और अमरीका पोषित केजरीवाल खीझ में एक के बाद एक अराजक स्टंट करते हुए मिडिया की सुर्खियाँ और फोर्ड फाउन्डेशन तथा पाकिस्तान से चंदा इकठ्ठा करने में व्यस्त हैं..
वस्तुस्थिति यह है की आज केजरीवाल का नाम आर्थिक,सामजिक,राजनितिक अराजकता का पर्यायवाची बन गया है. केजरीवाल का प्रभाव जहाँ भी है उस जगह को देखकर सोमालिया के मोगाधिशु जैसा अनुभव होता है जहाँ सरकार के नाम पर हथियारों से लैस लडाके और यहाँ तहां हिंसा फैलाते वार हेड्स के केजरीवाल जैसे नेता हैं.. अब जनता को यह समझना होगा की जिस प्रकार दिल्ली की जनता ने केजरीवाल पर भरोसा करके धोखा खाया क्या भारत की केन्द्रीय सत्ता के चुनाव में ये गलती दोहराकर पुनः देश को नीतिगत और आर्थिक रूप से पंगु बनाना चाहती है..

आशुतोष की कलम से  

गुरुवार, 30 जनवरी 2014

क्या भारत सरकार घटोत्कच का कंकाल छिपा रही है ?? Ghatotkach skeleton

जय श्री राम मित्रों
एक लम्बे अंतराल के बाद अगले लेख की शुरुवात एक महाभारतकालीन तथ्य के आधार पर करना चाहूँगा. महाभारत में भीम और हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच का वर्णन है जो अत्यंत ही विशालकाय मायावी और बलशाली था. महाभारत के युद्ध में घटोत्कच ने एक निर्णायक भूमिका निभाई थी जब उसने कर्ण को उस शक्तिबाण का इस्तेमाल करने को विवश किया जिसको कर्ण ने अर्जुन को मारने के लिए संभाल कर रखा था..
आज जब हम इक्कीसवी शताब्दी में हैं और पूर्व में कई सौ वर्षो से हिन्दुस्थान ऐसे लोगो का गुलाम रहा जो हिन्दू संस्कृति को नकारने एवं हेय तथा काल्पनिक बताने के निकृष्ट यत्न करते रहे.वर्तमान तथा भूतकाल की कांग्रेस सरकारे भी हिंदुविरोधी  और सम्प्रदाय विशेष के तुष्टिकरण की भावना से ग्रसित हैं अतः ये सरकार भी हिन्दू धर्म से सम्बंधित प्रतिक चिन्हों या स्थलों को सिरे से नकारने के प्रयत्न में लगी हुई है. यह सर्वविदित है की इसके पीछे वेटिकन और पोप का कांग्रेसी राजनेताओं के साथ कुख्यात गठबंधन है. इसी क्रम में उन्होंने सारे साक्ष्य उपलब्ध होने के बाद अयोध्या तथा राम को मानने से इनकार कर दिया . व्यापारिक हितो और व्यक्तिगत स्वार्थो के कारण राम सेतु के साथ साथ राम के अस्तित्व पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है जबकि हिन्दू धर्म के विभिन्न ग्रंथो से ले कर नासा तक राम सेतु के अस्तित्व को मानता है ..अगली घटना है उत्तर भारत में मिले एक महा मानव कंकाल की जिसकी उचाई लगभग अस्सी फुट कही जा रही है  कुछ लोगो ने इसकी लम्बाई 60-70 फुट के लगभग अनुमानित किया है . यह घटना सन २००७ की है जब नेशनल जियोग्रफिकल टेलीविजन चैनल की भारतीय टीम और अर्कोलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया ने सेना के अधिकार क्षेत्र में आने वाले एक रेगिस्तानी क्षेत्र की खुदाई में एक विशालकाय कंकाल को खोज निकाला. ऐसा कहा जा रहा है और तस्वीरो के देखने से प्रतीत होता है की इस मानव के खोपड़ी का आकर लगभग दस फुट में है. कुल मिलकर यह कंकाल सामान्य मनुष्य के कंकाल से लगभग दस बारह  गुना ज्यादा बड़ा है . कुछ उपलब्ध तस्वीरे आप सभी से साझा कर रहा हूँ जिसकी सत्यता की अंतिम पुष्टि पोप और वेटिकन के दबाव में भारत सरकार ने रोक रखा है ..

 


इस कंकाल की विशालकायता का अनुमान आप इसी बात से लगा सकते हैं की इसके आस पास काम करने वाले मनुष्य इसके सामने बौने प्रतीत हो रहे हैं.
घटना कुछ स्थानीय समाचार पत्रों में भी आई थी मगर सरकार के आदेश पर यह खबर दबा दी गयी. सन्दर्भ  के लिए 8 सितम्बर २००७ के एक समाचार पत्रों में निकली इस खबर की कापी मिली है जो आप सब से साझा कर रहा हूँ. हालाँकि सरकार ने अब तक्ल इस खबर की न तो पुष्टि की है न ही खंडन ..

इस कंकाल से पहले हम हिन्दू धर्मग्रंथो में वर्णित  राक्षसों का अस्तित्व इस कारण अस्वीकार कर देते थे क्यूकी खुदाई में आज तक मिले मनुष्य का कंकाल सामान्यता 6-8 फीट के होते थे अब जब 80 फीट का कंकाल भारत सरकार को मिला है जो की भारत में विशालकाय प्राणियों(राक्षसों) के होने की ओर इशारा करती है वहीं भारत सरकार इस तथ्य को भरसक छिपाने का प्रयास कर रही है. अखबारके अनुसार 80 फीट के नरकंकाल के पास से ब्रह्म लिपि में एक शिलालेख भी प्राप्त हुआ है। इसमें लिखा है कि ब्रह्मा ने मनुष्यों में शान्ति स्थापित करने के लिए विशेष आकार के मनुष्यों की रचना की थी। विशेष आकार के मनुष्यों की रचना एक ही बार हुई थी। ये लोग काफी शक्तिशाली होते थे और पेड़ तक को अपनी भुजाओं से उखाड़ सकते थे। लेकिन इन लोगों ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया और आपस में लड़ने के बाद देवताओं को ही चुनौती देने लगे। अन्त में भगवान शिव ने सभी को मार डाला और उसके बाद ऐसे लोगों की रचना फिर नहीं की गई। महाभारत में ये वर्णित है की घटोत्कच ने मरते समय अत्यंत विशाल आकर धारण किया था और कर्ण के शक्तिबाण से मरने के पूर्व कौरव सेना का एक बड़ा भाग घटोत्कच के शारीर से दब कर नष्ट हो गया . अब ये कंकाल उसी ओर इशारा करता है संभव है की ये कंकाल घटोत्कच का हो या उसी के सामान किसी राक्षस का हॉप मगर इससे एक बात अवश्य प्रमाणित हो जाती है की भारत में इस आकार के मानव(या राक्षसों ) का अस्तित्व था जैसा की हमारे धर्मों में वर्णित है 
यदि वैज्ञानिक दृष्ठि से देखें तो इसे घटोत्कच का कंकाल मानने के लिए एक बड़े शोध की जरुरत है मगर इस बात को प्रथम दृष्टया समझा जा सकता है की हमारे धर्मग्रंथो में वर्णित इतने बड़े व्यक्ति भारत में पाए जाते थे तभी इतना विशालकाय कंकाल प्राप्त हुआ है.यह उन लोगो को उस भारतीय शोधपरक धर्म और धर्मग्रंथो की ओर आकर्षित करने के लिए पर्याप्त है जिनके विज्ञान ने कल्पना में भी इस महामानव की कल्पना नहीं की होगी..

जय श्री राम 

मंगलवार, 7 मई 2013

चीन के हाथो एक और पराजय की गवाही देता दौलतबेग ओल्डी


दौलत बेग ओल्डी से चीनी सेना के बनकर हटाये जाने का कांग्रेस सरकार और कांग्रेस पोषित मिडिया

कुछ इस प्रकार ढिंढोरा  पिट रहे हैं जैसे उन्होंने ६२ में चीन द्वारा कब्ज़ा की हुई हजार वर्ग मिल की जमीं वापस पा ली हो .. ज्ञातव्य को की चीन का सीमा विवाद दशको पहले तिब्बत विद्रोह के बाद सन १९५९ में दलाई लामा को भारत में शरण देने के बाद से ही चला है जिसकी परिणिति कांग्रेस के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु  के शासन काल में १९६२ में हुए भारत चीन युद्ध के रूप में हुआ .. हिंदी चीनी भाई  भाई के नारे को देकर तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री चाऊ इन लाई ने भारत पर आक्रमण का आदेश दिया और आधार बनाया मैकमोहन रेखा और हिमालय क्षेत्र की सीमा के निर्धारण को .. उस युद्ध में भारत की पराजय हुई और हमारा लद्दाख और अक्साई चीन की लगभग ७२ हजार वर्गमील जमीं चीन ने कब्ज़ा कर ली .. साथ ही साथ तिब्बत पर चीनी प्रभुत्त्व स्थापित हो गया . हमारे तात्कालिक प्रधानमत्री जवाहर लाल नेहरु उस समय कोट पर लाल गुलाब और सफ़ेद कबूतर उड़ने में व्यस्त थे और हमारा कैलाश जैसा धार्मिक क्षेत्र चीन के कब्जे में चला गया.. इस पराजय के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा को सीमा रेखा के रूप में मान कर विवादों का निपटारा द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से करने का समझौता हुआ जो की भारत के लिए एकतरफ़ा था.. आज त५अक चीन ने अरुणांचल प्रदेश से अपना दावा नहीं छोड़ा है . यहाँ चीन की दोगली नीति इसी बात से परिलक्षित होती है की जिस मैकमोहन रेखा को चीन ने कभी मान्यता नहीं दी उसी के अंतर्गत उसने पाकिस्तान के साथ अपना सीमा निर्धारण कर लिया. 



१९६२ की हार के बाद हिंदुस्थानी सेना ने अपने सामरिक तैयारियों में तेजी तो ले आया मगर कमुनिस्ट शासन में चीन की तैयारियां हिन्दुस्थान से दो कदम आगे ही रही. रक्षा उपकरणों की खरीद में दलाली एवं लालफीताशाही के कारन रक्षा सौदों में देरी ने चीन और भारत की सामरिक तैयारियों और चीन की सामरिक क्षमता में एक बहुत बड़ा अन्तर आ गया जिसे बढ़ने में भारतीय राजनेताओं की ढुलमुल इच्छाशक्ति ने बहुत बड़ा योगदान दिया. युद्ध के बाद सिर्फ इंदिरा गाँधी और अटल बिहारी वाजपेयी ने सिर्फ राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय दिया अन्यथा ज्यादातर प्रधानमंत्री चीन के सामने घुटने टेकने की नीति पर लगे रहे और इसमें सबसे शर्मनाक योगदान मनमोहन सिंह की वर्तमान कांग्रेस सरकार का रहा जिसने संसद में  ये बाद स्वीकारी की चीन ने सैकड़ो बार सीमा का उलंघन किया और भारत सरकार अपनी राजनितिक नपुंसकता का परिचय देते हुए इसे छोटी घटना माना.. सत्य ये है की कांग्रेसी सरकार भय खाने लगी है चीन से और रोज नए नए घोटालों से घरेलू मोर्चे पर दो चार होती कांग्रेस सरकार के पास बिदेशी नीति के स्तर पर आत्मसम्मान ख़तम हो चूका है . इसी कारण पाकिस्तान जैसा देश भी हमारे सैनिको के सर काट के भेजता है और हिन्दुस्थान की सरकार जबाब देने के स्थान पर सांकेतिक विरोध प्रदर्शन में व्यस्त रही है तो कभी हमारे विदेशमंत्री पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को बिरयानी परोसने में व्यस्त रहते हैं .

अभी हाल की घटना में पुनः एक बार चीन ने हिंदुस्थानी सीमा क्षेत्र में लद्दाख के निकट दौलत बेग ओल्डी जो की लद्दाख में आता है में लगभग १९ किलोमीटर तक  अतिक्रमण कर लिया और अपने टेंट लगा लिए . हलाकि भारत सरकार इसे एक स्थानीय मुद्दा मान के आँखें चुरा रही थी मगर इसके पहले भी यदि हम देखें तो मनरेगा के तहत होने वाले काम को लद्दाख में चीन ने पहले भी रुकवाया है और भारत सरकार नपुन्सको की तरह झुकते हुए कार्य बंद कर दिया ..
हाल के दिनों में भारतीय सेना के चीन से सटी सीमा पर दौलत बेग ओल्डी
फुक्चे और न्योमामें ढांचागत सुविधाओं के निर्माण कार्य से चीन असहज हो रहा था और उसे रोकने के उद्देश्य से ये बार बार अतिक्रमण किया गया .
अबकी बार चीन ने पीछे हटने की शर्त रखते हुए गतिरोध तो सुलझाने के लिए चुमार जो की एक सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण पोस्ट थी वह से भारतीय सेना के बंकर हटाने और भविष्य में  पूर्वी लद्दाख में स्थायी निर्माण का काम बंद करने और कोई गतिविधि न करने की शर्त रख दी कांग्रेस सरकार ने चीन के सामने घुटने टेकते हुए और अपनी इज्जत बचने के उद्देश्य से चुमार से सेनाएं वापस बुला ली  वर्तमान स्थिति ये है की  चीनी सेना लद्दाख के देपसांग से तब गईजब इंडियन आर्मी चुमार से बंकर नष्ट करने के लिए राजी हुई। और पुनः चीन ने चालबाजी दिखाते हुए 19 किलोमीटर अतिक्रमण की हुई जमीन से सिर्फ २ किलोमीटर ही पीछे हटा है यानि अभी भी भारतीय भूभाग में चीन का अतिक्रमण है और भारतीय सेना पीछे हटती जा रही है हालत छोटे स्तर वैसे ही हैं जैसे १९६२ में थे अंतर इतना है की उस समय हमारे जवानों को प्रतिउत्तर देने की छुट थी आज उनके हाथ कांग्रेस सरकार की निकृष्ट बिदेश नीति  ने बांध रखें हैं.
एक दलाल किस्म के पत्रकार ने इसे कारगिल से बड़ी विजय के रूप में दिखाया मगर कारगिल में वाजपेयी जी के आदेश पर हमारे सीमा में घुस आये पाकिस्तानियों को हमने भगाया था न की अपने ही क्षेत्र में पीछे हटते हुए स्वयं के बनकर नष्ट किये थे .. आज स्थिति है की जिस जगह से भारतीय सेना चीन के दबाव एवं कांग्रेस सरकार के आदेश से पीछे हटी है वो अब भारतीय क्षेत्र से नो मैन्स लैंड(NO MANS LAND)  बन गया है और थोड़े दिन बाद चीन के कब्जे में ... 
चीन के लिए हिन्दुस्थान एक बड़ा बाजार है शायद हिन्दुस्थान की सरकार ने दृढ राजनितिक इच्छाशक्ति का परिचय दिया होता तो हम सरे व्यापारिक सम्बन्ध चीन से ख़तम करके उस पर एक दबाव बना सकते थे इस कार्य में सहर्ष चीन का प्रतिद्वंदी अमरीका भी हमारे साथ होता . यथार्थ ये है की कांग्रेस शासन में चीन को उसकी भाषा में जबाब देने का सामर्थ्य किसी को नहीं है और हमारे सभी पडोसी धीरे धीरे हमारी सीमाओं का अतिक्रमण कर रहे हैं कभी बांग्लादेश में तो कभी पाकिस्तान तो कभी चीन यहाँ तक की नेपाल जैसा  देश भी अब भारत की सीमाओं में घुसने लगा है ..
शायद ये कांग्रेस की नपुंसक बिदेशनीति और रक्षानीति का पार्श्व प्रभाव है. दुखद ये है की मिडिया का एक तबका कांग्रेस की इस नाकामी और हिन्दुस्थान की एक और हार को अपनी विजय के रूप में प्रदर्शित कर रहा है और वास्तविकता के धरातल पर हमने कई किलोमीटर भूमि फिर खो दी भारत माँ का एक और अंग भंग कांग्रेस सरकार की नीतियों ने कर दिया.. 

शुक्रवार, 22 मार्च 2013

अयोध्या एवं राम जन्मभूमि का इतिहास -7(History of Ayodhya and Ram Temple-7)


मुसलमानो द्वारा श्री राम जन्म भूमि के उद्धार का प्रयास 
सन 1857 की अंग्रेज़ो के खिलाफ हुई क्रांति मे बहादुर शाह जफर को सम्राट घोषित करके विद्रोह का नारा बुलंद किया गया। उस समय अयोध्या के हिन्दू राजा देवी बख्श सिंह
,गोंडा के नरेश एवं बाबा  राम चरणदास की अध्यक्षता मे संगठित हो गए । उस समय समय बागी मुसलमानो के नेता थे आमिर अली। आमिर अली ने अयोध्या के समस्त मुसलमानो को इकट्ठा करके कहा कि विरादरे वतन बेगमों के जेवरातों को बचाने मे हमारे हिन्दू भाइयों ने जिस परकर बहुदृपूर्व युद्ध किया है उसे हम भुला नहीं सकते । सम्राट बहादुरशाह जफर को अपना सम्राट मानकर हमारे हिन्दू भाई अपना खून बहा रहे हैं। इसलिए ये हमारा फर्ज बनता है कि हिंदुओं के खुदा श्रीरामचंद्र जी कि पैदायिसी जगह जो बाबरी मस्जिद बनी है, वह हम इन्हे बख़ुशी सपुर्द कर दे क्यूकी हिन्दू मुसलमान नाइत्फ़ाकी कि सबसे बड़ी जड़ यह बाबरी मस्जिद ही है । ऐसा करके हम इनके दिल पर फतह पा जाएंगे ।
ये बात भी सत्य है कि आमिर अली के इस प्रस्ताव का सभी मुसलमानो ने खुले दिल से एक स्वर से समर्थन किया । यहाँ एक बात जो ध्यान देने योग्य है कि आमिर अली के इस प्रस्ताव के बाद ये बात स्पष्ट हो जाती है कि मुसलमान भी जानते और मानते थे कि बाबरी ढांचा रामलला के जन्मभूमि पर बने मंदिर को ध्ब्वंस करके ही बनाया गया है। चूकी मुसलमान यह बात समझ चुके थी कि हिंदु कभी किसी के अस्तित्व के लिए खतरा नहीं हो सकता मगर अंग्रेज़ उनके समूल विनाश के उद्देश मे लगे हुए थे अतः इस बात पर एक सहमति बनती नजर आई ।
यह बात जब अङ्ग्रेज़ी सरकार को पता चली कि मुसलमान बाबरी मस्जिद हिंदुओं के हवाले करने का मन बना चुके हैं तो उनमे घबराहट फैल गयी। इस घबराहट का प्रमाण हम कर्नल मार्टिन कि एक रिपोर्ट मे देख सकते हैं जो जो सुल्तानपुर गजेटियर के पृष्ठ 36 पर छपी थी
“अयोध्या कि बाबरी मस्जिद को मुसलमानो द्वारा हिंदुओं को दिये जाने कि खबर सुनकर हम लोगो मे घबराहट फैल गयी है और यह विश्वास हो गया है कि हिंदुस्तान से अंग्रेज़ अब खतम हो जाएंगे । लेकिन अच्छा हुआ कि गदर का पासा पलट गया और आमिर अली तथा बलवाई बाबा राम चरण दास को फांसी पर लटका दिया गया जिससे फैजाबाद के बलवाइयों कि कमर टूट गयी और पूरे फैजाबाद जिले पर हमारा रोब जम गया क्यूकी गोंडा के राजा देवीबख्श सिंह पहले ही फरार हो चुके थे ॥
मुसलमानो द्वारा आमिर अली के रूप मे किया गया जमभूमि के उद्धार हेतु यह सतप्रयत्न अंग्रेज़ो कि कुटिल चल और दमनचक्र के कारण विफल हो गया ।
18 मार्च सन 1858 को कुबेर टीला स्थित एक इमली के पेड़ मे बाबा राम चरण दास और आमिर अली दोनों को एक साथ अंग्रेज़ो ने फांसी पर लटका दिया । मुसलमानो ने हिंदुओं पर चाहे कितने भी जुल्म किए हो मगर हिन्दू जनता मुसलमानो के इस एकमात्र प्रयास को भूली नहीं और बहुत डीनो तक आमिर अली और  बाबा राम चरण दास कि याद मे उस इमली के पेड़ पर पुजा अर्चना और अक्षत चढ़ाती रही। जब अंग्रेज़ो ने ये देखा कि ये पेड़ देशभक्तों एवं रामभक्तों के लिए एक स्मारक के रूप मे विकसित हो रहा है तब उन्होने इस पेड़ को कटवा कर इस आखिरी निशानी को भी मिटा दिया...
इस प्रकार अंग्रेज़ो की कुटिल नीति के कारण मुसलमानो का हिंदुओं को बाबरी ढांचा सौपने का यह एकमात्र प्रयास विफल हो गया ...
इसके बाद अङ्ग्रेज़ी राज मे कुछ छिटपुट घटनाएँ एवं प्रतिरोध होते रहे। आजादी के बाद के घटनाक्रम का वर्णन करने से पूर्व सर्वप्रथम कुछ अन्य घटनाओं और स्थलों का वर्णन करना प्रासंगिक है
,जिससे बाबरी ढांचे मे प्राचीन मंदिर के चिन्ह दर्शनीय होते हैं ।
इन सारे चिन्हों के बारे मे विस्तृत  विवरण मै अपनी अगली पोस्ट मे दूंगा....


जय श्री राम

"आशुतोष नाथ तिवारी"

रविवार, 24 फ़रवरी 2013

राम मंदिर के बाद रामसेतु -- हिन्दू आस्था पर कांग्रेस का इस्लामिक प्रहार (ram setu)


कांग्रेस  सरकार  अब नीचता और हिन्दू विरोध की  पराकाष्ठा  करते हुए  रामसेतु को तोड़ने के कार्य में युद्ध स्तर पर लग गयी है ..शायद चुनावों से पहले मज़बूरी में अफजल को दी गयी  फांसी का असर कम करने के लिए और मुसलमान वोटो की लालसा में रामसेतु को तोड़ने का कार्यक्रम बनाया जा रहा है ..इसी  कड़ी के अंतर्गत सरकार ने आरके पचौरी समिति की सिफारिशों को नकार दिया है।ये वही सरकार है जिसके मंत्री लाख करोड़ रूपये का एक घोटाला करते हैं और अल्पसंख्यक कल्याण के नाम पर लाखो करोड़ जेहादियों को असलहा और बम खरीदने के लिए बाट देती है॥ कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट मे हलफनामा दे कर तर्क दिया है की

भारत की सरकार (कांग्रेस) किसी राम के अस्तित्व को नहीं मानती है अतः रामसेतु की बात निरर्थक है ॥जब कांग्रेस सरकार राम को नहीं मानती तो रामसेतु को कैसे मानेगी??

सरकार का दूसरा तर्क है की लगभग 800 करोड रुपए वो खर्च कर चुकी है अतः इस परियोजना को बंद नहीं किया जा सकता॥

पहले तर्क के बारे मे कांग्रेस के
 हलफनामे के मुताबिक केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पचौरी के नेतृत्व वाली समिति की रिपोर्ट पर विचार किया और उसकी सिफरिशों को नामंजूर कर दिया। सरकार ने सुनवाई के दौरान रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने पर कोई कदम उठाने से इंकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट से इस पर फैसला करने को कहा था। सरकार ने कहा कि 2008 में दायर अपने पहले हलफनामे पर कायम है जिसे राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने मंजूरी दी थी। इससे पहले अप्रैल में केन्द्र सरकार की ओर से दलील दी गई थी कि वह रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने में असमर्थ है। सरकार आतंकवादी  अफजल के चश्मे और घड़ी को जेहादियों को देने की बात कर सकती है जिसे वो देशद्रोही  संग्रहालय बनाये मगर उसे 100 करोड हिंदुस्थानियों  की आस्था के प्रतीक रामसेतु  को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने में दौरे आने लगते हैं ॥अब हिंदुओं को सोचना होगा की क्या सचमुच द्रोही कांग्रेसियों को अपने घर मे जगह देनी चाहिए जो "राम" जैसे पूज्य के अस्तित्व पर प्रश्न उठाते हैं॥ क्या ये संभव है कांग्रेस का कोई भी देशद्रोही धर्मद्रोही सदस्य “दिग्विजय सिंह के इष्टदेव मुहम्मद साहब”  या अपनी “इटालियन मम्मी” के आस्था के प्रतीक "जीसस" के अस्तित्व पर प्रश्न उठाए ??
अंग्रेज़ो ने सर्वप्रथम हिंदुस्तान पर राज करने के लिए हिंदुस्थानी जनमानस के स्वाभिमान पर चोट की और उसे खतम किया जब व्यक्ति का स्वाभिमान मर जाए तो उसे एक जानवर जैसे रखकर ,पालकर ,प्रताड़ित करके जैसे चाहे वैसे कार्य लिया जा सकता है। इसी क्रम मे अंग्रेज़ो ने बेगार और सार्वजनिक कोड़े लगाने का कुकृत्य शुरू किया।  यही काम हिंदुओं के साथ कांग्रेस कर रही है हिंदुओं की आस्था का हर वो प्रतीक जो जरा भी स्वाभिमान उनमे पैदा करता हो उसे नष्ट करो ॥ अमरनाथ यात्रा का क्या हाल हुआ हम सब देख रहे हैं॥ रामलला रहेंगे तम्बू और बारिश मे और रामसेतु तोड़ा जाएगा। अगर कांग्रेस सरकार मे सचमुच इतना पौरुष बचा है तो क्यूँ नहीं जिस "राम" को काल्पनिक कहते हैं उसकी मूर्तियाँ अयोध्या से हटवा देते हैंहैदराबाद मे मंदिरों मे घंटिया बजाए जाने पर प्रतिबंध भी हिन्दू स्वाभिमान को तोड़ने की कांग्रेस की एक कुटिल चाल है ॥हालांकि बिना सेतु को तोड़े भी वैकल्पिक तरीके से सेतु बनाया जा सकता है मगर कांग्रेस सेतु तोड़ने पर अडिग है क्यूकी सेतु के साथ साथ टूटेगा हिंदुओं का स्वाभिमान ,सेतु के टूटने के साथ कांग्रेस प्रहार करेगी लाखो वर्ष से हिंदुस्थान मे राम को भगवान मानने की आस्था परऔर सेतु के साथ टूटेगा साढ़े सोलह लाख वर्षों से भगवान राम की एक अमर धरोहर जो उस काल मे हमारी सिविल इंजीनियरिंग का अदभूत नमूना है । 

अब यदि कांग्रेस सरकार के दूसरे तर्क 850 करोड रुपए को ले तो क्या लाखों करोडो का घोटाला करने वाले कांग्रेसियों को लाखो साल पुराने हिन्दू स्मृति चिन्ह के लिए टैक्स के 850 करोड भी नहीं मिल रहे हैं और वो पैसे भी हमारे टैक्स के हैं ,हम हिंदुओं की मेहनत के ॥ अगर पैसे की बात है तो कल से दिग्विजय और राहुल गांधी कटोरा ले के खड़े हो जाएँ तो हिंदुस्तान के 100 करोड हिन्दू राम सेतु के लिए 100 रुपए भी देंगे तो रामसेतु का आर्थिक भार सरकार से खतम हो जाएगा और हिन्दू धर्म विरोधी कांग्रेसियों के लिए बख्सीश भी बच जाएगी.

सभी हिन्दू भाइयों को इस विषय पर गंभीरता पूर्वक सोचना होगा की आखिर कांग्रेस की ये साजिश क्या है 
रोमकन्या सोनिया और कांग्रेसियों ने वेटिकन सीटी के आदेश मुस्लिम आतंकवाद पर आंखे मूँद ली  है इससे मुसलमान हिंदुओं को कमजोर करेंगे और अंततः पूर्वोत्तर की तरह हिंदुस्थान को एक ईसाई बहुल राज्य बनाया जाएगा॥
इसी क्रम मे कश्मीर 
,उत्तरप्रदेश,हैदराबाद,बिहार,पश्चिम बंगालऔर आसाम मे हुए हिंदुओं के नरसंहार एवं हिन्दू माताओं बहनो का शील भंग करना आता है । मुसलमानो को आर्थिक एवं राजनीतिक संरक्षण दे कर हिन्दू और हिन्दू अस्मिता को नष्ट करना कांग्रेस सरकार के प्रायोजित कार्यक्रम का प्रथम चरण है॥ अगले चरण मे धीरे धीरे ईसाई मशीनरियों द्वारा भारत का ईसाईकरण. दुखद ये है की कुछ हिन्दू धर्म के द्रोही सेकुलर लोग कांग्रेस के साथ इस साजिश मे शामिल हो गए हैं और कुछ हिन्दू कांग्रेस की इस साजिश को समझ नहीं पा  रहे हैं॥
अब यदि रामसेतु का आर्थिक पक्ष देखें तो ये कांग्रेस की दलाली खाने की एक और चाल है इसकी शुरुआत तब होती हैजब पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जोर्ज बुश भारत आये थे और एक सिविल न्यूक्लीयर डील पर हस्ताक्षर किये गए जिसके अनुसार अमरीका भारत को युरेनियम-235 देने की बात कही उस समय पूरी मीडिया ने मनमोहन सिंह की तारीफों  के पुल बांधे और इस डील को भारत के लिए बड़ी उपलब्धि बतायापर पीछे की कहानी छुपा ली गयी l  आप ही बताइए जो अमरीका 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद भारत पर कड़े प्रतिबंध लगाता है वो भारत पर इतना उदार कैसे हो गया की सबसे कीमती रेडियोएक्टिव पदार्थ  जिससे परमाणु हथियार बनाये जा सकते हैं,एकाएक भारत को बेचने के लिए तैयार हो गया दरअसल इसके पीछे की कहानी यह है की इस युरेनियम-235 के बदले मनमोहन सिंह ने यह पूरा थोरियम भण्डार अमरीका को बेच दिया जिसका मूल्य अमरीका द्वारा दिए गए  युरेनियम से लाखो गुना ज्यादा है आपको याद होगा की इस डील के लिए मनमोहन सिंह ने UPA-1 सरकार को दांव पर लगा दिया थाफिर संसद में वोटिंग के समय सांसदों को खरीद कर अपनी सरकार बचायी थी यह उसी कड़ी का एक हिस्सा है l  थोरियम का भण्डार भारत में उसी जगह पर है जिसे हम रामसेतु’ कहते हैंयह रामसेतु भगवान राम ने लाखों वर्ष पूर्व बनाया थाक्योंकि यह मामला हिन्दुओं की धार्मिक आस्था से जुड़ा था इसलिए मनमोहन सरकार ने इसे तोड़ने के बड़े बहाने  बनाये। जिसमें से एक बहाना यह था की रामसेतु तोड़ने से भारत की समय और धन की बचत होगीजबकि यह नहीं बताया गया की इससे भारत को लाखों करोड़ की चपत लगेगी क्योंकि उसमें मनमोहन सिंहकांग्रेस और उसके सहयोगी पार्टी डीएमके का  निजी स्वार्थ था l  भारत अमरीका के बीच डील ये हुई थी की रामसेतु तोड़कर उसमें से थोरियम निकालकर अमरीका भिजवाना था तथा जिस कंपनी को यह थोरियम निकालने का ठेका दिया जाना था वो डीएमके के सदस्य टी आर बालू की थी। अभी यह मामला सुप्रीमकोर्ट में लंबित है l  इस डील को अंजाम देने के लिए मनमोहन (कांग्रेस) सरकार भगवान राम का अस्तित्व नकारने का पूरा प्रयास कर रही हैओने शपथपत्रों में रामायण को काल्पनिक और भगवान राम को मात्र एक पात्र’ बताती है और सरकार की कोशिश है की ये जल्द से  जल्द टूट जायेजबकि अमरीकी अन्तरिक्ष एजेंसी नासा ने रामसेतु की पुष्टि अपनी रिपोर्ट में की है l  अतः यह जान लीजिये की अमरीका कोई मूर्ख नहीं है जिसे एकाएक भारत को समृद्ध बनाने की धुन सवार हो गयी हैयदि अमरीका 10 रुपये की चीज़ किसी को देगा तो  उससे 100 रुपये का फायदा लेगाऔर इस काम को करने के लिए उन्होंने अपना दलाल भारत में बिठाया हुआ है जिसका नाम है "मनमोहन सिंह" l  अब केवल कैग रिपोर्ट का इंतज़ार हैजो कुछ दिनों में इस घोटाले की पुष्टि कर  देगी…. यदि 1.86 लाख करोड़ का कोयला घोटाला महाघोटाला है तो 48 लाख करोड़ के घोटाले को क्या कहेंगे आप ही बताइए।
हम सभी हिन्दू भाइयों को इस बात को समझना होगा की यदि आज राम सेतु तोड़ा गया तो ये सिर्फ एक ऐतिहासिक संरचना को तोड़ना नहीं होगा बल्कि हिंदुओं के धार्मिक आस्था पर चोट होगी॥ कहते हैं की इतिहास स्वयं को दोहराता है रामसेतु को तोड़ना ठीक उसी प्रकार है जैसे बाबर ने रामलला के मंदिर को तोड़ा था अंतर सिर्फ इतना ही है की इस बार बाबर के रूप मे “सोनिया’,”राहुल”,”दिग्विजय” और “चिदम्बरम” जैसे कांग्रेसियों की फौज है और राम मंदिर की जगह है रामसेतु......

"आशुतोष नाथ तिवारी"

स्रोत: APJकलाम साहब का इंटरव्यू,कांग्रेस का हलफनामा,अंतर्जाल सूचनाएँ ,गूगल ब्लाग्स

being hindu