लाहे लाहे नेटवर्किंग करो भाई!

दीर्घा

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फ़ेसबुक में यह प्रवृत्ति देखता हूं। लोगों के पास आपका कहा, लिखा और प्रस्तुत किया पढ़ने की तलब नहीं है। आप उनका फ़्रेण्डशिप अनुरोध स्वीकार करें तो दन्न से मैसेंजर में उनका अनुरोध आता है फोन नम्बर मांगता हुआ। वे … Continue reading

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बंगाली कुटुम्ब के रात्रि-भोज में

दीर्घा

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बहुत बड़ा कुटुम्ब था वह। कई स्थानों से आये लोग थे। पिछले कई दिन से यहां पर थे – श्री प्रतुल कुमार लाहिड़ी के पौत्र शुभमन्यु (ईशान) के उपनयन संस्कार के अवसर पर। संस्कार 4 अप्रेल को हुआ था। पांच … Continue reading

झरे हुये पत्ते

दीर्घा

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रेलवे कालोनी, गोरखपुर में पेड़ बहुत हैं। हरा भरा क्षेत्र। सो पत्ते भी बहुत झरते हैं। सींक वाली बेंट लगी बड़ी झाड़ुओं से बुहारते देखता हूं सवेरे कर्मियों को। बुहार कर पत्तों की ढेरियां बनाते पाया है। पर उसके बाद … Continue reading

गोल्फार के चीड़, शालवन और बंसवारी

दीर्घा

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  प्रवीण पाण्डेय यहाँ थे कल और आज। वाराणसी में पदस्थापित हुये हैं। दोपहर की किसी गाड़ी से जा रहे हैं बनारस। पता नहीं किसी ने सलाह दी या नहीं, कि पहले काशी कोतवाल – काल भैरव को नमस्कार करना … Continue reading

अचिन्त्य लाहिड़ी

दीर्घा

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अचिन्त्य पहले नॉन रेलवे के अपरिचित हैं जो गोरखपुर में मुझसे मिलने मेरे दफ्तर आये। गोरखपुर में पीढ़ियों पहले से आये बंगाली परिवार से हैं वे। उन्होने बताया कि उनका परिवार सन 1887 में बंगाल से यहां आया। सवा सौ … Continue reading

चेत राम

दीर्घा

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मैं उन्हे गंगा किनारे उथले पानी में रुकी पूजा सामग्री से सामान बीनने वाला समझता था। स्केवेंजर – Scavenger. मैं गलती पर था। कई सुबह गंगा किनारे सैर के दौरान देखता हूं उन्हे एक सोटा हाथ में लिये ऊंचे स्वर … Continue reading

गोरखपुर रेलवे कॉलोनी में सवेरे की सैर

दीर्घा

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सवेरे की सैर का मजा गोरखपुर रेलवे कॉलोनी में उतना तो नहीं, जितना गंगाजी के कछार में है। पर वृक्ष और वनस्पति कछार की रेत, सब्जियों की खेती और चटक सूर्योदय की कुछ तो भरपाई करते है हैं। आजकल फागुन … Continue reading

परमेश्वर

दीर्घा

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सवेरे साढ़े छ बजे जब मैं घूमने निकला तो वह मुझसे आगे चल रहा था। घुटने तक धोती, मटमैला/सफेद कुरता – गेरुआ नहीं, एक काली जाकेट, बदन पर ओढा चादर जो सिर पर भी ढंकने का काम कर रहा था, … Continue reading