सोमवार, मार्च 10, 2014

आज क्या हुआ होगा...मेरे देश में

Montreal Weather 20130319

आज सुबह रोज की तरह ही ६ बजे से कुछ सैकेंड पहले ही नींद खुली. हमेशा सुबह ६ बजे का अलार्म लगा होता है मगर एक आदत ऐसी बन गई है कि मैं उसके चन्द सैकेन्ड पहले उठकर अलार्म को बजने ही नहीं देता...साल में एकाध बार ही बजा होगा. जब यह लिख रहा हूँ तो मुझे लगता है कि बीच बीच यूँ ही चैक कर लेना चाहिये कि अलार्म काम कर भी रहा है या नहीं वरना किसी पर बहुत ज्यादा भरोसे में रहने से कभी धोखा ही न हो जाये.

कमरा तो हीटिंग से गरम था मगर बन्द खिड़की से झांक कर देखा तो हल्की हल्की बरफ गिर रही थी जो रात भर से गिरते गिरते पैर धंसा देने लायक तो इक्कठा हो ही गई थी. कुछ रोज पहले आईस स्ट्राम आया था, उसकी बरफ अब तक पूरी तरह से गली भी न थी और उसकी फिसलन जगह जगह बरकार थी. डर था आज की इस बरफ के फुओं के नीचे वो आईस की टुकड़े तो दिखेंगे भी नहीं और उस पर पैर पड़ा नहीं कि आप फिसले. और अगर आप फिसले तो हड्डी का टूटना लगभग तय है. बहुत संभलना होगा. बरफ का जूता ..थोड़ी मदद जरुर मिल जायेगी उससे मगर कितनी देर थामेगा वो भी भला... कदम तो अपने खुद ही संभालना होगा...जूते पर सीमित भरोसा ही किया जा सकता है!

यूँ तो घर से बस स्टॉप की दूरी मात्र पाँच मिनट पैदल की है मगर जब तापमान हो -२० और हवा के बहाव के संग विंड चिल को गिनते हुए -३५ तब ऐसे हालातों में बरफ के भारी भारी जूते पहने, सूट के उपर से लम्बा चौड़ा भारी भरकम जैकेट लादे,दस्ताने, टोपी, गले से नाक तक सब कुछ ढ़कता मफलर, चश्मा और चुल्लु भर पानी सोखकर मर जाने वाले मुहावरे वाली निकली चुटकी भर नाक कि सांस आती जाती भर रहे किसी तरह, ऐसे में इन सबके साथ सामनजस्य बैठाते धीरे धीरे कदम रखते १५ से २० मिनट तो लग ही जाते हैं स्टॉप तक पहुँचने में. तब तक नाक की चोंच जो खुली हुई थी वो बरफ हो चुकी होती है जिसे स्टॉप में घुस कर जब तक कुछ देर गरम न कर लो, पोंछना मना रहता है वरना स्नो बाईट से नाक ही कट कर अलग हो जायेगी. त्वचा के छिद्रों में भरा पानी बरफ बन जाता है तो और क्या आशा की जा सकती है, नाक का कटना हमारे यहाँ वैसे भी पूरे खानदान को एफेक्ट करता है और इसे शास्त्रों में बहुत बुरा माना गया है अतः मैं तो पौंछता ही नहीं जब तक दफ्तर पहुँच कर १० मिनट हीटिंग में न बैठ लूँ. किस किस को समझाऊँगा देश में कि यह नाक कर्मों से नहीं सर्दी से कटी है बस पौंछ देने के चक्कर में.

बस में चढ़कर, हालांकि हीटिंग होती है मगर बार बार रुकने और दरवाजा खुलने से जीत ठंड की ही होती है, दुबके सहमें से एक कोना थामे स्टेशन पहुँचते हैं तो फिर वही तीन मिनट और मौसम की बदौलत १० मिनट का खुले में पैदल सफर...स्टेशन भी कुछ दूर तक गरम और ढका होता है फिर वही खुला खुला सा...ढका हिस्सा भीड़ घेर चुकी होती है और आप -३५ में खुले में राम नाम जपते हुए ट्रेन के आने के इन्तजार में लग जाते हैं..कई बार आस पास खड़े इन गोरों को देखकर सोचता हूँ कि राम नाम न सही, ऐसी स्थितियों में ये भी तो कुछ न कुछ जपते ही होंगे..कौन जाने और करना क्या है,,,मगर वही जिज्ञासु स्वभाव ..हम हिन्दुस्तानियों का.

चार पांच मिनट बाद ट्रेन का आना ऐसा लगता है कि जैसे कोई जीवनरक्षक आ गया हो एकाएक.. ट्रेन में बैठते ही हीटिंग में एक एक करके टोपी, दस्ताने और जैकेट उतरना शुरु..वरना तो लू लग जाये उस हीटिंग में. ट्रेन के भीतर की गरमी से बाहर बरफ को गिरते देखना बहुत मनमोहक लगता है बिल्कुल बचपन से देखते आये कलेंन्डर में बनी बर्फ और मकानों की तस्वीर सा. मगर भीतर जिस चेहरे पर नजर पड़ जाये उसे ही देखकर लगे कि अभी अभी मौत के मूँह से निकल कर आया है और अब चैन मिला है उसे. ट्रेन की दो मंजिल, यूँ तो सभी ओर इतने सारे लोगों के बावजूद एकदम सन्नाटा होता हैं मगर ऊपर वाली मंजिल ऑफिसियली क्वाईट जोन होती है याने नो फोन, नो बातचीत...एकदम शांत..कई बार लगता है कि किसी की मय्यत में आये हैं. यही सोचकर आँसू गिरने को होते हैं कि तब तक ख्याल आ जाता है कि दफ्तर जा रहे हैं तो बस मुस्करा कर रह जाते हैं. वैसे तो देश में अब लोग मय्यत तक में भी ठठा कर हँसने से गुरेज नहीं करते मगर हम साथ वो पुराने वाले संस्कार जो लाये थे वो वैसे ही बरकरार है, बदल पाने का मौका ही नहीं लगा वक्त के साथ.

मैं अक्सर इस शांत समय और माहौल का उपयोग अपने आई-पैड पर कहानियाँ, पत्रिकायें आदि पढ़ने में करता हूँ. बीच बीच में थोड़ा इधर उधर भी नजर पड़ ही जाती है और पाता हूँ कि कुछ महिलायें और नवयुवतियाँ, जो कि मेरे समान ही आई पैड और आई फोन धारक हैं अक्सर कैमरे को फ्रंट मोड मे कर के उसमें देख देख कर मेक अप कर रही है. माना कि सुबह सुबह घर में सजने धजने का समय नहीं मिल पाता होगा मगर, जो काम दो रुपये का आईना कर दे उसके लिए ७०० डॉलर का आई पैड और आई फोन. लेकिन फैशन परस्ति के इस युग में मैं कौन होता हूँ उन्हें रोकने वाला. कई बार तो खीज कर मैने भी अपने आई पैड में देखकर कंघी कर डाली कि कोई मुझे कम न समझे हालांकि बाद में याद आया कि कंघी करने जितने तो बाल ही नहीं बचे सर पर...शायद इसीलिए वो पड़ोस की सीट पर बैठी लड़की हंसी होगी.

आज दफ्तर जाना टाल पाता तो टाल देता..एक तो १०२ बुखार..उस पर से जुकाम. ऑफिस जाना जरुरी था तो चल दिये. लेकिन दफ्तर में कुछ जरुरी मीटिंग वगैरह निपटा कर एक सरकारी कर्मचारी की तर्ज पर पहला मौका लगते ही घर की लिए निकल पड़ा. निकलने की जल्दी बाजी में, जो दफ्तर पहुँच कर बरफ का जूता उतार कर नार्मल वाला जूता पहन लेते हैं, वो ही नार्मल जूता पहने निकल पड़े. बिल्डींग के अन्दर चलते चलते जब स्टेशन पहुँचे तो ख्याल आया – अरे, जूता तो बदला ही नहीं. अब जूता बदलने वापस दफ्तर जाओ तो ट्रेन छूटे और फिर एक घंटे बाद की ट्रेन मिले या ऐसे ही निकल लो संभल संभल कर...तो समय पर घर पहुँच कर आराम किया जाये..सो निकल लिए संभल संभल कर,..कई बार गिरते गिरते बचे..कभी किसी को गिराते गिराते बचे मगर आ ही गये अपने घर वाले स्टेशन पर ट्रेन में सवार होकर,,आई पैड पर भटकते..कहानियों की दुनिया में खोये..कनखियों से अड़ोस पड़ोस का नजारा देखते..

घर वाले स्टेशन पर उतरे तो हवा जबरदस्त चल रही थी..घर ले जाने वाली बस अभी तक आई नहीं थी. पहली बार अहसासा कि लोग ठंड में कैसे मर जाते होंगे. वो तो समय रहते बस आ गई वरना जैकेट, टोपी, दस्ताने के बावजूद पैन्ट को भेदती ठंड ने तो लगभग प्राण ले ही लिए थे...बस...बच ही गये...आगे से थर्मल पहना करुँगा..आज तय ही कर लिया...उम्र के बदलते पढ़ाव को पहचानना भी तो जरुरी है.

बस ने घर के पास वहीं बस स्टॉप पर उतारा जहाँ रोज उतारती है मगर आज बस स्टॉप से घर आने में शरीर कुल्फी हो गया...क्यूँकि अबकी तो बरफ के जूते भी नहीं पहने थे. बस, चुनाव २०१४ पर चल रही नित नई खबरों को चल कर टीवी पर मोदी का भाषण तो केजरीवाल का नया आरोप आदि देख लेने की चाहत संबल बनी रही...तो घर तक खुद को घसीटते चले आये और किसी तरह एक हाथ से दूसरा हाथ पकड़ घंटी बजा दी.

घर में घुसे तो शरीर और आवाज दोनों लगभग जम चुके थी. पत्नी समझ गई तो हमें पिघलाने के लिए फायर प्लेस के सामने बैठाया गया, बैठाया तो क्या गया लगभग रखा ही गया ताकि हम होश में आ जायें तो वो अपनी बात कह पायें वरना तो कुल्फी बनो कि आइस क्रीम, किसी को क्या लेना देना...समय के साथ खुद ही पिघल लोगे.

आह!! प्यार मोहब्बत में वो इस तरह कहर ढाते हैं...

आज बदले बदले हुए से मेरे सरकार नजर आते हैं..

हमें फायर प्लेस के सामने पिघलवा कर पूछा गया कि ठीक तो हो? हम मंशा समझ ही न पाये और कह बैठे कि हाँ, ठीक हैं!!

बस, फिर क्या- घर के सामने की बरफ हटाने से लेकर अदरक वाली चाय बनाने तक का जिम्मा हम पर आ टिका क्यूँकि बाकी सबकी तबीयत खराब है. सब मौसमी बुखार और जुकाम से पीड़ित. हमसे किसी ने पूछा ही नहीं कि तुम्हारी तबीयत कैसी है और जल्दी क्यूँ आये?

बताया गया कि शाम का खाना पूरा बना रखा है, उसकी चिन्ता मत करना..बस, करेले वाली अपनी स्टाईल की सब्जी और बना लो. थोड़ा सा कुंदरु छौंक देना...चावल चढ़ा दो और दाल तो फट से बना ही लेते हो..उसे प्याज लहसून से बघार देना. रोटी तो वैसे भी इस मौसम में कौन खायेगा मगर आपको खाना हो तो बाजार की नान रखी है वो गरम कर लेना...मैं सोचता ही रह गया कि जब ये सब करना बाकी है तो फिर खाना कौन सा बना रखा है? जिसका जिक्र करके बात की शुरुवात की गई थी.

खैर, ये सब कुछ जीवनचर्या का हिस्सा है, इसमें बहस कैसी? बहस तो जब दिल्ली में नहीं होती इनसे उनसे समर्थन लेते तो हमने तो इनकी कभी खुले आम इत्ती बुराई भी नहीं की है कि बहस न करने में शरम आये!!

समय बलवान है,,,वक्त महान है..कल और ज्यादा ठंड की भविष्यवाणी है मगर परसों से सब सामान्य है!! सामान्य याने – १० वगैरह. -३० से -१० में आने पर वैसी ही राहत लगती है जैसे पैट्रोल का दाम ५ रुपये बढ़ा कर २ रुपये कम कर देने में.

वैसे इन सबके बीच एक बात सोचने वाली है कि न तो मुझे दिल्ली से कुछ लेना देना, न केजरीवाल से, न कांग्रेस से...न मोदी से...न लोकसभा २०१४ के चुनाव से- टोरंटो में रहता हूँ...कनाडा का नागरिक हूँ मगर मन है कि भारत भागता है हर पल...वहाँ क्या हो रहा है..किसकी सरकार बन रही है,,,किसकी सरकार गिर रही है,,,.किसी ने सही ही कहा है...कि आप एक भारतीय को तो भारत से बाहर निकाल सकते हो मगर भारत को उस भारतीय के बाहर कभी नहीं निकाल सकते!!

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सोमवार, जनवरी 06, 2014

आँटी पुलिस बुला लेगी- गंदी बात गंदी बात!!

कनाडा की शाम को आजतक पर “दिल्ली की आप सरकार की सबसे कम उम्र की महिला व बाल विकास मंत्री राखी बिड़ला” (बाकी मंत्रियों के लिए मात्र विभाग के साथ मंत्री लिए देने से भी चल जाता है) की कार पर हुए धातक हमले, जिसमें संयोग से वे पूरी तरह सुरक्षित रहीं, के चरम के बारे में पढ़ रहा था; हल्ले गुल्ले के बाद समाचार का निष्कर्ष अंतिम पैरा में:

क्या बच्चे की गेंद से टूटा गाड़ी का शीशा?

सूत्रों के हवाले से पता चला है कि कार का शीशा क्रिकेट खेल रहे एक बच्चे की गेंद से टूटा था. घटना के बाद हुई पुलिस पूछताछ से ये बात सामने आई है कि इलाके में एक घर की छत पर क्रिकेट खेल रहे बच्चे की गेंद से कार का शीशा क्रेक हुआ. बताया जा रहा है कि घटना के तुरंत बाद बच्चे के पिता ने सबके बीच माफी भी मांग ली थी. लेकिन इसके बावजूद मंत्री साहिबा थाने पहुंच गईं और बच्चे की घटना को छिपाते हुए शिकायत दर्ज करा दी. इसके अलावा राखी के पिता पर भी बच्चे के परिवार को अपशब्द कहने के आरोप लगाए जा रहे हैं.

अब ऐसे में हमारे जैसे जाबांज टिप्पणीकार, जिनका २५-५० जगह टिप्पणी करने के बाद ही खाना पचता हो वो चुप कैसे बैठा रहे भला तो फटाक से टिप्पणी लिखी:

आमजन के बीच जाने के फायदे:मंगोलपुरी में बच्चों को खेल के मैदान मुहैय्या कराये जायेगे ताकि वो छत पर क्रिकेट खेल कर कार के कांच न फोंडें.

और मंगोलपुरी के बच्चों और उनके अभिभावकों के लिए:

कांच फोड़ना- गंदी बात, गंदी बात!! आंटी पुलिस बुला लेगी, गंदी बात गंदी बात- तब भी न माने टिंकू जिया मेरा टिंकू जिया..

और हिट सब्मिट.

ओए, ये क्या? टिप्पणी ही नहीं गई और एरर मैसेज : Please remove inappropriate words: गंदी गंदी गंदी गंदी

gandibaat_Aaztak

अब बताओ भला? गाना लिख रहे हैं जो गली गली बज रहा है न्यू ईयर पर. इनने खुद न्यू ईयर की पार्टी कवरेज में न जाने कित्ती बार दिखाया होगा मगर बस, सही कहते हैं समरथ को न दोष गुसांई:

आप करें तो रासलीला और हम करें तो करेक्टर ढीला.

खैर, टिप्पणी न करें और भूल जाये तब तो नींद ही न पड़े हम जैसे टिप्पणी शुरवीरों को. आज भी याद है वो जमाना जब ब्लॉग पर टिप्पणी नहीं जा पाती थी तो ईमेल और फोन करके अगले को बताया करते थे कि चैक करो, क्यूँ तुम्हारे ब्लॉग पर टिप्पणी नहीं जा रही. और फिर वही टिप्पणी उसे ईमेल से भेजते थे कि मेरे नाम से छाप लो, तब जाकर चैन मिलता था.

अतः टिप्प्णी बदली और गंदी को Roman में लिखा Gandi, फिर से नहीं गया. जो एरर मैसेज आया वो आप वहाँ खुद Gandi बात टाईप करके सब्मिट करके देख लो, मुझसे न बताया जा पायेगा.

अंत में उसे बदला Bad बात Bad बात से..तो हमारे स्पैल चैकर, जो अबतक सुकबुकाये से बैठे थे, एकाएक होशियार हो चले और उसे ठीक करके कहने लगे Do You mean ’Bed N Bath’ –कनाडा की बड़ी भारी चेन शॉप है बैड़ एन्ड बाथ आईटम्स की.

खैर, जैसे तैसे कमेंट भेज भाज कर फुरसत हुए हैं तब से जब चाहे ई मेल खोलो तो, चाहे कोई भी साईट ब्राउज करो तो दनादन जो विज्ञापन गुगल महाराज की कृपा से आ रहे हैं, हमारी तो घिघ्घी ही बंध गई है और तुरंत न सही तो कुछ देर में पत्नी की निगाह उन पर पड़ेगी ही. बाहर -२५ डीग्री तापमान और बर्फ का तूफान आया है. आप मेरी स्थिति की कल्पना करें: विज्ञापन के नमूने:

Bed N Bath ke Discount offer – कोई बात नहीं- इससे पत्नी को क्या एतराज होगा.

Cheap and affordable Bed and Breakfast Motel in surrounding Area

और

Bed and Breakfast motel with in room Jacuzzi – कोई भी पत्नी पूछ सकती है कि क्या कहीं आऊटिंग के लिए ले चल रहे हो, जो ये खोज रहे हो.

फिर,

Lonely Aunties in your area

और

Aunties in your area- Privacy Assured- No Police Records

और

Bad Aunties in your area- looking for you – इसे देखने के बाद तो मोटल क्यूँ देख रहे थे, ये पूछने की भी जरुरत कहाँ?

आपसे सलाह ये चाहिये कि खुद ही सामान पैक कर के निकल लूँ कि इन्तजार करुँ निकाले जाने का? कम्प्यूटर फार्मेट करने पर भी गुगल तो मेरी आई डी नोट किये बैठे ही हैं.

इस बार बच गये तो ऐसी टिप्पणी करना ही नहीं है आगे से भले ही खाना पचे या न पचे. अपच ही बेहतर है इस -२५ डीग्री वाली तूफानी ठंडी रात में घर से निकाले जाने से.

वहाँ तो खैर आप पार्टी वाले बच कर निकल ही लेंगे कि हमने कहा ही नहीं कि हमला हुआ था.

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सोमवार, नवंबर 18, 2013

नारे और भाषण लिखवा लो- नारे और भाषण की दुकान

हमारी एक नई घोषणा!!

आईए और जानिए हमारा एक नया व्यापार.....चुनाव के मौसम में एकदम ताजा.

हमारे यहाँ चुनाव के लिए नारे और भाषण लिखे जाते हैं.

हम एक निष्पक्ष, व्यवसायिक नारेबाजी संस्थान हैं. हमारे यहाँ कोई भेद-भाव, पक्षपात या किसी संप्रदाय विशेष का विरोघ या समर्थन नहीं किया जाता. कृपया नक्कालों से सावधान रहें- हमारी कोई ब्रान्च नहीं है.

हम वही लिखते हैं, जैसी ग्राहक की मांग होती है.

हर पार्टी के लिए,पार्टी के स्तर को देखते हुए- राष्ट्रीय स्तर ,प्रदेश स्तर और नगर के चुनाव क्षेत्र पर आधारित क्षेत्रानुसार नारे लिखे जाते हैं ।

प्रत्याशी स्तर के नारे लिखने में हमें विशेष दक्षता प्राप्त है. एक से बढ़कर एक बाहुबलियों की हमने नारों के माध्यम से संत स्वरुपा छबि स्थापित की है.

संपूर्ण भाषण लिखने के लिए, अति निम्न इतिहास के संदर्भों की गल्ति की गारंटी के साथ, अलग से ठेके लिए जाते हैं.

हमारे भाषण सरल ,सस्ते, सुन्दर और नारे संपूर्ण बहर में होते हैं.

गीत के रुप में नारे एवं पार्टी मुखिया की स्तुति लिखने के अलग से प्रबंध किए जाते हैं, गेयता की गारंटी और विशेष अनुरोध पर कम्पोजर, गायक गायिका का प्रबंध किया जाता है एवं उनके भाव अलग से देय होंगे. रिकार्डिंग स्टूडियों के मात्र रिफरेंस दिये जायेगे. उनका प्रबंध और डील कि जिम्मेदारी आपकी है. हम सिर्फ मदद कर सकते हैं.

हमारे संपर्क में शादियों में सेहरा गाने वाले भूतपूर्व सेहरा गायक भी हैं. आजकल शादी ब्याहों में उनकी जरुरत खत्म हो जाने से आपके स्तुति गान की मंच प्रस्तुति हेतु हम आपका उनसे संपर्क करवा सकते हैं, भाव ताव आपको करना होगा. ((यह काम हम मात्र दलाली के अर्थशास्त्र का पालन करते हुये कमीशन के लिए करते हैं)

हम आपके और आपकी पार्टी के फेवर से लेकर सामने वाले प्रत्याशी एवं पार्टी के विरोध में नारे लिखते हैं.

हमारी संस्थान का ध्येय: ’जैसा दाम, वैसा काम’

चुनाव जिताने की हमारी गारंटी नहीं है. हम सिर्फ असरदार नारे और भाषण लिखते हैं.

नीचे मात्र उदाहरण हेतु कुछ नारे दिये जा रहे हैं. जो बहर में न लगे, उन्हें मुक्त नव कविता की श्रेणी में रख कर पढ़ा जाये.

जैसे की बिल्डर के मॉडल होम पर बिल्डर का अधिकार होता है किन्तु आप चाहें तो उन्हें ऊँचे दाम पर सजा सजाया खरीद सकते हैं वैसे ही निम्न मॉडल नारे भी खरीदे जा सकते हैं.

जब तक आप इन्हें न खरीद लें, कृपया इनका इस्तेमाल न करें. यह कॉपीराईट कानून के उलंघन की श्रेणी में माना जायेगा. चोरी करके बच निकलने की गुजांईश कृपया यहाँ न अजमायें, अपनी यह कला चुनाव जीतने के बाद के लिए बचा कर रखें.

अगर आप नीचे दिये गये नारे खरीदना या नये नारे लिखवाना चाहते हैं तो कृप्या कमेंट कर अपना ईमेल एवं फोन पता प्रदान करें, हम नारेबाज आपसे संपर्क कर मोलभाव कर डील सेटल कर लेंगे.

हमारे संपर्क में चुनाव जीतने के पूजा पाठ एवं हवन, मंत्र बाजी आदि करने वाले धार्मिक महानुभाव भी जेल के भीतर और बाहर दोनों जगह हैं, उसके प्रबंध के लिए अलग से संपर्क करें. जेल के भीतर से भी असरदार अनुष्ठान की गारंटी संत शिरोमणि जी की रहेगी.

विशेष नोट -- संपर्कों का प्रबंध करने का यह काम हम मात्र दलाली के अर्थशास्त्र का पालन करते हुये कमीशन के लिए करते हैं...

कृप्या चुनावी सभा एवं रैलियों के लिए भीड़ जुटाने हेतु हमसे संपर्क न करें. यह कार्य हमारी संस्था ने पिछ्ले चुनाव में मीडिया के द्वारा प्रायोजित सेम भीड़ दोनों पार्टियों की रैली में भेजने के स्ट्रिंग ऑपरेशन में पकड़ाये जाने के बाद से बंद कर दिया है.

कृप्या हमसे एगजिट पोल करवाने की मांग न करें. इससे हमारे सभी प्रत्याशियों के प्रति समदृष्टा होने के मिशन स्टेटमेन्ट को चोट पहुँचने की संभावना बनती है.

कृपया दूसरी पार्टियों और प्रत्याशियों ने हमसे क्या लिखवाया है, उसकी हमसे मांग न करें. हमारा संस्थान राजनैतिक पार्टियों के समान ही आर टी आई के प्रावधानों से मुक्त है. हम इस तरह की जानकारियाँ गोपनीय रखते है किन्तु हमारे लेखन में इस जानकारी का हमारे पास होना आपको लाभ पहुँचायेगा ही.

नोट: गैर चुनावी मौसम में हम अन्य आयोजनों के लिए भी नारे लिखते हैं- जैसे सचिन का अंतिम मैच, फिल्म अवार्ड, कॉर्पोरेट स्लोगन आदि आदि.

 

election

मॉडल नारे (उदाहरण हेतु)- कॉपिराईट समीर लाल ’समीर’ उड़न तश्तरी वाले) 

बच्चा बोला गोदी में

मुझे भरोसा मोदी मे...

 

रामराज इस देश में

राम राहुल के भेष में

 

राहुल वही सितारा है

जनता को जो प्यारा है..

 

भ्रष्ट गये सब खाई में

जब ’झाडू’ लगी सफाई में...

 

संघर्ष अभी भी जारी है

अबकी ’आप’ की बारी है.

 

इतिहास पुनः दोहरायेगा

‘पंजा’ फिर से आयेगा...

 

नोट: तस्वीर साभार गुगल. किसी को वाजिब कॉपीराईट जैसी आपत्ति हो बता देना- शर्माना नहीं- हटा देंगे.

-समीर लाल ’समीर’

संपर्क साधें: udantashtari@gmail.com

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गुरुवार, अक्टूबर 03, 2013

कुछ वाँ की.. तो कुछ याँ की...

एक नये तरह का प्रयोग किया है...देखें जरा...कैसी गज़ल निकली है:

BORDER

कब परिंदो को पता था, आंगनों में भेद का

एक दाना वाँ चुगा था, एक दाना याँ चुगा...

सरहदों से जा के पूछो, कौन किसका खून है

एक कतरा वाँ गिरा था, एक कतरा याँ गिरा..

राज इतना जान लो, तब हर अँधेरा दूर हो

एक दीपक वाँ जला था, एक दीपक याँ जला

आसमां को कब पता था, कौन मांगे है दुआ

एक तारा वाँ गिरा था, एक तारा याँ गिरा

है जमाना लाख बदला, पर न बदला है ’समीर’

दिल तुम्हारा वाँ छुआ था, दिल तुम्हारा याँ छुआ..

 

-समीर लाल ’समीर’

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