मार्च 24, 2014

गुरुत्विय तरंगो की खोज: महाविस्फोट(Big Bang), ब्रह्मांडीय स्फिति(Cosmic Inflation), साधारण सापेक्षतावाद की पुष्टि

by आशीष श्रीवास्तव

fabric_of_space_warpपृथ्वी सूर्य की परिक्रमा सूर्य के आसपास उसके गुरुत्वाकर्षण द्वारा काल-अंतराल(space-time) मे लाये जाने वाली वक्रता के फलस्वरूप करती है। मान लिजीये यदि किसी तरह से सूर्य को उसके स्थान से हटा लिया जाता है तब पृथ्वी पर सूर्य की (या सूर्य के गुरुत्वाकर्षण)अनुपस्थिति का प्रभाव पडने मे कितना समय लगेगा ? यह तत्काल होगा या इसमे कुछ विलंब होगा ? सूर्य के पृथ्वी तक प्रकाश 8 मिनट मे पहुंचता है, सूर्य की अनुपस्थिति मे पृथ्वी पर अंधेरा होने मे तो निश्चय ही 8 मिनट लगेंगे, लेकिन गुरुत्विय अनुपस्थिति के प्रभाव मे कितना समय लगेगा ? यदि हम न्युटन के सिद्धांतो को माने तो यह प्रभाव तत्काल ही होगा लेकिन आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद के अनुसार यह तत्काल नही होगा क्योंकि गुरुत्वाकर्षण भी तरंगो के रूप मे यात्रा करता है। इस लेख मे हम इसी गुरुत्विय तरंगो की चर्चा करेंगे।

हमारे पास ऐसा कोई उपाय नही है जिससे हम यह जान सके कि आज से लगभग 13.8 अरब वर्ष पहले ब्रह्माण्ड के जन्म के समय क्या हुआ था। लेकिन वैज्ञानिको ने सोमवार 17 मार्च 2014 महाविस्फोट अर्थात बीग बैंग सिद्धांत को मजबूत आधार देने वाली नयी खोज की घोषणा की है। यदि यह खोज सभी जांच पड़ताल से सही पायी जाती है तो हम जान जायेंगे कि ब्रह्मांड एक सेकंड के खरबवें हिस्से से भी कम समय मे कैसे अस्तित्व मे आया।
कैलीफोर्नीया इंस्टीट्युट आफ टेक्नालाजी के भौतिक वैज्ञानिक सीन कैरोल कहते है कि

“यह खोज हमे बताती है कि ब्रह्माण्ड का जन्म कैसे हुआ था। मानव जाति जिसका आधुनिक विज्ञान कुछ सौ वर्ष ही पूराना है लेकिन वह अरबो वर्ष पहले हुयी एक घटना जिसने ब्रह्माण्ड को जन्म दिया को समझने के समिप है, यह एक विस्मयकारी उपलब्धि है”।

वैज्ञानिको ने पहली बार आइंस्टाइन द्वारा साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत मे प्रस्तावित गुरुत्विय तरंगो के अस्तित्व का प्रत्यक्ष प्रमाण पाया है। गुरुत्विय तरंगे काल-अंतराल(space-time) मे उठने वाली ऐसी लहरे है जो महाविस्फोट से उत्पन्न सर्वप्रथम थरथराहट है।
पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित दूरदर्शी जिसका नाम BICEP2 — Background Imaging of Cosmic Extragalactic Polarization 2 है, इस खोज मे सबसे महत्वपूर्ण साबित हुयी है। इस दूरबीन ने महाविस्फोट से उत्पन्न प्रकाश के ध्रुवीकरण(polarization) को विश्लेषित करने मे प्रमुख भूमिका निभायी है, जिसके फलस्वरूप वैज्ञानिक यह महत्वपूर्ण खोज कर पाये हैं।

ब्रह्माण्ड का विस्तार(inflation-स्फिति)

ब्रह्माण्डीय स्फितिहम जानते हैं कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एक अत्यंत संघनित बिंदु से आज से 13.8 अरब वर्ष पूर्व एक महाविस्फोट(Big Bang) से हुयी है। इस महाविस्फोट के 10 -35 सेकंड(प्लैंक काल) के बाद एक संक्रमण के द्वारा ब्रह्मांड की काफी तेज गति से वृद्धि(exponential growth) हुयी। इस काल को ब्रह्माण्डीय स्फीति(cosmic inflation) काल कहा जाता है। इस स्फीति के समाप्त होने के पश्चात, ब्रह्मांड का पदार्थ एक क्वार्क-ग्लूवान-प्लाज्मा की अवस्था में था, जिसमे सारे कण गति करते रहते हैं। जैसे जैसे ब्रह्मांड का आकार बढ़ने लगा, तापमान कम होने लगा। एक निश्चित तापमान पर जिसे हम बायरोजिनेसीस संक्रमण कहते है, ग्लुकान और क्वार्क ने मिलकर बायरान (प्रोटान और न्युट्रान) बनाये। इस संक्रमण के दौरान किसी अज्ञात कारण से कण और प्रति कण(पदार्थ और प्रति पदार्थ) की संख्या मे अंतर आ गया। तापमान के और कम होने पर भौतिकी के नियम और मूलभूत कण आज के रूप में अस्तित्व में आये। बाद में प्रोटान और न्युट्रान ने मिलकर ड्युटेरीयम और हिलीयम के केंद्रक बनाये, इस प्रक्रिया को महाविस्फोट आणविक संश्लेषण(Big Bang nucleosynthesis.) कहते है। जैसे जैसे ब्रह्मांड ठंडा होता गया, पदार्थ की गति कम होती गयी, और पदार्थ की उर्जा गुरुत्वाकर्षण में तबदील होकर विकिरण की ऊर्जा से अधिक हो गयी। इसके 300,000 वर्ष पश्चात इलेक्ट्रान और केण्द्रक ने मिलकर परमाणु (अधिकतर हायड्रोजन) बनाये; इस प्रक्रिया में विकिरण पदार्थ से अलग हो गया । यह विकिरण ब्रह्मांड में अभी तक ब्रह्मांडीय सूक्ष्म तरंग विकिरण (cosmic microwave radiation)के रूप में बिखरा पड़ा है।

गुरुत्विय तरंग

वैज्ञानिक मानते हैं कि काल-अंतराल(space-time)संरचना मे छोटी छोटी लहरे उठती रहती है जिन्हे क्वांटम विचलन(quantum fluctuation)कहते हैं। यदि आप काल-अंतराल को अत्यंत सूक्ष्म रूप से देखने मे सक्षम हो तो वे आपको नजर आयेंगी। लेकिन ऐसा कोई सूक्ष्मदर्शी संभव नही है जिसके प्रयोग से इस सूक्ष्म स्तर पर देख सकें। इस तरह के विचलन ब्रह्माण्ड के जन्म के समय पर भी उपस्थित थे जिन्हे महाविस्फोट की घटना ने विशाल बना दिया था, इन्ही विशाल विचलन ने गुरुत्विय तरंग उत्पन्न की थी। इन सर्वप्रथम गुरुत्विय तरंगो के प्रभाव को आज भी हम ब्रह्माण्डीय विकीरण(cosmic microwave background) मे देख सकते है। सरल शब्दो मे ये गुरुत्विय तरंगे महाविस्फोट की पश्चात्वर्ती आघात (aftershock) हैं। BICEP2 ने इन्ही गुरुत्विय लहरो के प्रत्यक्ष प्रमाण को देखने मे सफलता पायी है।

कुछ अन्य प्रयोग जैसे काल्टेक की प्रयोगशाला LIGO -Laser Interferometer Gravitational Wave Observatory भी गुरुत्विय तरंगो के सत्यापन का प्रयास कर रहे है लेकिन वे सभी इसके एक और पहलू श्याम विवर द्वारा उत्पन्न गुरुत्विय तरंगो पर केंद्रित है।

BICEP2 द्वारा खोजी गयी गुरुत्विय तरंगे उस समय के समस्त ब्रह्मांड मे विस्तृत हुयी होंगी। इन तरंगो के शीर्ष(peaks) और गर्त(troughs) मे मध्य अरबों प्रकाशवर्ष की दूरी रही होगी।

शुरुवाती ब्रह्मांड द्वारा उत्सर्जित प्रकाश किरणो को हम आज भी ब्रह्मांडीय विकिरणो के रूप मे देख सकते है और ये विकिरण हमे ब्रह्मांड के इतिहास के बारे मे प्रमाण उपलब्ध कराता है। पिछले वर्ष ही यूरोपीयन अंतरिक्ष संस्थान के प्लैंक अंतरिक्ष वेधशाला ने ब्रह्मांड के जन्म के 380,00 वर्ष पश्चात के तापमान का विस्तृत मानचित्र बनाया था, यह मानचित्र इन्ही ब्रह्माण्डीय विकिरण पर आधारित था।

BICEP2 मे B Modes के संकेत

BICEP2 मे B Modes के संकेत

BICEP2 के प्रयोग मे वैज्ञानिको का ध्यान तापमान की बजाय ब्रह्माण्डीय विकिरण के एक विशिष्ट ध्रुविकरण पर था, वे इस विकिरण के विद्युत क्षेत्र की दिशा पर नजरे गड़ाये थे। वैज्ञानिक बजाय ब्रह्माण्डीय विकिरण के एक विशिष्ट ध्रुविकरण(polarisation) “B Modes” की तलाश मे थे क्योंकि यह ध्रुविकरण गुरुत्विय तरंग के फलस्वरूप एक मोड़ जैसा पैटर्न दर्शाता है। B Modes जैसे चक्करदार पैटर्न सिर्फ गुरुत्विय तरंगो से संभव है और इन्ही प्रमाणो को BICEP2 ने खोजा है। वैज्ञानिको के अनुसार ये गुरुत्विय तरंगो के स्पष्ट हस्ताक्षर है।

क्या ये परिणाम विश्वसनिय है?

इस तरह के प्रयोगो मे से यह पहला सफल प्रयोग है। इस पर अभी संदेह करना उचित है जब तक कि इसे प्रयोगो द्वारा दोहरा नही लिया जाता। अगले दो तीन वर्षो मे इस प्रयोग के परिणामो को यदि दोहरा लिया जाता है तभी इन्हे विश्वसनिय माना जायेगा।

सामान्यतः किये जाने वाले प्रश्न(FAQ)

गुरुत्विय तरंगे क्या है ?

गुरुत्विय तरंगे समस्त विश्व मे ऊर्जा का वहन करने वाली लहरे हैं। इनके अस्तित्व का पूर्वानुमान अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा 1916 मे साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत के प्रतिपादन मे किया गया था। अब तक इन तरंगो कि उपस्थिति के परिस्थितिजन्य प्रमाण थे लेकिन इन्हे प्रत्यक्ष रूप से प्रमाणित नही किया जा सका था। इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि ये तरंगे किसी परमाणु से भी लाखों गुणा छोटी होती है। ये कुछ इस तरह से है कि आप कई किलोमीटर दूर से किसी झील की सतह पर उठने वाली लहर को देखने का प्रयास कर रहे हों।

सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है महाविस्फोट(Big Bang) से उत्पन्न मौलिक गुरुत्विय तरंगो की खोज क्योंकि वे हमे ब्रह्माण्ड के निर्माण से संबधित जानकारी उपलब्ध करायेंगी।

साधारण सापेक्षतावाद क्या है?

1916 मे अलबर्ट आइंस्टाइन ने गुरुत्वाकर्षण बल को गणितिय तरिके से व्यक्त करने के लिए एक अवधारणा विकसित की थी। इस अवधारणा को उन्होने साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत का नाम दिया था। इस सिद्धांत मे काल-अंतराल को एक साथ एक ही निर्देशांक पद्धति के द्वारा दर्शाया गया था, जबकि इसके पहले काल(time) और अंतराल(space) को अलग अलग माना जाता था।
इसके अनुसार काल-अंतराल एक विशाल चादर के जैसे हैं और पदार्थ उसमे अपने द्रव्यमान से एक झोल उत्पन्न करते है। यह झोल ही गुरुत्वाकर्षण बल उत्पन्न करता है। गुरुत्विय तरंगे इसी चादर(काल-अंतराल) मे उत्पन्न लहरे हैं।

इस खोज का क्या महत्व है?

इस खोज के दो महत्वपूर्ण पहलू है। प्रथम तो यह कि यह ब्रह्मांड के अध्ययन के नये क्षेत्र खोलेगा जिससे हम तरंगो की उत्पत्ति और उनके ब्रह्मांड की विभिन्न प्रक्रियाओं पर प्रभाव को समझा जा सकता है। दूसरा इससे आइंस्टाइन के सिद्धांत महाविस्फोट(Big Bang) और ब्रह्मांडीय स्फिति की पुष्टि हुयी है।

गुरुत्विय तरंगो के अस्तित्व की पुष्टि कैसे संभव है?

दक्षिणी ध्रुव पर स्थित दूरबीन BICEP2 गुरुत्विय तरंगो की तलाश मे लगा हुआ है, यह दूरबीन ब्रह्मांडीय विकिरण के एक परिष्कृत गुणधर्म की जांच कर रहा है। ब्रह्मांडीय विकिरण महाविस्फोट से उत्पन्न हुआ था, इसकी खोज 1964 मे आकस्मिक रूप से एक रेडीयो दूरबीन द्वारा की गयी थी। इस ब्रह्मांडीय विकिरण को ब्रह्मांड के जन्म की प्रतिध्वनि कहा गया था। BICEP2 ने इस ब्रह्मांडिय विकिरण का परिष्कृत गुणधर्म अर्थात उसमे उत्पन्न ध्रुविकरण(polarisation) को मापा है और इसका मान अनुमानो के अनुरूप पाया है। ब्रह्मांडीय विकिरण पर इस तरह का पैटर्न केवल गुरुत्विय तरंगो द्वारा ही संभव है और यह भी तभी संभव है जब उसे ब्रह्मांडीय स्फिति(cosmic inflation) द्वारा परिवर्धित(amplified) किया गया हो।

ब्रह्मांडीय स्फिति(cosmic inflation) क्या है?

महाविस्फोट का सिद्धांत जार्ज लैमीत्रे ने प्रतिपादित किया था, इसे उन्होने “बीते कल के बिना आज(the day without yesterday)” का नाम दिया था क्योंकि यह वह क्षण था जब काल और अंतराल(Space and Time) का जन्म हुआ था। लेकिन सभी वैज्ञानिक इससे सहमत नही थे क्योंकि यह सिद्धांत उनके निरिक्षण की पुष्टि नही करता था। ब्रह्मांड मे पदार्थ इतने समांगी(uniform) रूप से वितरित है कि वैज्ञानिक नही मानते थे कि इस तरह का वितरण महाविस्फोट के जैसी प्रलयंकारी घटना से संभव है। 1970 मे वैज्ञानिको मे महाविस्फोट के सिद्धांत मे ब्रह्माण्डीय स्फिति (cosmic inflation) का समावेश किया जोकि महाविस्फोट के एक सेकंड के खरबवे हिस्से के पश्चात घटित हुआ था। लेकिन इसे प्रमाणित करना अत्यंत कठिन था। इस तरह कि स्फिति ही महाविस्फोट के समय की मौलिक गुरुत्विय तरंगो को इस तरह से परिवर्धित कर सकती की उन्हे वर्तमान मे मापा जा सके। यदि वर्तमान मे इस मौलिक गुरुत्विय तरंगो को खोज लिया जाता है तो इसका अर्थ होगा कि ब्रह्मांडीय स्फिति घटित हुयी है।

आगे क्या ? क्या ब्रह्मांड वैज्ञानिको का कार्य समाप्त हो चूका है?

नही, कार्य तो अब प्रारंभ हुआ है। आइंस्टाइन जानते थे कि साधारण सापेक्षतावाद का मेल क्वांटम भौतिकी से नही होता है। साधारभ सापेक्षतावाद जहाँ पर गुरुत्वाकर्षण और समस्त ब्रह्माण्ड की व्याख्या करता है वहीं पर क्वांटम भौतिकी अत्यंत सूक्ष्म कणो के स्तर पर अन्य बलो विद्युत-चुंबकीय बल , कमजोर और मजबूत नाभिकिय बलों की व्याख्या करता है। दोनो के पैमाने अलग अलग है, एक विशाल स्तर पर, दूसरा सूक्ष्म स्तर पर कार्य करता है। लगभग एक शताब्दि के प्रयासो के पश्चात भी दोनो सिद्धांतो का एकीकरण संभव नही हो सका है। लेकिन मौलीक गुरुत्विय तरंगो की खोज हुयी है, ये तरंगे उस समय उत्पन्न हुयी है जब गुरुत्वाकर्षण तथा ब्रह्माण्ड क्वांटम भौतिकी दोनो एक ही सूक्ष्म पैमाने पर ही कार्य कर रही थी। इन गुरुत्विय तरंगो का विश्लेषण और अध्ययन शायद हमे एक सार्वभौमिक सिद्धांत(Theory Of Everything) की ओर ले जाये।

मार्च 10, 2014

अर्ध-प्रकाशगति(149,896 किमी/सेकंड) से घूर्णन करता श्याम विवर

by आशीष श्रीवास्तव

श्याम विवर(black hole) इस ब्रह्मांड की सबसे विचित्र संरचनाओं मे से एक है। वे ब्रह्माण्ड के ऐसे निरंकुश दानव है जो अपने आसपास फटकने वाले चंद्रमा, ग्रह, तारे और समूचे सौर मंडलो को निगल जाते है। इनकी पकड़ से प्रकाश भी नही बच पाता है।

श्याम विवर ब्रह्माण्ड के सफाई कर्मी तो है ही लेकिन वे बहुत ही तेज, अत्यंत तेज होते है। खगोल वैज्ञानिको ने एक ऐसा श्याम विवर खोज निकाला है जो प्रकाशगति से आधी गति से घूर्णन कर रहा है। प्रकाशगति से आधी गति ? जीहाँ आपने सही पढ़ा है, प्रकाशगति की आधी गति, 149,896 किमी/सेकंड की गति से घूर्णन!

यह विचित्र श्याम विवर एक क्वासर RX J1131-1231 के केंद्र मे स्थित है और पृथ्वी से 6 अरब प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। वर्तमान मे वह पृथ्वी से दूर जा रहा है।
यह एक उपलब्धि है कि वैज्ञानिक 6 अरब वर्ष दूरी पर स्थित श्याम विवर के घूर्णन की गणना करने मे सफल हुये है। संयोग से इस श्यामविवर की घूर्णन की गति की गणना करने के लिये आकंड़ो को जमा करने मे एक महाकाय दिर्घवृत्ताकार(elliptical ) आकाशगंगा का सहयोग मिला जो इस श्यामविवर और हमारी पृथ्वी के मध्य स्थित है।

यह आकाशगंगा इस श्याम विवर द्वारा उतसर्जित प्रकाश को वक्र कर (मोड़) देती है, इस प्रक्रिया को गुरुत्विय लेंसींग(gravitational lensing) कहा जाता है।  प्रकाशकिरणो मे आयी यह वक्रता दूरस्थ श्याम विवर की प्रकाश किरणो को केंद्रित(focus) कर देती है जिससे उनके मापन मे सहायता मीलती है। हम जानते है कि श्याम विवर केवल अवशोषण करता है, वह हमे दिखायी नही देता है। इसलिये श्यामविवर से उत्सर्जित प्रकाश किरणे वास्तविकता मे उस श्याम विवर के चारो ओर स्थित धूल और गैस के वलय (अक्रिशन डिस्क-accretion disks) से उत्सर्जित X किरणे ही होती है। इस अक्रिशन डिस्क उत्सर्जित X किरणो से श्याम विवर के आसपास एक लाखों डीग्री तापमान का बादल सा बनता है जिसे आभामंडल(कोरोना-corona) कहते है। इस बादल की श्याम विवर से दूरी श्याम विवर की घूर्णन गति पर निर्भर है, जितनी अधिक घूर्णन गति उतनी कम दूरी।

वैज्ञानिको ने अध्ययन के दौरान पाया कि RX J1131-1231 के आसपास स्थित बादल से आती हुयी X किरणे श्याम विवर के इतने समीप के क्षेत्र से आ रही है
कि उसे उत्पन्न करने लिये श्याम विवर को अत्यंत तेज गति से घूर्णन करना चाहीये। अन्यथा यह अत्यंत उष्ण बादल श्यामविवर से इतनी कम दूरी पर बच नही सकता है, श्यामविवर उसे निगल जायेगा।

श्यामविवर की यह घूर्णन गति ध्यान मे रखने योग्य है क्योंकि यह गति श्याम विवर के निर्माण और विस्तार के हमारे वर्तमान के सिद्धांतो की पुष्टि करती है। हमारे अनुमानो के अनुसार श्यामविवर जितना पदार्थ निगलता है उतनी ही तेज गति से घूर्णन करता है। RX J1131-1231 अत्यंत तेज गति से घूर्णन कर रहा है और वह एक वर्ष मे एक सूर्य के जितना द्रव्यमान निगल रहा है। ये दो तथ्य हमारे श्याम विवर के निर्माण के कंप्यूटर माडेल की पुष्टि कर रहे है।

लेकिन यह श्याम विवर सबसे तेज गति से घूर्णन करने वाले श्याम विवर के समीप भी नही है। एक अन्य श्याम विवर NGC1365 प्रकाशगति के 85% गति से घूर्णन कर रहा है जो कि पृथ्वी से 600 लाख प्रकाशवर्ष दूरी पर एक स्पायरल आकाशगंगा के केंद्र मे स्थित है। यह श्याम विवर 19 लाख किमी व्यास का है और 20 लाख सूर्य के द्रव्यमान का है। लेकिन RX J1131-1231 श्याम विवर NGC1365 से उम्र मे काफी कम है इसलिये उसे अपनी गति बढ़ाने ले लिये पर्याप्त समय नही मीला है।

यह खोज महत्वपूर्ण है, क्योंकि वैज्ञानिको ने पहली बार इतनी दूर स्थित श्याम विवर के आंकड़ो के मापन के लिये गुरुत्विय लेंसींग तकनीक का प्रयोग किया है। यह भविष्य के विज्ञान के लिये अच्छी खबर है।

मार्च 5, 2014

ब्रह्मांड का अंत कैसे होगा ?

by आशीष श्रीवास्तव

वैज्ञानिक को “ब्रह्मांड की उत्पत्ति” की बजाय उसके “अंत” पर चर्चा करना ज्यादा भाता है। ऐसे सैकड़ों तरिके है जिनसे पृथ्वी पर जीवन का खात्मा हो सकता है, पिछले वर्ष रूस मे हुआ उल्कापात इन्ही भिन्न संभावनाओं मे से एक है। लेकिन समस्त ब्रह्मांड के अंत के तरिके के बारे मे सोचना थोड़ा कठिन है। लेकिन हमे अनुमान लगाने, विभिन्न संभावनाओं पर विचार करने से कोई रोक नही सकता है।

ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सबसे ज्यादा मान्य सिद्धांत “महाविस्फोट(The Big Bang)” के अनुसार अब से लगभग 14 अरब वर्ष पहले एक बिन्दु से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुयी है। उस समय ब्रह्मांड के सभी कण एक दूसरे से एकदम पास पास थे। वे इतने ज्यादा पास पास थे कि वे सभी एक ही जगह थे, एक ही बिंदु पर। सारा ब्रह्मांड एक बिन्दु की शक्ल में था। यह बिन्दु अत्यधिक घनत्व(infinite density) का, अत्यंत छोटा बिन्दु(infinitesimally small ) था। ब्रह्मांड का यह बिन्दु रूप अपने अत्यधिक घनत्व के कारण अत्यंत गर्म(infinitely hot) रहा होगा। इस स्थिती में भौतिकी, गणित या विज्ञान का कोई भी नियम काम नहीं करता है। यह वह स्थिती है जब मनुष्य किसी भी प्रकार अनुमान या विश्लेषण करने में असमर्थ है। काल या समय भी इस स्थिती में रुक जाता है, दूसरे शब्दों में काल या समय के कोई मायने नहीं रहते है। इस स्थिती में किसी अज्ञात कारण से अचानक ब्रह्मांड का विस्तार होना शुरू हुआ। एक महा विस्फोट के साथ ब्रह्मांड का जन्म हुआ और ब्रह्मांड में पदार्थ ने एक दूसरे से दूर जाना शुरू कर दिया।

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फ़रवरी 17, 2014

प्रयोगशाला मे सूर्य का निर्माण : नाभिकिय संलयन(nuclear fusion) मे एक बड़ी सफलता

by आशीष श्रीवास्तव

सूर्य की ऊर्जा नाभिकिय संलयन से प्राप्त होती है!सूर्य की ऊर्जा नाभिकिय संलयन से प्राप्त होती है!

सूर्य की ऊर्जा नाभिकिय संलयन से प्राप्त होती है!

प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टाइन के समय से ही नियंत्रित नाभिकिय संलयन(nuclear fusion) द्वारा अनंत ऊर्जा का निर्माण वैज्ञानिको का एक सपना रहा है। यह ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रिया जो कि किसी भी तरह के प्रदुषण से मुक्त है। लेकिन बहुत से वैज्ञानिक इसे विज्ञान फतांशी की प्रक्रिया मानकर नकार चूके है। अभी भी लक्ष्य दूर है लेकिन पहली बार वैज्ञानिको को नाभिकिय संलयन की प्रक्रिया मे ऊर्जा के उत्पादन करने मे सफलता मीली है। यह घोषणा लारेंस लिवेरमोर नेशनल प्रयोगशाला(Lawrence Livermore National Laboratory) के नेशनल इग्नीशन विभाग(National Ignition Facility) के वैज्ञानीक ओमार हरीकेन(Omar Hurricane) द्वारा की गयी है और इसे नेचर पत्रिका मे प्रकाशित किया गया है।

जब दो हल्के परमाणु नाभिक परस्पर संयुक्त होकर एक भारी तत्व के परमाणु नाभिक की रचना करते हैं तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं। नाभिकीय संलयन के फलस्वरूप जिस नाभिक का निर्माण होता है उसका द्रव्यमान संलयन में भाग लेने वाले दोनों नाभिकों के सम्मिलित द्रव्यमान से कम होता है। द्रव्यमान में यह कमी ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है। जिसे अल्बर्ट आइंस्टीन के समीकरण E = mc2 से ज्ञात करते हैं। तारों के अन्दर यह क्रिया निरन्तर जारी है। सबसे सरल संयोजन की प्रक्रिया है चार हाइड्रोजन परमाणुओं के संयोजन द्वारा एक हिलियम परमाणु का निर्माण।

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फ़रवरी 15, 2014

गैलीलियो गैलीली

by आशीष श्रीवास्तव

गैलीलियो गैलीली एक इटालियन भौतिक विज्ञानी, गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और दार्शनिक थे; जिन्होने आधुनिक वैज्ञानिक क्रांति की नींव रखी थी। उनका जन्म 15 फरवरी 1564 को हुआ था, तथा मृत्यु 8 जनवरी 1642 मे हुयी थी।

गैलीलियो गैलीली की उपलब्धियों मे उन्नत दूरबीन का निर्माण और खगोलिय निरिक्षण तथा कोपरनिकस के सिद्धांतो का समर्थन है। गैलीलियो को आधुनिक खगोलशास्त्र का पिता, आधुनिक भौतिकि का पिता, आधुनिक विज्ञान का पिता के नामो से सम्मान दिया जाता है।

“गैलेलियो, शायद किसी भी अन्य व्यक्ति की तुलना मे, आधुनिक विज्ञान के जन्मदाता थे।” - स्टीफन हांकिस

समरूप से त्वरित पिंडो की गति जिसे आज सभी पाठशालाओ और विश्वविद्यालयो मे पढाया जाता है, गैलीलियो द्वारा काईनेमेटीक्स(शुद्ध गति विज्ञान) विषय के रूप मे विकसित किया गया था। उन्होने अपनी उन्नत दूरबीन से शुक्र की कलाओ का सत्यापन किया था; बृहस्पति के चार बड़े चन्द्रमा खोजे थे(जिन्हे आज गैलेलीयन चन्द्रमा कहते है) तथा सूर्य धब्बो का निरिक्षण किया था। गैलीलियो ने विज्ञान और तकनिक के अनुप्रयोगो के लिये भी कर्य किया था, उन्होने सैन्य दिशादर्शक(Military Compass) और अन्य उपकरणो का आविष्कार किया था।

गैलीलियो द्वारा कोपरनिकस के सूर्य केन्द्रित सिद्धांत का समर्थन उनके संपूर्ण जीवन काल मे विवादास्पद बना रहा, उस समय अधिकतर दार्शनिक और खगोल विज्ञानी प्राचिन दार्शनिक टालेमी के भू केन्द्रित सिद्धांत का समर्थन करते थे जिसके अनुसार पृथ्वी ब्रम्हांड का केन्द्र है। 1610 के जब गैलीलियो ने सूर्यकेन्द्र सिद्धांत (जिसमे सूर्य ब्रम्हांड का केन्द्र है) का समर्थन करना शुरू किया उन्हे धर्मगुरुओ और दार्शनिको के कट्टर विरोध का सामना करना पडा़ और उन्होने 1615 मे गैलेलियो को धर्मविरोधी करार दे दिया। फरवरी 1616 मे वे आरोप मुक्त हो गये लेकिन चर्च ने सूर्य केन्द्रित सिद्धांत को गलत और धर्म के विपरित कहा। गैलेलियो को इस सिद्धांत का प्रचार न करने की चेतावनी दी गयी जिसे गैलीलियो ने मान लिया। लेकिन 1632 मे अपनी नयी किताब “डायलाग कन्सर्निंग द टू चिफ वर्ल्ड सीस्टमस” मे उन्होने सूर्य केन्द्री सिद्धांत के समर्थन के बाद उन्हे चर्च ने फिर से धर्मविरोधी घोषित कर दिया और इस महान वैज्ञानिक को अपना शेष जीवन अपने घर ने नजरबंद हो कर गुजारना पड़ा।

गैलीलियो का जन्म पीसा इटली मे हुआ था, वे वीन्सेन्ज़ो गैलीली की छः संतानो मे सबसे बड़े थे। उनके पिता एक संगितकार थे, गैलीलियो का सबसे छोटा भाई माइकलेन्जेलो भी एक प्रसिद्ध संगितकार हुये है। गैलीलियो का पूरा नाम गैलीलियो दी वीन्सेन्ज़ो बोनैउटी दे गैलीली था। आठ वर्ष की उम्र मे उनका परिवार फ्लोरेंस शहर चला गया था। उनकी प्राथमिक शिक्षा कैमलडोलेसे मान्स्टेरी वाल्लोम्ब्रोसा मे हुआ था।
गैलीलियो रोमन कैथोलिक थे। उन्होने किशोरावस्था मे पादरी बनने की सोची थी लेकिन पिता के कहने पर पीसा विश्वविद्यालय से चिकित्सा मे पदवी के लिये प्रवेश लिया लेकिन यह पाठ्यक्रम पूरा नही किया। उन्होने गणित मे शिक्षा प्राप्त की। Continue reading

जनवरी 23, 2014

नया सुपरनोवा: M82 आकाशगंगा मे एक श्वेत वामन तारे की मृत्यु

by आशीष श्रीवास्तव

M82 आकाशगंगा की सुपरनोवा विस्फोट से पहले और पश्चात के चित्र का एनीमेशन

M82 आकाशगंगा की सुपरनोवा विस्फोट से पहले और पश्चात के चित्र का एनीमेशन

अंतरिक्ष और खगोल भौतिकी मे रूची रखने वालो के लिये एक बेहतरीन समाचार है। हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी की पडोसी आकाशगंगा M82(Messier 82 ,NGC 3034, Cigar Galaxy या M82) मे 22 जनवरी को एक सुपरनोवा विस्फोट देखा गया है। इस सुपरनोवा विस्फोट की दीप्ति इतनी अधिक है कि इसे छोटी दूरबीन से भी देखा जा सकता है। M82 आकाशगंगा को उत्तरी गोलार्ध मे सूर्यास्त के पश्चात रात्री आकाश मे आसानी से देखा जा सकता है। यह एक टाईप -Ia सुपरनोवा विस्फोट है। खगोल वैज्ञानिको को इस तरह के सुपरनोवा विस्फोटो का इंतजार रहता है, और यह एक बेहतरीन अवसर है।

M82 आकाशगंगा की सुपरनोवा विस्फोट से पहले और पश्चात के चित्र, इसकी दीप्ति 11.7 है। यह सुपरनोवा आकाशगंगा के प्रतल मे उसके केंद्र से 54″ पश्चिम तथा 21″ दक्षिण है।

M82 आकाशगंगा की सुपरनोवा विस्फोट से पहले और पश्चात के चित्र, इसकी दीप्ति 11.7 है। यह सुपरनोवा आकाशगंगा के प्रतल मे उसके केंद्र से 54″ पश्चिम तथा 21″ दक्षिण है।

खगोल वैज्ञानिको के अनुसार वर्तमान मे इस सुपरनोवा की दीप्ति +11 से +12 तक है, इस कारण से इसे नंगी आंखो से नही देखा जा सकता है। इसे देखने के लिये आपको 4 ईंच की दूरबीन चाहीये होगी। हमसे लगभग 120 लाख प्रकाशवर्ष दूर यह सबसे दीप्तिमान और समीप का सुपरनोवा है, इसके पहले ऐसा नज़दीकी सुपरनोवा M81 आकाशगंगा मे 21 वर्ष पूर्व 1993 मे देखा गया था। M81, M82 तथा NGC 3077 एक दूसरे से बंधी हुयी आकाशगंगाये है।(नंगी आखो से आप +6 तक की दीप्तिमान तारे ही देख सकते है, यह मानक जितना कम होगा पिंड उतना ही ज्यादा चमकदार होगा। पौर्णिमा के चंद्रमा की दीप्ति –12.7 है।) Continue reading