खुश रहने की कुछ वजहें

मुझे आज भी याद है, जब उसका जन्म होने वाला था और दीदी हॉस्पिटल में थीं, तो मैं तीन-चार दिन तक रोज़ सपने में एक छोटी सी गुड़िया देखती थी, पंखुरी सी कोमल, पालने में लेटी अपने नन्हे-नन्हे हाथों से मेरी उँगली पकड़ने की कोशिश करती हुयी. मैंने दीदी से कहा भी था कि ‘देखना लड़की ही होगी.’ दीदी भी बेटी ही चाहती थीं और जीजाजी जी की भी यही तमन्ना थी कि एक बेटी हो और वो भी मेरे जैसी क्योंकि वो मुझे भी बेटी की ही तरह मानते हैं.

फिर चार अक्टूबर सन 2000 का वो दिन आया जब उसने इस दुनिया में कदम रखा. मैंने हॉस्टल के अपने ब्लाक में शोर मचा दिया कि मैं मौसी बन गयी हूँ. जीजाजी से फोन पर बात हुयी और उन्होंने कहा ‘गुड्डू, उसके चेहरे पर तुम्हारे जैसा तेज है.’ हाँ, उसमें मेरा भी तो अंश है. वो अपने ददिहाल और ननिहाल दोनों जगह की पहलौठी की बिटिया है. हमारे यहाँ पहली लड़की का होना बहुत शुभ माना जाता है. कहा जाता है कि पहलौठी लड़की घर में लक्ष्मी की तरह आती है. जो भी हो, वो दोनों ही जगह खुशियाँ लेकर आयी और आज भी उसके होने से रौनक है. उसकी पैदाइश के समय नौरात्र चल रहे थे और उस दिन शीतला माता का दिन था, इसलिए उसका नाम शीतल पड़ा.

वो मुझे बहुत प्यार करती है. उसके अनुसार उसके मम्मी-पापा से ज्यादा, जबकि मुझे मालूम है कि कोई भी बच्चा अपने माँ-बाप से ज्यादा किसी को प्यार नहीं कर सकता. बस कभी-कभी ऐसा महसूस होता है. पर उनकी अहमियत उनसे दूर होकर ही पता चलती है. एक बार मैंने दीदी से कहा कि मैं एक बच्चा गोद लेना चाहती हूँ. दीदी ने शीतल की ओर इशारा करके कहा, ‘इसे ही ले जाओ’ और वो तुरंत तैयार भी हो गयी. अपना बैग-वैग पैक करने लगी. मैंने कहा, ‘अभी तो बड़ी खुश हो. दिल्ली पहुंचकर दूसरे ही दिन से मम्मी-मम्मी चिल्लाने लगोगी.’ ‘नहीं’ उसने बड़े दृढ़ होकर कहा. उसे लगता है कि उसकी मम्मी उसके छोटे भाई को ज्यादा प्यार करती है. जब वो ऐसा कहती है तो उसमें मुझे अपना अक्स दिखता है. मैं भी तो यही सोचती थी. घर में छोटा बच्चा आ जाने पर हर बड़ा बच्चा यही सोचता है. कभी-कभी डर लगता है कि वो भी कहीं भावनात्मक रूप से अपनी माँ से दूर ना हो जाए. लेकिन आजकल की पीढ़ी अपना प्यार अभिव्यक्त करने में ज्यादा उदार है और माँ-बाप भी. शीतल बड़े प्यार से बताती है कि उसका नाम ‘रानी’ है क्योंकि उसकी मम्मी उसे ‘रानी बिटिया’ कहती है. जब उसकी मम्मी उसे प्यार से बुलाती है तो उनके गले से लटक जाती है और कहती है ‘मम्मी, आई लव यू’ … नहीं,  वो मेरे जैसी नहीं है, बिल्कुल नहीं और ना ही उसकी मम्मी मेरी अम्मा जैसी. हमसे पहले की पीढ़ी जाने किस हिचक से अपने प्रेम को व्यक्त नहीं करती थी और हमारी पीढ़ी जाने किस अकड़ में इस बात को स्वीकार ही नहीं करना चाहती थी कि वो हमसे प्यार करते थे और उनके जाने के बाद अकल आती थी… तब तक देर हो चुकी होती थी.

वो अपनी हर भावना बेहिचक व्यक्त करती है- प्यार, गुस्सा, जलन सब कुछ. पिछली बार मैं अपना लैपटॉप लेकर गयी थी. ऑरकुट पर अपने बचपन की एक सहेली की बिटिया की फोटो दीदी को दिखाते हुए मैंने कहा, ‘देखो कितनी क्यूट है. स्वीटी पाई’ बस, शीतल का मुँह फूल गया, ‘ये स्वीटी पाई है तो मैं क्या हूँ?’ मैंने कहा, ‘तुम तो मेरी बिटिया हो, मेरी गुड़िया’ बस फिर क्या था? खुश. मेरे गाल पर पप्पी लेकर अपना गाल आगे कर दिया, ‘अच्छा, तो पप्पी दो’ उसके साथ रहते-रहते मुझे भी प्यार जताना आ गया है.

एक बार वो अपने भाई के साथ मार-कुटाई का खेल रही थी. मैंने कहा ‘अरे, लग जायेगी उसको.’ वो तुरंत वहाँ से चली गयी दूसरे कमरे में. मैं पीछे-पीछे गयी तो देखा कि आँखों में आँसू लेकर मखाकर बैठी हुयी थी. बोली, ‘ आप भी मम्मी की तरह शशांक को ज्यादा प्यार करती हो’ मुझे उसको समझाने के लिए जाने कितने तर्क देने पड़े. ‘वो तुमसे छोटा है’ ‘उसको अकल नहीं है’ ‘नादान है अभी’ जब मैंने कहा, ‘तुम तो सयानी बिटिया हो ना’ तब मान गयी.

उसका भाई उसके एकदम उलट एक नम्बर का बदमाश है. अभी दो दिन पहले इन लोगों से बात हुयी. शीतल ने बड़े प्यार से पूछा, ‘मौसी कब आ रही हो?’ मैंने कहा ‘तुम्हारे एक्ज़ाम के बाद’ तो शशांक बोला, ‘अब्भी आओ’ मैंने पूछा ‘कैसे?’ तो बोला ‘प्लेन छे…’ जीजाजी ने कहा प्लेन तो कबका चला गया. तो कहने लगा, ‘मौछी, आप अब्भी आओ नहीं तो फोन तोल दूँगा.’ अब बताओ, इसमें फोन की क्या गलती? पर शीतल ऐसी नहीं है. वो मेरी जूही की कली है.

आज उसकी बड़ी याद आ रही है… सुबह उठते ही उससे बात करूँगी.

29 Responses to खुश रहने की कुछ वजहें

  1. wajiv wajah………

    apke khushi se hum bhi khus hain……….

    pranam.

  2. बड़े प्यार से लिखा है…दीदी की बेटी, बिलकुल अपनी बेटी जैसी होती है…और किशोरावस्था में ही माँ के सारे अहसास जगा देती है.

    मुझे मेरी मौसी याद आ गयी….मैं भी हर वक्त उनके साथ जाने को तैयार रहती थी….और अब तुमने तो सोचने पर मजबूर कर दिया…सच में मैं तय नहीं कर पा रही हूँ….माँ और मौसी दोनों में से किसके लिए मन में ज्यादा प्यार है.. :)

    शीतल बिटिया बड़ी प्यारी है…और शशांक तो बालों की स्पाइक्स बनाए बिलकुल अपने उम्र के अनुरूप शरारती लग रहा है. दोनों को बहुत बहुत प्यार

    • हे हे ! दी, शशांक की ये हेयर स्टाइल मैंने बनाई थी. किसी को अपने बाल छूने नहीं देता, लेकिन मैंने जब कहा कि मैं एकदम नयी स्टाइल से बाल बनाऊँगी तो तैयार हो गया. ये पिछले रक्षाबंधन की फोटो है.

  3. मैं बचपन से ही अपनी दोनों मौसी के साथ ही रहा हूँ, बहुत ही ज्यादा जुड़ा हुआ हूँ अपनी दोनों मैसी से मैं :)

  4. मासी तो होती ही माँ सी है. वाकई उससे प्यारा कोई नहीं .
    प्यारी सी प्यार भरी पोस्ट .

  5. आँसू बहाना आता नहीं. यदि आता होता तो बह निकले होते. गला रुंध सा रहा है. भाग्यवान हो जो मौसी हो तो भांजी से मिल भी पाती हो.
    भाई बहन के बच्चे बहुत ही प्यारे होते हैं और बहन के बच्चे पर तो कुछ अधिक ही अधिकार हो सकता होगा.
    शीतल को सदा मौसी का प्यार मिलता रहे.
    घुघूती बासूती

  6. हमको तो ब्लैकमेल करने वाला बेबी पसंद आया | आ जाओ नहीं तो फोन तोड़ दूंगा :)

  7. बच्चे और यादें, दोनों प्यारे हैं। ज़िन्दगी में जान डाल देने वाले।
    हमको भी मिल गयी ये वजह खुश होने के लिये, इस दुनिया में जहाँ लोगों के पास जीने के लिये भी पर्याप्त वजहें नहीं होतीं। :-)

  8. मौसी वो भी यदि वो अविवाहितहो तो समझिये भांजे भांजियो की लौटरी है आप की सारी इच्छाए पूरी होंगी बिन माँ की तरह ना नुकुर किये और उनसे जनरेशन गैप वाली बात भी नही होती और माँ की तरह बच्चे को सौ हिदायते भी नहीं देती | ९ साल पहले जब मेरा विवाह हुआ तो दोनों दीदी के बच्चे ५-६ साल के थे आज भी जब इतनी दूर से याद करती हूँ तो मुझे वो ५-६ साल की उम्र वाला चेहरा ही याद आता है | बहुत अच्छा लगा शीतल और शशांक से मिल कर |

  9. बहुत प्यारी बच्ची है…शशांक हेयर स्टाईल तो बड़ी जबरदस्त रखे हैं. :)

  10. रानी बिटिया बिल्कुल अपनी मौसी की तरह योग्य और निर्भीक निकलेगी। मेरी शुभकामनायें आप दोनों को।

  11. प्‍यारी बिटिया. देखिए शायद यह बिटिया भी http://akaltara.blogspot.com/2010/10/blog-post.html आपको अच्‍छी लगे.

  12. ‘गुड्डू, उसके चेहरे पर तुम्हारे जैसा तेज है.
    यही तो !

  13. पहलौठी बिटिया को पहलौठी मनुज का स्नेहाशीष!

  14. खुश रहने की अच्छी वजहें!

  15. शीतल के नाम की तरह शीतलता देने वाली पोस्ट…

    बिटिया वाकई कलेजे का टुकड़ा होती हैं…बिटिया का बाप होने की वजह से ये बात शिद्दत के साथ महसूस करता हूं…

    वैसे शशांक ने फोन तोला या नहीं…ये ज़रूर बताइएगा….

    जय हिंद…

  16. बहुत प्यारी पोस्ट!

    पिछले कई उजड़े-उखड़े फ़ेसबुकिया वाल संदेशों के बाद यह खुशनुमा पोस्ट देखकर मन खुश हुआ।आशा है ब्लागिंग से फ़िर लगाव होगा। :)

  17. आपके इस ब्लॉग की चर्चा आज के हिंदी अख़बार हिंदुस्तान के ब्लॉग वार्ता कालम में रवीश कुमार द्वारा की गई है |

    बधाई के साथ शुभकामनाएँ

  18. कुछ कहां ? ये तो बड़ी सॉलिड वज़ह है :)

  19. आराधना जी आप तो छा गयी, आप के लेखन पर रवीश जी की रिपोर्ट देखी, और अभी मुरई ताजपुर गांव के निवासी जो कि पोस्ट मास्टर है, और मेरे मामा जी है, उन्होंने आप के बारे में तफ़्शील से बताया…. अब मैं भी पढूगा

  20. बहुत अच्छा लगा इस प्यारी -सी गुडिया से मिलकर !

  21. …हमसे पहले की पीढ़ी जाने किस हिचक से अपने प्रेम को व्यक्त नहीं करती थी और हमारी पीढ़ी जाने किस अकड़ में इस बात को स्वीकार ही नहीं करना चाहती थी कि वो हमसे प्यार करते थे और उनके जाने के बाद अकल आती थी… तब तक देर हो चुकी होती थी.

    How true, just the other day was talking to my ma about her relationship with her mother and my relationship with her. Expression of love was certainly restrained. We are trying to correct it by saying I Love You every time we sign off.
    Oh, daughters they grow up so fast. I was telling IK I bonded with my niece even before she was born and now her brother is already 40 days old and I am yet to feel it :)
    Daughters are special being a daughter and a God parent of one I can say so.
    Sweet parenting.
    Peace,
    Desi Girl

  22. Nice Post..
    Khush rehne ki wajah talaashni band kar deni chahiye hamein. Bewajah khush rehne ke unmaad ko apnana chahiye.

  23. “हमारी पीढ़ी जाने किस अकड़ में इस बात को स्वीकार ही नहीं करना चाहती थी कि वो हमसे प्यार करते थे और उनके जाने के बाद अकल आती थी… तब तक देर हो चुकी होती थी…..”

    वाकई बहुत देर हो जाती है हमसे, ये बच्चे हज़ारों गुने अच्छे है हर किसी पर बिना शक तुरंत विश्वास करते हैं और यकीनन उन्हें बदले में कोई धोखा नहीं मिलता ! काश हम बड़े न होते …यह कोम्प्लेक्स भी ना होते …
    तुम्हारे लेख में इमानदारी और सरलता है …शायद ऐसा ही तुम्हारा स्वभाव भी होगा !
    शुभकामनायें डॉ अराधना !

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