कल एक नामचीन ब्लागर ने अपनी डायरी के कुछ अंश मुझे मेल किये। हमने उनसे पूछा कि डायरियां तो महान लोग लिखते हैं । आप डायरी क्यों लिखते हैं। उन्होंने कहा कि समय का कुछ पता नहीं कि कौन कब महान बन जाये। और जब कोई महान बन जाता है तो उसके किये-धरे से ज्यादा उसकी डायरियों के भाव होते हैं। इसलिये आदमी चाहे कुछ करे-धरे भले ही न लेकिन उसको डायरी लिखते रहना चाहिये। उन्होंने और भी तमाम बातें कहीं लेकिन वो सब हमारी व्यक्तिगत बाते हैं। फ़िलहाल तो आप उनकी डायरी के अंश देखिये:
- कई दिनों से कुछ लिखा नहीं गया है। कई आधे-अधूरे लेख लिखकर पूरे नहीं किये। हर बार अच्छा लिखने की कोशिश करने लगते हैं। बस्स यह देखते ही खुन्दक आ जाती है। ब्लागिंग और अच्छा लिखने की कोशिश में अन्ना जी और भ्रष्टाचार का आंकड़ा है। फ़िर क्या -लेख मिटा दिये गये।
- कई आइडिये दिमाग में उछल-कूद मचाये हुये हैं। हर आइडिया अपने को दूसरे से बेहतर बताता है। हर आइडिया कहता है हम पर अमल करो। उनमें आपस में धक्का-मुक्की तक भी हो जाती है अक्सर। एक आध बार तो मारपीट तक होते-होते बची। कभी-कभी लगता है कि आइडिये न हो गये तरह-तरह के लोकपाल बिल हो गये। हर एक अपने को दूसरे से बेहतर बताता रहता है।
- कल एक मित्र पूछने लगे -ब्लाग जगत इतना सूना-सूना क्यों है भाई। कहीं कोई लफ़ड़ा नहीं न कोई बवाल। ऐसे-कैसे चलेगा जी। आप ही कुछ करिये। हमने कहा कि आजकल थोड़ा व्यस्त हैं। फ़ुरसत मिलते ही कोशिश करेंगे। वे यह कहकर चले गये -अब आपसे कुछ होता नहीं, हमें ही कुछ करना पड़ेगा।
- कल तीन-चार ठो कवितायें टाइप कीं। पोस्ट करने चले तो दुबारा पढ़ने लगे। पता चला कि सबका तो कोई न कोई अर्थ निकल रहा था। फ़िर हमने उनको पोस्ट नहीं किया। मिटा दिया। दुर….. ऐसी कविता क्या लिखना जिसका कोई मतलब निकल आये। इससे अच्छा तो भाईचारा और देशभक्ति के बारे में ही कुछ लिख-लिखा दिया जाये।
- भाईसाहब बता रहे थे कि उनकी दो-तीन टिप्पणियां बंधक बना ली हैं किसी ब्लागर नें। टिप्पणियों के पास जो मोबाइल था वो स्विच आफ़ आ रहा है। वे अपनी मासूम टिप्पणियों की याद कर-करके दुखी हो रहे थे- जाने किस हाल में होंगी वे बेचारी भूखी-प्यासी- मॉडरेशन के इंतजार में हमने उनको समझाया कि भाई सुख-दुख जीवन के एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। लेकिन वे शोले वाले सिक्के का उदाहरण देकर दुखी होते रहे कि लेकिन उसमें तो एक ही पहलू था। अब उनको कौन समझाये कि सिनेमा और जिन्दगी में फ़र्क होता है।
- अनुवाद और अपनी समझ की ताकत का अन्दाजा मुझे तब हुआ जब एक बहुत बड़े विदेशी कवि की
अनुदितअनूदित (अनुवादित) रचनायें पढ़ीं। अनुवाद पढ़ने के बाद जो समझ आया उससे लगा कि इनको इत्ता बड़ा कवि काहे के लिये माना जाता है भाई! इससे अच्छा तो हमारे कई दोस्त लिख लेते हैं। उनको भी नोबेल-फ़ोबेल प्राइज नहीं तो कम से कम साहित्त-फ़ाहित्त कंपनी का इनाम इनाम-फ़िनाम मिलना चाहिये। - सुबह उठे तो देखा सूरज डबल प्रमोशन पाकर किसी मलाईदार पोस्ट के अफ़सर सा चमक रहा था। कोई बता रहा था कि रात भर मेहनत की है उसने यह पोस्ट पाने के लिये। अब लेन-देन की बात तो खुदा जाने।
- भ्रष्टाचार पर बढ़ती परेशानी को देखते हुये गुरुजी ने आज सलाह दी कि भ्रष्टाचार से मुक्ति का तात्कालिक उपाय तो आध्यात्मिक हो जाना है। खाने-पीने के बाद आध्यात्मिक चिंतन करने से भ्रष्टाचार की पीड़ा कम होगी। इस पर किसी ने पूछा- लेकिन गुरुजी वे लोग क्या करेंगे जिनको भ्रष्टाचार के चलते खाने-पीने तक के लाले पड़े हुये हैं। इस पर गुरु जी ने मुस्कराते हुये कहा कि उनका कोई अनुयायी ऐसा नहीं है जिसे खाने-पीने के लाले पड़े हैं! अंतत: इस बात पर सहमति बन ही गयी कि आध्यात्म भ्रष्टाचार से मुक्ति का तुरंता उपाय है (शर्ते लागू हैं के नियम के साथ)
- कल फ़ेसबुक पर मैंने सब्जीमंडी से दो गोभी के फ़ूल के फोटो लगाकर पूछा कि बताओ इनमें से कौन सा खरीदूं। बड़ा खराब लगा कि उस स्टेटस को लाइक बहुतों ने किया लेकिन सलाह किसी ने नहीं दी। अंत में मैंने अपने कुछ दोस्तों से फोन करके अपनी राय बताने के लिये कहा। जब मामला फ़ाइनल हुआ और मैंने उनमें से एक खरीदने के लिये सब्जी वाले से कहा तब तक पता चला कि वे दोनों बिक चुके थे।
- नयी हिंदी राजभाषा नीति का फ़ायदा यह होगा अब कोई टोंकने वाला नहीं होगा कि ये सही लिखा है वो गलत लिखा है। जिस हिंदी शब्द की वर्तनी समझ नहीं आयेगी उस ’वर्ड’ को ’देवनागरी’ में लिख के डाल देंगे। कोई कुछ कहेगा तो कह देंगे राजभाषा नीति का अनुपालन कर रहे हैं आई मीन फ़ालो कर रहे हैं।
- कल एक टिप्पणी में मैंने टिप्पणी करने के साथ स्माइली लगा दी तो ब्लागर ने फोन करके हमको हड़काया – क्या मुझे बेवकूफ़ समझ रखा कि मैं यह भी नहीं समझ पाउंगा कि यह टिप्पणी में बात मजाक में कही गयी है। खबरदार जो फ़िर कभी आगे से मेरे ब्लाग पर कमेंट करते हुये स्माइली लगाया। स्माइली वाले मजाक मुझे पसंद नहीं।
मजाक में डायरी और डायरी में मजाक। पढ़कर मजा आ गया।
आपकी टिप्पणी पढ़कर अच्छा लगा।
अर्थ वाली कविता, विदेशी कवी की कविता और गोभी माने ४, ६ और ९ सबसे मस्त
स्माइली पर हड़काया तो नहीं जाऊँगा ?
वाह! अरे स्माइली पर तो नामचीन ब्लॉगर खफ़ा होते हैं। हमें तो स्माइली अच्छी लगती है। हम लिखे भी हैं -http://hindini.com/fursatiya/archives/562
मुस्कराते हुये लोग कित्ते अच्छे लगने लगते हैं
मन की कशमकश को उजागर करती यह डायरी।
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..आनन्द मनाओ हिन्दी री
वाह! वैसे यह नामचीन लोगों की कसमकस है। अपन से इसका कोई मतलब नहीं।
भ्रष्टाचार से मुक्ति का तात्कालिक उपाय तो आध्यात्मिक हो जाना है।
ये है जी गहरी बात , मज़ा आ गया
आपको तो स्माईली वाला मजाक पसंद है ना ??
–आशीष श्रीवास्तव
तो क्या अब आध्यात्मिक होने का इरादा है?
इस्माइली से कौनौ परहेज नहीं जी! कुछ लोग तो हाहाहाहा से भी काम चलाते हैं।
वैसे मजाक इस्माइली या हाहाहाहा का मोहताज नहीं होता।
बहुत बढि़या डायरी…पढ़वाने के लिए शुक्रिया
हिन्दी कॉमेडी
भुवनेश शर्मा की हालिया प्रविष्टी..Now Tweet in Hindi
हमारी तरफ़ से पढ़ने के लिये शुक्रिया।
इ डायरी त हम नाही लिखत हूँ . बाकी त चकाचक (सौजन्य से श्री अनूप शुक्ल ) हैए है .
ashish की हालिया प्रविष्टी..ओ दशकन्धर
हां आप तो अपने लेखन के लिये कबाड़ी की डायरियों के इंतजार में रहते हैं जी।
मोजिया पोस्ट पे बमचक टिपण्णी आती रहे तो ब्लाग-स्लाग हरियाया रहता है, और ……………………पढने के बाद लिखते हैं
प्रणाम.
पढ़ लिया होगा। अब तो लिखा जाये।
वो फेसबुक-गोभी प्रकरण मजेदार है ……
अब आप सरीखे लोग वर्तनी की गलतियां करेगें तो कैसे चलेगा ?
दो गलतियां जो पहले भी आप करते रहे हैं मगर कभी टोका नहीं ,फिर फिर हुयी हैं तो अब टोक रहा हूँ !
अनुदित =अनूदित
नोबल =नोबेल
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..फूली फूली चुन लिए काल्हि हमारी बार ….एक नए सदर्भ में …!
हां जी प्रकरण मजेदार बन गया लगता है।
जहां तक वर्तनी की गलती की बात है तो भाई आप बताइये कि राजभाषा या संविधान के किस अनुच्छेद की कौन सी धारा की आड़ में हमें वर्तनी की गलतियां करने के सहज मौलिक च मानवीय अधिकार से वंचित किया गया है? बताइये हम ठोंक देंगे मुकदमा भले ही इसके लिये हमें ब्लागजगत से ही चंदा क्यों न लेना पड़े।
बाकी अनुदित और नोबेल हम सही कर ले रहे हैं आप कहते हैं तो। अनुदित तो खैर हमें पता नहीं था। अभी जांचा तो पता चला कि वाकई ये गलती है। इसके लिये हम आपको धन्यवाद भी दे रहे हैं सो ग्रहण करिये। नोबेल और नोबल वाली बात पर बहस करते हुये यथास्थिति बना के रखी जा सकती थी कि भाई हम तो ऐसे ही उच्चारण करते हैं लेकिन हम आपके जैसे अड़ियल नहीं है न जी कि फ़ूले-फ़ूले सही होते हुये भी फ़ूली-फ़ूली पर ही अड़े रहें ।
…अभी-अभी खबर आई है कि कट्टा कानपुरी अपनी भूली डायरी क्रोध में ढूंढ रहा है…भलाई चाहते हैं लौटा दें।
..इस्माइल लगाने नहीं आता लगा हुआ मानिए।
…मस्त करती पोस्ट है। आनंद ही आनंद।
पाण्डेयजी,
कट्टा कानपुरी किसी डायरी के मोहताज नहीं हैं! और वे गुस्साते भी नहीं।
इस्माइली लगाने के लिये इसको कापी-पेस्ट कर लीजियेगा।
आनन्द से ही रहना आनन्ददायक होता है।
हाँ तो सुनिए कि क्या कहने वाले थे…चलिए सच बोल देता हूँ (इसका मतलब ये न निकाला जाय कि हमेशा झूठ बोलता हूँ)…यह लेख पढ़ना शुरू किया तब खयाल आया…थोड़ा बुरा शब्द, नहीं नहीं अर्थ, हो सकता है…आप एक बहुत दुष्ट ब्लागर हैं…क्योंकि एक लेख में लाकर पाँच-दस लेख पढ़वा देते हैं……और हाँ, ब्लाग जगत शान्त कैसे हो सकता है…http://hindibharat.blogspot.com/2011/10/blog-post_3725.html और इसके पहले वाले लेख पर जाइए, सन्नाटा नहीं है भाई, झन्नाटा है…
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..इधर से गुजरा था सोचा सलाम करता चलूँ…
हां हम बहुत दुष्ट ब्लॉगर हैं जी। यह भी एक तरीका है अपने पुराने लेख पढ़वाने का। वैसे तो कोई झांकता नहीं कबाड़खाने में न! और फ़िर रविरतलामी ने मना भी किया है कि खबरदार जो पुरानी पोस्टें लगाईं अब अपने ब्लाग पर
हिन्दी भारत की यह पोस्ट अच्छी है। इसका भी लिंक लगा देते हैं यथास्थान। वैसे आपको बतायें कि यहां जो वार्ता और बहस हो रही है वह स्वस्थ बहस के दायरे में आती है ब्लाग जगत के लिहाज से। बवालिया पोस्ट नहीं है ये। जरूरी पोस्ट है।
भरसक आपको खोज रहा था वो और आप लुकायेल चल रहे थे कि पकड़ कर कहीं ईनाम-वीनाम न दे दे!! अब ऐसे डायरियों के पन्ने आप छापेंगे और कहेंगे कि दूसरे के हैं तो लोग आपको ढूँढते ही फिरेंगे!! बस इतना ख्याल रहे कि कहीं लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड (राजभाषा नियम/अधिनियम का अनुपालन करते हुए) न दे दें!!!
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..बाद मरने के मेरे
सलिलजी,
ऐसे आपके रहते किसकी हिम्मत है जो मुझे कोई इनाम-विनाम देने की हिम्मत करे।
“कल फ़ेसबुक पर मैंने सब्जीमंडी से दो गोभी के फ़ूल के फोटो लगाकर पूछा कि बताओ इनमें से कौन सा खरीदूं। बड़ा खराब लगा कि उस स्टेटस को लाइक बहुतों ने किया लेकिन सलाह किसी ने नहीं दी। अंत में मैंने अपने कुछ दोस्तों से फोन करके अपनी राय बताने के लिये कहा। जब मामला फ़ाइनल हुआ और मैंने उनमें से एक खरीदने के लिये सब्जी वाले से कहा तब तक पता चला कि वे दोनों बिक चुके थे!”
क्या कहने !
आशीष ‘झालिया नरेश’ विज्ञान विश्व वाले की हालिया प्रविष्टी..समय के बारे मे जानने योग्य कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
क्या जरूरत कुछ कहने की।मुस्करा दिया जाये बस्स।
फ़ुरसतिया जी अड़े हम इसलिए रहे कि हमारे पास अड़े रहने का पर्याप्त दानापानी और मसाला था ..बहरहाल आपकी यह पोस्ट क्वचिद पर लिंकित भई है पधारें !
आपने भौतिक विज्ञानं के मूलभूत सिधान्तो का प्रयोग जिस तरह स्थिती
के अवलोकन में किया है वह आपकी रचना को निखारता है और गतिमान बनाता है
आपकी इस लेखनी का आनद वो लोग एक ऊँचे धरातल पर और विस्तृत दृष्टि से ले सकते हैं जिन्होंने
गोपाल talkies मैं ईमानदारी और साहस से आभासी लाइन में लगकर हिट फिल्मो के ticket आज से तक़रीबन ३५ साल पहले ख़रीदे हों.
वहां मांग तो ऊँची थी और आपूर्ति का दोहन उसे और ऊँचा कर देता था. लिहाज़ा अनुभव आपकी रचना में दी गयी भीड़ की मानसिकता से बहुआयामी था.
बहुत दिनों के बाद इधर आया हूँ। अच्छा लगा पढ़कर। आपकी पिछली डायरियाँ भी पढ़ीँ हैं। गो इस बार व्यंग्य का तेवर कुछ कम है पर कुछ मौलिक विचार भी पढ़ने को मिले।
साधुवाद…!
डायरी अपनी मानने मा कउनो मनाही रही का ? बहनजी के खिलाफ़ भी कुछ नहीं था, जिससे परेशानी होती.
बैटन-बैटन में आपने फेसबुक पर तीखा हमला किया है पर ख़ुद उसमें चालू शेर ठेलते रहते हैं.अब उनको भी लाइक न करें तो भी मुसीबत ! वैसे गोभी-प्रसंग बहुतै मौलिक और धाँसू रहा !
डायरियाँ हम भी कभी लिखते थे ,पर मेरी तरह गुमनाम हो जाने की आशंका से उनको आराम दे दिया है !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..अच्छा लगता था !
*बैटन- बैटन को “बातों-बातों” समझा और पढ़ा जाये !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..अच्छा लगता था !
अब हमहूं लिखने लगे हैं डायरी, आजे से। कहीं महान बन गये त डायरी के न होने का मलाल न रहे। सबसे पहले लिखे कि आज फ़ुरसतिया पर पोस्ट पढ़ के एक ठो टिप्पणी लिखे। वह यह था “……”
फिर लिखा हुआ को मिटा दिए। बड़ा आसानी सबको समझ में आ जाता ऊ टिप्पणी । वह टिप्पणी भी क्या टिप्पणी जो सबको बुझाइए गया।
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..आभार आपका !
क्या बात है ,क्या बात है ,क्या बात है…लो जी स्मायाली बचा लिए हम.
Shikha Varshney की हालिया प्रविष्टी..गट्ठे भावनाओं के
लगभग सारे लिंक पर दुबारा गया……….पूरा पढने से पहले ही मन प्रतिक्रिया के लिए हुरकने लगा…….हमने, मन को घुरका ………. कहा इत्ता न फरको………..महान बनने के जित्ते गुण अपने गिनाये……….बारह आने तो मिलता ही है ………….वक़्त है सब्र करने का सारी प्रतिक्रिया अगली पीढ़ी के लिए छोरो………….और महान बन लो……
प्रणाम.
जेब मैं पईसा हो तो दोनो ही फूल खरीद लेना चाहिये – गोभी का।
एक भक्षणार्थ और दूसरा पोस्ट लिखनार्थ!
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बकिया मिसिर जी का हिन्दी सेवा अभियान देख कर मन भर आया है। बड़े ब्लॉगर को हिज्जे की गलती करनी नहीं चाहिये। कहीं की हो तो तो बताना जरूर चाहिये।
किसी बड़े ब्लॉगर को वर्तनी की गलती करने का अधिकार नहीं है। वह मात्र हमारे जैसे कैजुअल्स का अधिकार है।
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..हाथों से मछली बीनते बच्चे
वह डायरी लेखक ब्लॉगर आप ही तो नहीं ?
कविता वाचक्नवी की हालिया प्रविष्टी..सरोज-स्मृति
बवाल तो शुरू करने वाले के हाथ में हैं…अब देखिए कोलम्बसवे को…खोजा कुछ…मिला कुछ…जरूरी दोनों था…और वैसे भी बवाली तो एक वाक्य से पूरे ब्लाग जगत को हिला के डुला के, गिरा के रख सकता है…नमूना आप खुद देख सकते हैं…हो भी सकते हैं…इस डायरी के अनुसार…
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..इधर से गुजरा था सोचा सलाम करता चलूँ…
राजेन्द्र स्वर्णकार : rajendraswarnkar की हालिया प्रविष्टी..वहां अश्आर मैं बेशक़ बहुत तल्ख़ी में कहता हूं
कल तीन-चार ठो कवितायें टाइप कीं। पोस्ट करने चले तो दुबारा पढ़ने लगे। पता चला कि सबका तो कोई न कोई अर्थ निकल रहा था। फ़िर हमने उनको पोस्ट नहीं किया। मिटा दिया। दुर….. ऐसी कविता क्या लिखना जिसका कोई मतलब निकल आये। इससे अच्छा तो भाईचारा और देशभक्ति के बारे में ही कुछ लिख-लिखा दिया जाये।
सही है जिस कविता का अर्थ न समझ आए वो ही असल में कविता होती है … अब स्माइली लगाएं या न लगाएं यह सोच रहे हैं ..
sangeeta swarup की हालिया प्रविष्टी..किसे अर्पण करूँ ?
और जब कोई महान बन जाता है तो उसके किये-धरे से ज्यादा उसकी डायरियों के भाव होते हैं। इसलिये आदमी चाहे कुछ करे-धरे भले ही न लेकिन उसको डायरी लिखते रहना चाहिये।
शुरू कर रही हूं डायरी लिखना .. इंटरनेट की दुनिया सचमुच निराली ही है !!
सोच रहे हैं कि हम भी डायरी लिखने लग जाएँ
स्माइली देखकर ये अंदाजा ना लगा लीजियेगा कि टिप्पणी मजाक में की गयी है.
aradhana की हालिया प्रविष्टी..दिल्ली पुस्तक मेले से लौटकर
मस्त.
ब्लॉगर की डायरी ही बच जायेगी. बाकी डायरियां कहीं दिखाई नहीं देंगी.
बर्तन की गलती पर कुछ नहीं कहूँगा:-)
रोचक है आपको बहुत दिन बाद dhund पाया हु
इन. रोचक लेखों ke liye बार बार लौटूंगा.
लेख पढ़ चुके ..
एक साथ कई मुद्दे उठाये गए हैं लेकिन किस -किस पर लिखें टिप्पणी में …समझ नहीं आया..
…
आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
[...] …एक ब्लागर की डायरी [...]