Saturday, May 31, 2014

रखा तो होगा, तुमने कुछ वरदानों को -सतीश सक्सेना

मूरख जनता चुन लेती धनवानों को !
बाद में रोती, रोटी और मकानों को !

रामलीला मैदान में,भारी भीड़ जुटी,
आस लगाए सुनती, महिमावानों को !

काली दाढ़ी , आँख दबाये , मुस्कायें ,
अब तो जल्दी पंख लगें,अरमानों को !

रक्तबीज  शुक्राचार्यों  के , पनप रहे 
निंदा, नहीं सुनायी देती , कानों को !

दद्दा , ताऊ  कितने, गुमसुम रहते हैं !
जाने कैसी नज़र लगी,खलिहानों को !

अंतिम क्षण हम भी आ पंहुचे द्वारे पर ! 
रखा तो होगा,तुमने कुछ वरदानों को !

Tuesday, May 27, 2014

अहंकार,अभिमान,को अपना स्वाभिमान बतलाये रखना - सतीश सक्सेना

श्रद्धा, निष्ठा, सत्य, प्रतिष्ठा,का  सम्मान बचाये रखना !
तुम पर गीत लिखे हैं मैंने, इनकी लाज बचाये रहना !

चंचल मन  काबू कर पाना,भी आसान नहीं है,लेकिन !   
अपनी गरिमा औ विश्वासों का सम्मान बचाये रखना !

वेद ऋचाएं सुनते सुनते, बे मतलब की बहस न करना !   
आशय भले समझ न पाओ,तो भी वहम बनाये रखना !

जैसी भी किस्मत लाये थे , सब जीवन बेकार गया पर !
पति पत्नी की जोड़ी सुन्दर, ये आभास दिलाये रखना !

थके हुए नाविक की जैसे,नींद से बोझल होती पलकें ! 
नज़र, दूर से ही आ जाओ, इतने  दीप जलाये रखना !





Monday, May 26, 2014

हमको अपने ताल,समंदर लगतें हैँ -सतीश सक्सेना

हार पहन ये मस्त सिकंदर लगते हैं !
भोले वोटर,सचमुच बन्दर लगते हैं !


और किसी के,रंग रूप से क्या लेना
हमको इनके गाल, चुकंदर लगतें हैं !

कंगूरों को,सर न झुकाया जीवन में !
चंदा , सूरज , घर के अंदर लगते हैं !

भीड़तंत्र का किला,मीडिया ने जीता !
नेताजी अब और , मुछन्दर लगते हैं !

हमें तुम्हारी धन दौलत से क्या लेना, 
हमको अपने ताल, समंदर लगतें हैँ !

Sunday, May 25, 2014

दुनियां वाले कैसे समझें , अग्निशिखा सम्मोहन गीत -सतीश सक्सेना

कलियों ने अक्सर बेचारे
भौंरे  को बदनाम किया !
खूब खेल खेले थे फिर भी  
मौका पा अपमान किया !
किसने शोषण किया अकेले, किसने फुसलाये थे गीत !
किसको बोलें,कौन सुनेगा,कहाँ से हिम्मत लाएं गीत !

अक्सर भोली ही कहलाये
ये सजधज कर रहने वाली !
मगर मनोहर सुंदरता में 
कमजोरी , रहती हैं सारी !
केवल भंवरा ही सुन पाये, वे  धीमे आवाहन  गीत !
दुनियां वाले कैसे समझें, कलियों के सम्मोहन गीत !

स्त्रियश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्यम
देवो न जानाति कुतो मनुष्यः
शक्तिः एवं सामर्थ्य-निहितः 
व्यग्रस्वभावः , सदा मनुष्यः !
इसी शक्ति की कर्कशता में, पदच्युत रहते पौरुष गीत !
रक्षण पोषण करते फिर भी, निन्दित होते मानव गीत !

नारी से आकर्षित  होकर
पुरुषों ने जीवन पाया है !
कंगन चूड़ी को पहनाकर
मानव ने मधुबन पाया है !
मगर मानवी समझ न पायी, मंजुल मधुर समर्पण गीत !
अधिपति दीवारों का बनके , जीत के हारे पौरुष गीत !

निर्बल होने के कारण ही 
हीन भावना मन में आयी 
सुंदरता  आकर्षक  होकर  
ममता भूल, द्वेष ले आयी 
कड़वी भाषा औ गुस्से का गलत आकलन करते गीत ! 
धोखा खायें सबसे ज्यादा,  अपनी  जान गवाएं गीत !

दीपशिखा में चमक मनोहर
आवाहन  कर, पास बुलाये !
भूखा प्यासा , मूर्ख  पतंगा , 
कहाँ पे आके, प्यास  बुझाये  ! 
शीतल छाया भूले घर की,कहाँ सुनाये जाकर गीत !  
जीवन कैसे आहुति देते , कैसे जलते  परिणय गीत !

 (स्वप्न गीत के लिए )

Thursday, May 22, 2014

अब दुमदार,दलाल मीडिया - सतीश सक्सेना

पहले था , दिग्पाल मीडिया !
अब दुमदार,दलाल मीडिया !

जबसे मुंह में , खून लगा है !
तब से  है,कव्वाल मीडिया !

राजनीति  से,  बकरे  आये  ! 
करता खूब हलाल मीडिया !

एक इलेक्शन, के आने पर ! 
जम के मालामाल मीडिया !

मूरख जनता  को , भरमाये !
रोज बजाये  गाल  मीडिया !

Monday, May 19, 2014

खो रहे विश्वास को,बापस बुलाना चाहता हूँ -सतीश सक्सेना

सुलगते घर में,मधुर धारा बहाना चाहता हूँ !
हो रहे बरसों से ये, झगडे मिटाना चाहता हूँ !

मानवों को ज्ञान नफरत का पढ़ाया है बहुत    
पंडितों  से दूर,इक बस्ती, बसाना चाहता हूँ !

हर कदम में फायदा, दरकार रहता है इन्हें !

मैं बुढ़ापे में इन्हें, शीशा दिखाना चाहता हूँ !

चप्पलों जूतों से कहिये,वे भी अब तैयार हों ! 
मैं स्वयंभू, महात्माओं को,डराना चाहता हूँ !

साधुओं के रूप  में, शैतान सम्मानित न हो !
आस्था मासूम की,केवल बचाना चाहता हूँ !

जो भी जन्में साथ हैं उनका भी हक़ पूरा रहे !
खो रहे विश्वास को,बापस बुलाना चाहता हूँ !

ढोंगियों ने देश को, बरबाद करके रख दिया !
इनको जीभर पीट लेने का बहाना चाहता हूँ !

Tuesday, May 6, 2014

दुम को हिलाते रहिये -सतीश सक्सेना

उजड़े अरमानों के, ये दीप जलाते रहिये !
हर सड़े फूल को, फ़िरदौस बताते रहिये !


क्या पता बॉस,कॉरिडोर में ही मिल जाए !
आँख नीची रखे,औ दुम को हिलाते रहिये !

कौन जाने वे कहीं,घर से लड़ के आये हों !
खुद को,हर कष्ट में,हमदर्द दिखाते रहिये !

जलने वाले भी तो, शैतान नज़र रखते हैं !
तीखी नज़रों से ये मुस्कान बचाते रहिये !

खांसने और खखारने पे,ध्यान क्यों देते !
आप काली को ,गुलाबी ही बताते रहिये !

Saturday, May 3, 2014

आदत बदलो यार, नहीं तो जल्दी जाओगे -सतीश सक्सेना

                           डायबिटीज़, ब्लडप्रेशर, मोटापा, एसिडिटी एवं गैस यह सामान्यतः हर घर में मौजूद हैं , कारणों को जानने का न समय है और न रूचि , बस ड़ाक्टर ने, कुछ दवाएं खाने मे और बढ़ा दी हैँ !
हज़ारो वर्ष से मानव जमीन पर रह रहा है , प्रकृति के विपरीत, मानव जनित भोज्य सामग्री से, सबसे अधिक हानि मानव ने ही उठायी  है ! 
प्रकृति ने जीवात्माओं को जन्म के साथ ही,उसमें प्राकृतिक तौर पर, समझ विकसित कर दी थी !
  • हमें उसने लगातार,सांस लेने की  मशीनरी दी जिससे रक्त स्वच्छ रहे !प्राणस्वरूप हवा,जीने का आधार थी ! जिसकी आज हम कद्र नहीं करते हैं ! गहरी सांस लेने के भी फायदे हम भूल गये 
  • उसने बचपन मे, हमें माँ का दूध दिया , और कुछ समय बाद दूध सुखा कर हमारे दांत निकाले , जिससे अब हम ढूध छोंड़कर , हम अन्न , फल और पत्ते खा सकें ! प्रकृति द्वारा, माँ का दूध सुखाने का अर्थ, बड़े होते मानव  का अनावश्यक तेलीय दूध बन्द कर, अन्न फल सब्जियों पर आश्रित करना था !
  • प्राकृतिक भोजन में , तेल और और फ़ैट बेहद कम मात्रा में उपलब्ध थे , मगर इन्सान ने उसका  अधिक मात्रा में निकाल कर परांठे,समोसा,पूरी,लड्डू, एवम चीनी जैसे केमिकल आदि बनाकर खाने शुरु कर दिये जो निर्धारित और प्रकृतिक मात्रा से, बेहद अधिक खतरनाक थे !
  • प्रकृति ने मानव शरीर में , अपने आपको स्वस्थ करने के लिये सेल्फ हीलिंग सिस्टम दिया था , मगर इन्सान ने अपनी बुद्धि चलाते हुए, उसमें व्यवधान उत्पन्न करना शुरू कर दिया ! बुखार द्वारा शरीर अपने आपको ठीक करने का प्रयत्न करता है तब इन्सान की कोशिश बढे हुए टेंप्रेचर को कम करने की रहती है ! फोड़े द्वारा प्रकृति, शरीर के बढे हुए इन्फेक्शन को एक जगह केन्द्रित कर, उसे पस स्वरूप में बाहर निकालना चाहता है तब हमलोग उस फोड़ें से निज़ात पाने के लिये , उसे सुखाने का प्रयत्न करते हुए, शरीर मे बेहद खतरनाक एंटी बायोटिक्स एवम जान लेवा स्टीरॉइड , प्रवेश करा रहे होते हैं !हमने मानव शरीर के प्रतिरक्षा सिस्टम को केमिकल दवाओं द्वारा बरवाद  करने की कसम खा रखी है !
  •  पहले इन्सान को जीवन यापन के लिये रोज लगभग १० किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था और अब इन्सान सब्जी लेने भी, कार से जाना चाहता है और पचास वर्ष पूरे करते करते,घुटनों का आपरेशन करा चुका होता है !
                             सो बुद्धिमान मित्रों,  मैने पिछले ६ माह से अपनी साइंटिफिक बुद्धि का कम प्रयोग करते हुए , प्राकृतिक वस्तुओँ पर निर्भरता बढ़ायी है एवम सुबह ४५ मिनट टहलने के अतिरिक्त , ४५ मिनट शुद्ध वायु को फेफड़ों में भरते और निकालते हुए , बन्द पड़े, जंग लगे फेफड़े खोलना शुरु किया है , इससे रक्त आश्चर्यजनक रूप से साफ़ हुआ है और ४ मंजिल  सीढियाँ चढ़ने में,  हांफना बन्द हो गया , क्या कहते हैं टचवुड  !! 
                             सबसे खतरनाक केमिकल चीनी चाहे वह किसी भी रूप मे हो , का त्याग हमेशा के लिये करके अपने  स्वास्थ्य  को, ३५ वर्षीय बनाये रखने में कामयाबी हासिल की है ! परांठे, समोसे , जलेबी और बेहद गंदे तरीके से बनायी मिठाइयां बंद कर मित्रों के साथ खूब हँसता हूँ व हंसाता हूँ !
इस वक्त ६० वर्ष की जवानी में,  डायबिटीज़ , गैस , एसिडिटी , बीपी , जॉइंटपेन , सरदर्द , तनाव, दांत और बालों  समस्याओं से मुक्त हूँ !  एलोपैथिक दवा व उपायों से हमेशा दूर रहता हूँ , यहां तक कि साबुन और टूथ पेस्ट  का उपयोग नहीं करता क्योंकि जब शेर अपने सबसे आवश्यक मज़बूत दांत कभी नहीं माँजते  तो मैं केवल इसलिए मांजू कि सब लोग क्या कहेंगे  ??
माय फुट !!

Monday, April 28, 2014

जाते जाते रुला गया है कोई - सतीश सक्सेना

our dear Goofy (31 Dec 2006 -27april 2014)
अपना घर त्याग,वो गया है कहीं ! 
थक के लगता है सो गया है कहीं !

बड़ी हिम्मत से , लड़ रहा था वह !
अपनी चौखट से,खो गया है कहीँ ! 

बड़े मज़बूत दिल का,  बच्चा था !
लड़ते लड़ते ही , तो गया है कहीं !

दुष्ट आत्माओं से , भिडा इकला !
मर के भी  प्यार,बो गया है कहीँ !

किसने छीना है,उसका घर यारोँ 
आज विश्वास  , रो गया है  कहीं ! 

Sunday, April 20, 2014

इक असंभव गीत, गाना चाहता हूँ -सतीश सक्सेना

              अपने बचपन के उन सबसे बुरे दिनों में,जब माँ की मृत्यु हुई , मैं इतना छोटा था कि अपनी माँ का चेहरा भी याद नहीं ……
               काश एक बार वे सपने में ही दिख जाएँ ! ऐसी कौन सी भूल हुई मुझ बच्चे से, जो वे छोड़ कर हमेशा को, वहां चली गयीं जहाँ से कोई कभी बापस नहीं लौटा !! 

             यह मात्र एक रचना न होकर माँ को लिखा एक एक पत्र है,मेरा अपना ! एक शब्द चित्र माँ के लिए …… 

माँ ,तुझे बापस , बुलाना चाहता हूँ !
इक असंभव गीत , गाना चाहता हूँ !

इक झलक तेरी, मुझे मिल जाये तो,
एक कौरा ही, खिलाना चाहता हूँ !

मुझसे हो नाराज, मत मिलना मुझे,
अपने बच्चों से, मिलाना चाहता हूँ !

जानता हो अब न तुम आ पाओगी
सिर्फ सपने में , बुलाना चाहता हूँ !

जाने कितनी बार ये, रुक -रुक बहे !
माँ, मैं आंसू को,जिताना चाहता हूँ !

देख तो लो माँ , कि बेटा है कहाँ ?
तेरा घर तुझको दिखाना चाहता हूँ !

बहुत दिन से चल रहे हैं , बिन रुके !
आज दिनकर को बिठाना चाहता हूँ !

Saturday, April 19, 2014

मुझको इस देश के आँगन में दिखता है चन्दा कोई नहीं -सतीश सक्सेना

इन बुरी अँधेरी रातों में, आकाश में चन्दा कोई नहीं !
सारे दलाल हैं राष्ट्रभक्त , ईमान का बन्दा कोई नहीं !

धन अर्जित करना लक्ष्य बना, बाबा,सन्यासी आये हैं !     
धन लालच करने जीवों में,इंसान से गन्दा कोई नहीं !

वृद्धों को अपनों ने लूटा, बिन ममता मोह शातिरों ने !  
मरने के लिए ही छोड़ा है,पर घर में फन्दा कोई नहीं !

उस रात अँधेरे घर आकर, इक बूढ़ा द्वार सुधार गया !  
दिखने में बढई लगता था,पर हाथ में रन्दा कोई नहीं !

लाखों कतार में राष्ट्रभक्त , बैठे हैं, नोट कमाने को !
इन दिनों राज नेताओं के ,  धंधे में मन्दा कोई नहीं !

Thursday, April 17, 2014

कुछ तो बातें, ख़ास रही हैं चेले में - सतीश सक्सेना

 भारतीय  राजनीति में, अपने राजा की, उनके ही शिष्यों द्वारा , इतनी दुर्दशा कभी नहीं देखी गयी , सत्ता की भूख का ऐसा अवसान और उदाहरण न पहले कभी देखा गया और न देखने की उम्मीद है ! अपने ही घर के मुखिया और शिखर पुरुषों के साथ , यह सलूक भारतीय संस्कार पढ़ाने वालों  के नाम पर, एक कलंक का धब्बा रहेगा  ! 
श्रद्धांजलि इन महान नेताओं को, जिन्होंने ऐसे सपूत जन्में.......

कैसे यह  सरदार गिर गया खेले में,
कुछ तो गहरी बात,  रही है चेले में !

नैतिकता की बातें , करने वालों ने ,
मार दिया सरदार , घेर के, मेले में ! 

रोज राम की कसमें,खाने वालों ने 
रुला दिए खुद राम, अयोध्या मेले में !

कैसे बादल फटे,अभी तो फेंका था   
इतनी ताकत कहाँ लगी थी, ढेले में !

दूध पिला के,कई सपोले पाले थे !   
सबने मिलकर काटा , उन्हें अकेले में !

जो रथवान रहे थे इनके जीवन में 
रथ के पीछे , बाँध  घसीटा  मेले में !

ऐसे ही शुभ लाभ चाहने वालों ने !
लाला जी को , बेंच दिया है धेले में !

ये पहले युग पुरुष कहाये जाते थे, 
अबतो कड़वा स्वाद है,सड़े करेले में !

लगता है ये चाय,जहर बन जायेगी !
परजा तड़पे खूब , पिए  जब  रेले में !

Wednesday, April 16, 2014

जलतरंग सी मीठी ध्वनि को, चूड़ी कंगन लाने होंगे -सतीश सक्सेना

जो कुछ हमने लिख छोड़े हैं,गीत तुम्हें ही गाने होंगे ,
बेटा यहाँ संभल के चलना,कितने राह अजाने होंगे !

सांस नहीं ले सके सुबह से,हँसते रोते शाम हो गयी,
वारिश के आने से पहले , अपने  छप्पर छाने होंगे !

अंतिम क्षण तक टूट न पाएं , ऐसे हों ये रिश्ते नाते ,
आधी जान हमारी उस घर , वे कैसे अनजाने होंगे !

अर्थ, समीक्षाकार लिखेंगे , कैसे उनकी बात बताऊँ ,
गीतकार की हर कविता के,जाने कितने माने होंगे !

लोकतंत्र के जलप्रवाह में बसी गन्दगी सड़ती जाती,
इन परनालों के जमुना में,कहीं न कहीं मुहाने होंगे !

ब्रेकफास्ट कडवे शब्दों का,हमें चाय के साथ खिलाते,
जलतरंग सी मीठी ध्वनि को, चूड़ी कंगन लाने होंगे !

गिनती के दिन चुकने आये,अपने सारे काम करा लें !
कौन जानता कल सतीश के जाने कहाँ ठिकाने होंगे !

Sunday, April 13, 2014

अबतो मंदिर के इश्तिहार छपाया करिये -सतीश सक्सेना

धर्म का डर दिखा इंसान, रुलाया करिये !
और इस डर को सरे आम,भुनाया करिये !

अब तो बस्ती में, दरिंदे भी तो पाये जाते
कभी तो मौलवी बस्ती में,घुमाया करिये !

अपने लोगों से तो हर वक्त, घिरे रहते हो 
कभी गैरों को भी,दावत में बुलाया करिये !

आज कल आप की हैवानियत , के चर्चे हैं  
रातभर जागरण से भी तो छुपाया करिये !

ये तो अक्सर ही गरीबों की बात करते हैं 
इन्हे कभी तो खुले आम, सुलाया करिये !




Friday, April 11, 2014

नेतृत्व विहीन समाज और ताकतवर मीडिया -सतीश सक्सेना

           बरसों हो गए, भारतीय मीडिया में, देश की किसी उपलब्धि की चर्चा नहीं सुनायी पड़ी , इस बीच देश ब्रिक देशों में आकर अग्रणीय चार देशों में शामिल हुआ , देश में फोरेक्स रिज़र्व , अमेरिका से भी अधिक हुआ , एटोमिक वारहेड से लेकर, 5000 km से अधिक दूरी पर मार करने वाली अग्नि -५ का प्रक्षेपण, एटॉमिक पॉवर संचालित पनडुब्बी एवं ४०००० टन से अधिक वजन वाला विशाल एयरक्राफ्ट कैरियर या क्रायोजेनिक इंजिन का स्वदेश में विकास हो , हमारी मीडिया ने, इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी इनकी जगह टी वी पर छाये रहे,नेताओं के चारित्रिक पतन और भ्रष्टाचार के किस्से, और न्यूज़ चैनल इन सच्चे झूठे, करप्शन केस दिखा दिखा कर, मालदार बनते रहे !

           साफ़ लग रहा था कि कैसे देश की जनता में यह भर दिया जाए कि देश नेतृत्व विहीन है और अगर बैसाखियों के सहारे चलते, सत्ता पक्ष को तुरंत नहीं हटाया गया तो देश रसातल में चला जाएगा ! टमाटर,प्याज ,पेट्रोल,डीज़ल की कीमतों में वृद्धि से लेकर खा गए ,खा गए का शोर शराबा इतना था कि हमारे दुश्मन देशों द्वारा हमें बदनाम करने के प्रयास, मीलों पीछे रह गए ! सारे विश्व को यह महसूस हो गया कि हम एक महाभ्रष्ट देश के,दयनीय निवासी हैं !

          इस शोर शराबे में तालियां पीटते, विकल्प में जो लोग खुद को सत्ता का अधिकारी बता रहे थे वे वही सफ़ेद कपडे, सफ़ेद जूते और मोटी तोंद वाले लोग थे, जैसे सत्ता में बैठे हुए थे जिन्हें जनता नेता जी के रूप में खूब पहचानती थी, फर्क बस इतना था कि चुनाव चिन्ह अलग अलग थे !

           लगातार चोर चोर सुनती अनपढ़ जनता को, आखिरकार सत्ता धारी, चोर दिखायी देने लगे और विपक्ष में कई बरसों से बैठी भूखी प्यासी, दूसरी पार्टी के लिए, तथाकथित संत जैसे लगते नेताओं को प्रोजेक्ट करने का यह सबसे बड़ा मौका लगा ! टीवी चैनलों की पौ बारह हो गयी,अपने अपने काम कराने वाले धनपतियों के पास, पैसे की कोई कमी नहीं थी !

           अनपढ़ भीड़ को सबसे अधिक प्रभावित, धन के लिए हाथ पैर मारते टेलीविजन मीडिया ने ही किया है और इन्होने वह सब जनता को परोसा जो सत्ताधारियों  से गहरी वितृष्णा और नफरत पैदा करे और सहजता से वह कामयाब भी रही !

            कमजोर राजनैतिक आधार, असहाय सा खड़ा रहा सब देखता रहा , मीडिया को काबू करने का न साहस था और न भीड़ जैसी देसी मानसिकता वाले, जन सैलाब का साथ ! अगर किसी ने बढ़िया से बढ़िया काम को मिटटी में मिलाने का उदाहरण देखना हो तो इस देश में आकर देख सकता है सिर्फ तालिया बजाना शुरू करिये और ५ साल तक बजाते रहिये , चोर चोर कहते रहिये और जनता अगली बार आपको ही चुनेगी !

            पक्ष और विपक्ष द्वारा एक दुसरे पर भ्र्ष्टाचार के आरोपों  और मीडिया द्वारा चटपटा बना कर विश्व जनमत में परोसने की बदौलत, देश का स्वाभिमान एवं आत्मविश्वास लगभग ख़त्म कर दिया गया है और अब उसे पुराना सम्मान विश्व की नज़रों में दिलाने में बरसों लगेंगे, चाहे सत्ता  किसी भी पार्टी की आये !

( आज बी एस पाबला जी ने मेल द्वारा इस पोस्ट के रायपुर में छापने की सूचना दी , आभार उनका )

Thursday, April 10, 2014

ये ग़ज़ल के कद्रदां भी क्या करें ? -सतीश सक्सेना

इस जमीं के बागवाँ भी, क्या करें ?
smoking is injurious to health
बिन बुलाये खामखां भी,क्या करें ?

अब ये जूता और थप्पड़ ही सही !
इस वतन के नौजवां भी,क्या करें ?


भौंकने पर इस कदर नाराज हो
ये बेचारे, बेजुबां भी , क्या करें  ?

हाले धरती,देख कर ही रो पड़े,
दूर से ये आस्मां भी , क्या करें ?


लगता इस घर में कोई बूढा नहीं 
अब हमारे मेजबाँ भी, क्या करें ?

झाँकने ही झांकने , में फट गए ,
ये हमारे गिरेबां भी , क्या करें ?


तालियां, वे  मांग कर बजवा रहे
ये गज़ल के कद्रदां भी, क्या करें ?

Monday, April 7, 2014

मूर्खों को हर बार,चेताना पड़ता है ! -सतीश सक्सेना

जीवन भर कैसे, पछताना पड़ता है !
कैसे बेमन समय, बिताना पड़ता है !

राजनीति में, धन का धंधा होता है,
ऐसे क्यों हर बार ,बताना पड़ता है !

नाग  देख के , कौवे  शोर मचाते हैं !
मूर्खों को हर बार,चिताना पड़ता है ! 

हम पर हमले से, पहले तो सोचोगे !
बीच में पहले,राजपुताना पड़ता है !

रोटी,पानी,कपडे, दवा और दारु को  
उनको कितनी बार,सताना पड़ता है !

Thursday, April 3, 2014

लालची राजनैतिक झंडेबरदार -सतीश सक्सेना

आज कल राजनीतिक नेताओं के झंडेबरदार ,बहुत अधिक क्रियाशील हैं , देश में ४-५ प्रमुख पार्टियों के प्रचार के लिए,नेताओं के इन एजेंटों को, आप फेसबुक पर, मुंह से झाग निकालते हुए, विपक्षी नेता को गालियाँ देते देख सकते हैं ! जबतक किसी विशेष पार्टी की आप बुराई न कर रहे हों तब तक ठीक हैं अगर आपने कोई खामी बता दी तो ये तुरंत आपको विपक्षी पार्टी का आदमी बताकर, गाली गलौज पर उतर आयेंगे ! 

बदचलन, असंस्कारी एवं भ्रष्ट राजनीतिज्ञों की सम्मान रक्षा के लिए, यह झंडाबरदार, किसी भी हद को पार करते देखे जा सकते हैं ! पार्टी कार्यकर्ता का तमगा लगाए ये लोग, वास्तव में , पार्टी के झंडाबरदार हैं , जो दुम हिलाए अपने नेता के पैरों में, इस उम्मीद से बैठे रहते हैं कि कभी तो उनका हिस्सा उन्हें मिलेगा और वारे न्यारे होंगे ! इस बीच में अपने राजा को खुश करने के लिए, जब तब , विरोधी पक्ष की निकलती हुई गाडी के पीछे दौड़ते हुए, तब तक भौंकते हैं जब तक खुद राजा उन्हें चुप हो जाने के लिए न कह दे !

आज संतोष त्रिवेदी ने एक बयान दिया जिसमें उन्होंने दुःख व्यक्त किया कि इस कट्टरता के चलते कुछ मित्रों ने उनसे किनारा कर लिया , अपने संवेदन शील मित्र को, मेरा सुझाव था कि अच्छा हुआ जो इन राजभक्तों से तुम्हारी जान छुड गयी वे मित्र क्या जो वैचारिक मतभेद तक न स्वीकार कर सकें !

कट्टर समर्थन अथवा नफरत दोनों ही इन भक्तों में आम है , लगता है सड़क पर चलते वक्त, खाते पीते , परिवार में बैठे हो अथवा बाहर, इन्होने राजनैतिक आकाओं का नाम,अपनी पीठ पर गुदवा लिया है , वे किसी पार्टी के हो सकते हैं मगर उनकी अपनी व्यक्तिगत पहचान नष्ट हो चुकी है अतः वे चाहे कुछ भी हों पर वे संवेदनशील मित्र नहीं हो सकते !

राजनैतिक पार्टियों के इन झंडाबरदारों को यह खूब पता है कि राजनीति में नोट कैसे कमाए जाते हैं और सारे नेताओं का उद्देश्य, राजनीति में आने का क्या है ? करोड़ों रूपये दाव पर लगा, सौ गुना बापस , आने का इंतज़ार करते इन चमचों को, अपना हिस्सा मिलने की पूरी उम्मीद है ! अतः देश भक्ति , वीररस, धर्म और शहीदों के गीत गाते इन देश भक्तों ने कमर कस , अपने उस्तादों के लिए, जिताने हेतु जिहाद का आवाहन कर रखा है !

मूरख जनता खूब लुटी है, पाखंडी सरदारों से !
देश को बदला लेना होगा, इन देसी गद्दारों से !

पूंछ हिलाकर चलने वाले,सबसे पहले भागेंगे !
सावधान ही रहना होगा, इन झंडेबरदारों से !

Saturday, March 29, 2014

कुछ भाभी ने हंसकर बोला, कुछ कह दिया इशारों ने -सतीश सक्सेना

कैसे प्यार घटा,पापा की 
बिटिया, का दरवाजे से 
कैसे प्यार छिना गुड़िया   
का, भारी गाजे बाजे से 
जब से विदा हुई है घर से,क्या कुछ  बहा,हवाओं में !
कुछ तो दुनियां ने समझाया, कुछ अम्मा की बांहों ने !

किसने सीमाएं समझायी 
किसने गुड़िया छीनी थी !
किसने उसकी उम्र बतायी 
किसने तकिया छीनी थी !
कहाँ गए अधिकार पुराने,क्या सुन लिया दिशाओं में ! 
कुछ तो बहिनों ने बतलाया,कुछ कह दिया हवाओं ने !

कहाँ गया भाई से लड़ना

अपने उन , सम्मानों को  !
कहाँ गया अम्मा से भिड़ना 
अपने उन अधिकारों को !
कुछ तो डर ने समझाया था,कुछ पढ़ लिया रिवाजों में  !
कुछ भाभी ने हंसकर बोला, कुछ कह दिया इशारों ने !

पापा की जेबें, न जाने 
कब से राह, देखती हैं !
कौन तलाशी लेगा आके
किसकी चाह देखती हैं !
कुछ दूरी पर रहे लाड़ली, सुखद गांव की छावों में !
कुछ गुलमोहर ने समझाया,कुछ घर के सन्नाटों ने !

कैसे  बड़ी हो गयी मैना
कैसे उड़ना सीख लिया !
कैसे  ढूंढें, तिनके घर के ,
कैसे  जीना सीख लिया !
खेल, खिलौने खोये अपने,इन ससुराल की राहों में !  
कुछ समझाया,सबने रोकर,कुछ बाबुल की बाँहों ने !  

Friday, March 28, 2014

किसी के घर की लाड़ली, घर ले आये हो -सतीश सक्सेना

क्यों न रवैये , हम ऐसे अख्तियार करें !
बेटी से ज्यादा, दामाद को प्यार करे !

राजनीति ने, धर्म का झंडा उठा लिया !  

बस्ती के बच्चों को भी, हुशियार करें !

किसी के घर की लाड़ली,घर ले आये हो 
इस बन्दर से अधिक,उसी को प्यार करें !

काले बादल  , चारो तरफ से आये हैं !
इनका प्यार झेलने , छत तैयार करें !

वह भी तुमको पलकों पर ही रखती है 
अम्मा जैसा ही, उन को भी प्यार करें !



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