By फ़ुरसतिया on December 20, 2012
शिखा वार्ष्णेय के बारे में कुछ लिखते हुये सोच रहे हैं कि उनको जानी-पहचानी (लम्बी नाक वाली) ब्लॉगर लेखिका कहें या कि लोकप्रिय चिट्ठाकार या फ़िर फ़्री लांसर पत्रकार। इंटरप्रेटर या फ़िर अनुवादक। यह सोचना झमेले का काम है। आप अपना हिसाब आप तय करो हम तो उनके बारे में अपनी कही बात दोहरा देते […]
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By फ़ुरसतिया on June 10, 2012
पिछले हफ़्ते हिन्दी के प्रथम चिट्ठाकार आलोक कुमार से आनलाइन मुलाकात हुई। अचानक मन किया कि उनसे ब्लॉगिंग के शुरुआती दौर के बारे में कुछ बातचीत की। वे आजकल लंदन में हैं। हमसे साढ़े पांच घंटे के समयान्तराल पर। इस चैटालाप में मेरे सवाल ब्लॉगिंग के आसपास टहल रहे थे लेकिन आलोक के जबाब अंतर्जाल […]
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By फ़ुरसतिया on June 14, 2011
कानपुर मे एक प्रत्याशी हुआ करते थे (थे नही है भाई) भगवती प्रसाद दीक्षित। लोग इनको घोड़ेवाला दीक्षित कहा करते थे, ये घोड़े पर घूमा करते थे। चुनाव चाहे मोहल्ले का हो, या फिर राष्ट्रपति का, हर जगह नामांकन करते थे। जाहिर है, हर जगह हारते थे, लेकिन इनकी सभाओं मे भीड़ सबसे ज्यादा हुआ […]
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By फ़ुरसतिया on August 26, 2009
वे हिन्दी ब्लागिंग के शुरुआती दिन थे। साथी ब्लागरों को लिखने के लिये उकसाने के लिये देबाशीष ने अनुगूंज का विचार सामने रखा। इसमें एक दिये विषय पर लोगों को लिखना था। लिखने के बाद अक्षरग्राम पर लेखों की समीक्षा होती। पहली अनुगूंज का विषय था- क्या देह ही है सब कुछ? 25 अक्टूबर को […]
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By फ़ुरसतिया on August 23, 2009
हरिशंकर परसाई परसाई जी तमाम प्रसंशक उनकी तमाम खूबियों और खामियों से परिचित होंगे। उनके व्यक्तित्व के कुछ ऐसे पहलू भी थे जिनसे उनके तमाम प्रसंशक नावाकिफ़ होंगे। उनके लेखन में दोहराव की बात भी होती है। परसाईजी के अभिन्न मित्र मायाराम सुरजन ने उनके बारे में लिखते हुये उनकी खूबियों और खामियों के बारे […]
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