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- रवीश की रिपोर्ट बंद, एनडीटीवी में हिंदी से शूद्रों सा बर्ताव
- हुसैन को एक खांचे में फिट करके देखना फिजूल है!
- धुंधले प्रतीकों के इस दौर में एक अभिशप्त मिथक थे हुसैन!
रवीश की रिपोर्ट बंद, एनडीटीवी में हिंदी से शूद्रों सा बर्ताव Posted: 11 Jun 2011 09:00 PM PDT धुंधले प्रतीकों के दौर में अभिशप्त मिथक थे हुसैन! प्रभात रंजन ♦ हुसैन को इस रूप में देखना भी दिलचस्प होगा कि जब तक देश में सेक्युलर राजनीति का दौर प्रबल रहा, उन्होंने अनेक बार समकालीन राजनीति से अपनी कला को जोड़कर प्रासंगिक बनाया। Read the full story » बृजेश सिंह ♦ NDTV हिंदी के पत्रकारों की स्थिति NDTV समूह में वैसी ही है, जो समाज में दलितों की है। बरखा की सामाजिक समझ विनोद दुआ और रवीश कुमार के मुकाबले कहां ठहरती है, यह मुझे बताने की जरूरत नहीं है। |
हुसैन को एक खांचे में फिट करके देखना फिजूल है! Posted: 11 Jun 2011 11:49 AM PDT राजेश प्रियदर्शी ♦ बीबीसी के ही इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वे आत्म-निर्वासन में नहीं हैं, वे तो प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए कतर में हैं क्योंकि स्पॉन्सरशिप मिली है। उन्होंने भारत की नागरिकता छोड़ी नहीं है बल्कि ओवरसीज इंडियन सिटीजनशिप ले ली है। वे जब चाहें भारत जा सकते हैं बल्कि जाएंगे भी वगैरह-वगैरह... मगर साथ ही उन्होंने अपने खिलाफ मुकदमों और राजनीतिक साजिशों की बात भी की। इस मामले में भी उन्होंने एक ऐसी तस्वीर पेश की जिसमें देखने वाला जो चाहे देख सकता है। उन्होंने न तो भारत छोड़ने वाले व्यक्ति के तौर पर खुद को पेश किया, न ही बुढ़ापे में देश से निकाले गये एक कलाकार को मिलने वाली सहानुभूति को बटोरने में कमी रखी। |
धुंधले प्रतीकों के इस दौर में एक अभिशप्त मिथक थे हुसैन! Posted: 11 Jun 2011 10:58 AM PDT प्रभात रंजन ♦ हुसैन की उपस्थिति चित्रकला के जगत में विराट के रूप में देखी जाती है। एक ऐसा कलाकार, जिसकी ख्याति उस आम जनता तक में थी, जिसकी पहुंच से उसकी कला लगातार दूर होती चली गयी। हुसैन देश में पेंटिंग के ग्लैमर के प्रतीक बन गये। कहा जाता है कि अपने जीवन-काल में उन्होंने लगभग साठ हजार कैनवास चित्रित किये, लेकिन धीरे-धीरे वे अपनी कला के लिए नहीं अपने व्यक्तित्व के लिए अधिक जाने गये। |
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