हमने तुमसे की प्यार की मनुहार
तुमने गुस्से से दिया दुतकार
अगर प्यार से दुतकारा होता
तो वह भी मुझे गवारा होता
कर दिया मेरी उम्मीदों का ढेर
माँगा था मोर पर मिल गया बटेर
अब हम बैठे हैं धरे हाथ पर हाथ
हो सकता है कल क़िस्मत दे साथ
कल हम अपनी क़िस्मत आज़मायेंगे
झोपड़ियों और महलों के चक्कर लगायेंगे
नहीं होंगी सब तुम्हारे जैसी बदमिज़ाज
कोई तो करेगी मेरा चमन आबाद
कहीं तो मिलेगी हमारे सपनों की शहज़ादी
तनहायों से बचायेगी जो मेरी बरबादी
करूँगा उससे मैं ढेर सारा प्यार
मान जायेगी वो मेरे प्यार की मनुहार
—-लक्ष्मीनारायण गुप्त
—-४ मई २०१४