Sunday, May 04, 2014

प्यार की मनुहार



हमने तुमसे की प्यार की मनुहार
तुमने गुस्से से दिया दुतकार

अगर प्यार से दुतकारा होता
तो वह भी मुझे गवारा होता

कर दिया मेरी उम्मीदों का ढेर
माँगा था  मोर पर मिल गया बटेर

अब हम बैठे हैं धरे हाथ पर हाथ
हो सकता है कल क़िस्मत दे साथ

कल हम अपनी क़िस्मत आज़मायेंगे
झोपड़ियों और महलों के चक्कर लगायेंगे

नहीं होंगी सब तुम्हारे जैसी बदमिज़ाज
कोई तो करेगी मेरा चमन आबाद

कहीं तो मिलेगी हमारे सपनों की शहज़ादी
तनहायों से बचायेगी जो मेरी बरबादी

करूँगा उससे मैं ढेर सारा प्यार
मान जायेगी वो मेरे प्यार की मनुहार

—-लक्ष्मीनारायण गुप्त
—-४ मई २०१४

Friday, March 28, 2014

राजा वसन्त वर्षा ऋतुओं की रानी

 पढ़िए दिनकर जी की एक परम सशक्त रचना। पुरुषों का नारियों के साथ अत्याचार कोई नई चीज़ नहीं है।

---लक्ष्मीनारायण गुप्त 
---२८ मार्च २०१४

राजा वसन्त वर्षा ऋतुओं की रानी
लेकिन दोनों की कितनी भिन्न कहानी
राजा के मुख में हँसी कण्ठ में माला
रानी का अन्तर द्रवित दृगों में पानी

डोलती सुरभि राजा घर कोने कोने
परियाँ सेवा में खड़ी सजा कर दोने
खोले अंचल रानी व्याकुल सी आई
उमड़ी जाने क्या व्यथा लगी वह रोने

लेखनी लिखे मन में जो निहित व्यथा है
रानी की निशि दिन गीली रही कथा है
त्रेता के राजा क्षमा करें यदि बोलूँ
राजा रानी की युग से यही प्रथा है

नृप हुये राम तुमने विपदायें झेलीं
थी कीर्ति उन्हें प्रिय तुम वन गयीं अकेली
वैदेहि तुम्हें माना कलंकिनी प्रिय ने
रानी करुणा की तुम भी विषम पहेली

रो रो राजा की कीर्तिलता पनपाओ
रानी आयसु है लिये गर्भ वन जाओ 


---रामधारी सिंह "दिनकर"

Monday, February 17, 2014

कविता क्या है



तुम कहती हो कविता क्या है
मैं कहता हूँ तुम कविता हो

कविता है तुम्हारे होठों की लाली
कविता है तुम्हारी चाल मतवाली

कविता है तुम्हारी मन्द मुसकान
होता हूँ मैं जिस पर क़ुरबान

कविता है तुम्हारे नूपुरों की रुन झुन
करती जो मेरे मानस में गुंजन

कविता है तुम्हारा मुझसे रूठ जाना
मान दिखलाना, मनौना कराना

कविता है तुमहारी तिरछी नज़र
पार कर जाती है जो मेरा जिगर

तुम कविता हो, कविता है तुम
तुम्हारे बिना कहाँ कविता है मुमकिन

—-लक्ष्मीनारायण गुप्त
—-१७ फरवरी, २०१४

Saturday, December 21, 2013

जय जय जय भैंस भवानी




जय जय जय भैंस भवानी
तेरी महिमा ना कोहू है जानी

विश्वामित्र सुता तुम गायत्री की अनुजा
महिषासुर की माता  तुम सम कोई न दूजा

कवि थे एक महाप्रिय भगवतीचरण वर्मा
भैंसागाड़ी लिखी जिन्हन हुई सब जग में चर्चा

पुराने ज़माने में जो होती थी देश की महारानी
पट्ट महिषी के नाम से जाती थी वह जानी

थी यह तेरे सम्मान की निशानी
आधुनिकों ने यह कहानी बिल्कुल नहीं जानी

दूध तुम्हारा पीते सारे हिन्दुस्तानी
माता का पद नहीं  दिया कैसे अज्ञानी

ये सब मूरख लोग सचाई  ना पहिचाने
गौ माता की जय कहते हैं ये दीवाने

गौ माता की जय कहना अब मिथ्या लगता है
भैंस भवानी माता की जय अच्छा लगता है

(विश्वामित्र ने जब त्रिशंकु के लिए नयी सृष्टि रचना की थी; भैंस उस नई रचना का एक भाग थी।  वैदिक गायत्री मंत्र के रचयिता भी विश्वामित्र हैं।)

—-लक्ष्मीनारायण गुप्त
—-२१ दिसम्बर २०१३

Friday, November 01, 2013

मुक्ति मेड ईज़ी



मालुम नहीं लोग इतना पूजा पाठ क्यों करते हैं
कर्मकाण्ड में समय व्यर्थ करते हैं
सीधै टेढ़े नाक पकड़ते हैं
और पता नहीं क्या क्या उपचार करते हैं

में तो कहता हूँ अजामिल से कुछ सीखो
समय का सदुपयोग करो
आवारागर्दी करो, मटरगश्ती करो
खाओ पियो, मौज करो

बस मरने का समय आए
तो प्रभु का नाम ले लो
फिर यमदूतों और हरि के
पार्षदों का घमासान देखो

हरि के दूत जीतेंगे यह निश्चित है
हरि के सामने यम की क्या औक़ात है

बस तुम वैकुण्ठ में मज़े लो
बस एक ही दिक्कत है
वहाँ कुछ करने को नहीं है
माहौल बड़ा डल है

प्रभु शेषशय्या पर शयन करते हैं
लक्ष्मी जी उनके चरण दबाती है
बोर होकर वह भी औंघाती हैं
तुम बस प्रभु के दर्शन करते रहोगे
विष्णु सूक्त और लक्ष्मी सूक्त जपते रहोगे
कभी कभी शेषनाग बोर होकर फुंकार करते हैं
तब थोड़ा बहुत एक्साइटमेन्ट होता है

एक और भी तरीका है
जिसे आज़मा सकते हो
तुम कोई कबीर तो नहीं हो
जो मगहर में बस जाओगे
भोले बाबा को तारने का चैलेंज़ दोगे
तुम तो एक आम आदमी हो
बस मरने के पहले काशी में बस जाओ
भोले बाबा की गारंटी है
मरके कैलाश जाओ

वैसे यह तरीका बेहतर है
क्योंकि शिव जी के गण
ज़रा दिलचस्प हैं
भूत, प्रेत पिशाच अनगिनत हैं
सदा कौतुक करते हैं
जिससे मन लगा रहता है
गणेश और नन्दी के कारनामे भी
काफ़ी मन बहलाते हैं

अब यह तुम पर निर्भर है
काशी और वैकुण्ठ में चुनाव कर लो
मुक्ति की फ़िक्र छोड़ो
फिर बेधड़क मृत्युलोक के सुख भोगो

—-लक्ष्मीनारायण गुप्त
—-१ नवम्बर २०१३

Monday, October 21, 2013

चाय काफ़ी है



(एक जलसे में चाय थी लेकिन कॅाफ़ी नहीं थी। किसी ने पूछा तो मैंने कहा कि चाय काफ़ी हे इसलिए कॅाफ़ी नहीं है।)

चाय काफ़ी है, कॅाफी का क्या काम है
लुंगी काफ़ी है, धोती का क्या काम है
लुगाई काफ़ी है, मिस्ट्रेस का क्या काम है
कोक काफ़ी है, ह्विस्की का क्या काम है
दाल काफ़ी है, मुर्गी का क्या काम है
झोपड़ी काफ़ी है, महलों का क्या काम है
दिल में दौलत है तो हीरे मोती का क्या काम है
मन में मस्ती है तो नशे पत्ती का क्या काम है

---लक्ष्मीनारायण गुप्त
---२१ अक्टूबर २०१३

Monday, September 16, 2013

हनुमत चरित


(यह कविता रॅाचेस्टर हिन्दू मन्दिर में श्री हनुमान मूर्ति स्थापना १३-१५ सितम्बर २०१३, के उपलक्ष पर लिखी गई है।)

हनुमत चरित कहहुँ मैं गाई
जो मोहिं होवहिं राम सहाई।

रामचन्द्र प्रभु रावण मारे
त्रिया अनुज सँग अवध पधारे।

तब अभिषेक प्रभू कर भयऊ
हनूमान अति हर्षित भयऊ।

कछु दिन करहुँ हिमालय वासा।
जो मोहिं प्रभु देवहिं अनुशासा।

प्रभु अनुमति जब हनुमत पायो
हिमवन्तहिं तब कपिज सिधायो।

बहुत तपस्या कपि तहँ कीन्हा
सियाराम पद सुमिरन कीन्हा।

कपि के मन यह इच्छा जागी
प्रभु चरित्र पथरन महँ आँकी।

कइसे लिखहुँ प्रभू कै गाथा
यंत्र तंत्र कै इहाँ न आशा।

हनुमान यह निर्नय करयू
नखन परवतहिं टंकन करऊँ।

विशद राम कै कथा सुहावनि
टाँकेहु पथरन महँ मन भावनि।।

जग प्रसिद्ध तब प्रभु मुनि वल्मीका
रामायन तिन विरचित कीन्हा।

समाचार जब मुनि यह पाव।
प्रभु चरित्र हनुमतहूँ गावा।

मुनि तब हनूमान कहँ गयऊ
हनुमत सादर वन्दन करयू।

मुनि कपि कै रामायन बाँची
भरेहु विषादहिं गाथा साँची।

सब बिधि उत्तम कपि तव गाथा
तुम हौ अभिनन्दन के पात्रा।

मैं हूँ कपि रामायन लिखेऊ
रामचन्द्र गुन वर्नन करेऊ।

दो०: तुम्हरी रामायन समुख मोरि रमायन फीकि।
       व्यर्थ प्रयास करेहुँ मैं मोरे मन परतीति।।

यह मत हनूमान जब सुनयू
व्यथा अधिक कोमल मन भयऊ।

जिन पथरन महँ गाथा टाँकेसि
फेँकि फेंकि करि ते सब फोरेसि।

मुनि तुम यह अब छोरहु चिन्ता।
तोरि रमायन सब कर प्रीता।

दो०: अस दयालु हनुमान प्रभु विनय करहुँ कर जोरि।
        करहु कृपा यहि दास पै जा कै मति अति थोरि।।

---लक्ष्मीनारायण गुप्त
---५ अगस्त २०१३








Tuesday, August 13, 2013

हम आज़ाद हैं



हम आज़ाद हैं
तीसरी मंज़िल से सड़क पर कूड़ा फेंकने के लिए
हर जगह पान तम्बाकू की पीक पिच्च से थूँकने के लिए
हर तरफ गंदगी फैलाने के लिए

हम आज़ाद हैं
धर्म के नाम पर लोगों की नींद हराम करने के लिए
गलियों पर रात रात भर देवी जागरण के भजन गाने के लिए
चार बजे सवेरे लाउड स्पीकर से अजान लगाने के लिए
तीर्थस्थानों पर सारी रात ऊँची आवाज में भजन संगीत चलाने के लिए

हम आज़ाद हैं
दहेज न मिलने पर बहुओं को ज़िन्दा जलाने के लिए
बसों में बलात्कार और हत्या करने के लिए
दलितों और आदिवासियों पर अत्याचार करने के लिए

हम आज़ाद हैं
मुसलमान हिन्दुओं से भरा गोधरा की ट्रेन का डिब्बा जलाने के लिए
हिन्दू आज़ाद हैं फिर मुसलमानों को सबक सिखाने के लिए
कश्मीरी मुस्लिम जो अपने को आज़ाद नहीं मानते
आज़ाद हैं चार लाख हिन्दुओं को बेघर और शरणार्थी बनाने के लिए

हम आज़ाद हैं
घूस देने और लेने के लिए
भ्रष्टाचार मिटाने का नारा लगाने के लिए
लेकिन जब अपनी ज़रूरत हो
तो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए

हम आज़ाद हैं
वोट देने के लिए
राजनेता आज़ाद हैं
वोट खरीदने के लिए

हम आज़ाद हैं
नई घटिया इमारतों को
घूस देकर पास कराने के लिए
हम जिम्मेवार हैं
इमारतें गिरने पर लोगों की मौत के लिए

हम आज़ाद हैं
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनने के लिए
अपनी महानता के पुल बाँधने के लिए
और देश की मिट्टी पलीद करने के लिए

---लक्ष्मीनारायण गुप्त
---१३ अगस्त २०१३

Saturday, July 27, 2013

अपरम्पार प्रभू कै माया



परहित सरिस धरम नहिं भाई
कहि गए तुलसीदास गोसाईं।

हम ते होति नहीं पर सेवा
अब हम का करिहैं देवा।

तब बिधना मोहिं पथ दरसावा
भाँति भाँति के रोग लगावा।

बहुत डाक्टरन का हम देखा
यहि माँ हम अति मंगल देखा।

हम डाक्टरन की फीस चुकावैं
लरिका उनके कालिज जावैं।

जो न हमैं बीमारी आवत
डाक्टर कैसे फीस चुकावत।

जन कल्यान करत हम भाई
बीमारी कै दवा कराई।

अपरम्पार प्रभू कै माया
ना जानै कोउ यहि का भाया।

---लक्ष्मीनारायण गुप्त
---२७ जुलाई २०१३



Friday, July 12, 2013

मॉडर्न आर्ट और चूहे


(पहले पढ़िए: Of Mice and Manet )

मॉडर्न आर्ट हमारी समझ में न आई
हमसे तो चूहे ही अच्छे हैं भाई
लगता है ललित कलाओं की
उन्हें परख है भाई
अफीम खा के या दूध पी के
करते हैं वे आर्टिस्ट की पहचान
हम सुन के हो रहे हैं हैरान
अफीम तो नहीं खाई
लेकिन दूध तो पिया है
हजारों बार
कला के प्रति मेरी बुद्धि में
नहीं हुआ तनिक भी सुधार

गौरेए को पता है
मोने और पिकासो
कबूतर समझते हैं
चगाल  और वैन गो

मैं सोचता हूँ
छोड़ दूँगा अपनी
अार्ट अप्रीशिएशन की क्लास
उस पैसे से खरीदूँगा
कुछ चूहे, गौरेए
और कबूतर
वातनबी जी के प्रयोग
दुहराऊँगा
ललित कलाओं की शिक्षा
पशु पक्षियों से पाऊँगा






---लक्ष्मीनारायण गुप्त
---१२ जुलाई २०१३

Sunday, June 30, 2013

हैरानी है



हैरानी है इन्सान कभी भगवान
को चैन नहीं लेने देता है
जैसे छोटा बच्चा माँ को सोने नहीं देता है
उसकी नींद हराम कर देता है
वैसे ही इन्सान भगवान के नाम पर
घंटे घड़ियाल बजाता है
या अल्ला के नाम पर अजान
की बाँग देता है
या वाहे गुरू की रट लगाता है
या देवी जागरण करता है
ज़रा ज़रा सी चीज़ के लिए
भगवान को तंग करता है
दिन रात हर घड़ी
कोई फूल मेवे चढ़ाता है
कोई प्रसाद चढ़ाता है
कोई गहने ज़ेवर चढ़ाता है
कोई मिन्नतें करता है
कोई इबादत करता है
यह सब करने के बाद
दंगे फ़साद करता है
डाका डालता है
राहजनी करता है
घूस लेता है
भ्रष्टाचार में भाग लेता है
युद्ध रचाता है
आतंक फैलाता है
क्रूर से क्रूर कर्म करता है
भगवान के नाम पर हत्या करता है

इन्सान मेरी मान
तू लगादे मंदिर मस्जिद गिरजा में ताला
मिटा अपने दंगे फ़साद
भगवान को लेने दे चैन की साँस
नहीं तो भगवान का बढ़ेगा रोष
वह क्ह तुझसे तंग आकर क़हर ढाएगा
प्रलय लाकर सभी प्राणियों
का विनाश कर देगा
फिर वह एक कल्प भर
चैन की नींद सोएगा

---लक्ष्मीनारायण गुप्त
---३० जून २०१३

Tuesday, April 30, 2013

मधु है, मधु मास है



मधु है, मधु मास है मधुपान की इच्छा बड़ी है
पी नहीं सकता मगर मधुमेह की शंका बड़ी है

मद है, मदिरा है, मुझे मस्ती बड़ी है
 पीने की मुमानियत कर दी है पत्नी ने
मर जाओगे जिगर की सिरोसिस से
क्यों तुम्हें मुझे विधवा बनाने की इच्छा बड़ी है

मुर्ग है, मसाले हैं, बासमती चावल भी उम्दा है
बिरियानी खाने की तबियत बड़ी है
खा नहीं सकता मगर मैं दोस्तो
क्योंकि रक्त में शर्करा बढ़ी है

अंडे हैं, हरा धनिया है, हरी मिर्च की शोभा बड़ी है
खा नहीं सकता मगर मैं आॅमलेट
कोलेस्टराॅल बढ़ जाने की शंका बड़ी है

अर्थराइटिस का दर्द भारी है
पेनकिलर लेने की ज़रूरत बड़ी है
लेने से लेकिन दिल के दौरे की सम्भावना बड़ी है

जिम जाता हूँ, कोल्हू के बैल की तरह
ट्रैक पर दौड़ता हूँ ऐरोबिक कसरत के लिए
क्या करूँ, मन मरने का अभी  करता नहीं है

---लक्ष्मीनारायण गुप्त
---३० अप्रैल २०१३


Sunday, April 28, 2013

जब द्रौपदी ने कृष्ण की लाज बचाई


सभी जानते हैं कि जब युधिष्ठिर जुए में द्रौपदी को भी हार गए थे और दुष्ट दु:शासन उसको निर्वस्त्र करने का प्रयास कर रहा था द्रौपदी ने कृष्ण का स्मरण किया था तब प्रभु ने द्रौपदी की साड़ी को अन्तहीन कर दिया था और इस प्रकार उसकी लाज बचाई थी। इस चमत्कार का कवि भूषण (?) ने ऐसे वर्णन किया है:

सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है
नारी ही कि सारी है कि सारी ही कि नारी है

दक्षिण भारत में एक मनोहर आख्यान प्रचलित है जिसमें द्रौपदी ने कृष्ण की लाज बचाई थी:

एक बार पाँचो पान्डव और कृष्ण एक कुंड में स्नान कर रहे हैं। सभी ने केवल लँगोटी पहन रखी है। अकस्मात कृष्ण की लँगोटी खुल जाती है और पानी में चली जाती है। काफी समय बीच चुका है किंतु कृष्ण समझ नहीं पा रहे हैं कि कैसे पानी से निकलें। बगल के कुंड में द्रौपदी सखियों के साथ नहा रही है। वह समझ जाती है कि क्या हो रहा है। वह अपनी साड़ी से एक चीर फाड़ कर कृष्ण की ओर फेंक देती है। कृष्ण बहुत कृतज्ञ होते हैं और वादा करते हैं कि अवसर आने पर वह द्रौपदी के इस ऋण को अवश्य अदा करेंगे।

Reference

Alf Heitebeitel: The Cult of Draupadi 1 (pp. 227)

लक्ष्मीनारायण गुप्त
२८ अप्रैल २०१३

Monday, March 11, 2013

अगर कभी



अगर कभी बीवी से हो जाए तकरार
भला इसी मैं है हार मान लो यार
हार मान लो यार नहीं तो पछताओगे
खेत चुग गई चिड़िया बस तुम बौराओगे

 पछताओगे, बौराओगे और यार
शरण कुत्ताघर (यानी डॅागहॅाउस ) में पाओगे
शयनकक्ष में भी यारो नहीं बुलाए जाओगे
सुबह सुबह तुम उठ के मित्रो ख़ुद ही  चाय बनाओगे
वह भी डुबकी वाली होगी टी बैग से
क्योंकि असली चाय  हिन्दुस्तानी
तुम्हें आती है नहीं  बनानी
भाती है तुमको वही किन्तु पीने में जानी
बिरियानी क़ोरमा कहाँ पाओगे
बर्गर फ्राइज़ खा खा के ज़िन्दगी बिताओगे
नित्य अकेले सोओगे
करनी पर अपनी पछताओगे

अगर कहीं वो तलाक पर तुल आई भाई
सभी जमा पूँजी की कर के सफाई
तुम्हारी ऐसी की तैसी कर सकती है भाई
ज़िन्दगी भर ऐलीमोनी भरोगे
रह रह कर तुम आहें भरोगे
बाल बच्चों की कस्टॅडी उसीको मिलेगी
उसकी मर्ज़ी पर तुम्हारी ज़िन्दगी चलेगी

हारने में ही तुम्हारी जीत है भाई
अक्लमंदी इसी में भूल जाओ लड़ाई
मेरी मानो तो हथियार डाल दो
हार मान लो, माफी माँग लो
मना लो, उसका मान रख लो
तुम्हारी छोटी सी मुस्कान
क्या नहीं कर सकती हैै
सोए हुए प्यार को
फिर से जगा सकती है

गुस्सा थूक दो
प्यार को मान दो
प्यार में तकरार भी होती है
जान लो

---लक्ष्मीनारायण गुप्त
---८ मार्च २०१३



Friday, March 08, 2013

ज़रा सोचो



ज़रा सोचो
अगर सूपनखा  की
शादी हो गई होती
तो वह राम को
इश्क जताने
नहीं गई होती
नाक कान कटने की
नौबत न हुई होती
न सीता हरण होता
न रावण की मौत हुई होती
पूरी रामायण बदल गई होती
राम होते एक सीधे सादे राजा
नहीं बजता युगों तक उनकी
कीर्ति का बाजा

अगर लक्ष्मण उर्मिला को
साथ ले जाते
राम सूपनखा को
उनके पास नहीं भेजते
इस हालत में भी
रामायण बदल गई होती

अगर भीष्म पितामह ने
अपना प्रण भूल कर
शादी कर ली होती
एक सन्तान कर लेते
तो महाभारत नहीं होती

इन बातों से
क्या सबक मिलता है दोस्तो
जल्दी से जल्दी शादी
कर डालो
शादी के बाद पति या पत्नी
को कभी अपने पास
से न टालो
एेसा करने से
सम्भव है
दुनिया में युद्ध कम होंगे
यह सही है
इस वज़ह से हीरो
कम बनेंगे
वगैर युद्ध के
न राम होंगे न अर्जुन
न होंगे कृष्ण
न होगा गीता का भाषण

अब आप ही सोचो कि
दुनिया बेहतर होती
या बदतर
मैं जाता हूँ
सब्ज़ियाँ ख़रीदने
नहीं तो बीवी
दिखलाएगी तेवर

---लक्ष्मीनारायण गुप्त
---८ मार्च २०१३

Thursday, March 07, 2013

दिल घबराता है



दिल घबराता है
जब तुम नहीं होते हो
तन काँपता है
जब तुम नहीं होते हो
मन नहीं लगता है
जब तुम नहीं होते हो

तुम आते हो
तब राहत मिलती है
साथ होने की
आदत लगती है
तुम होते हो
तो कोई ख़ास
बात नहीं लगती है
कोई गहरी
बात नहीं होती है
इश्क मुहब्बत की
करामात नहीं होती है

लेकिन तुम चले जाते हो
तो दिल घबराता है
नहीं लौटोगे
यह डर लगता है

दिल घबराता है
जब तुम नहीं होते हो

---लक्ष्मीनारायण गुप्त
---७ मार्च २०१३

Friday, February 01, 2013

दिल वाले जो दिल नहीं लगाते हैं



दिल वाले जो दिल नहीं लगाते हैं
वो कभी दिल वाली दुल्हनिया नहीं लाते हैं

बिना माशूका के इश्क फ़रमाते हैं
बिना पानी के तैराकी करते हैं
बिना घोड़े के घुड़सवारी करते हैं
बिना मोटर की मोटर कार चलाते हैं

बिना तेल के पकौड़ी बनाते हैं
बिना ख़मीर की जलेबी बनाते हैं
बिना मसाले की चाट बनाते हैं
बिना दाल के दोसे बनाते हैं

बिना दीपकों के दिवाली मनाते हैं
बिना राम की रामायण बनाते हैं
बिना मंत्रों की माला सरकाते हैं
बिना रंग अबीर के होली मनाते हैं

ऐसे लोग ज़िन्दगी से चूक जाते हैं
खेत चुग गया तब चिड़िया भगाते हैं
समय बीत गया अब पछताते हैं
दिन रात बेसुरा राग अलापते हैं

इसलिए भाई सुन लो मेरी सलाह
दिल है तो किसी से लगा लो करता हूँ आगाह

---लक्ष्मीनारायण गुप्त
---१ फरवरी २०१३

Saturday, January 12, 2013

दिल्लगी नहीं है दिल का लगाना


दिल्लगी नहीं है दिल का लगाना
जाँ हथेली पे रखे जिसे वहाँ जाना
दिल के कच्चों का यह नहीं है ठिकाना
सर की बाजी लगी है यह दिल में बिठाना
दिल्लगी नहीं है दिल का लगाना

दिल पर लग सकती है ग़र दिल को लगाना
 जान की बाज़ी है दिल का लगाना
दिलेरी का काम है दिल का लगाना
सूरमा हो तो मैदाने जंग में जाना
दिल्लगी नहीं है दिल का लगाना

हिम्मत हे तो ही दिल को लगाना
लगी जिसको बना  आशिक मस्ताना
ठोकरें मारेगा ज़ालिम ज़माना
दिल वाले सहते हैं दिल का लगाना
दिल्लगी नहीं है दिल का लगाना

दिल लगाने का नहीं करना बहाना
पैर न उखड़ें उनके सामना जब जाना
होशो हवास उड़ जायेंगे करे जो बहाना
मर्दों का काम है दिल को लगाना
दिल्लगी नहीं है दिल का लगाना

---लक्ष्मीनारायण गुप्त
---१२ जनवरी २०१३


Friday, January 11, 2013

दिल लगाते रहे



दिल लगाते रहे
मन मिलाते रहे
तेरे दामन का साया
नहीं भी मिला
तब भी हँसते रहे
मुस्कराते रहे

तुम्हारी क़रीबी
नहीं मिल सकी
दूर से ही हम
नज़रें मिलाते रहे

तेरी साँस से न मेरी
कभी साँसें मिलीं
आस तब भी
तुम्हारी लगाते रहे

आख़िरी शाम जीवन की
अब आ गई
दिल लगाते रहे
मन मिलाते रहे

---लक्ष्मीनारायण गुप्त
---११ जनवरी २०१३

Wednesday, December 19, 2012

प्रिया



वो देखो वो है मेरी प्रिया
लहराती लटें फहराती रेशम की चुनरिया
दिलकश अदाओं में फँसा है मेरा जिया

जाल निगाहों का तुझ पर डाल दिया
थिरकन पर तेरी ठहर गईं अँखियाँ
फँस गया मैं ही जाल में प्रिया

---लक्ष्मीनारायण गुप्त
---१९ दिसम्बर २०१२