फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

24 responses to “इलाहाबाद के सच्चे किस्से”

  1. Anonymous

    कैलेन्डर सत्य है, घड़ी मिथ्या है। जय हो फुरसतिया महाराज :)

  2. Abhishek

    कैलेन्डर सत्य है, घड़ी मिथ्या है। जय हो फुरसतिया महाराज :)

  3. amit

    हम जो बोल नहीं पाये उसका कोई अफ़सोस नहीं है मुझे।

    कोई बात नहीं, अफ़सोस होना भी नहीं चाहिए, आगे मौके बहुत मिलेंगे आपको, श्रोता भी नए होंगे!! :)

    मैं अपने और बाद के साथी वक्ताओं की भलाई का ख्याल करते हुये अच्छे वक्ता की तरह समय पर बैठ गया। श्रोताओं ने भी ताली बजाते हुये अपनी खुशी का इजहार किया।

    हम्म, आपके बोलने पर खुशी ज़ाहिर की या आपके बैठ जाने पर, ज़रा खुलासा करके बताना था, ही ही ही!! :D

    बाकी रपट चकाचक है, आप लिखे हैं तो सच ही मान लेते हैं, समीर जी को उद्धृत किया जाए तो – आखिर क्रेडिबिलिटी भी कोई चीज़ है! ;)

  4. समीर लाल

    बहुत सच्ची सच्ची लिख गये सब..कविता जी और ज्ञान जी के सच्चे किस्से के बिना कैसे श्रृंखला खतम होगी भाई..

    मजेदार रही…किस्सागोहि…

    पसंद वाली कविता पसंद आई.

  5. RC Mishra

    शुकुल जी इलाहाबाद आ के हमसे बिना मिले चले गये :(

  6. प्रवीण त्रिवेदी ...प्राइमरी का मास्टर

    अभी तक आप ब्लॉग्गिंग ( जो खतरे से खाली नहीं?)घटनास्थल से सीधा प्रसारण देख रहे थे /
    धन्यवाद!!!

  7. ज्ञानदत्त पाण्डेय

    खालिस चौबीस कैरेट के सच्चे किस्से हैं।

  8. vijay gaur

    रिपोर्ट यदि दिलचस्पी से लिखी गई हो तो पढने का अपना ही मजा है। यूं चलताऊ तरह से लिखी जाने वाली अखबारू रिपोर्टस की भी अपनी ज़रूरत है।
    आपकी यह रिपोर्ट दिलचस्प किस्से की तरह है। पढने में मजा आया।

  9. Manoshi

    बेहद सुंदर पसंद।

  10. दिनेशराय द्विवेदी

    तो अब तक सिद्धार्थ हमें दफ्तरिया रिपोर्ट पढ़ा रहे थे। ये हुई फुरसतिया पोस्ट असली रिपोर्टिंग। इस में मजा भी आया, कुछ सीखा भी और बहुत सारे सच भी दिखे। संक्षेप में कहें तो सुंदरम् शिवम् और सत्यम्।

  11. Sanjeet Tripathi

    ‘ कैलेन्डर सत्य है, घड़ी मिथ्या है। ‘

    एकदम सटीक लाईन।

    आप हर पोस्ट में कुछ लाईन्स ऐसी लिख देते हैं जो वाकई सटीक होती हैं।

  12. Kajal Kumar

    हम्म…ये हुई न फुल रिपोर्ट :)

  13. Dr.Arvind Mishra

    बहुत खूब -बहुत बारीक प्रेक्षण ! सुई की नोक भी नजर आ जाए !
    मुझे भी डर तो लगा कि
    बाहों में भरते हो लेकिन
    अन्दर तो बेगानापन है
    मगर यहाँ भी शेरअदूली ही हुयी -हम अंकवार भर मिले -सहज भाव से !

    इस बार की कविता तो दम तोडू है !

  14. कविता वाचक्नवी

    वाह-वाह,वाह-वाह,वाह-वाह!
    Full चकाचक!

  15. कविता वाचक्नवी

    “आठ मई की शाम को नियत समय शाम साढ़े पांच से कुछ मिनट बाद ही हम (मैं और कविताजी) घटनास्थल पर पहुंच गये।”

    ये {‘घटनास्थल’ पर पहुँचे} तो ऐसे लग रहा है, जैसे पोलिस हत्या वाले स्थान पर तफ़्तीश करने पहुँची हो।

  16. ताऊ रामपुरिया

    वाह आज कई दिनों बाद आई है असली फ़ुरसतिया पोस्ट..बस आनन्द आगया. एक बार शुरु से अंत तक बांच चुके हैं और एक बार पढने का दिल कर रहा है. एक दम जैसे जसदेव सिंह हाकी का आंखों देखा हाल सुनाया करते थे, बिल्कुल वैसा ही है.

    रामराम.

  17. गौतम राजरिशी

    क्या सचमुच ये सब हुआ?
    ब्लौगिंग को लेकर?

  18. Satish Pancham

    अच्छा है कि सभागार का नाम निराला था और निराले श्रोता मिले….कही सभागार का नाम कवि ‘अकेला’ होता तो स्थिति दुर्गम होती :)

    अच्छी रिपोर्टिंग ।

  19. Darpan Sah

    कोई हाथ भी न मिलायेगा, जो गले मिलोगे तपाक से
    ये नये मिजाज का शहर है, जरा फ़ासले से मिला करो।…

    “Matlab jo samjhe mere sandesh ka…
    ..Is Desh main hai kya koi mere desh ka?”

  20. इलाहाबाद के बाकी किस्से

    [...] मुख्य अतिथि के बाद कविताजी का नम्बर आया और उन्होंने आते-जाते श्रोताओं को हिन्दी कम्प्यूटिंग से संबंधित जानकारी विस्तार से दी। कविताजी सुबह इसी विषय पर विज्ञान परिषद में व्याख्यान दे चुकी थीं। वहां कम से कम उनके पास एक धीमा डायल अप से चलने वाला इंटरनेट कनेक्शन मौजूद था जिसकी सहायता से वे देर से और धीरे-धीरे ही सही जिन साइट्स और सुविधाओं के बारे में बता रहीं थीं उनको नेट पर दिखाती जा रही हैं। लेकिन ब्लागिंग के दिग्गजों के व्याख्यान में इस तरह की किसी औपचारिकता की व्यवस्था नहीं हो पायी थी शायद इसलिये सब कुछ मासूम श्रोताऒं की कल्पनाशीलता पर निर्भर था कि वे व्याख्यान को किस अर्थ में ग्रहण करते हैं। [...]

  21. anitakumar

    मैंने जब महसूस किया कि हमारे बोलने में दोहराव हो रहा है और कुछ नया ध्यान में नहीं आ रहा है तो मैं अपने और बाद के साथी वक्ताओं की भलाई का ख्याल करते हुये अच्छे वक्ता की तरह समय पर बैठ गया।

    पहले से तैयार नहीं किया था क्या बोलेगें? बिना तैयारी किए मंच पर उतरने के लिए तो हिम्मत चाहिए।
    बाकी चकाचक मजेदार रिपोर्टिंग

  22. क्नॉट प्लेस टू चांदनी चौक ….. | दुनिया मेरी नज़र से - world from my eyes!!

    [...] इलाहाबाद और आसपास के लोग एक के बाद एक ब्लॉगर मीट ठेले जा [...]

  23. प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह

    सच्‍चे किस्‍से पढ़कर और भी आनंद आया, ऊर्जा संचय का ही परिणाम था कि बोले और खूब बोले

  24. GOOGEL SPEEDY CASH

    hey very good bhut accha likahte ho tum

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