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Wednesday, May 7, 2014

लंका-दहन के बाद




हनुमान जी लंका को राख में कन्वर्ट कर आये. इधर उन्हें देखकर सब बहुत खुश हुए तो उधर रावण जी चिंतित थे. उन्होंने अपने मंत्रियों, महामंत्रियों, राज्य-मंत्रियों, सलाहकारों, उप-सलाहकारों, मीडिया मैनेजर, स्पिन डॉक्टर्स, डर्टी-ट्रिक इंजीनियर्स, कंसल्टेंट्स वगैरह की एक मीटिंग बुलाई. वे जानना चाहते थे कि ऐसा कैसे हुआ कि एक वानर लंका को राख में कन्वर्ट कर वहाँ से निकल लिया? कि लंकेश की बेइज्जती खराब हो गई? कि वीरों से भरी लंका में वीरता का बैलेंस निल निकला? कि जिस लंकेश के घर कुबेर पानी भरते थे वह लंकेश लाचार दिक्खे?

जिन्हें-जिन्हें सर्कुलर गया वे मंत्री, सलाहकार, कंसल्टेंट्स, दरबारी वगैरह आये. जिन्हें डर था कि मीटिंग के बाद लंकेश उन्हें धुनक सकते थे, उन्होंने १०८ डिग्री बुखार का बहाना बना लिया. जो बहाना बनाने लायक नहीं थे उन्हें मन मारकर उपस्थित होना पड़ा. किसी के हाथ में फाइल तो किसी के हाथ में ब्रीफकेस. स्मार्ट सलाहकार एक्सेल शीट्स, ऑडिट रिपोर्ट, वर्किंग पेपर्स और पॉवर प्वाइंट प्रजेंटेशन वगैरह से लैस होकर आये. एक कॉपीबुक सलाहकार इसी तरह की पुरानी घटनाओं को गूगल करने लगा. उनकी इस गूगलाहट के पीछे यह सोच थी कि अगर पहले भी किसी ने लंका को राख किया होगा तो उसके बाद जो मीटिंग हुई, उसमें जो कुछ हुआ था, अगर उसका पता चल जाये तो अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आज क्या हो सकता है.

ये कॉपीबुक सलाहकार जब गूगल सर्च कर रहा था, उसके असिस्टेंट ने, जो इनसे स्मार्ट था, इन्हें स्पेसिफिक सर्च की सलाह दे डाली. उसकी इस सलाह का जन्म उसी की इस सोच से हुआ था कि हो सकता है लंका को किसी ने पहले राख किया हो लेकिन हमें यहाँ यह जानने की जरूरत है कि; लंका को पहले किसी वानर ने राख किया था या नहीं?

दोनों अभागे यह जानकर दुखी हो गए कि लंका इससे पहले कभी नहीं जली. कि ऐसा पहली बार हुआ था.

कुछ अति स्मार्ट सलाहकारों ने लंकेश की चिंता का अनुमान लगा चिंतित होने की ऐक्टिंग शुरू कर दी. उनका अनुमान था कि चिंतित दिखेंगे तो रावण जी यह सोचते हुए खुश होंगे कि इन सलाहकारों ने बड़ी मेहनत की है. कि चिंता की इस घड़ी में वे रावण जी के साथ है. कुछ दरबारियों का ध्यान दूसरी तरफ भी था. ये दरबारी आते-जाते चारणों को देख अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहे थे कि मीटिंग के लिए नाश्ते का मेन्यू क्या था? कुछ लोभी सलाहकार तो अपना लोभ संभाल नहीं पा रहे थे. उनके मन में बार-बार आ रहा था कि इन चारणों को पकड़कर उनसे डिटेल्ड मेन्यू पूछ ही लें लेकिन फिर यह सोचकर रुक जाते कि कहीं लंकेश ने अचानक एंट्री मारी और उन्हें ऐसा करते देख लिया तो बड़ी दुर्गति करेंगे.

कुछ अपनी वोकैब्युलरी मांज रहे थे. यह सोचते हुए कि मीटिंग में ज्यादा से ज्यादा मीठे और प्यारे शब्दों का प्रयोग किया जाय ताकि लंका दहन से दुखी लंकेश के कलेजे को ठंडक पहुंचे. जिन सलाहकारों को विश्वास था कि उन्हें मात्र कोरम पूरा करने के लिए ऐसी मीटिंग्स में बुलाया जाता था, और असल में मीटिंग में उनका कोई योगदान नहीं रहता था, उन्हें किसी बात की चिंता नहीं थी. उन्हें पता था कि लंकेश न तो उनसे कोई प्रश्न पूछेंगे और न ही उन्हें बोलने का मौका मिलेगा. कुल मिलाकर ऐसे दरबारियों की उपस्थिति इसलिए जरूरी रहती थी ताकि रावण जी का प्रेस मैनेजर मीडिया को छापने के लिए जब विज्ञप्ति दे तो उसमें लिखा जा सके कि; "लंकेश्वर ने मंत्रियों, दरबारियों, और सलाहकारों के साथ समग्र चिंतन किया"

कुछ ढंग के सलाहकारों के मन में यह जरूर आया कि लंकेश को अपने अनुज विभीषण को भी इनवाइट करना चाहिए लेकिन वे यह सोचकर रुक गए कि विभीषण आएंगे तो सच ही बोलेंगे, सच के सिवा कुछ नहीं बोलेंगे. ऐसे में मैनेजमेंट सिद्धांत के अनुसार विभीषण को ऐसी मीटिंग में बुलाना तर्कसंगत नहीं था. सच बोलने वाला व्यक्ति हर लंका का शत्रु होता है. कुछ मानते थे कि कुंभकरण के आने से घटना पर पूरा प्रकाश पड़ता लेकिन वे यह सोचकर चुप रहे कि कुंभकरण जी को नींद से उठाने में बड़ी मेहनत करनी पड़ती। वैसे भी जिन दरबारियों के लिए मेहनत का सबसे बड़ा काम लंकेश की जय-जयकार करना था, उनके लिए कुंभकरण जी को नींद से जगाना बहुत मेहनत का काम था.

इधर ये लोग मीटिंग के लिए तैयार थे तो उधर लंका की री-कंस्ट्रक्शन टीम और उसके कैप्टेन मय दानव एक जगह बैठकर कयास लगाए जा रहे थे कि पता नहीं मीटिंग में क्या फैसला हो? कहीं ऐसा न हो कि लंकेश रिजोल्यूशन पास करवा दें कि आज रात से ही लंका का री-कंस्ट्रक्शन शुरू कर दिया जाय. आज रात से ही शुरू करेंगे तो फिर पता नहीं घर जाने का समय कब मिले.

कुछ इंतज़ार के बाद पास ही खड़ा चारण जोर से चिल्लाया; "सावधान! राजाओं के राजा, पुष्पक विमान के मालिक, तीनो लोकों को जीतने वाले, शिव-भक्त, कुबेरजीत, वेदों के ज्ञाता, इंद्र-विजयी, राक्षसों के सिरमौर, इंद्रजीत के पिता, दशासन लंकेश पधार रहे हैं"

वे पधारे.

दरबारी खड़े हो गए. एक सीनियर कंसल्टेंट का जूनियर असिस्टेंट, जो दो महीने पहले ही मैनेजमेंट कॉलेज से निकला था, कैंडी-क्रश खेलने में बिजी था. चारण की आवाज़ सुनते ही यह सीनियर कंसल्टेंट झट से खड़ा हो गया तब उसे महसूस हुआ कि उसका जूनियर अभी तक बैठा कैंडी-क्रश खेले जा रहा है. इस कंसल्टेंट को अपना कॉन्ट्रैक्ट जाता हुआ दिखाई दिया. उसने अपने जूनियर असिस्टेंट को उठाने के लिए इतनी जोर से कुहनी मारी कि अगर किसी क्रिकेट खिलाड़ी को उतनी चोट लगती तो वह रिटायर्ड-हर्ट होकर अगले विदेशी दौरे से बाहर हो जाता. असिस्टेंट बेचारा सी-सी करते हुए हड़बड़ा के खड़ा हो गया.

लंकेश बैठे. दरबारी खड़े रहे. उन्होंने दरबारियों को बैठने का इशारा किया। दरबारी बैठ गए. मीटिंग शुरू हुई.

रावण जी; "तुम सबको तो पता होगा ही कि मैंने तुमलोगों को यहाँ क्यों बुलाया है?"

सारे एक स्वर में चिल्लाये; "यस लंकेश"

वे आगे बोले; "लंकेश की साथ ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई बाहर से आकर उसकी लंका जला गया. और वह भी एक वानर. कोई मुझे बतायेगा कि ऐसा क्यों हुआ? क्या हम अब पहले जैसे शक्तिशाली नहीं रहे?"

एक मंत्री बोला; "हे लंकेश, एक वानर आपका क्या मुकाबला करेगा? आपसे शक्तिशाली तीनो लोकों में कोई है क्या ? यह तो अकस्मात हो गया नहीं तो .......

लंकेश ने इस मंत्री को घूरकर देखा। झल्लाते हुए बोले; "तुम! तुम तो बात ही मत करो. जब मैंने तुमसे कहा कि उस वानर को अशोक वाटिका में घुसने मत देना तो तुमने ही कहा था न कि वानर ही तो है, चार फल खायेगा और चला जाएगा. कहा था कि नहीं?"

मंत्री ने चुप रहना ही उचित समझा. मुंह लटकाकर खड़ा रहा.

महामंत्री को लगा कि स्थिति को सम्भालना चाहिए. उन्होंने बोलना शुरू किया; "हे लंकेश, वानर ही तो था. मैं एक्सेप्ट करता हूँ कि हमसे कुछ भूल अवश्य हुई लेकिन सोने की लंका जलकर ख़ाक हो गई, इसका मतलब यह कदापि नहीं कि एक वानर लंकेश को टक्कर दे सके."

रावण जी ने महामंत्री को देखते हुए गुस्से से कहा; "और आप कौन से कम हैं? मैंने कहा था न कि इस वानर की हत्या कर देनी चाहिए तो आपने कहा एक दूत की हत्या उचित नहीं। यह धर्मानुसार गलत होगा. क्या गलत होता? अरे मैं इतना बड़ा पंडित, विद्वान, वेदों का जानकार … अगर अधर्म करके धर्मानुसार न बच सकूँगा तो फिर मेरे धर्म-ज्ञान का क्या महत्व? और अगर पाप चढ़ भी जाता तो दो-ढाई साल तपस्या करके भगवान शिव से किलो भर क्षमा ले लेता"

महामंत्री बोले; "हे लंकेश, जो हो गया सो हो गया. इसबार हमलोग तैयार नहीं थे नहीं तो उस वानर की मजाल कि वह ऐसा कर पाता? आपने इंद्र को जीता है. आपने कुबेर को बंदी बनाया है. आपसे तीनों लोकों के प्राणी डरते हैं. याद कीजिये कि आपने किस तरह.... और फिर हे लंकेश, सोने की लंका ही तो राख हुई है. अरे जिसके पास मय दानव हों उन्हें सोने की लंका के राख होने का दुःख नहीं होना चाहिए. एक आर्डर देंगे और सोने की लंका की जगह हीरे की लंका खड़ी हो जायेगी. मैं तो कहता हूँ कि लंका ठीक उसी तरह और मजबूत होकर उभरेगी जैसे राजनीतिक दल के प्रवक्ता के अनुसार चुनावों में बुरी तरह हार जानेवाली पार्टी पहले से ज्यादा मजबूत होकर उभरती है. आप निश्चिन्त रहे. आपका मुकाबला कोई नहीं कर सकता. आप खुद ही सोचिये न कि आपसे जो लड़ना चाहते हैं उन्हें वानरों के सहारे की जरूरत है. वे क्या लड़ेंगे आपसे?"

महामंत्री की बात रावण जी ने ध्यान से सुनी. फिर बातों में थोड़ी शंका की मिलावट करते हुए बोले; "कहीं हम कोई भूल तो नहीं कर रहे महामंत्री? पहले यह वानर लंका में घुसा तो हमने सोचा वानर ही तो है, चला जाएगा. फिर अशोक वाटिका में घुसा तो हमने कहा फल खाकर चला जाएगा. फिर उसने अक्षयकुमार का वध किया तो हमने सोचा कि इससे ज्यादा क्या करेगा? फिर उसने लंका को आग लगा दी तो.... गुप्तचरों ने बताया कि वह सीता से कहकर गया है कि उसकी सेना में उससे भी बड़े-बड़े योद्धा हैं. उससे से भी बड़े वानर हैं."

एक मंत्री बोला; "आप क्यों टेंशन ले रहे हैं महाराज? वह तो सीता को ढाढ़स बंधाने के लिए ऐसा कहा उसने. तीनों लोकों में जितने भी वीर हैं, सब आप ही के पास हैं. आने दीजिये उसे और उसकी वानर सेना को, देख लेंगे. कुछ नहीं कर पायेगा वह."

एक-एक करके सारे मंत्रियों और सलाहकारों ने लंकेश को यही बताया कि राम और उनकी वानर सेना उसका मुकाबला सपने में भी नहीं कर सकती. सबने रावण जी को भूतकाल में किये गए उनके पराक्रमों की याद दिलाई और उन्हें निश्चिन्त कर दिया. नाश्ता वगैरह के बाद मीटिंग ख़त्म हो गई और सब चले गए.

विभीषण के एक गुप्तचर ने जब इस मीटिंग की पूरी जानकारी उन्हें दी तो वे मन ही मन बुदबुदाये; "मीटिंग का मुद्दा होना चाहिए था सीता-हरण और बनाया गया लंका-दहन. हर लंकेश अँधा ही होता है."

Monday, March 24, 2014

२०१७ में इस वर्ष के भारतीय आम चुनाव सम्बंधित संभावित विकिलीक्स




चुनावों के शुभ अवसर पर एकबार फिर से विकिलीक्स चर्चा में है. विकिलीक्स ने वक्तव्य देकर बताया कि जूलियन असांज ने हल्ला मचाने वाली कोई बात नहीं कही. इस वक्तव्य को लेकर फिर हल्ला मचा. मैं तो कहता हूँ कि चुनाव का मौसम होता ही है हल्ला मचाने के लिए. आखिर इस मौसम में हल्ला नहीं मचेगा तो कब मचेगा? पिछले कुछ वर्षों में विकिलीक्स की वजह से बहुत हल्ला-गुल्ला मचा. जिस तरह के केबिल्स लीक हुए उन्हें पढ़कर यही लगा कि दुनियाँ भर में अमेरिकी डिप्लोमैट की नियुक्त ही इसलिए हुई है ताकि वे केबिल्स लिखकर अमेरिका की विदेशनीति को मजबूत करते रहे और विकिलीक्स उन्हें पूरी दुनियाँ को परोस सके.

चूँकि चार-पाँच साल पहले भेजे गए केबिल्स अब लीक हो रहे हैं, ऐसे में साल २०१७ में विकिलीक्स जो केबल्स लीक करेगा उनमें से महत्वपूर्ण केबल्स इस वर्ष के भारतीय आम चुनाव से सम्बंधित होंगे। आज सोच रहा था कि उन केबल्स में कैसे-कैसे खुलासे हो सकते हैं? शायद कुछ ऐसे;

केबल संख्या ए-१४५७००९ चुनावों को लेकर बीजेपी की नीति;

आज शाम इंडिया हैबिटैट सेंटर में बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने शाम की ड्रिंक पर हमारे एक अधिकारी पीटर स्कॉट को बताया कि पार्टी मानती है कि अब एक इतिहासकार की खोज कर ही ली जाय जो पार्टी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की हर रैली से पहले उन्हें इतिहास का पाठ पढ़ा सके. इस नेता का मानना है कि बुद्धिजीवियों को यह चिंता सताने लगी है कि प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार अगर इतिहास को उलट-पलट कर सकता है तो सरकार बना प्रधानमंत्री बनकर वो इतिहास का न जाने क्या-क्या कर देगा। भारतीय बुद्धिजीवियों का इसबात में प्रबल विश्वास है कि पीएम कैंडिडेट को वर्त्तमान की जानकारी भले ही न हो, इतिहास कि जानकारी होनी आवश्यक है.

केबल संख्या ए-१४५९२११ चुनावों को लेकर आम आदमी पार्टी की रणनीति;

आज सुबह आम आदमी पार्टी के नेता भगवानदास ने हमारे एक डिप्लोमैट को बताया कि पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल किस साइज की शर्ट पहनकर असली आम आदमी लगेंगे, इसबात को लेकर पार्टी में घमासान मचा है. केजरीवाल को चालीस यानि मीडियम साइज की शर्ट फिट होती है लेकिन वे चाहते हैं कि एक्स एक्स एल साइज की शर्ट पहनने से ही वे परफेक्ट आम आदमी लगेंगे। पार्टी कार्यकारिणी में इसको लेकर मतभेद उभरा क्योंकि कुछ नेताओं का मानना था कि वे लार्ज साइज का शर्ट पहनकर भी आम आदमी लगेंगे। काफी मान-मनौव्वल के बावजूद वे एक्स एल साइज से नीचे आने के लिए तैयार नहीं थे. ऐसे में यह फैसला हुआ कि पार्टी के नेताओं के बीच एक एस एम एस सर्वे के आधार पर फैसला लिया जाएगा कि अरविन्द केजरीवाल कौन सी साइज की शर्ट पहनेंगे?

केबल संख्या ए-१४६९०२२ चुनावों को लेकर कांग्रेस पार्टी की रणनीति;

कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने राहुल गांधी के खिलाफ कविवर कुमार विश्वास के चुनाव लड़ने को लेकर एक गम्भीर और समग्र चिंतन किया। पार्टी के एक नेता ने कल शाम हमारी कॉकटेल पार्टी में हमारे दूतावास के दोनों अधिकारियों, ह्वाइट एंड मैक्के को बताया कि वर्किंग कमिटी यह प्रस्ताव लाना चाहती थी कि कविवर कुमार विश्वास का मुकाबला करने के लिए जरूरी हो गया है कि राहुल गांधी कविता लिखना सीख लें. कुछ सदस्यों ने इसबात पर आशंका जताई कि इतने कम समय में राहुल के लिए कवि बनना ईजी नहीं है और अगर वे कविता करना सीख भी जाते हैं तो उन कविताओं को याद करके जनता में बीच उन्हें सुनाना उनके लिए लगभग असंभव है. बाद में जनार्दन द्विवेदी ने वर्किंग कमिटी को बताया कि राहुल को कवि बनाने और उन्हें कविता रटवाने का जिम्मा वे खुद लेंगे। जनार्दन द्विवेदी वही हैं जिन्होंने सोनिया गांधी को हिंदी सिखाई है.

केबल संख्या ए-१४६९०८५ चुनावों को लेकर कांग्रेस नेताओं की रणनीति;

कांग्रेस के एक नेता ने कल शाम हमारे एक अफसर को बताया कि इस चुनाव में पार्टी की हालत को देखते हुए कुछ नेता राहुल गांधी से नाराज हैं. दरअसल इन नेताओं की नाराजगी का कारण यह है कि राहुल गांधी ने केवल देश की जनता के लिए कानून बनाये या बनाने की कोशिश की और उनका ही ध्यान रखा. ये नेता चाहते थे कि राहुल इनके लिए भी राइट टू डेफ़ेक्शन नामक कानून ले आते जो इन नेताओं को चुनाव के ऐन मौके पर दूसरी पार्टी में जाने के लिए और उकसाता। भारतीय चुनावों की यह खासबात रही है कि चुनावों के आते ही नेता यह मानकर चलता है कि उसे अपनी पार्टी से असंतुष्ट होने का अधिकार है और वह असंतोष का दिखावा करके जिस पार्टी में घुसता है उस पार्टी को उसके असंतोष को उचित मान-सम्मान देने का अधिकार है. इन्हें अपने अधिकारों का पता वर्षों से रहा है, बस वे इसे एक कानूनी कुरता पहनाना चाहते थे.

केबल संख्या ए-१४६९०९८ चुनावों को लेकर दलों की नीति;

एक चुनावी पंडित ने हमारे एक अधिकारी को बताया कि कुछ पार्टियां इसबात पर विचार कर रही है कि वे डिफेक्शन को लेकर एक आम सहमति पर पहुंचें जिससे भारतीय लोकतंत्र को मजबूती प्रदान की जा सके. इसी कड़ी में कुछ नेताओं की तरफ से यह प्रस्ताव आया कि चुनावों के अवसर पर डिफेक्शन को और सरल बनाने के लिए पार्टियां अपने-अपने बैज बनावाएं। जैसे अगर कोई कांग्रेसी, सपाई, जेडीयुवी या राजदी नेता अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी में जाए तो पार्टी उसे तत्काल एक बैज प्रदान करे जिसपर "राष्ट्रभक्त" लिखा हो और अगर कोई नेता बीजेपी छोड़कर इन पार्टियों में जाए तो इन पार्टियों की तरफ से उसको एक बैज मिले जिसपर "सेक्युलर" लिखा हो. पार्टियों का मानना है कि अगर ऐसा हो गया तो फिर भारतीय लोकतंत्र की मजबूती पर एक मजबूत मुहर लग जायेगी।

केबल संख्या ए-१४७११६७ चुनाव फंड को लेकर आम आदमी पार्टी का फैसला;

हमारे अफसर को आम आदमी पार्टी के एक नेता ने बताया कि चूंकि पिछले कुछ दिनों में पार्टी को जनता की तरफ से पैसा नहीं मिल रहा है इसलिए पार्टी नेता योगेन्द्र यादव ने सुझाव दिया कि क्यों न सर्दियों में अरविन्द केजरीवाल द्वारा इस्तेमाल किये मफ़लर का ऑक्शन करके पार्टी के लिए कुछ फंड इकठ्ठा किया जाय. इसी नेता ने बताया कि अरविन्द केजरीवाल को मफ़लर लपेटने का सुझाव योगेन्द्र यादव ने ही दिया था और इस प्रयोग का आईडिया उन्हें उनके खुद के ईमेज बनाने में इस्तेमाल किये गए गमछे से मिला था. फोर्ड फाउंडेशन ने पार्टी नेताओं को अस्योर किया है कि फाउंडेशन जल्द ही क्रिस्टीज या सॉथबीज से बातकर ऑक्शन कराने की तारीख तय करेगा।

केबल संख्या ए-१४७११८७ चुनाव को लेकर बीजेपी की रणनीति;

बीजेपी के एक नेता ने हाल ही में बताया कि चुनावों के लिए नरेंद्र मोदी तो पार्टी का केवल एक मुखौटा हैं. इस बात का किसी पुराने केबल से मिलना महज संयोग है. विद्वान बताते हैं कि इतिहास खुद को दोहराता है.

केबल संख्या ए-१४७११९२ चुनाव को लेकर कुमार विश्वास की रणनीति;

कुमार विश्वास के बेहद करीबी एक नेता ने बताया कि कविवर ऐसा मानते हैं कि वे राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़कर अगर जीत गए तो संसद जायेंगे ही लेकिन अगर हार भी गए तो भी चिंता की बात नहीं। वे मानते हैं कि वे हार भी गए तो राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने का हवाला देकर वे भविष्य में होनेवाले कवि सम्मेलनों के लिए अपनी फीस करीब सवा सौ प्रतिशत बढ़ा सकेंगे।

केबल संख्या ए-१४७२३३६ अडवाणी की चिंता;

बीजेपी के एक नेता ने हमें बताया है कि अडवाणी पिछले कुछ हफ़्तों से चिंतित हैं. चिंता का कारण उन्हें मिली यह जानकारी है जिसमें पार्टी के नेता एक-दूसरे से मिलते तो है तो कहते हैं कि अडवाणी जी अब पहले वाले अडवाणी नहीं रहे. नेताओं को इसबात पर आश्चर्य है कि अडवाणी पिछले कई महीनों से नाराज नहीं हुए. इसबात को लेकर अडवाणी जी ने फैसला लिया है कि अगर उन्हें गुजरात में गांधीनगर से टिकट मिला तो वे भोपाल से चुनाव लड़ने की बात करेंगे और अगर भोपाल से टिकट मिला तो गांधीनगर से लड़ने की बात करेंगे ताकि नाराज हो सकें और पार्टी नेताओं को विश्वास हो जाए कि आडवाणी अब भी वही पुराने आडवाणी हैं और साथ ही ऐक्टिव भी हैं.

केबल संख्या ए-१४७२७७४ वामपंथी बुद्धिजीवी का विरोध;

हमारे अफसर से मुलाक़ात के दौरान एक वामपंथी बुद्धिजीवी ने बताया कि वे और उनके जैसे कई बुद्धिजीवी नया आंदोलन खड़ा करेंगे जिसके तहत अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ नए सिरे से लड़ाई छेड़ी जायेगी। इन बुद्धिजीवियों का मानना है कि अगर अँगरेज़ अपने साथ भारत में चाय न ले आते तो नरेंद्र मोदी इतने लोकप्रिय नहीं होते जितने वे आज हैं. जैसा कि हमने अपने केबल संख्या ए-१४४७८८१ में बताया था कि मोदी पूरे देश में चाय पर चर्चा कार्यक्रम चलाकर अपना चुनाव प्रचार कर रहे हैं.

केबल संख्या ए-१४७२८०१ चुनाव प्रचार;

केरल में एक कांग्रेसी उम्मीदवार के चुनावी मैनेजरों ने हमारे अपने देश याने यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका की सबसे बढ़िया हाइवेज में से एक कंसास हाइवे का फ़ोटो कांग्रेस के पोस्टर में लगाकर बताया कि कांग्रेस की नेता सोनिया जी के आशीर्वाद से ही यूपीए सरकार वह सड़क बनवा सकी. जहाँ कांग्रेस पार्टी ने हमारे अपने हाइवे को अपना बताया वहीँ यहाँ के सबसे बड़े स्टेट यूपी में सरकार चलानेवाली समाजवादी पार्टी के चुनाव प्रचारकों ने विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट एल्पाइन रोड का फ़ोटो दिखाकर यूपी की जनता को बताया कि वह रोड वहाँ के यंग चीफ मिनिस्टर अखिलेश यादव ने खुद बनवाया है. बीजेपी वालों ने न्यूजीलैंड के एक हाइवे का फ़ोटो लेकर उसे गुजरात का बता डाला। यह सब देखकर हमारे दूतावास के अधिकारी यही सोच रहे हैं कि गूगल की वजह से अब हाइवेज को कहीं से भी टेलीपोर्ट करके भारत लाया जा रहा है.

भारतीय चुनावों से रिलेटेड हमारे केबल्स हम अगले हफ्ते फिर भेजेंगे।

Thursday, January 30, 2014

युवराज दुर्योधन का साक्षात्कार




आज युवराज दुर्योधन की डायरी के बिखरे पन्नों के बीच उनका एक इंटरव्यू मिला जो द्वापर युगीय किसी पत्रकार ने लिया था जिसका नाम चिंतामणि गोस्वामी है. गोस्वामी जी का कोई विकीपेज तो नहीं जिससे उनके बारे में जानकारी मिले लेकिन इंटरव्यू में उन्होंने जैसे सवाल किये, उन्हें पढ़कर कहा जा सकता है कि वे बड़े धाकड़ पत्रकार थे. मुझे पूरा विश्वास है कि उनके अंदर पत्रकारिता इस तरह से भरी थी कि उनके वंशज आज के भारतवर्ष में कहीं न कहीं पत्रकारिता झाड़ रहे होंगे।

खैर, आप युवराज का इंटरव्यू बांचिये जो मैं यहाँ नीचे टाइप कर रहा हूँ.


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चिंतामणि गोस्वामी: स्वागत है युवराज आपका. आपने साक्षात्कार के लिए समय दिया, उसके लिए मैं आपका आभारी हूँ.

युवराज: धन्यवाद गोस्वामी जी.

चिंतामणि गोस्वामी: युवराज, साक्षात्कार के आरम्भ में ही मैं आपको सूचित कर दूँ कि मैं आपसे जो प्रश्न पूछूंगा वे विशिष्ट प्रश्न होंगे. विशिष्ट इसलिए क्योंकि ऐसे प्रश्न आपसे से निकटता रखनेवाले किसी पत्रकार ने पहले नहीं किये होंगे.

युवराज: जैसी आपकी इच्छा पत्रकार श्री. मुझे कोई आपत्ति नहीं है.

चिंतामणि गोस्वामी: मेरा पहला प्रश्न यह है कि आपने पिछले चौदह वर्षों में व्यक्तिगत साक्षात्कार नहीं दिया. क्या कारण है?

युवराज: ऐसा नहीं है कि मैंने साक्षात्कार नहीं दिया.

चिंतामणि गोस्वामी: युवराज मैं व्यक्तिगत साक्षात्कार के बारे में कह रहा था. आपने इससे पहले चौदह वर्ष पूर्व संवाददाताओं के साथ एक प्रश्नोत्तर सत्र किया जब समाचार माध्यमों ने आपके ऊपर आरोप लगाया था कि आपके संबंध पुरोचन से थे.

युवराज: मैं हस्तिनापुर में परिवर्तन देखना चाहता हूँ.

चिंतामणि गोस्वामी: आपके पुरोचन से संबंध थे या नहीं?

युवराज: प्रश्न यह नहीं कि पुरोचन के साथ मेरे संबंध थे या नहीं? प्रश्न यह है कि युवराज सुयोधन कौन हैं?

चिंतामणि गोस्वामी: कौन हैं युवराज सुयोधन?

युवराज: चलिए मैं आपसे प्रश्न पूछता हूँ. आप बताएं कि कौन हैं चिंतामणि गोस्वामी?

चिंतामणि गोस्वामी: आप मुझसे प्रश्न पूछ रहे हैं?

युवराज: हाँ. आप बताएं न कि कौन हैं चिंतामणि गोस्वामी? देखिये, आप जब छोटे होंगे तब आपके मन में तो आया ही होगा कि बड़े होकर आप क्या बनेंगे?

चिंतामणि गोस्वामी: ये मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं हुआ युवराज.

युवराज: चलिए मैं आपको बताता हूँ कि चिंतामणि गोस्वामी कौन हैं? चिंतामणि गोस्वामी बाल्यकाल में कुछ बनना चाहते होंगे. अब वे युवराज तो बन नहीं सकते ऐसे में वे पत्रकार बन गए. अब प्रश्न यह है कि वे युवराज क्यों नहीं बन सकते?

चिंतामणि गोस्वामी: अच्छा चलिए मैं दूसरा प्रश्न पूछता हूँ. आपने पांडवों को लाक्षागृह में आग लगाकर मारने का प्रयत्न किया?

युवराज: पांडव हमारे प्रिय है.

चिंतामणि गोस्वामी: परन्तु आपने उन्हें मारने का प्रयत्न किया था या नहीं?

युवराज: मैं बाल्यकाल से ही पांडवों से प्रेम करता हूँ. इस पृथ्वी पर पांडव मेरे सबसे प्रिय रहे हैं.

चिंतामणि गोस्वामी: लेकिन आपने फिर भी उनकी हत्या करने का प्रयास किया?

युवराज: आग मैंने नहीं लगाई थी.

चिंतामणि गोस्वामी: चलिए मैं आपसे एक और प्रश्न पूछता हूँ. आपने गुरु द्रोण की पाठशाला में भीम को भी मारने का प्रयत्न किया था?

युवराज: मेरे पिताश्री धृतराष्ट्र जन्म से अंधे हैं.

चिंतामणि गोस्वामी: यह मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं हुआ.

युवराज: चलिए मैं अपनी बात को ऐसे समझाता हूँ. पत्नी के कहने पर आप हाट में आलू लेने जाते हैं और आपको बीच में आभूषणों का व्यापारी मिल गया. क्या आप आलू भूलकर आभूषण पर मुद्रा व्यय करेंगे? नहीं करेंगे. क्यों? क्योंकि आपके पास उतनी मुद्रा है ही नहीं.

चिंतामणि गोस्वामी: मैं आपसे एक और प्रश्न करता हूँ. आपने दुशासन को आदेश क्यों दिया कि वे द्रौपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र कर दें?

युवराज: मेरी माताश्री ने विवाहोपरांत अपनी आँखों पर पट्टी बांधने का संकल्प लिया था.

चिंतामणि गोस्वामी: यह मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं हुआ युवराज.

युवराज: आप मेरी बात को ऐसे समझने का प्रयत्न करें. देखिये, नितिशास्त्र कहता है कि हर कार्य धर्मानुसार होना चाहिए. अब आप कोई कार्य धर्मानुसार तब तक नहीं कर सकते जबतक आपको धर्म की व्याख्या का ज्ञान नहीं है. प्रश्न यह नहीं कि द्रौपदी को निर्वस्त्र करने का प्रयत्न किया गया या नहीं, प्रश्न यह है कि धर्म क्या होता है? एक और प्रश्न यह भी है कि क्या चिंतामणि गोस्वामी धर्म का पालन कर रहे हैं? इसका उत्तर यह है कि वे नहीं कर रहे क्योंकि उन्होंने पत्रकारिता की शिक्षा ली है, धर्म की नहीं. अब प्रश्न यह उठता है कि जब उन्होंने धर्म की शिक्षा नहीं ली तो फिर धर्म की शिक्षा किसने ली? उत्तर यह है कि धर्म की शिक्षा युवराज सुयोधन और उनके भाइयों ने ली. अब प्रश्न यह है कि किससे ली? तो उसका उत्तर यह है कि गुरु द्रोण से ली. तो जब हर प्रश्न का प्रमाणिक उत्तर मैं आपको दे ही रहा हूँ तो फिर यह कहना कि मैं आपके प्रश्न का सही उत्तर नहीं दे रहा, तर्कसंगत नहीं जान पड़ता.

चिंतामणि गोस्वामी: परन्तु युवराज, मेरा प्रश्न यह था कि आपने द्रौपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र करने की आज्ञा क्यों दी?

युवराज: मैंने जब अपने बाल्यकाल से ही अपनी माताश्री को आँखों पर पट्टी बांधे देखा तभी से मेरे ह्रुदय में यह बात घर कर गई कि बड़ा होकर मुझे स्त्रियों के अधिकार के लिए कुछ करना है. मैंने तभी से अपना पूरा जीवन स्त्रियों के अधिकार की रक्षा में समर्पित कर दिया.

चिंतामणि गोस्वामी: अच्छा कुरु-नंदन, मेरा प्रश्न अब राज्य की समस्याओं के बारे में है. यह बताएं युवराज कि हस्तिनापुर में मंहगाई की समस्या, भ्रष्टाचार की समस्या, किसानो की समस्या और ऐसी ही न जाने कितनी और समस्याएं हैं, जिनसे हस्तिनापुरवासी संघर्ष कर रहे हैं. आपके पास शक्ति है कि आप इन समस्याओं का समाधान कर सके. आपने आजतक कभी इस समस्याओं का समाधान की दिशा में क्यों नहीं सोचा?

युवराज: मैंने इन समस्याओं पर समग्र चिंतन किया है.

चिंतामणि गोस्वामी: परन्तु किसी ने आपको इन समस्याओं पर बात करते नहीं देखा.

युवराज: मैंने अपनी डायरी में इन समस्याओं और इनसे जुडी चिंताओं का वर्णन किया है.

चिंतामणि गोस्वामी: परन्तु प्रजा-जनों को आपकी डायरी से क्या लेना-देना?

युवराज: आपने मेरे उत्तर को समझा नहीं. चलिए मैं आपको ऐसे समझता हूँ. कल्पना कीजिये कि मैं आखेट के लिए जंगल में गया. आप प्रश्न कर सकते हैं कि आपके प्रश्न का मेरे आखेट और हस्तिनापुर के जंगल से क्या लेना-देना? तो उसका उत्तर यह है कि आखेट ही हर प्रश्न का उत्तर है. और मैं जबतक जंगल में नहीं जाऊँगा तबतक आखेट नहीं कर पाऊंगा. प्रश्नों के जंगल में ही कहीं उत्तरों का भी एक जंगल समाया हुआ है. मैंने हमेशा से प्रश्न और उत्तरों के जंगल में विचरण करने को ही अपना धर्मं माना है. इस काल की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि हम युवराजों के लिए आरक्षित जंगलों को प्रजा-जनों के लिए खोल दें. यदि जंगल खुले तो हर प्रश्न के साथ उसका उत्तर भी खुल जायेगा परन्तु समस्या यह है कि जब मैं जंगलों को खोलने की बात करता हूँ तो पांडव यह बात नहीं करते.

चिंतामणि गोस्वामी: युवराज मेरा अगला प्रश्न यह है कि आपके मामाश्री क्या आपको अधर्म करने के लिए उकसाते रहे हैं?

युवराज: जब पाठशाला में गुरु द्रोण ने एकलव्य को धनुर्विद्या सिखाने से मना कर दिया था मुझे उसी क्षण लगा था कि ये एकलव्य एकदिन बहुत बड़ा धनुर्धर बनेगा।

चिंतामणि गोस्वामी: युवराज यह मेरे प्रश्न का उत्तर कैसे हुआ?

युवराज: यही कारण है कि मैं हस्तिनापुर में राजपाट के तौर-तरीके में आमूल-चूल परिवर्तन करना चाहता हूँ. धर्म क्या है? अधर्म क्या है? प्रश्न क्या और उत्तर क्या है? इन सब बिंदुओं पर विचार कर उनकी पुनः व्याख्या प्रजा-जनों को संतोष प्रदान करेगी।

चिंतामणि गोस्वामी: युवराज, ये बताएं कि प्रजा-जनों के भले के बारे में आपके पास कोई योजना है?

युवराज: हमारे पास प्रजा-जनों की भलाई की समग्र योजना है. हम निकट भविष्य में हस्तिनापुरवासियों को खेल-कूद का सम्पूर्ण अधिकार प्रदान करने वाले हैं.

चिंतामणि गोस्वामी: युवराज मेरा एक प्रश्न यह है कि क्या आप भीम से लड़ने के लिए उद्यत हैं? मैं यह प्रश्न इसलिए पूछ रहा हूँ कि प्रजा-जनों में ऐसे अनुमान लगाये जा रहे हैं कि आप भीम से भयाक्रांत हैं. इस बात को कहाँ तक सत्य माना जाय?

युवराज: मैंने बाल्यावस्था से ही अपने पिताश्री को संजय के सहारे चलते हुए देखा है. मेरी माताश्री ने विवाहोपरांत ही आँखों पर पट्टी बांधने का निर्णय ले लिया था. मेरी एकमात्र बहन का विवाह जयद्रथ जैसे हलकट के साथ हो गया. मेरे मामाश्री न जाने कितने वर्षों से अपनी बहन के घर की रोटियां तोड़ रहे हैं. पितामह ने सदैव अर्जुन को ही अपना चहेता माना. मैं द्रौपदी स्वयंवर में द्रौपदी को वरण नहीं कर पाया. भीम बाल्यावस्था में हम भाइयों को पटककर मारता था. भीम को विष देकर मारने का प्रयत्न किया तो वह नागलोक में जाकर और बलशाली बन गया. मित्र कर्ण को द्रौपदी ने सूत-पुत्र कहा और मैं कुछ नहीं कर पाया. गुरु द्रोण को वचन देने के उपरांत भी मैं महाराज द्रुपद को बंदी बनाकर लाने में असफल रहा. पत्रकार श्री जिस युवराज सुयोधन के साथ इतनी दुर्घटनाएं हुई हों, उसके पास खोने को क्या रह जाता है? मुझे अब किसी से भय नहीं लगता.

चिंतामणि गोस्वामी: तो क्या मैं यह निष्कर्ष निकालूँ कि आवश्यकता पड़ने पर आप भीम से युद्ध करने के लिए तत्पर हैं?

युवराज: न केवल तत्पर हूँ अपितु यह भी कहता हूँ कि भीम का वध भी करूँगा।

चिंतामणि गोस्वामी: हे कुरु-नंदन आपने यह साक्षात्कार देकर मुझे अनुगृहीत किया. धन्यवाद.

युवराज: धन्यवाद.