By फ़ुरसतिया on March 11, 2011
आज ज्ञानजी की पोस्ट पढ़ी- डिसऑनेस्टतम समय। इसमें तमाम साथियों की टिप्पणियां हैं। इससे लगा कि हम अपने सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। मैंने सोचा हम भी उदास हो जायें लेकिन इसी समय मुझे अपनी एक पुरानी पोस्ट याद आयी- आशा ही जीवन है। यह लेख उस समय हमने अनुगूंज के नवें लिये […]
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By फ़ुरसतिया on September 5, 2009
आज शिक्षक दिवस है। लोग कहते हैं कि शिक्षा का स्तर गिर गया है। पतित हो गयी है शिक्षा व्यवस्था। हर तरफ़ ट्यूशन का बोलबाला है। जितने मुंह उससे चार गुनी बातें! हर जागरूक व्यक्ति का हर मामले में कुछ न कुछ “मेरा तो यह मानना है” रहता है । जागरुक चाहे एक बार भले […]
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By फ़ुरसतिया on August 26, 2009
वे हिन्दी ब्लागिंग के शुरुआती दिन थे। साथी ब्लागरों को लिखने के लिये उकसाने के लिये देबाशीष ने अनुगूंज का विचार सामने रखा। इसमें एक दिये विषय पर लोगों को लिखना था। लिखने के बाद अक्षरग्राम पर लेखों की समीक्षा होती। पहली अनुगूंज का विषय था- क्या देह ही है सब कुछ? 25 अक्टूबर को […]
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By फ़ुरसतिया on August 13, 2009
आजकल रोज डेली तमाम तरह के एस.एम.एस. आते हैं मोबाइल पर। कुछ में दोस्त लोग चुटकुले, शेरो-शायरी भेजते हैं और बाकी में मोबाइल कम्पनियां अपने विज्ञापन। एक विज्ञापन आजकल रोज आ जा रहा है: मिसिंग समवन तो इजहार कीजिये अपने दिल के जजबात का मिस यू मेसेज के संग। मिस यू मेसेज पाने के लिये […]
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By फ़ुरसतिया on January 8, 2009
पिछली पोस्ट पिछले साल लिखी थी। १९ दिसम्बर को। इस बीच साल निकल गया। न जाने कित्ते शुभकामना सन्देशों का आदान-प्रदान हो गया। कई उधारी में पड़े हैं। सबके जबाब देने हैं। रोज सोचते हैं आज लिखेंगे, कल लिखेंगे। लिख नहीं पाते। कोई नाराज होगा तो मना ही लेंगे। यही विश्वास आलस्य को बढ़ावा देता […]
Posted in अनुगूंज, कविता, जिज्ञासु यायावर, बस यूं ही, लेख, सूचना | Tagged features |
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