गुलाबी शहर में मिलना कुश से और लविजा के पापा से
बीता साल मजेदार बीता। तमाम अच्छे अनुभव जुड़े। उनके बारे में फ़िर कभी विस्तार से लिखेंगे। फ़िलहाल आप गये साल और नये साल के कुछ फ़ोटो देखिये। गये साल के आखिरी दिनों में राजस्थान में जयपुर, जोधपुर, अजमेर ,पुष्कर जाना हुआ। जयपुर में कुश और लविजा के पापा सैयद भाई से मिले। काफ़ी विद कुश में कुश ने कई साथियों को वर्चुअल काफ़ी पिलाई है। हम जयपुर गये तो एकसाथ तीन रियल कॉफ़ी पी के आये। कॉफ़ी के साथ ब्लॉगजगत के न जाने कित्ते किस्से घुले-मिले थे। और तो सब ठीक रहा लेकिन कुश जिस तरह मोटर साइकिल चलाते हैं उससे लगता है कि जयपुर के ट्रैफ़िक आफ़ीसर ने उनको चेतावनी दे रखी होगी कि बेटा जिस दिन कायदे से गाड़ी चलाते पकड़े गये उसी दिन चालान हो जायेगा। जयपुर में मौसम खुशनुमा और कुछ हल्का गुनगुना था। हमारे लौटते ही वहां शीत लहर चलने लगी।
फोटो बायें से: 1. कुश-सैयद 2.कुश-अनूप 3. अनूप,कुश और सैयद 4.अनूप,कुश और सैयद 5. सैयद-अनूप 6. कुश-अनूप
दिल्ली में खुशदीप, श्रीश प्रखर और सागर से मुलाकात
जयपुर से लौटे तो साल का आखिरी दिन था। जहां रुके थे वहां से पास ही खुशदीप का घर था। उनसे मिलने गये। खुशदीप के परिवार वाले बरेली गये थे। खुशदीप पोस्ट बढ़िया लिखने के साथ चाय भी शानदार बनाते हैं। यह इसलिये बता रहे हैं कि अभी तक किसी ने शायद उनके इस हुनर की तारीफ़ नहीं की। खुशदीप ने ब्लॉग जगत में अपने आगमन के किस्से सुनाये। खुशदीप हमको ’महागुरूदेव ’ की उपाधि से विभूषित कर रखा है। हमने उनसे कहा –भैये, ब्लॉगजगत के हमारे लेख कोई सुधी पाठक पढ़ता होगा तो सोचता होगा कि ये ’महागुरुदेव’ लोग ऐसा चिरकुट लेखन करते हैं। लेकिन खुशदीप के अपने तर्क हैं लेकिन मुझे लगता है कि इस तरह की अतिशयोक्ति पूर्ण आभासी उपधियां हमारे दिमाग में हवा भर देती हैं और दिमाग को हवा में उड़ा देती हैं, हवा-हवाई बना देती हैं।
वैसे यह बात तो लिखने की है। हमारे कानपुर की बोली बानी के गुरु शब्द के इतने मतलब हैं कि सिर्फ कहने और सुनने वाले का संबंध ही इसके मायने तय कर सकता है। जब गुरू में इत्ता लफ़ड़ा तो महागुरू के हाल न ही पूछिये।
खुशदीप से मिलने के बाद फ़िर जे.एन.यू. जाना हुआ। वहां श्रीश ’प्रखर ’ से मिलना हुआ। सागर को उन्होंने वहीं बुला लिया था। अमरेन्द्र सर घर गये थे। जाहिर है कि उनकी चर्चा काफ़ी हुई। उनसे फ़ोनालाप भी हुआ।
श्रीश हालांकि जे.एन.यू. में रिसर्च रत हैं लेकिन वे मॉडलिग में भी कैरियर आजमा सकते हैं। चाय शानदार बनाते हैं। उस दिन वहां का ऐतिहासिक गंगा ढाबा बंद था। पता चला कि बाहर के कुछ लड़के जे.एन.यू. की लड़कियों को छेड़कर चले गये थे। इसके चलते वहां का ढाबा बन्द हो गया था। ताज्जुब कि वहां की छात्राओं को बाहर के लोग छेड़कर चले जायें! सागर हड़बड़ाते हुये आये। सर्दी थी। दिल्ली में काम के चक्कर में चप्पल चटकाते हुये उनके बाल काफ़ी कम हो गये हैं। उनका खुद का मानना है कि वे धुंआधार सोचते हैं गजलों के बारे में इसीलिये उनके बालों ने समर्थन वापस ले लिया। कुश ने आज लिखा भी है उनकी पोस्ट में– कविताये लिखते हो या खौलते हुए तेल में तलते हो.. ? अब जहां से निकली कवितायें खौलती हुई लगें वहां बालों का टिकना कितना मुमकिन होगा?
ढेर सारा बतियाने के बाद जब हम लोगों श्रीश को छोड़ा इसके बाद सागर ने मुझे मेट्रो स्टेशन में विदा किया तो रात के साढ़े नौ बजे थे करीब। सर्द शाम की एक गर्मजोशी भरी मुलाकात अभी भी याद आ रही है।
फोटो बायें से 1. खुशदीप-अनूप 2. अनूप-सागर 3. अनूप-श्रीश प्रखर 4.सागर-श्रीश प्रखर
और कानपुर में मुलाकात मास्टरनी जी से
नये साल के शुरू में कानपुर में हमारी मुलाकात वंदनाजी और शेफ़ाली पांडेय से हुई। दोनों पेशे से अध्यापिका हैं। वंदना जी ने तो लिखा था कि कानपुर में हम लोगों की मुलाकात न हो सकेगी लेकिन मुझे लगता था कि मिलना होगा। संयोग कि उस दिन उनकी गाड़ी 13-14 घंटे लेट हो गयी और उनको हमसे मिलने के लिये स्टेशन से वापस आना पड़ा। मुलाकात एक नर्सिंग होम में हुई जहां उनकी बहन इलाज के लिये भर्ती थीं। उनके बहनोई सुनील तिवारी को हम कमाल कानपुरी के नाम से जानते थे। लेकिन मिलना-जुलना कभी नहीं हुआ था। मिले तो उन्होंने बताया कि उन्होंने मुझे तीन बार फ़ोन भी किये थे लेकिन रास्ते में होने के कारण बात न हो सकी थी। शायद उनके पैसे बचने थे और मुलाकात का श्रेय वंदनाजी को ही मिलना था।वंदनाजी के साथ उनकी बिटिया विधु भी आई थी। बीच-बीच में विधु से भी काफ़ी बातें हुईं।
शेफ़ाली को जब हमने फोन किया तो पता चला कि वे उस समय पास रेव मोती से अपने घर के लिये निकल रहीं थीं। उनको भी हम वहीं ले आये और दो अध्यापिका ब्लागरों का मिलन हुआ। हम आपस में पहली बार मिले। पहले तो चाय की दुकान पर चाय-सत्रों के दौरान बातें हुईं। इसके बाद और गपशप हुई वहीं पर। फ़िर वन्दनाजी को ट्रेन पकड़ने जाना था सो हम लोग शेफ़ालीजी के यहां गये। रास्ते में उनकी बिटिया नव्या ने एक कविता सुनायी। कविता के बाद नव्या ने जो सुनाया वह आपने शायद पहले कभी न सुना हो। कैपिटल, स्माल और कर्सिव ए.बी.सी.डी. पड़ रखी होगी, लिखी भी होगी लेकिन सुनी नहीं होगी कभी आपने। लेकिन नव्या ने हमको तीनों तरह की अंग्रेजी वर्णमाला सुनाई। आप भी सुनिये नव्या की कविता और अंग्रेजी की वर्णमाला।
शेफ़ाली जी के घर में उनके पति श्री पांडेजी से मिलना हुआ। उन्होंने बताया कि शेफ़ाली का आत्मविश्वास ब्लॉगिंग शुरू करने के बाद बढ़ा है।शेफ़ाली ने अपनी माताजी की कविताओं की किताब भी हमको भेंट की। उन्होंने अपनी पोस्टों के ड्राफ़्ट भी दिखाये। वे पोस्ट लिखने के पहले उसको अपनी कापियों में लिखती हैं तब पोस्ट करती हैं।
साल की शुरुआत अपने पसंदीदा ब्लॉगर साथियों से सपरिवार मुलाकात एक खुशनुमा अनुभव है।
फ़ोटो: 1.सुनील,अनूप, विधु, वंदना,शेफ़ाली और नव्या 2.सुनील,अनूप, विधु, वंदना,शेफ़ाली और नव्या 3.वंदना-शेफ़ाली 4..नव्या अपनी मम्मी के साथ 5.शेफ़ाली और उनके पति 6. शेफ़ाली के पोस्ट ड्राफ़्ट
नव्या की तीन तरह की एबीसीडी
मेरी पसंन्द
मैं हूं अग़र चराग़ तो जल जाना चाहिये
मैं पेड़ हूं तो पेड़ को फ़ल जाना चाहिये!
रिश्तों को क्यूं उठाये कोई बोझ की तरह
अब उसकी जिन्दगी से निकल जाना चाहिये।
जब दोस्ती भी फ़ूंक के रखने लगे कदम
फ़िर दुश्मनी तुझे भी संभल जाना चाहिये।
मेहमान अपनी मर्जी से जाते नहीं कभी
तुम को मेरे ख्याल से कल जाना चाहिये।
नौटंकी बन गया हो जहां पर मुशायरा
ऐसी जगह सुनाने ग़ज़ल जाना चाहिये।
इस घर को अब हमारी जरूरत नहीं रही
अब आफ़ताबे-उम्र को ढ़ल जाना चाहिये।
अरे वाह!!! आज तो हम लोग छा गये आपकी पोस्ट पर!! सचमुच कानपुर यात्रा यादगार यात्रा में तब्दील हो गई है. खुशनुमा माहौल में हम सब की मुलाकात! अद्भुत! शेफाली जी की बिटिया खूब चं चल है. मज़ा आ गया उसकी ए, बी,सी, डी सुन के. जयपुर यात्रा भी शानदार रही आपकी. मज़ा आया पढ के.
‘जयपुर में कुश और लविजा के पापा सैयद भाई से मिले’ । ये वाक्य पढ़ कर पहले तो हम समझे कि सैयद भाई कुश और लविजा के पापा हैं, लेकिन फ़ोटो में वो कुश के पापा लगने के लिए थोड़े छोटे लग रहे थे इस लिए फ़िर से पढ़ा कि क्या लिखा है आप ने…॥:)
फ़ोनालाप? पहली बार ये शब्द सुन रहे हैं।…:)
हा हा हा …नव्या की तीन तरह की ए बी सी डी इस पोस्ट की सबसे बड़िया हाई लाइट है, वैरी क्युट्…
इस घर को अब हमारी जरूरत नहीं रही
अब आफ़ताबे-उम्र को ढ़ल जाना चाहिये।
बहुत खूब
@वंदनाजी शुक्रिया आपकी प्रतिक्रिया का। आप लोगों से मिलना बहुत अच्छा अनुभव रहा।
@अनीताजी, शुक्रिया। आपकी प्रतिक्रिया आने के पहले ही मैं इसे देख चुका था और जयपुर वाला शीर्षक सही कर चुका था।
अनुपस्थित होने पर भी उपस्थित हूँ मैं
हर साल ऐसे नयापन लिए आये ,,,
शीर्षक के नीचे पेराग्राफ़ में भी ठीक कर लिजिए जहां नीले रंग में लिंक दिये हुए हैं ।
साल के अंत में और आरंभ में आप बहुत लोगों से मिले। हम भी दिल्ली के आस-पास ही होते हुए भी किसी से न मिल पाए। सब इधर उधऱ थे। जयपुर से बहुत दूर नहीं है कोटा। इधर भी आइये कभी।
अच्छा लगा आपका मिलन वृतांत पढ़कर.
महागुरुदेव अनूप जी,
चाय की दुकान नोएडा में ही खोलूं या कानपुर में ग्रीन पार्क के पास कोई अच्छा सा खोखा दिलवा देंगे…
खैर छुटकी सी मौज एक तरफ़…इकत्तीस दिसंबर का दिन मेरे लिए यादगार रहा…ड्यूटी जाने से पहले आपके दर्शन हो गए…पंद्रह-बीस मिनट का साथ ही रहा लेकिन मेरे लिए यादगार बन गए…दूसरे उसी दिन मैंने पहली बार फोन पर डॉ टी एस दराल की आवाज़ सुनी…नववर्ष की शुभकामनाएं देती हुईं…मेरे लिए वो टू इन वन खुशी वाला दिन बन गया…
बाकी आपकी इस पोस्ट के ज़रिए कुश, सागर, श्रीश के साथ-साथ वंदना जी और शेफाली बहना के परिवार से भी मुलाकात हो गई…
जय हिंद..
आप से और वंदना जी से मुलाक़ात यूँ अचानक हो जाएगी, सोचा नहीं था, लगा ही नहीं था कि पहली बार मिल रहे हैं, ठिठुरता हुआ दिन, चाय की चुस्कियां, ब्लॉग जगत की बातों से लेकर नव्या की ए, बी, सी, डी, सब कुछ अविस्मरणीय रहेगा .और अनूप जी हम चाय बनाने क्या गए, आपने मेज़ पर बिखरे हुए हमारे कच्चे चिट्ठे की फोटो खींच ली,ये ठीक नहीं किया .
आमने सामने न सही पर चित्रों के माध्या से तो मुलाकात हो ही गई!
वाह!
खुशनुमा मुलाकातों की बढ़िया तस्वीरें और मीठे संस्मरण
बी एस पाबला
रिश्तों को क्यूं उठाये कोई बोझ की तरह
अब उसकी जिन्दगी से निकल जाना चाहिये।
” सुन्दर वर्णन सबसे मुलाकातों का…, ये सफ़र यूँही चलता रहे..”
regards
बिते साल को याद करने का यह तरीका पसन्द आया.
वाह मिनि ब्लॉगर सम्मेलन टाईप का हो गया ये तो और बहुत सारी बातें भी पता चल गयीं, ब्लॉग जगत से हट के…. जैसे खुशदीप जी चाय बहुत अच्छी बनाते हैं…
वाह! इतने सारे लोगों से मिल लेना वहुत बड़ी बात है. सुन्दर पोस्ट.
वाह ये मुलाकातें तो बहुत बडिया लगीं त्5ास्वीरें भी सुन्दर हैं धन्यवाद्
हम तो दिसंबर के लास्ट वीक में जैसलमेर छुट्टिया मनाने गए थे जी.. ये किससे मिल लिए आप..?
इस सर्दी में इन आत्मीय मुलाकातों की हरारत बहुत भली लग रही है.
लीजिए , हमें का पता था कि आप ओईसे ही फ़ुर्सतिया कहते हैं अपने आप को बताईये तो भला दिल्ली आए और निकल लिए अजी मिले नहीं तो कौनो गम नहीं मुदा बतिया तो लईबे करते आपसे ,ई तो आप घूम घूम के एतना लोगन से मिल लिए कि साल का एंडिंग और साल का बिगनिंग दुनु टनाटन हो गया , अगली बार आईयेगा तो बिना मिले नहीं जाने देंगे ,,जासूस सब लगा दिए हैं
nice.
शेफाली कागज पर लिखती हैं ड्राफ्ट – रोचक!
महागुरुदेव, आप यूँ क्यों नहीं कहते कि जाते हुये वर्ष 2009 को दौड़ा कर आपने एक सद्भावना यात्रा कड्डाली !
ए बी सी डी तो एकदम क्यूट !
जलन हुयी, घोर जलन…आप jnu गए और घूम के आ भी गए…उसपर वहां के हॉस्टल का फोटो…बस धुआं निकल रहा है देख कर. मस्त रहा जी नया साल आपका, फुर्सत में घुमक्कड़ी, भाई वह
प्यारे अनूप कहाँ कहाँ घुमते रहते हो ,कभी मेरठ भी आओ .
लीजिये आपके बहाने हम भी सब से मिल लिये। ज्ञानदत्त जी की तरह हम भी हैरान हुये कि शेफाली जी कागज पे अपने पोस्टों के ड्राफ्ट लिखती हैं…
औअर सागर मियां अपने प्रोफाइल वाली तस्वीर से यहां तो बिल्कुल अलग से दिख रहे हैं…
खूब मजेदार पोस्ट, देव।
ham kal fursat me tipiyayenge..
सुंदर यात्रा वृतांत । चित्रों की सलीकेदार प्रस्तुति ।
तीन तरह की एबीसीडी और मुनव्वर राना की गजल के लिए शुक्रिया ।
WAAH !!! ITTE SAARE LOGON SE MIL MILA AAYE….SABKE DAMAKTE CHEHRE BATA RAHE HAIN KI SABHI EK DOOSRE SE MIL KITNE HARSHIT AUR UTSAHIT HAIN…
MUNNVVAR RANA JEE KI RACHNA TO LAJAWAAB HAI…..
आपकी सूचनार्थ :-
ताऊ पापा के बडे भाई होते हैं पापा नही.
रामराम.
baar baar din ye aaye ,aesa sama na hota ,kuchh bhi yahan na hota ,mere hamraahi jo tum na hote ,ye bol gaane ke yaad aa gaye anup ji jab sabhi mitro ke saath bitaye huye in adbhut palo ko dekha aur padha ,navya ki abcd suni aur aapki hansi bhi ,sab milakar ye yaatra yaadgaar ban gayi aap sabhi logo ke liye .
बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत था फ़ुरसतिया जी। आपने इस यात्रा में जो मुलाकातें की उनका आनंद आपके साथ साथ मित्रों को भी आया होगा। नव्या की ए बी सी बली प्याली थी।
यानी कि जहाँ जहाँ से गुजरे चाय का जुगाड़ पहले से कर लिया…अच्छा है इस वर्चुवल वर्ल्ड से असल जिंदगी में आना भी जरूरी है
बहुत अच्छी प्रस्तुति ,सब से मिल कर हमें भी अच्छा लगा .
मुनव्वर राणा की आखिरी दो लाइनें पसंद मत कीजिए । सप्रेम
बहुत दिनों बाद हूँ नेट पर तो बारी-बारी देख रहा हूँ चिट्ठों को !
श्रीश जी के चिट्ठे से सीधे आप तक आया । वहाँ भी कह चुका हूँ, यहाँ भी कह रहा हूँ – सम्मोहन अजब है आपका । कुछ कुछ आप-सी तबियत बनाने लगे हैं श्रीश !
पूरी यात्रा में सबसे मिलना और फिर हम सबसे मिला देना सजीवतः – यह एक मूल्यवान बात लगती है मुझे !
इतने तफसील से लिखना भी कलाकारी है ! शेफाली जी के ड्राफ्ट नहीं चौंकाते मुझे ! अध्यापक-स्वभाव है यह ! ब्लॉगरी छुड़ा नहीं देगी !
मुझ-सा केवल कविताएं और अनुवाद ठेलने वाला पहले कागज पर ही लिखता है इधर-उधर !
आईला…. ये क्या ?
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Just got a Blogger bill, the system functions outstanding, but how do you identify distinct owners weblogs I enjoy with internet search. I am not looking at it now, besides the fact that i recall you will find a way. Thank you for your make it possible to..