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23 March 2014

वक़्त के कत्लखाने में -2

वक़्त के कत्लखाने में
सिमट कर बैठने की
कोशिश करती रूह
चाह कर भी
नहीं निकल पाती बाहर
बंद पिंजरे से ...
हो नहीं पाती आज़ाद
कई कोशिशों के बाद भी ....
वह मजबूर है
सुनने को
पल पल बिंधती देह की 
आहें....
जो बढ़ती ही जाती हैं
उम्र के ढलान पर ....
उभरती झुर्रियों के
खंजर
झेलने होंगे
आखिर कब तक ?
और
आखिर कब
कामयाब होगी
यूं फैली बैठी हुई रूह
पूरी तरह सिमट कर
अपने वर्तमान को
मिट्टी में मिलाने में .....
वो पल भी आएगा
अपने तय पल पर
मुझे इंतज़ार है
बेसब्री से
जब यह एहसास
लुढ़के पड़े मिलेंगे
किसी रोज़ ....
वक़्त के कत्लखाने में । 

~यशवन्त यश©

20 March 2014

वक़्त के कत्लखाने में

वक़्त के कत्लखाने में
कट कट कर
ज़िंदगी
नयी उम्मीदों की आस में
झेलती है
यादों के चुभते
हरे ज़ख़्मों की टीस....
ज़ख्म -
जिनके भरने का
भान होते ही
उन पर छिड़क दिया जाता है
नयी नयी बातों का
आयोडीन रहित
ताज़ा नमक....
जो कैद रखता है
दर्द को
नसों में भीतर तक
फिर भी निकलने नहीं देता
मूंह से एक भी आह
क्योंकि
वक़्त के कत्लखाने में
कट कट कर
ज़िंदगी
सुन्न ज़ुबान 
और सिले हुए होठों से 
बयां नहीं कर सकती 
अपनी तड़प 
बस
झेलती रहती है 
यादों के चुभते
हरे ज़ख़्मों की टीस
आज़ाद हो कर 
मुक्त आकाश में 
उड़ने की 
तमन्ना लिये। 

~यशवन्त यश©

17 March 2014

देखो होली का हुड़दंग


  लाल हरा पीला नीला
थोड़ा सूखा थोड़ा गीला
भर पिचकारी उड़ता रंग
देखो होली का हुड़दंग

बच्चा बच्चा भीगा भीगा
थोड़ा मस्त थोड़ा खीझा
गली गली में होती जंग
देखो होली का हुड़दंग

जैकब गुरमीत फरहा सीता
ठंडाई हर कोई पीता
प्लेट में गुझिया मस्त तरंग
देखो होली का हुड़दंग

खुशी से सबका गहरा नाता
त्योहार हमको यही बताता
मिलकर गले बिखरता रंग
देखो होली का हुड़दंग। 

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आप सभी को सपरिवार होली मुबारक
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~यशवन्त यश©

09 March 2014

हर कोई है यहाँ अपने मे मशगूल

हर कोई है यहाँ
अपने मे मशगूल
किसी को बीता कल याद है
और कोई
आज मे ही आबाद है
कोई डूबा है
आने वाले कल की चिंता में
कोई बेफिकर
देखता जा रहा है
मिट्टी के पुतलों के भीतर
छटपटाती आत्माओं की
बेचैनी ।

हाँ
हर कोई है यहाँ
मशगूल
बदलते वक्त के साथ
दर्पण में
खुद की बदलती
तस्वीर देखने में
पर सच तो यही है
कि इन तस्वीरों का यथार्थ
दिल दिमाग के
बदलने पर भी
नहीं बदलता
रंग रूप की तरह।

 ~यशवन्त यश©
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