By फ़ुरसतिया on February 14, 2010
हम इधर काम की कमी के चलते जरा बिजी जैसा कुछ हो गये। इस बीच देखते हैं कि ससुरा बसन्त आकर छा गया है। लोग बिना स्माइली लगाये हंसी-मजाक की बातें करने लगे हैं। चुहलबाजी के भाव चमक गये हैं। जैसे कोई ब्लॉगर ब्लॉगिंग छोड़ने के बाद लोगों के अपनापे के चलते वापस आ जाता […]
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By फ़ुरसतिया on September 25, 2009
पुष्प की गंध से कुछ खटक सी गई, नैंन-सैन चुंबन की ले-दे फ़टाफ़ट हुई। हवायें बेचारी सब गुमसुमा सी गईं शाम मारे शरम के हो गई सुरमई भौंरें भागे सभी सर पे धरे अपने पंख तितलियां फ़ूल में बस दुबक सी गयीं। कली जो सकुचाई खिल रही थी उधर वो बेचारी सहमकर झटक सी गयी। […]
Posted in कविता | Tagged कली, गंध, चुंबन, तितलियां, पुष्प, भौंरों |
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