Saturday, November 30, 2013

संस्कार किससे सीखे हम लोग ---- (विनोद कुमार पाण्डेय )

पिछले कई दिनों से देश में भ्रष्टाचार,नैतिकता,मानव मूल्य,संस्कार इत्यादि शब्दों पर काफी बहस हो रहें है,अपने अतीत और परिवेश का हुए उल्लेख करते मैं भी चर्चा में शामिल होना चाहता हूँ और अपना पक्ष रखता हूँ कि इसके क्या वजह हैं और सुधार कैसे हो सकता है । रचना अच्छी लगे तो अपनी प्रतिक्रिया दीजियेगा । धन्यवाद !!  

संस्कार किससे सीखे हम लोग,
जब अपना ही देश निराला है। 
मानव मुल्य गिर रहें  हैं क्यों,
सोचो कहाँ पे कहाँ गड़बड़ झाला है।| 
  
अलगथलग है पिता-पुत्र क्यों,बच्चों की अपनी दुनिया,
जज्बातों के लिए जगह ना,ना ही वो अटूट रिश्ता, 
स्वार्थ,काम और लालच में जब मानव लिप्त हुआ,
प्यार और अपनेपन के बंधन से मुक्त हुआ, 

भौतिक सुख की होड़ में आ कर,
हम सब ही ने रोग ये पाला है। 

श्रवण कुमार और नचिकेता के जैसे अब कहाँ विचार, 
सुनीति,कुंती के जैसी माँ,और पिता दशरथ सा प्यार,
लक्ष्मण जैसा भाई विरले भाग्यवान ही पाता है,  
रघुनन्दन के आदर्शो को कौन कहाँ अपनाता है,

संस्कार रह गए किताबी क्यों,
दाल में कुछ तो पक्का काला है। 

सावित्री सी पति धर्मिता,उर्मिला सा त्याग कहाँ,
कर्ण के जैसा मित्र नहीं अब,कान्हा सा अनुराग कहाँ, 
एकलव्य सा शिष्य भी नहीं,परशुराम आचार्य कहाँ,
राणा जैसा देश भक्त और ,दासी पन्नाधाय कहाँ,

एक बार इतिहास अगर दोहराए,
सुखमय होगा कल,जो आने वाला है।  

 बने नकलची हम पश्चिम के तो उसका परिणाम मिला,
 बात न माने हम अतीत की, तो उसका भी दाम मिला, 
 व्यस्त रहे सब नव पीढ़ी को नैतिकता समझाने में ,
 हर रिश्तों में चुक रह गई अपना फर्ज निभाने में,

 जो अतीत से सीख लिए और बांटें है, 
 उनके घर मिट गया अँधेरा सिर्फ उजाला है |  

Sunday, June 9, 2013

आदरणीय सरोजिनी कुलश्रेष्ठ जी के सम्मान समारोह में प्रस्तुत एक गीत --(विनोद कुमार पाण्डेय )

कुछ दिनों पहले ब्रजभाषा और हिंदी की मशहूर कवियित्री,सहित्यकारा,आदरणीय सरोजिनी कुलश्रेष्ठ जी का 91वां जन्मदिन मनाया गया | नवरत्न फ़ाउन्डेशन, कायाकल्प साहित्यिक संस्था,सनेही मंडल,फोनरवा,नोएडा नागरिक महासंघ,सूर्या संस्थान सहित अन्य सामाजिक और साहित्यिक संस्था में मिलकर यह कार्यक्रम आयोजित किया और सरोजिनी जी का सम्मान किया | बहुत भव्य प्रोग्राम में सरोजिनी जी के सम्मान में मुझे एक गीत गाने के लिए आमंत्रित किया | और प्रस्तुती के बाद जब मैं मंच से  उतर कर आया तो सरोजिनी कुलश्रेष्ठ जी सहित सबका बहुत ही प्यार और आशीर्वाद मिला जिसे मै अपने साहित्यिक जीवन की एक उपलब्धि मानता हूँ । आज आप सब के समक्ष आज वही गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ । धन्यवाद । 
 

जो पढ़ा है आपके बारे में वो सब सोचकर 
सोच में हूँ किस तरह से आपका वंदन करूँ 
बुद्धिजीवी सब यहाँ पर,मैं हूँ अदना सा कवि  
इस सभा में आपका मैं कैसे अभिनन्दन करूँ 

आपसे सीखा है हमने,मुस्कुराना दर्द में,
हर किसी के चोट पर मरहम,लगाना दर्द में 
जिंदगी संघर्ष है,जीता वहीँ,जिसने लड़ा 
आपके इस भाव पर मैं कैसे ना चिंतन करूँ 

जिंदगी शुरुआत से,संघर्ष की उपनाम थी 
रास्ते प्रतिकूल थे,और मंजिले गुमनाम थी 
पर हमेशा मुस्कुरा कर जिंदगी की चाह की
माँ के ऐसे रूप का मैं,ह्रदय से वंदन करूँ 

दुश्मनों से थी घिरी फिर भी जरा सी ना डरी 
दर्द के स्याही से तुमने प्रेम की रचना करी 
उम्र की दहलीज भी दहला न पाई आपको 
आपके इन हौसलों का क्यों न मैं वर्णन करूँ 

ज्ञान का दीपक दिखाया, शिक्षिका के रूप में,
छाँव अपनों को दिया और खुद खड़ी  थी धूप में
ये हुनर भी आप में है,मुझको तो आती नहीं 
 नोएडा के मंच को मैं,कैसे वृन्दावन करूँ 

इस सभा में गीत गाऊँ, ये मेरा सौभाग्य है 
आपके सानिध्य में है, ये हमारा भाग्य है 
जन्मदिन की है बधाई,साथ में उपहार में  
गीत अपना आज का मैं आपको अर्पन करूँ

Tuesday, May 21, 2013

उन्हें आसमान चाहिए,जिन्हें ऊँचाइयों से डर है..(विनोद कुमार पाण्डेय )

आज सिर्फ कुछ मुक्तक प्रस्तुत करता हूँ । 

1) मुझे इस बात की बिलकुल नहीं फिकर 
 है मेरे दोस्तों की आजकल टेढ़ी नजर
 मैं तो हैरान हूँ यह सोचकर तब से 
 कि वो नाराज है इंसानियत की बात पर 


2) उन्हें आसमान चाहिए, जिन्हें ऊँचाइयों से डर है 
खुद में है गुम वो, जिस शख्स पे सबकी नजर है 
अब आदमी भी किसी तिलिस्म से कम नहीं यारों 
उसे खुद की खबर नहीं है,जिसे सबकी खबर है

3) ख्यालों में डूबी फ़िज़ा चाहता हूँ,
मैं अपना अलग आसमाँ चाहता हूँ |
दुखे दिल किसी का जो मुझसे कभी,
उसी पल मैं उसकी सज़ा चाहता हूँ |

4) गण सारे गड़बड़ हुए,हुआ प्रदूषित तंत्र,
भ्रष्टाचार बन गया सबका,धन उपजाऊँ मंत्र|
तीन गुना भुखमरी बढ़ गई,बढ़ी ग़रीबी पाँच,
ये तो रही तरक्की अपनी,जब से हुए स्वतंत्र||

5) अंधों को माँ नई रोशनी, गूँगो को संवाद दीजिए, 
मूर्खों के दिमाग़ में थोड़ी, बुद्धि-वर्धक खाद दीजिए, 
नही चाहिए और हमें कुछ, एक अर्ज़ है माँ तुमसे, 
रहे ठसाठस पर्स हमेशा, ऐसा आशीर्वाद दीजिए

Sunday, December 23, 2012

तू आतंकी टाप गुरु----(विनोद कुमार पाण्डेय )

पिछले कुछ दिनों से एक आतंकवादी का नाम बहुत सुर्ख़ियों में है। मैंने भी अपनी प्रतिक्रिया स्वरूप कुछ लाइनें अपने अंदाज में लिखी है। देखिएगा, आपके प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा। 


तू आतंकी टाप गुरु 
तो हम तेरे बाप गुरु 

भारत के दिल पर हमला कर
की है तूने पाप गुरु 


आदम के स्वरूप में निकला  
तू विषधारी  साँप गुरु 


तेरी सजा देख आतंकी
भी  जायेंगे काँप गुरु 


मृत्युदंड निश्चित है तेरी
मौत से दुरी नाप गुरु


जितने दिन लिखा है जी ले
बक ले अनाप सनाप गुरु 


जप ले रब दा नाम गुरु
कर ले पश्चाताप गुरु 


हिन्दुस्तानी  मेहमानी में
माल मुफ्त का चांप गुरु 

Tuesday, December 11, 2012

दर्द ही जब दवा बन गई ---(विनोद कुमार पाण्डेय )

मित्रों,हास्य-व्यंग्य से थोडा हटकर एक ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ । अच्छा लगे तो  आशीर्वाद  दीजियेगा।|

दर्द ही जब दवा  बन गई 
मुस्कराहट अदा बन गई 

राह इतनी भी आसाँ न थी 
जिद मगर हौसला बन गई

सीख माँ ने  जो दी थी मुझे
उम्र भर की सदा बन गई 

संग दुआ जो पिता की रही 
बद्दुआ भी  दुआ बन गई 

पाप कहते थे जिसको  कभी 
छल-कपट  अब  कला बन गई  

झूठ वालों की इस भीड़ में 
बोलना  सच बला  बन गई  

चाँद से चाँदनी क्या मिली 
रात वो पूर्णिमा बन गई  

चूमना है गगन एक दिन 
ख्वाब अब प्रेरणा बन गई