मेरे शहर में आषाढ़ की घटाओं का राज है। रोज़ ठीक कार्यालय जाते वक़्त ही, अपना रौद्र रूप दिखा कर वो मुझे भिंगो डालती हैं। पर इसमें नई बात क्या है? ये बारिश तो इस मौसम में आपको भी गीला कर ही रही होगी।
ऊपरवाले की बरखा तो खाली शरीर भिगोती है ... पर अगर दिल में उदासी के बादल उमड़े घुमड़ें तो पूरा मन भींग जाता है... परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं कि नहीं चाहते हुए भी आपको मन की पुकार को अनसुना कर देना पड़ता है... नतीजन दिल की ये उदासी दर्द का रूप ले लेती है ... और जब ये दर्द असहनीय हो जाता है तो आँसुओं का बाँध टूट सा जाता है...
मयूर पुरी ने सीधे साधे लफ़्जों में यही कोशिश की है अपने इस गीत में। मैंने परसों पहली बार इस गीत को सुना और यक़ीन मानिए ये किसी भी तरह मेरे ज़ेहन से उतर नहीं रहा।
इसका सारा श्रेय जाता है असम के युवा गायक जुबीन गर्ग को। जुबीन मेरे चिट्ठे के लिए नए नहीं है। पिछले साल उनका एक गीत मेरी गीतमाला में शामिल था। इस खूबसूरती से उन्होंने गीत के बोलों का मर्म पकड़ा है कि उनके साथ गुनगुनाते - गुनगुनाते गीत ख़त्म होने तक आँखें नम हो जाती हैं। मुखड़े के बाद का उनका आलाप गीत को एक शास्त्रीय रंग देता है। अतिश्योक्ति नही होगी अगर मैं ये कहूँ कि ये गीत सच ही मन को बावरा बना देता है।
प्रीतम ने अपनी चिरपरिचित शैली में पश्चिमी और पूर्वी वाद्य यंत्रों का समायोजन किया है। गीत के अंतरे के बीच-बीच में बजती पश्चिमी बीट्स के साथ सारंगी की मधुर तान कानों तक पहुंचती है तो मन उसका कोर-कोर ज़ज़्ब करने को उद्यत हो जाता है।
तो लीजिए सुनिये 2006 में रिलीज हुई प्यार के साइड एफेक्ट्स का ये गीत।
feelin’ blue,feelin’ blue,feelin’ blue…
my heart sayscan't be, can't be, true…
only…, can't be through, my heart says can't be, can't be, true
जाने क्या चाहे मन... बावरा..
जाने क्या चाहे मन... बावरा..
अखियन मेरे.. सावन चला
अखियन मेरे.. सावन चला
जाने क्या चाहे मन... बावरा....सावन चला
feelin’ blue,feelin’ blue,feelin’ blue…
सघन, अचल सराबोर होवे
सजन, असुवन में क्या जोर होवे
क्या जोर होवे...
अपने जिया पे...
मन तो मरा ये मनचला
जाने क्या चाहे मन बावरा..
जाने क्या चाहे मन बावरा
अखियन मेरे.. सावन चला
पवन पुरवा में यूँ उड़ता जावे
बदरा चंदा से मन जुड़ता जाए
आवे हवा का...
झोंका फिर ऐसा..
टूटे पतंग की डोर सा
जाने क्या चाहे मन बावरा
अखियन मेरे.. सावन चला