Tuesday, May 5, 2009

क्यों लोग मनाते दीवाली (पांचवां भाग) - सतीश सक्सेना

लेकर निर्बल की हाय पुत्र , 
होगा जग में उद्धार   नहीं 
अपने दिल पर रख हाथ देख
आत्मा को  लज्जित पाओगे 
लज्जित मन से क्यों काम करो गंगा सा निर्मल मन लेकर 
निर्बल का ऋण लेकर मन पर, क्यों लोग मनाते दीवाली  ?

वैष्णवजन कहलाये वह ही 
जो कष्ट दूसरों का समझे !
पीड़ा औरों की निज मन में 
महसूस करे आगे  आकर !
सारे तीर्थों का सुख मिलता, सेवा निर्बल की करने में
अपने सुख की कामना लिए,क्यों लोग मनाते दीवाली ?

अन्याय सहन करने वाला 
अन्यायी से भी पापी  है  !
न्यायार्थ दंड भाई को दो, 
यह कर्मज्ञान है गीता का 
अन्यायी बन कर जीने से, कुल कीर्ति  नष्ट हो जाती है !
केशव की बातें बिसरा कर, क्यों लोग मनाते दीवाली  ?

वह दिन दिखलाओ महाशक्ति 
जिसमें कोई न , प्रपंच रहे !
धार्मिक पाखंड समाप्त करो 
वास्तविक साधू सन्यासी हों 
जाति वन्धन को काट मूल से,मुक्ति दिलाओ नरकों से 
अपराध बोध लेकर मन में, क्यों लोग मानते दीवाली ?
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